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बेल की खेती (Vine Farming) से सम्बंधित जानकारी
बेल एक बागबानी फसल है, जिसके फलो की खेती औषधीय रूप में भी की जाती है | इसकी जड़े, पत्ते, छाल और फलो को औषधीय रूप से इस्तेमाल में लाया जाता है | बेल को प्राचीन काल से ही ‘श्रीफल’ के नाम से भी जाना जाता है | इसके अलावा इसे शैलपत्र, सदाफल, पतिवात, बिल्व, लक्ष्मीपुत्र और शिवेष्ट के नाम से भी जानते है | हिन्दू धर्म में इस पौधे को बहुत ही पवित्र माना जाता है, तथा वैदिक संस्कृत साहित्य में इस वृक्ष को दिव्य वृक्ष का दर्जा दिया गया है | ऐसा भी कहा जाता है, कि इसकी जड़ो में महादेव शिव निवास करते है | जिस वजह से इस पेड़ को शिव का रूप भी कहते है |
बेल का फल पोषक तत्व और औषधीय गुणों से भरपूर होता है | इसमें विटामिन ए, बी, सी, कार्बोहाइड्रेट और खनिज तत्व की पर्याप्त मात्रा पायी जाती है | इससे अनेक प्रकार के पदार्थ मुरब्बा, शरबत को बनाया जाता है | यह एक सहनशील पौधा है, जिसे किसी भी तरह की जलवायु और भूमि में उगाया जा सकता है| मई और जून की गर्मियों में इसके पौधों से पत्तिया झड़ जाती है, जिस कारण शुष्क और अर्धशुष्क जलवायु को इसके पौधे आसानी से सहन कर लेते है | किसान भाई बेल की खेती कर अच्छा लाभ कमा रहे है| यदि आप भी बेल की खेती करने का मन बना रहे है, तो इस लेख में आपको बेल की खेती कैसे करें (Vine Farming in Hindi) तथा बेल की प्रजातियां इसके बारे में जानकारी दी जा रही है |
बेल की खेती कैसे करें (Vine Farming in Hindi)
भारत में बेल की खेती को उत्तर पूर्वी राज्यों में मुख्य रूप से उगाया जा रहा है | इसके अलावा झारखण्ड राज्य के तक़रीबन सभी जिलों में बेल की खेती अधिक मात्रा में की जा रही है| बेल की व्यापारिक खेती धनबाद, गिरिडीह, चतरा, कोडरमा, बोकारो, गढ़वा, देवघर, राँची, लातेहार और हजारीबाग में की जा सकती है|
बेल के फायदे (Bael Benefits)
बेल का फल स्वास्थ के लिए अधिक लाभकारी होता है | इसका सेवन कर कई तरह के रोगो की रोकथाम की जा सकती है | यह शरीर में होने वाली अनेक प्रकार की बीमारयो जैसे:- मूत्र रोग, वात विकार, पेचिश, ल्यूकोरिया, दस्त, डायबिटीज, बदहजमी, शरीर में कफ के लिए अधिक लाभकारी होता है |
बेल की तासीर (Bael Effect)
बेल की तासीर ठंडी होती है | जिस वजह से इसके फल को मुख्य रूप से मुरब्बा और पेय पदार्थो को बनाने के लिए इस्तेमाल में लाया जाता है | गर्मियों के मौसम में बाज़ारो में बेल का शर्बत लोगो द्वारा अधिक पसंद किया जाता है | यह पेट संबंधित अनेक प्रकार की बीमारियों में लाभकारी भी है |
बेल की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी, जलवायु और तापमान (Vine Cultivation Suitable Soil, Climate and Temperature)
बेल की खेती किसी भी उपजाऊ मिट्टी में की जा सकती है | इसकी फसल को पठारी, कंकरीली, बंजर, कठोर, रेतीली सभी तरह की भूमि में आसानी से ऊगा सकते है | किन्तु बलुई दोमट मिट्टी में इसकी पैदावार अधिक मात्रा में प्राप्त होती है | इसकी खेती में भूमि उचित जल-निकासी वाली होनी चाहिए, क्योकि जलभराव में इसके पौधों में कई रोग लग जाते है | इसकी खेती में भूमि का P.H. मान 5 से 8 के मध्य होना चाहिए |
बेल का पौधा शुष्क और अर्धशुष्क जलवायु वाला होता है | सामान्य सर्दी और गर्मी वाले मौसम में इसके पौधे अच्छे से विकास करते है | किन्तु अधिक समय तक सर्दी का मौसम बने रहने और गिरने वाला पाला पौधों को कुछ हानि पहुँचाता है | इसके पौधों को वर्षा की जरूरत नहीं होती है |
इसके पौधे सामान्य तापमान में अच्छे से विकास करते है | बेल के पौधे अधिकतम 50 डिग्री तथा न्यूनतम 0 डिग्री तापमान को आसानी से सहन कर सकते है, तथा 30 डिग्री तापमान पर पौधे अच्छे से विकास करते है |
बेल की प्रजातियां (Vine Species)
गोमा यशी
यह किस्म सेंट्रल हॉर्टिकल्चर एक्सपेरिमेंट स्टेशन, गोधरा (गुजरात) के माध्यम से तैयार किया गया है | इस क़िस्म की बेल कम समय में अधिक उत्पादन देने के लिए तैयार की गयी है | इस क़िस्म के एक पेड़ से सालाना 70 KG का उत्पादन प्राप्त हो जाता है |
नरेन्द्र बेल 5
बेल की यह क़िस्म नरेंद्र देव यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर एंड टेक्नोलॉजी, फैज़ाबाद द्वारा तैयार की गयी है | इसके पौधों में लगने वाला फल हल्का चपटा और सामान्य आकार का पाया जाता है, जो स्वाद में मीठा होता है | इसका पूर्ण विकसित पौधा प्रति वर्ष औसतन 70 से 80KG की पैदावार दे देता है |
नरेन्द्र बेल 7
इस क़िस्म के बेल में निकलने वाले फल आकार में बड़े होते है, जिसके एक फल का वजन तक़रीबन 3KG के आसपास होता है | इसका पूर्ण विकसित पौधा वर्ष में 80 KG का उत्पादन दे देता है | बेल की यह क़िस्म फैज़ाबाद, नरेंद्र देव यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर एंड टेक्नोलॉजी द्वारा तैयार की गयी है |
पंत अर्पणा
बेल की इस क़िस्म में पौधों पर अधिक शाखाएं पाई जाती है, जिस वजह से शाखाएं नीचे की और झुकी हुई होती है | इसमें निकलने वाले फल सामान्य आकार के होते है, जिसमे मीठा और स्वादिष्ट गुदा पाया जाता है | इसका एक पौधा एक वर्ष में 50 KG का उत्पादन दे देता है |
सी आई एस एच बी
बेल की इस क़िस्म को तैयार होने में सामान्य समय लगता है | इसके पौधे अप्रैल से मई माह तक पैदावार देना आरम्भ करदेते है | इसके पौधों में निकलने वाले फलो का आकार अंडाकार होता है, तथा फल स्वाद में स्वादिष्ठ और मीठे होते है |
पंत सुजाता
बेल की इस क़िस्म में निकलने वाले पौधे सामान्य लम्बाई के होते है, तथा पौधों पर बनने वाली शाखाए अधिक चौड़ी होती है | इसके पौधों पर निकलने वाले फलो का सिरा चपटा और आकार सामान्य होता है | इस क़िस्म में निकलने वाले फल हल्के पीले रंग होते है, जिसमे अधिक मात्रा में रेशेदार गुदा पाया जाता है |
नरेन्द्र बेल
इस क़िस्म के पौधों पर निकलने वाले फल आकार में गोल और अंडाकार पाए जाते है | इसके पौधों पर पूर्ण रूप से पके फलो का रंग हल्का पीला होता है, तथा फलो का गुदा अधिक मीठा होता है | इसके पूर्ण विकसित एक पौधे से 50 KG का उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है | यह क़िस्म फैज़ाबाद की नरेंद्र देव यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर एंड टेक्नोलॉजी द्वारा तैयार की गयी है |
पूसा उर्वशी
इस क़िस्म के पौधों की लम्बाई अधिक पाई जाती है, तथा यह क़िस्म कम समय में अधिक पैदावार दे देती है | इसके पौधों पर लगने वाले फल अंडाकार आकार के होते है, जिसमे गुदा अधिक मात्रा में पाया जाता है | इस क़िस्म का एक पौधा 60 से 80 KG की पैदावार दे देता है |
बेल के खेत की तैयारी और उवर्रक (Vine Field Preparation and Fertilizer)
बेल के पौधों की रोपाई गड्डो में की जाती है | इसलिए खेत में गड्डो को तैयार करने के लिए सबसे पहले खेत की गहरी जुताई कर दी जाती है | इसके बाद खेत को कुछ समय के लिए ऐसे ही खुला छोड़ दिया जाता है, इससे खेत की मिट्टी में सूर्य की धूप ठीक तरह से लग जाती है | इसके बाद कल्टीवेटर लगाकर खेत की दो से तीन तिरछी जुताई कर दी जाती है | जुताई के बाद खेत में पानी लगा दिया जाता है, पानी लगाने के पश्चात् जब खेत की मिट्टी ऊपर से सूखी दिखाई देने लगती है, उस दौरान रोटावेटर लगाकर खेत की जुताई कर दी जाती है, इससे खेत की मिट्टी भुरभुरी हो जाती है | मिट्टी को भुरभुरा करने के पश्चात पाटा लगाकर खेत को समतल कर दे |
इस तरह से खेत तैयार हो जाता है | इसके बाद समतल खेत में 6 मीटर की दूरी रखते हुए एक से डेढ़ फ़ीट चौड़े और एक फ़ीट गहरे गड्डो को तैयार कर लिया जाता है | यह सभी गड्डे खेत में 5 से 6 मीटर की दूरी रखते हुए कतारों में तैयार करे | इन गड्डो को तैयार करते समय उसमे रासायनिक और जैविक खाद को मिट्टी के साथ मिलाकर गड्डो में भर दिया जाता है | इसके लिए 10 KG जैविक खाद और 50GM पोटाश, 50GM नाइट्रोजन और 25GM फास्फोरस की मात्रा को ठीक तरह से मिट्टी में मिलाकर गड्डो में भर दे |
यह सभी गड्डे पौध रोपाई से एक माह पूर्व तैयार किये जाते है | उवर्रक की इस मात्रा को पौधों पर फल लगने के समय तक देना होता है, तथा पूर्ण रूप से तैयार पौधे को वर्ष में 20 से 25KG जैविक खाद तथा 1KG रासायनिक खाद की मात्रा को देना होता है | उवर्रक की मात्रा देने के पश्चात् खेत की सिंचाई कर दी जाती है, इससे पौधों की जड़ो तक पोषक तत्व आसानी से पहुंच जाते है |
बेल के पौधों की रोपाई का सही समय और तरीका (Vine Plants Right time and Method of Transplanting)
बेल के बीज की रोपाई पौध के रूप में की जाती है | इन पौधों को खेत में तैयार कर लिया जाता है, या किसी सरकारी रजिस्टर्ड नर्सरी से खरीद लिया जाता है | इसके बाद इन पौधों को खेत में एक महीने पूर्व तैयार गड्डो में लगा दिया जाता है | पौधा रोपाई से पहले तैयार गड्डो के बीच में एक छोटे आकार का गड्डा बना लिया जाता है | इसी छोटे गड्डे में पौधों की रोपाई कर उसे चारो तरफ अच्छे से मिट्टी से ढक दिया जाता है |
पौध रोपाई से पूर्व बाविस्टीन या गोमूत्र की उचित मात्रा से गड्डो को उपचारित कर लिया जाता है | इससे पौधों को आरम्भ में रोग लगने का खतरा कम हो जाता है, और पौधों का विकास भी अच्छे से होता है | बेल के पौधों की रोपाई किसी भी समय की जा सकती है, किन्तु सर्दियों का मौसम पौध रोपाई के लिए उपयुक्त नहीं होता है | यदि किसान भाई बेल की खेती व्यापारिक तौर पर कर रहे है, तो उन्हें पौधों की रोपाई मई और जून के महीने में कर देना चाहिए| सिंचित जगहों पर इसके पौधों की रोपाई मार्च के महीने में भी की जा सकती है |
बेल के पौधों की सिंचाई (Vine Plants Irrigation)
बेल के पौधों को अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है | इसकी पहली सिंचाई पौध रोपाई के तुरंत बाद कर दी जाती है | इसके अलावा गर्मियों के मौसम में इसके पौधों को 8 से 10 दिन के अंतराल में पानी देना होता है, तथा सर्दियों के मौसम में इसके पौधों को 15 से 20 दिन के अंतराल में पानी दे | बारिश के मौसम में जरूरत पड़ने पर ही पौधों को पानी दे | जब इसका पौधा पूर्ण रूप से विकसित हो जाता है, उस दौरान इसके पेड़ो को वर्ष में केवल 4 से 5 सिंचाई की ही आवश्यकता होती है |
बेल के पौधों पर खरपतवार नियंत्रण (Vine Plants Weed Control)
बेल के पौधों पर खरपतवार नियंत्रण के लिए प्राकृतिक विधि निराई – गुड़ाई का इस्तेमाल किया जाता है | इसकी फसल में पहली गुड़ाई खेत में खरपतवार दिखाई देने पर की जाती है | आरम्भ में इसके पौधों को एक वर्ष में केवल चार से पांच गुड़ाई की ही जरूरत होती है | बेल के बड़े पौधों को अधिक गुड़ाई की आवश्यकता नहीं होती है, जब इसका पेड़ 7 वर्ष पुराना हो जाता है, उस दौरान वर्ष में केवल एक से दो गुड़ाई ही करे |
बेल की फसल से अतिरिक्त कमाई (Vine Crop Eextra Income)
बेल की फसल को तैयार होने में कई वर्षो का समय लग जाता है | इस दौरान यदि किसान भाई चाहे तो पौधों के मध्य खाली पड़ी भूमि में औषधि, सब्जी और कम समय में तैयार होने वाली मसाला फसलों को उगाकर पैदावार प्राप्त कर सकते है | इससे किसान भाई बेल की फसल तैयार होने तक अन्य फसलों का उत्पादन कर अतिरिक्त कमाई कर सकते है, जिससे उन्हें आर्थिक परशानियों का सामना नहीं करना पड़ेगा |
बेल के पौधों में लगने वाले रोग एवं उनकी रोकथाम (Vine Plants Diseases and Prevention)
बेल की फसल में भी अनेक प्रकार के रोग देखने को मिल जाते है | यदि इन रोगो का उपचार सही समय पर नहीं किया जाता है, तो पैदावार में अधिक हानि देखने को मिल सकती है | यहाँ पर आपको ऐसे ही कुछ रोग और उनकी रोकथाम कैसे करे के बारे में बताया जा रहा है |
क्रम संख्या | रोग | रोग का प्रकार | उपचार |
1. | बेल कैंकर | फफूंद | कॉपर ऑक्सीक्लोराइड या स्ट्रेप्टोसाइक्लिन सल्फेट का छिड़काव |
2. | डाई बैक | फफूंद | कॉपर ऑक्सीक्लोराइड का छिड़काव |
3. | छोटे फलों का गिरना | फफूंद | कार्बेन्डाजिमका छिड़काव |
4. | पत्ती पर काला धब्बा | फफूंद | बाविस्टिन का छिड़काव |
5. | चितकबरी सुंडी | कीट | नीम के तेल या थियोडेन का छिड़काव |
6. | सफेद फंगल | फफूंद | मिथाइल पैराथियान और गम एकेशियाका छिड़काव |
बेल के फलो की तुड़ाई, पैदावार और लाभ (Bael Fruit Harvesting, Yield and Benefits)
बेल के पौधों को पैदावार देने में 7 वर्षा का समय लग जाता है | जब इसके पौधों पर लगे फल हरे, पीले रंग के दिखाई देने लगे, उस दौरान फलो की तुड़ाई कर ले | फलो की तुड़ाई कर उन्हें बाजार में बेचने के लिए एकत्रित कर ले | बेल के एक पौधे से आरम्भ में तक़रीबन 40KG का उत्पादन प्राप्त हो जाता है | यह उत्पादन पेड़ की आयु बढ़ने के साथ-साथ बढ़ जाता है | बेल का बाज़ारी भाव काफी अच्छा होता है, जिससे किसान भाई बेल की खेती कर अच्छा लाभ कमा सकते है |