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टिंडा की खेती (Tinda Farming) से सम्बंधित जानकारी
टिंडे की खेती सब्जी फसल के लिए की जाती है | इसे Round Gourd, Round melon और Indian Squash के नाम से भी जानते है | गर्मियों में उगने वाली यह उत्तर भारत की सबसे महत्वपूर्ण सब्जी हैं | टिंडा भारतीय मूल की फसल है, जिसका संबंध कुकरबिटेसी प्रजाति से है | इसके कच्चे फल का सेवन सब्जी के रूप में किया जाता है | 100 GM कच्चे टिंडे में 3.4% कार्बोहाइड्रेट, 18 MG विटामिन, 13 MG कैरोटीन, 1.4% प्रोटीन और 0.4% वसा की मात्रा पाई जाती है | जिस वजह से टिंडा स्वाद के साथ-साथ कई औषधीय गुणों के लिए भी जाना जाता है | यह रक्त संचार और सूखी खांसी के उपचार में उपयोगी है |
उत्तर भारत में टिंडे की खेती खरीफ के सीजन में की जाती है, तथा दुनियाभर में इसे सिट्रुलस वुलगेरियस वनस्पतिक नाम से जानते है | टिंडे की खेती उत्तर भारत समेत दिल्ली, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश , हरियाणा, पंजाब, बिहार, आंध्रप्रदेश और राजस्थान में होती है | इस फसल की खासियत यह है, कि इसे गर्मी और बारिश के मौसम में किया जाता है| अगर आप भी टिंडे की खेती करना चाह रहे है, तो यहाँ पर आपको टिंडा की खेती कैसे करें (Tinda Ki Kheti in Hindi) [समय व लागत] के बारे में बताया जा रहा है |
टिंडे की खेती सहायक भूमि व जलवायु (Cultivation of Tinde Auxiliary Land and Climate)
टिंडे की फसल गर्म और शुष्क जलवायु वाली होती है | इसका बीज 27-30 डिग्री के तापमान पर अच्छे से अंकुरित होता है | इसकी खेती कई तरह की भूमि में की जा सकती है, किन्तु बलुई दोमट या दोमट मिट्टी उपज के लिए अच्छी मानी जाती है | अधिक उपज और उच्च गुणवत्ता के लिए 6 से 7 के मध्य P.H. मान वाली भूमि में टिंडे की खेती करे | नदी के किनारो पर भी टिंडे की खेती की जा सकती है |
टिंडे की उन्नत किस्में (Tinde Improved Varieties)
- टिंडा 48 :- टिंडे की इस किस्म की बेल 75 से 100 CM लंबी होती है| इसमें निकलने वाले पत्ते हल्के हरे रंग के होते है, तथा फल आकार में सामान्य, गोल और चमकीला हरा होता है | यह क़िस्म प्रति एकड़ के हिसाब से 25 क्विंटल का उत्पादन दे देती है |
- टिंडा लुधियाना :- इस क़िस्म में निकलने वाला टिंडा आकार में सामान्य समतल गोल और हरे रंग का होता है | इसकी प्रत्येक बेल पर 8 से 10 फल आते है | जिसका गुदा काफी मुलायम और सफ़ेद रंग का होता है | कम बीज वाले फलो की गुणवत्ता पकने पर काफी बढ़िया होती है | यह क़िस्म बुवाई के 60 दिन पश्चात् तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है | इसका प्रति एकड़ औसतन उत्पादन 18-24 क्विंटल होता है |
- पंजाब टिंडा -1:- इस क़िस्म को वर्ष 2018 में विकसित किया गया था | इसमें निकलने वाला पत्ता हरा और थोड़ा मुड़ा हुआ होता है | टिंडे की यह क़िस्म कम समय में तैयार हो जाती है | इसकी बिजाई बसंत ऋतु के लिए अनुकूल होती है | इसका फल गोल, चमकदार, नर्म और सफ़ेद गूदे वाला होता हैं | इस क़िस्म के टिंडे के एक फल का औसतन भार 60 GM होता है | यह क़िस्म बुवाई के 54 दिन पश्चात् पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है | इस क़िस्म का प्रति एकड़ उत्पादन 72 क्विंटल है |
अन्य राज्यों में उगाई जाने वाली किस्में :-
- अर्का टिंडा |
- अनामलाई टिंडा |
- महीको टिंडा |
- स्वाति टिंडा |
टिंडे के खेत की तैयारी (Tinde Farm Preparation)
टिंडे के खेत को तैयार करते समय सबसे पहले उसकी दो-दो जुताई हैरो और कल्टीवेटर लगाकर करवा दे | इसके बाद पाटा लगाकर खेत को समतल कर ले | खेत की जुताई से पहले खेत में 8 से 10 टन गला हुआ गोबर प्रति एकड़ के क्षेत्रफल के हिसाब से डालें | इसके बाद खेती के लिए बैड बना ले | टिंडे के बीजो को नालियों या गड्डो में बो सकते है |
टिंडे के बीजो की बुवाई का समय व बीज की मात्रा (Tinda Seeds Sowing Time and Seed Quantity)
टिंडे की फसल से अच्छी उपज लेने के लिए बीजो की बुवाई समय पर करे | देश के उत्तरी मैदानी इलाको में इसे वर्ष में 2 बार बोया जाता है | जिसमे इसकी पहली बुवाई फ़रवरी से अप्रैल के महीने में तथा दूसरी बुवाई जून से जुलाई के महीने में की जाती है | टिंडे की फसल की बुवाई में स्वस्थ, सुडौल और उच्च गुणवत्ता वाले बीजो का इस्तेमाल करना चाहिए, तथा एक एकड़ के खेत में बुवाई करने के लिए 4 से 5 KG बीज पर्याप्त होते है |
टिंडे के बीजो की बुवाई का तरीका (Tinde Seeds Sowing Method)
टिंडे के बीजो की बुवाई थालो में करे| इसमें लाइन से लाइन की दूरी लगभग 2 से 2.5 मीटर होनी चाहिए, तथा थालो के मध्य 1 से 1.5 मीटर की दूरी रखी जाती है | इस बात का ध्यान रखे की एक थाले में 4 से 5 बीजो की बुवाई करे | टिंडा बीज अंकुरण के पश्चात् सिर्फ दो स्वस्थ पौधों को छोड़े, तथा बाकी के पौधों को उखाड़कर हटा दे | इस तरह से पौधे का विकास अच्छे से होता हैं |
टिंडे की फसल में खाद व् उवर्रक (Tinda Crop Manure and Fertilizer)
टिंडे की फसल में खेत को तैयार करने के दौरान उसमे गोबर की खाद को पूरी तरह से मिला दे | इसके बाद रासायनिक उवर्रक जैसे :- पोटाश, नाइट्रोजन और फास्फोरस की उचित मात्रा को खेत में डालकर उसकी जुताई करवा दे | इसके बाद नाइट्रोजन की आधी मात्रा का छिड़काव खड़ी फसल में करे |
टिंडा फसल की सिंचाई (Tinda Crop Irrigation)
टिंडा फसल को लगातार पानी देना होता है | क्योकि यह जल्द तैयार होने वाली फसल है | इसकी पहली सिंचाई बिजाई के दूसरे या तीसरे दिन कर देनी चाहिए | गर्मियों के मौसम में मिट्टी की किस्म और जलवायु के अनुसार 4 से 5 दिन के अंतराल में सिंचाई करना होता है | वर्षा ऋतु के मौसम में वर्षा आवृति के अनुसार सिंचाई करे | टिंडे की फसल में ड्रिप विधि द्वारा सिंचाई करने पर 28% तक अधिक पैदावार मिलती है |
टिंडा फसल रोग व् उपचार (Tinda Crop Disease and Treatment)
- तेला और चेपा रोग :- यह रोग पत्तो का रस चूस लेता है, जिससे पत्ता पीला पड़कर मुरझा जाता है | तेले के कारण पत्ते का आकार मुड़कर कपनुमा हो जाता है | इस रोग से बचाव के लिए 15 लीटर पानी में 5 GM थाइमैथोक्सम को मिलाकर स्प्रे फसल पर करे |
- पत्तों पर सफेद धब्बे :- इस रोग से प्रभावित होने पर पत्ते की ऊपरी सतह पर सफ़ेद रंग का पाउडर जमा हो जाता है | इससे बचाव के लिए 10 लीटर पानी में घुलनशील 20 ग्राम सल्फर को मिलाकर उसका छिड़काव 10 दिन के अंतराल में 2-3 बार करे |
- एंथ्राक्नोस :- इस रोग से प्रभावित पौधे का पत्ता झुलसा हुआ दिखाई देता है | एंथ्राक्नोस रोग की रोकथाम के लिए 2 GM कार्बेनडाज़िम की मात्रा से प्रति किलोग्राम बीजो को उपचारित किया जाता है | यह रोग खेत में दिखाई देने पर 2 GM मैनकोजेब या 0.5 GM कार्बेनडाज़िम की मात्रा प्रति लीटर पानी में डालकर स्प्रे करे |
टिंडे की पैदावार और कमाई (Tinda Production and Earnings)
टिंडे की फसल किस्म के आधार पर औसतन 60 दिन में तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है | इसकी तुड़ाई 4-5 के अंतराल में की जाती है | एक हेक्टेयर के खेत से 80 से 120 क्विंटल टिंडे का उत्पादन मिल जाता है | टिंडे का बाजारी भाव 25 से 30 रूपए प्रति किलो होता है, जो कमाई के रूप से काफी किफायती है |