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इमली की खेती (Tamarind Farming) से सम्बंधित जानकारी
इमली की खेती खाने में स्वाद उत्पन्न करने वाले फल के रूप में की जाती है | इसका खेती विशेष फलो के लिए करते है, जिसे अधिकतर वर्षा वाले क्षेत्रों में उगाया जाता है | इमली अफ़्रीकी मूल का उष्णकटिबंधीय पौधा है, जिसे अब अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और पूरे दक्षिण पूर्व एशिया में उगाया जाने लगा है | यह एक बहुत ही लोकप्रिय वृक्ष हैं जो फल के साथ-साथ ईंधन उपयोगी लकड़ी भी देता है | भारत में इमली की खेती महाराष्ट्र, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, कर्नाटक और उड़ीसा जैसे राज्यों में खासकर की जाती है | तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश के क्षेत्र में इमली का इस्तेमाल स्वादिष्ट मसाले के लिए करते है |
इसके अलावा सांभर, रसम, वता कुज़ंबू और पुलियोगरे बनाते समय इमली का इस्तेमाल विशेष तौर पर करते है | भारतीय चटनी इमली के बिना अधूरी मानी जाती है, तथा इसके फूलो का इस्तेमाल भी स्वादिष्ट पकवान बनाने के लिए करते है | यदि आप भी इमली के फलो का उत्पादन करना चाहते है, तो इस लेख में आपको इमली की खेती कैसे करें (Tamarind Farming in Hindi) तथा इमली के फायदे और नुकसान के बारे में बता रहे है |
इमली की खेती में जलवायु और भूमि (Climate and Soil in Tamarind Cultivation)
इमली की खेती के लिए किसी विशेष भूमि की जरूरत नहीं होती है | किन्तु नमी युक्त गहरी जलोढ़ व दोमट मिट्टी में इमली की अच्छी पैदावार मिल जाती है | इसके अलावा बलुई, दोमट और लवण युक्त मृदा मिट्टी में भी इसका पौधा वृद्धि कर लेता है |
इमली का पौधा उष्ण कटिबंधीय जलवायु का होता है | यह गर्मियों में गर्म हवाओ और लू को भी आसानी से सहन कर लेता है | किन्तु सर्दियों का पाला पौधो की वृद्धि पर बुरा प्रभाव डालता है |
इमली की उन्नत किस्में (Tamarind Improved Varieties)
- पि के ऍम 1
- उरगम
- तेतेली
- तेंतुल
- आमली
- पुली
- डालिमा
- तिंतिरी
- आमली
- पूली
- चिंतपांडु
इमली के खेत की तैयारी (Tamarind Field Preparation)
इमली की फसल उगाने से पहले खेत की जुताई कर मिट्टी को भुरभुरा कर लिया जाता है | इसके बाद उसमे पौधो को लगाने के लिए मेड़ तैयार कर ली जाती है | इन मेड़ पर ही पौधो को लगाना होता है | इमली के पौधे अच्छे से विकास कर सके | इसके लिए खेत तैयार करते समय उसमे गोबर की सड़ी खाद या वर्मी कंपोस्ट की मात्रा को पौध रोपण के दौरान मिट्टी में मिलाकर गड्डो में भरना होता है | इसके अलावा रासायनिक उवर्रक की मात्रा मिट्टी परीक्षण के आधार पर दी जाती है |
इमली के पौध की तैयारी (Tamarind Seedlings Preparation)
इमली के फसल की बुवाई पौध तैयार कर की जाती है | पौधो को तैयार करने के लिए सिंचित भूमि का चयन किया जाता है | मार्च के महीने में खेत की जुताई कर पौध रोपाई के लिए क्यारियों को तैयार कर लेते है | इसका अलावा क्यारियों की सिंचाई के लिए नालिया भी तैयार कर ली जाती है | इन क्यारियों को 1X5 मीटर लंबा और चौड़ा तैयार किया जाता है | इसके बाद बीजो को मार्च के दूसरे सप्ताह से लेकर अप्रैल के पहले सप्ताह तक लगाया जाता है | बीजो के अच्छे अंकुरण के लिए उन्हें 24 घंटो तक पानी में भिगोना चाहिए |
खेत में तैयार क्यारियों में इमली के बीजो को 6 से 7 CM की गहराई और 15 से 20 CM की दूरी पर कतारों में लगाया जाता है | जिसके एक सप्ताह बाद बीजो का अंकुरण होने लगता है, तथा एक माह बाद बीज पूर्ण रूप से अंकुरित हो जाता है | इस दौरान खेत में नमी बनाए रखने के लिए समय-समय पर सिंचाई जरूर करे |
इमली के पौधो का रोपण (Tamarind Plant Planting)
नर्सरी में तैयार किए गए पौधो को लगाने के लिए एक घन फ़ीट आकार वाले खेत में गड्डे तैयार किए जाते है | इन गड्डो को 4X4 मीटर या 5X5 मीटर की दूरी पर तैयार किया जाता है | यदि आप पौधो को बाग़ के रूप में लगाना चाहते है, तो आधा घन मीटर वाले गड्डो को 10 से 12 मीटर की दूरी पर तैयार करे | नर्सरी में तैयार किए गए पौधो को भूमि से पिंडी सहित निकाले तथा खेत में लगाने के पश्चात उचित मात्रा में पानी दे |
इमली के बीज (Tamarind Seeds)
इमली के बीजो को प्राप्त करने के लिए पेड़ पर फलियों को पूरी तरह से पकने देते है | इसके बाद उनकी तुड़ाई कर ली जाती है, और उन्हें एकत्रित कर तेज धूप में 10 से 12 दिन तक अच्छे से सुखा लिया जाता है | सूखी हुई फलियों का छिलका ढीला पड़ जाता है, जिसे हाथ से आसानी से निकाल देते है | इमली की एक फली से 8 से 12 बीज मिल जाते है, जिन्हे पानी से धोकर और सुखाकर भंडारित कर लिया जाता है | एक किलोग्राम की मात्रा में तक़रीबन 900 से 1000 बीज होते है, तथा हल्के और छोटे बीजो की संख्या 1800 से 2000 तक हो सकती है |
इमली के पौधो की सिंचाई व खरपतवार नियंत्रण (Tamarind Plants Irrigation and Weed Control)
इमली के पौधो की सामान्य सिंचाई करनी चाहिए | गर्मियों के मौसम में इसके पौधो को खेत में नमी रहने के अनुसार पानी देना चाहिए, तथा सिंचाई करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखे की खेत में जलभराव न होने पाए | सर्दियों के मौसम में पौधो को 10 से 15 दिन के अंतराल मेंपानी दे, तथा बारिश के मौसम में जरूरत पड़ने पर सिंचाई की जाती है |
इमली की फसल में खरपतवार पर भी विशेष ध्यान देना चाहिए | इसके लिए जरूरत के अनुसार खरपतवार निकालने के लिए प्राकृतिक विधि द्वारा निराई – गुड़ाई की जाती है |
इमली की फसल के रोग व उपचार (Tamarind Crop Diseases and Treatment)
स्क्लेरोशियम रोल्फसाई किस्म का कवक रोग इमली के पौधो पर अंकुरण के समय या बाद में देखने को मिलता है | यह रोग पौधो में विगलन का कारण होता है | इस रोग से बचाव के लिए रोगग्रस्त पत्तियों, फलियों व टहनियों को काट कर हटा दे, तथा बीजो की बुवाई कवकनाशी दवा से उपचारित कर करना चाहिए |
इसके अतिरिक्त इमली के पौधो पर कई तरह के कीट भी आक्रमण करते है | इसमें तना भेदक कीट मुख्य रूप से फलियों और पत्तियों पर आक्रमण करता है, तथा भंडारित किए हुए बीजो में भी यह कीट रोग देखने को मिल सकता है | इस रोग से बचाव के लिए फसल में कीटनाशक दवा का छिड़काव करे, तथा बीजो को भंडारित करने से पहले कीट रोधी दवा से उपचारित कर ले |
इमली की फसल की कटाई और पैदावार (Tamarind Crop Harvesting and Yield)
इमली के पौधो को तैयार होने में 7 से 8 वर्षा का समय लग जाता है, तथा ग्राफ्टिंग या कलम द्वारा तैयार पौधे 4 से 5 वर्ष बाद फसल देने लगते है | जनवरी से अप्रैल के महीने में फसल की कटाई की जाती है |
इमली के एक वृक्ष से औसतन 50 से 100 KG फलियों का उत्पादन मिल जाता है, तथा पूर्ण विकसित पेड़ वर्ष में तकरीबन 2 क्विंटल तक फलियों की पैदावार दे देता है |
इमली के फायदे और नुकसान (Tamarind Benefits and Harms)
- इमली में विटामिन सी और एंटी ऑक्सीडेंट के गुण पाए जाते है, जिस वजह से यह इम्यून सिस्टम को स्ट्रांग करता है |
- गर्मियों के मौसम में लू से बचने के लिए इमली के पानी का सेवन करना चाहिए | इसके लिए एक ग्लास पानी में तक़रीबन 25 GM इमली को भिगो दे और उसका पानी पी जाए |
- इमली में एंटीऑक्सीडेंट की भरपूर मात्रा के साथ टैरट्रिक एसिड भी मौजूद होता है, जो शरीर में कैंसर के खतरे को कम कर कैंसर सेल्स को बढ़ने से रोकता है |
- यदि किसी व्यक्ति को बिच्छू काट लेता है, तो काटे गए स्थान पर तुरंत ही इमली को लगाए, इससे फायदा मिलता है |
- यदि आप मोटापे से परेशान है तो आप इमली का सेवन कर मोटापे को कम कर सकते है | इसमें हाइड्रोसिट्रिकनामक एसिड पाया जाता है, जो शरीर के फैट को कम कर मोटापे को बढ़ने से रोकता है, और साथ ओवरईटिंग करने से भी बचाता है |
- इमली का अधिक सेवन स्तनपान कराने वाली महिलाओ या गर्भवती महिलाओ के लिए हानिकारक होता है |
- जिन लोगो को इमली से एलर्जी हो उन्हें इमली का सेवन करने से खुजली, सूजन, उल्टी और स्किन पर चकत्ते जैसी समस्याए हो सकती है |
- इमली का सेवन खून को पतला करता है, जिस वजह से इसका अधिक सेवन करने से बचना चाहिए |
- गले में खरास जैसी समस्या से जूझ रहे व्यक्तियों को इमली या अत्यधिक अम्लीय पदार्थो के सेवन से बचना चाहिए |
- डायबिटीज के मरीज जो शुगर संबंधित दवा या इंसुलिन का उपयोग कर रहे हो, वह भी इमली का सेवन न करे |
- इमली ब्लड शुगर के स्तर को कम करता है, जिस वजह से सर्जरी कराने वाले व्यक्तियों को सर्जरी से दो सप्ताह पहले से ही इमली बिल्कुल नहीं खानी चाहिए |
- यदि आप नियमित रूप से इमली खा रहे है, तो आपके दांतो को हानि हो सकती है, क्योकि इसमें एसिडिक तत्व होता है | यह तत्व दांतो की सतह को कमजोर करता है, जिससे दन्त क्षरण हो सकता है |