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चिरायता की खेती (Swertia Chirata Farming) से सम्बंधित जानकरी
चिरायता की खेती औषधीय पौधे के लिए की जाती है | इसे ऊंचाई वाली जगहों पर उगाया जाता है | इसका पौधा कड़वा और बहुशाखित, एकवर्षीय/द्विवर्षीय 1.5 मीटर लंबा होता है | इसके पौधे का तना चार कोणीय धर्वमुखी ऊर्ध्वमुखी और नीचे से बेलनाकार होता है | जिसमे निकलने वाली पत्तियां चौड़ी, विपरीत, भालाकार और स्थानबद्ध होती है | चिरायता का पौधा समशीतोष्ण क्षेत्रों में समुद्र तल से 1200 से 1300 मीटर की ऊंचाई पर तेजी से वृद्धि करता है |
यह एक बहुत ही लाभकारी ओषधि पौधा होता है, जिसकी बाजार में बहुत अधिक मांग रहती है | किसान भाई चिरायते की खेती कर तगड़ा मुनाफा कमाते है | यदि आप भी चिरायते की खेती करना चाह रहे है, तो इस लेख में आपको चिरायता की खेती कैसे होती है (Swertia Chirata Farming in Hindi) तथा चिरायता का भाव कितना होता है, की जानकारी दे रहे है |
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चिरायता (Absinthe) क्या है
चिरायता एक लोकप्रिय जड़ी बूटी वाला आयुर्वेदिक पौधा है, जिसे हिमालय के उप समशीतोष्ण क्षेत्रों में भारत से लेकर भूटान तक उगाया जाता है | चिरायता स्वाद में कड़वा होता है | चिरायते का पौधा सामान्य रूप से 3 से 4 फ़ीट तक ऊँचा होता है, जिसमे बैंगनी, हरे और पीले रंग के फूल निकलते है |
चिरायता का उपयोग (Salicylic Uses)
- चिरायते के तक़रीबन 60ML अर्क का सेवन दिन में दो बार खाने से पहले टॉनिक के रूप में करे, इससे शरीर में ऊर्जा उत्पन्न होती है |
- चिरायते के साथ लोंग या दालचीनी को पानी में डालकर खोला ले, इसकी 15 से 30ML या 1 से 2 चमच्च का सेवन करे |
- चिरायते की जड़ की 0.5 से 2 GM तक की मात्रा के साथ शहद मिलाकर उसकी खुराक तैयार कर ले | हिचकी और उल्टी आने पर इस खुराक को खाए |
- चिरायते के पत्तो का जूस पिए | यह अधिक कड़वा होता है, आप शहद के साथ भी इसे पी सकते है |
चिरायते के फायदे (Absinthe Benefits)
- खांसी, जुकाम और बुखार के लिए:- खासी, जुकाम और बुखार का घरेलु उपचार चिरायते से ही किया जाता है | सर्दी जुकाम जैसी समस्याए वायरल इन्फेक्शन के कारण उत्पन्न होती है | चिरायते में मौजूद एंटी वायरल गुण इन समस्याओ में फायदेमंद साबित होता है | बुखार खांसी और जुकाम से राहत पाने के लिए चिरायते की जड़ का इस्तेमाल करते है |
- इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए:- शरीर की इम्युनिटी बढ़ाने में भी चिरायता फायदेमंद होता है | इसमें मैग्निफेरिन बायोएक्टिव कंपाउंड पाया जाता है | जिस वजह से यह यौगिक इम्यूनोमॉड्यूलेटरी के प्रभाव को प्रदर्शित करने का कार्य करता है | इसी प्रभाव की वजह से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता जरूरत के अनुसार कार्य करती है |
- ब्लड शुगर:-NCBI (National Center for Biotechnology Information) द्वारा पब्लिश एक रिसर्च में इस बात का जिक्र किया गया है, कि चिरायता ब्लड शुगर के स्तर को कम करने में मदद करता है | शोध में पाता चला है, कि चिरायते में अमारोगेंटिन बायोएक्टिव कंपाउंड की उपस्थिति पाई जाती है, जो डायबिटीज के प्रभाव को दर्शाती है | यही एक वजह है, की चिरायता ब्लड शुगर को नियंत्रित कर सकता है |
- एनीमिया:- चिरायता शरीर में खून की कमी नहीं होने देता है, जिस वजह से इसे आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों के तौर पर इस्तेमाल करते है | इसकी पत्तियों में विटामिन और खनिज हेमाटिनिक का प्रभाव पाया जाता है, जो शरीर में खून की मात्रा को बढ़ाने में सहायक हो सकता है | एनीमिया के घरेलु उपचार में इसका उपयोग किया जा सकता है |
- लीवर के लिए:- वर्षो से ही लीवर संबंधी विकारो के उपचार के लिए चिरायते के पौधो का इस्तेमाल किया जा रहा है | एक रिपोर्ट के अनुसार इसमें स्वेरचिरिन कंपाउंड मौजूद होता है, जो हेपटोप्रोटेक्टिव गतिविधियों को प्रदर्शित करता है | यह लीवर को हेपेटाइटिस, हेपेटाइटिस-बी और हेपेटाइटिस सी से भी बचाता है |
- स्वस्थ पाचन के लिए:- पाचन क्रिया को स्वस्थ बनाने के लिए चिरायता एक बेहतर विकल्प है | चिरायते की कड़वाहट गैस्ट्रिक जूस को उत्तेजित कर अधिक मात्रा में लार का निर्माण करता है, जिससे अपच जैसी समस्या दूर हो जाती है | यह पित्त के स्राव को बढ़ाकर भी पाचन को सुधारता है |
- मलेरिया के बुखार में:- मलेरिया के बुखार में चिरायते का उपयोग पारंपरिक तौर पर किया जाता है | इसमें स्वेरचिरिन नामक तत्व मौजूद होता है, जो एंटी मलेरिया के रूप में कार्य करता है | यही प्रभाव मलेरिया और उससे संबंधित लक्षणों में राहत पहुंचाता है | इस उपचार में चिरायते का सेवन काढ़ा बनाकर किया जाता है |
- आंखों के लिए फायदेमंद:- विटामिन सी आँखों की रौशनी और उम्र के साथ बढ़ती आँखों की समस्याओ को दूर करता है | चिरायते में विटामिन सी की पर्याप्त मात्रा पाई जाती है, जिस वजह से चिरायते को आँखों का टॉनिक भी कहते है | डॉक्टर भी आँखों के बेहतर स्वास्थ के लिए चिरायते का सेवन करने की सलाह देते है |
- जोड़ों के दर्द में लाभकारी:- चिरायते में स्वेरटियामारिन कंपाउंड उपस्थित होता है, जो एंटी अर्थराइटिक गतिविधि के प्रभाव को दिखाता है | यही प्रभाव अर्थराइटिस की समस्या को दूर करता है, जो जोड़ो में दर्द यानि गठिया का सबसे बड़ा लक्षण है | चिरायते की जड़ प्रभावी रूप से जोड़ो के दर्द में राहत दिलाता है |
चिरायते के नुकसान (Absinthe Disadvantages)
- लो ब्लड प्रेशर या ब्लड प्रेशर की दवा लेने वाली व्यक्तियो को चिरायते का सेवन नहीं करना चाहिए, क्योकि यह ब्लड शुगर लेवल को कम कर देता है |
- जिन लोगो को गैस्ट्रिक या आंत के अल्सर जैसी समस्या है, उन्हें चिरायते के सेवन से बचना चाहिए |
- गर्भवती महिलाएं और शिशुओं को स्तनपान कराने वाली महिलाओ को बिना डॉक्टर से परामर्श किए चिरायता का सेवन नहीं करना चाहिए |
- इसका स्वाद बहुत कड़वा होता है, जो मुँह के स्वाद को भी कड़वा कर देता है |
चिरायता की खेती में सहायक मिट्टी व जलवायु (Absinthe Cultivation Soil and Climate)
चिरायता की खेती के लिए उचित जल निकासी वाली भुरभुरी बलुई दोमट मिट्टी की जरूरत होती है | इसकी मिट्टी को खाद की उचित मात्रा से समृद्ध करना होता है | यदि मिट्टी अधिक चिकनी है, तो उसमे रेत मिलाना जरूरी होता है | बारिश के मौसम में चिरायता के पौधो को केवल 100 CM वर्षा की जरूरत होती है, तथा जिन क्षेत्रों में ठंडी का मौसम अधिक समय तक रहता है, वहां चिरायता के पौधो को आसानी से ऊगा सकते है | यह अधिकतर बर्फ़बारी वाले स्थानों में उगाई जाने वाली फसल है |
चिरायता के पौधो की तैयारी (Preparation of Absinthe Plant)
चिरायता के बीजो की रोपाई करने से पहले उन्हें नर्सरी में पौध के रूप में तैयार कर लेते है | इसके लिए बीजो को 10 से 15 CM की दूरी पर कतारों में लगाते है | इससे बीज ठीक तरह से अंकुरित होते है | इन बीजो को अक्टूबर के महीने में नर्सरी में लगाते है, जिसके बाद 25 से 28 दिन में पौधा तैयार हो जाता है | एक हेक्टेयर के खेत में रोपाई के लिए तक़रीबन 200 GM बीजो की जरूरत होती है | बीज अंकुरण के लिए तक़रीबन 15 दिनों तक बीजो को 3 डिग्री या उससे कम तापमान पर बीजो को रखते है |
चिरायता के भूमि की तैयारी (Absinthe Soil Preparation)
चिरायता की खेती के लिए भुरभुरी मिट्टी की जरूरत होती है | इसके लिए खेत की सफाई कर मिट्टी पलटने वाले हलो से जुताई करना होता है | इसके बाद खेत में पानी लगाकर मिट्टी को नम कर देते है, और उसमे पाटा चलाकर मिट्टी को भुरभुरा कर देते है | इसके बाद खेत में हेरो चलाकर भूमि को समतल किया जाता है | प्रति हेक्टेयर के खेत में 3.75 टन केचुआ खाद और 2 टन वन की घास-फूस की मात्रा को डालकर मिट्टी में अच्छे से मिलाते है | इसके बाद पौध रोपाई के लिए क्यारियों में गड्डे तैयार किये जाते है |
चिरायता के पौधो की सिंचाई (Absinthe Plants Irrigation)
चिरायता की फसल में सिंचाई करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखे कि खेत में जल भराव न होने पाए | इसके लिए वर्षा ऋतु में विशेष रूप से खेत के चारो और उचित दूरी पर खुदाई करते हुए नालियों को तैयार करना होता है, तथा सिंचाई प्रणाली को भी सुनिश्चित करे | इसके बाद जरूरत पड़ने पर गर्मी और सर्दी के मौसम में एक से दो दिन के अंतराल में खेत में पानी दे |
चिरायता की फसल में रोग नियंत्रण (Salicylic Crop Disease Control)
चिरायता स्वाद में अधिक कड़वा होता है, जिस वजह से इसके पौधा कीट रोग मुक्त होता है | इसकी फसल में आपको कीटो से किसी भी तरह की हानि नहीं होती है, किन्तु समय-समय पर गुड़ाई कर पौधो को खरपतवार से जरूर बचाए |
चिरायता के फसल की कटाई (Absinthe Crop Harvesting)
चिरायता के पौधे पर अक्टूबर से नवंबर के महीने में कैप्सूल पककर तैयार हो जाता है, उस दौरान सभी पौधो को एकत्रित कर लेते है | इसके बाद सूखे हुए बीजो को जूट के बैगो या हवा बंद डिब्बों में भंडारित कर लेते है, और पौधो को छायादार स्थान पर सुखा ले फिर उन्हें भी बंद डिब्बों में संग्रहण करे |
चिरायता का भाव (Absinthe Rate)
चिरायता के पौधो को धूप में सुखाने के पश्चात् थ्रेशर की सहायता से आसानी से अलग कर लेते है | इस हिसाब से इसकी फसल में कोई अतिरिक्त खर्च और मेहनत नहीं लगती है | एक हेक्टेयर के खेत में तक़रीबन 25 से 30 क्विंटल का उत्पादन मिल जाता है | चिरायता का बाज़ारी भाव 2200 से 2800 रूपए प्रति क्विंटल होता है | किसान भाई चिरायते के प्रति हेक्टेयर की फसल से 55 हज़ार से 80 हज़ार तक की कमाई कर सकते है |