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रबड़ की खेती (Rubber Farming) से सम्बंधित जानकारी
रबड़ की खेती रबड़ उत्पादन के लिए की जाती है,रबड़ के उत्पादन में भारत को विश्व में चौथा स्थान प्राप्त है| भारत में रबड़ की उत्पत्ति सर्वप्रथम केरल राज्य में हुई थी, जो आज भारत का सबसे बड़ा रबड़ का उत्पादन करने वाला राज्य भी है | यह एक बहुत ही खास पर मुश्किल पदार्थ है, जिसे काफी मेहनत से प्राप्त किया जाता है | रबड़ का उपयोग कई तरह की चीजों को बनाने के लिए किया जाता है | इस पदार्थ का इस्तेमाल कर शोल, टायर, रेफ्रिजरेटर, इंजन की सील के अलावा कंडोम, गेंद, इलेक्ट्रिक उपकरणों और इलास्टिक बैंड जैसी चीजों को बनाने के लिए जाता है |
हालही में कोरोना वायरस के दौरान पीपीटी किट का निर्माण भी इसी पदार्थ से किया गया था, जिसने डॉक्टर्स और नर्सो के लिए कवच का काम किया | यदि आप भी रबड़ की खेती करना चाहते है, तो इस लेख में आपको रबड़ की खेती कहाँ और कैसे होती है,और रबड़ का पेड़ कैसा होता है, तथा रबड़ कैसे बनता है इसकी जानकारी से अवगत करा रहे है |
रबड़ की खेती के लिए जलवायु (Rubber Cultivation Climate)
रबड़ की खेती के लिए लेटेराइट युक्त गहरी लाल दोमट मिट्टी की जरूरत होती है | इसके पौधों को न्यूनतम 200 CM वर्षा की जरूरत होती है | इसके पौधे उष्ण आद्र जलवायु में अधिक तेजी से वृद्धि करते है, तथा 21 से 35 डिग्री का तापमान उचित होता है |
रबड़ के प्रकार (Rubber Type)
सामान्य तौर पर रबड़ को दो श्रेणियों में बांटा गया है | इसमें नेचुरल रबड़ या इंडिया रबड़ तथा सिंथेटिक रबड़ शामिल है, सिंथेटिक रबड़ कई तरह की होती है, जिसकी जानकारी आपको यहाँ पर दी जा रही है |
नाइट्राइल ब्यूटाडीन रबड़ (Nitrile Butadiene Rubber)
यह एक आयल प्रतिरोधक सिंथेटिक रबड़ होता है, जिसे नाइट्राइल कहते है, जो Butadiene और Acrylonitrile के Co-Polymar से निर्मित होता है | इस क़िस्म की रबड़ को Oil Resistance वाली चीजों जैसे Gaskets, Fuel Hoses में इस्तेमाल करते है |
एथिलीन प्रोपलीन डायने मोनोमर
इस क़िस्म की रबड़ को Propylene, Ethylene और Diene के Comonomer से क्रॉसलिंकिंग कर तैयार किया जाता है, यह सील्स में उपयोग होता है |
नियोप्रीन रबड़
इस क़िस्म की रबड़ को Polychloropreneरबड़ भी कहा जाता है, जिसे Chloroprene के बहुलकीकरण कर तैयार किया जाता है|
सिलिकॉन रबड़
सिलिकॉन इलास्टोमेर जैसा एक रबड़ होता है, इसमें हाइड्रोजन, कार्बन और ऑक्सीजन भी होती है | उधोगो में सिलिकॉन को बहुत अधिक उपयोग किया जाता है| यह 44 डिग्री से लेकर 300 डिग्री तापमान तक कार्य कर सकता है | इतने अधिक तापमान पर भी यह अपने गुण पर बना रहता है | इस खास गुण के कारण इसे वाहनों में, हाई वोल्टेज इंसुलेटर, मेडिकल उपकरण के अलावा बेकिंग और खाद पदार्थो का भण्डारण करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है |
स्टाइरीन ब्यूटाडीन रबड़
यह एक सिंथेटिक रबड़ है, जिसे ब्यूटाडीन के मोनोमर से मिलाकर तैयार किया जाता है| इस क़िस्म की रबड़ को मुख्य रूप से टायर और टायर बनाने वाले उत्पादों में इस्तेमाल करते है | Automotive और Mechanical Equipment में भी इसका यूज़ करते है |
पोलीयूरीथेन
यह दो कंपाउंड से मिलकर बना हुआ एक तरह का थर्मो प्लास्ट पॉलीमर होता है, जिसे मुख्य रूप से स्प्रे फोम, गैस्केट्स, सील्स और इंसुलेशन पैनल में उपयोग करते है |
रबड़ का पेड़ (Rubber Tree) केसा होता है
रबड़ के पेड़ को फ़िकस इलास्टिका के नाम से भी जानते है | यह दक्षिण पूर्व एशिया में उष्णकटिबंधीय जलवायु में मिलने वाला एक पौधा हैं, जो दिखने में असामान्य होता है | इसमें पत्तिया आकार में बड़ी और अंडाकार होती है | यह एक समृद्ध पन्ना ह्यू है, जिसे अपने आवास में 100 फ़ीट तक बढ़ाया जा सकता है | इसे अक्सर ही हॉउसप्लांट के रूप में घरो के अंदर लगाया जाता है | इसकी देखभाल के लिए आपको केवल पर्याप्त मात्रा में पानी, प्रकाश और गर्मी देना होता है | यह एक सदाबहार पौधा होता है, जो 50 से 100 फ़ीट तक लंबा हो सकता है |
रबड़ के पौधों की सिंचाई (Rubber Plants Irrigation)
रबड़ के पौधों को अधिक पानी की जरूरत होती है, इसलिए इसके पौधों को बार-बार पानी देना होता है | रबड़ का पौधा सूखापन के प्रति कमजोर होता है, जिस वजह से यह सूखा बर्दाश्त नहीं कर पाता है | इसलिए नमी बनाए रखने के लिए पानी देते रहना चाहिए |
रबड़ के पौधों की देखभाल (Rubber Plant Care)
रबड़ के पौधों को सही संतुलन और उचित पर्यावरण की विशेष जरूरत होती है | इसका अर्थ यह है, कि अधिक प्रकाश और नम भूमि पौधों को स्वस्थ रहने के लिए पर्याप्त उवर्रक प्रदान करता है | इसके पौधों पर पत्तिया मोमी वाली होती है, जिसका रंग आरम्भ में गुलाबी-कोरल होता है | रबड़ का पौधा अधिक लंबा होता है, जिस वजह से इसे गिरने से रोकने के लिए लंबी लकड़ी का सहारा देना होता है |
रबड़ कैसे बनता है (Rubber Making)
- रबड़ को बनाने के लिए उसके वृक्ष के तनो में छेद कर पेड़ से निकलने वाले दूध (लेटेक्स) को एकत्रित कर लिया जाता है |
- इसके बाद इस लेटेक्स का केमिकल्स के साथ परीक्षण करते है, ताकि अच्छी गुणवत्ता वाला रबड़ प्राप्त हो सके |
- इसके बाद लेटेक्स को गाढ़ा होने के लिए छोड़ देते है, लेटेक्स में मौजूद पानी के सूख जाने पर केवल रबड़ ही रह जाता है |
- लेटेक्स पानी से भी हल्का होता है, जिसमे रबड़ के अलावा शर्करा, प्रोटीन, रेज़िन, खनिज लवण और एंजाइम्स पाया जाता है |
- रबड़ में इतना लचीला पन पाया जाता है, जिससे यह अपने आकार से 8 गुना तक लंबा हो सकता है, इसी गुण की वजह से रबड़ के जूते, गेंद और गुब्बारे जैसी चीजों को बनाया जाता है |
- रबड़ बिजली का कुचालक होता है, जिस वजह से इसे विद्युत उपकरणों में इस्तेमाल करते है |
रबड़ का उत्पादन (Rubber Production)
रबड़ का पेड़ 5 वर्षा का हो जाने पर उत्पादन देना आरम्भ करता है, तथा 40 वर्षो तक रबड़ की पैदावार देता रहता है | एक एकड़ के खेत में 150 पौधे लगाए जा सकते है, जिसमे प्रत्येक पेड़ से एक वर्ष में 2.75 का उत्पादन मिल जाता है | बड़ी-बड़ी कंपनियों द्वारा रबड़ को खरीद लिया जाता है, जिससे रबड़ को बेचने में किसी तरह की समस्या नहीं होती है, और किसान रबड़ उत्पादन के अनुसार कमाई भी करते है |