पेठा की खेती कैसे होती है | Pumpkin Farming in Hindi | पेठा की प्रजातियां


पेठा की खेती (Pumpkin Farming) से सम्बंधित जानकारी

पेठा की खेती कद्दू वर्गीय फसल के रूप में की जाती है | इसे कुम्हड़ा, कूष्माण्ड और काशीफल के नाम से भी जानते है | इसके पौधे लताओं के रूप में फैलते है | इसकी कुछ प्रजातियों में फल 1 से 2 मीटर लम्बे पाए जाते है, तथा फलो पर हल्के सफ़ेद रंग की पाउडर नुमा परत दिखाई देती है | पेठा के कच्चो फलो से सब्जी तथा पके हुए फलो को पेठा बनाने के लिए इस्तेमाल में लाया जाता है पेठा (कद्दू) का मुख्य रूप से इस्तेमाल पेठा बनाने के लिए ही करते है, सब्जी के लिए इसे बहुत ही कम उपयोग लाया जाता है |




इसके अलावा इससे च्यवनप्राश भी बनाया जाता है, जिसका सेवन करने से मानसिक शक्ति बढ़ती है, और छोटी -मोटी बीमारिया भी नहीं लगती है | पेठा कम खर्च में अधिक मुनाफा देने वाली खेती है, जिस वजह से किसान भाई पेठा की खेती करना अधिक पसंद करते है | यदि आप भी पेठा की खेती करने का मन बना रहा है, तो इस लेख में आपको पेठा की खेती कैसे होती है (Pumpkin Farming in Hindi) इसके बारे में जानकारी दी जा रही है |

कद्दू की खेती कैसे होती है

भारत में पेठा (कद्दू) की खेती (Petha (Pumpkin) Cultivation in India)

भारत में पेठा की खेती मुख्य रूप से पश्चिमी उत्तर प्रदेश राज्य में की जाती है | इसके अतिरिक्त पेठा की खेती पूर्वी उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश और बिहार सहित लगभग सम्पूर्ण भारत में ही की जा रही है |

पेठा की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी, जलवायु और तापमान (Petha Cultivation Suitable soil, Climate and Temperature)

पेठा की खेती किसी भी उपजाऊ मिट्टी में की जा सकती है | इसकी अच्छी पैदावार के लिए दोमट मिट्टी को उपयुक्त माना जाता है | उचित जल निकासी वाली भूमि में इसकी खेती आसानी से की जा सकती है | इसकी खेती में भूमि का P.H. मान 6 से 8 के मध्य होना चाहिए |

पेठा की खेती के लिए उष्णकटिबंधीय जलवायु की आवश्यकता होती है | गर्मी और वर्षा का मौसम इसकी खेती के लिए उपयुक्त होता है, किन्तु अधिक ठण्ड जलवायु इसकी खेती के लिए उपयुक्त नहीं होती है | क्योकि ठंडी के मौसम में इसके पौधे ठीक से विकास नहीं कर पाते है |

पेठा के पौधे आरंभ में सामान्य तापमान पर अच्छे से विकास करते है, तथा 15 डिग्री तापमान पर बीजो का अंकुरण ठीक तरह से होता है | बीज अंकुरण के पश्चात् पौध विकास के लिए 30 से 40 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है | अधिक तापमान में पेठा का पौधा ठीक से विकास नहीं कर पाता है |

पेठा की प्रजातियां (Petha Species)

कोयम्बटूर

इस किस्म के पौधों को पछेती फसल के लिए उगाया जाता है | इसके फलों से सब्जी और मिठाई दोनों ही बनायीं जाती है | इसके पौधों में निकलने वाले फल का औसतन वजन 7 से 8KG के आसपास होता है, तथा यह क़िस्म प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 300 क्विंटल का उत्पादन दे देती है |

सी. ओ. 1

पेठा की इस क़िस्म को तैयार होने में 120 दिन का समय लग जाता है | इसके एक फल का औसतन वजन 7 से 10 KG तक होता है | जिस हिसाब से यह प्रति हेक्टेयर में 300 क्विंटल का उत्पादन दे देती है |

कशी धवल

पेठा की यह क़िस्म बीज रोपाई के 120 दिन पश्चात् उत्पादन देना आरम्भ कर देती है | इस प्रजाति के पौधों को अधिकतर गर्मियो के मौसम में उगाया जाता है, जिसमे निकलने वाले फल का वजन 12 KG तक होता है | यह क़िस्म प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 500 से 600 क्विंटल का उत्पादन दे देती है |

पूसा विश्वास

पेठा की इस क़िस्म का पौधा अधिक लम्बा पाया जाता है | जिसे तैयार होने में 120 दिन का समय लग जाता है | इसका एक फल तक़रीबन 5 KG का होता है | यह क़िस्म प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 250 से 300 क्विंटल का उत्पादन दे देती है |

काशी उज्ज्वल

इस क़िस्म को तैयार होने में 110 से 120 दिन का समय लग जाता है | इसमें निकलने वाले फल गोल आकार के होते है, जिसका वजन 12KG के आसपास होता है | यह क़िस्म प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 550 से 600 क्विंटल का उत्पादन दे देती है|

अर्को चन्दन

अर्को चन्दन क़िस्म के पौधों को उत्पादन देने में 130 दिन का समय लग जाता है | इसके कच्चे फलों को सब्जी बनाने के लिए इस्तेमाल में लाया जाता है | यह क़िस्म प्रति हेक्टेयर में 350 क्विंटल का उत्पादन देने के लिए जानी जाती है |

इसके अलावा भी पेठा की कई उन्नत क़िस्मों को अलग-अलग जलवायु और अलग-अलग स्थान पर अधिक पैदावार देने के लिए तैयार किया गया है, जो इस प्रकार है :- कोयम्बटूर 2, सी एम 14, संकर नरेन्द्र काशीफल- 1, नरेन्द्र अग्रिम, पूसा हाइब्रिड, नरेन्द्र अमृत, आई आई पी के- 226, बी एस एस- 987, बी एस एस- 988, कल्यानपुर पम्पकिन- 1 आदि |

पेठा के खेत की तैयारी और उवर्रक की मात्रा (Petha Field Preparation and Fertilizer)

सबसे पहले खेत की मिट्टी पलटने वाले हलो से गहरी जुताई कर दी जाती है | इससे खेत में मौजूद पुरानी फसल के अवशेष पूरी तरह से नष्ट हो जाते है | जुताई के बाद खेत को ऐसे ही खुला छोड़ दे, इससे खेत की मिट्टी में सूर्य की धूप ठीक तरह से लग जाती है | खेत की पहली जुताई के बाद उसमे प्राकृतिक खाद के रूप में 12 से 15 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से देना होता है | खाद को खेत में डालने के बाद दो से तीन तिरछी जुताई कर दी जाती है, इससे खेत की मिट्टी में गोबर की खाद ठीक तरह से मिल जाती है | इसके बाद खेत में पानी लगा दिया जाता है, जब खेत का पानी सूख जाता है, तो उसकी एक बार फिर से रोटावेटर लगाकर जुताई कर दी जाती है, इससे खेत की मिट्टी भुरभुरी हो जाती है|

मिट्टी के भुरभुरा हो जाने के पश्चात् खेत को समतल कर दिया जाता है | इसके बाद खेत में पौध रोपाई के लिए 3 से 4 मीटर की दूरी पर धोरेनुमा क्यारियों को तैयार कर लिया जाता है | इसके अलावा यदि आप रासायनिक खाद का इस्तेमाल करना चाहते है, तो उसके लिए आपको 80 KG डी.ए.पी. की मात्रा का छिड़काव प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खेत की आखरी जुताई के समय करना होता है | इसके बाद 50 KG नाइट्रोजन की मात्रा को पौध सिंचाई के साथ देना होता है |

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पेठा के बीजो की रोपाई का सही समय और तरीका (Petha Seeds Planting Right time and Method)

पेठा के बीजो की रोपाई बीज के रूप में की जाती है | बीज रोपाई से पूर्व उन्हें थीरम या कार्बेन्डाजिम की उचित मात्रा से उपचारित कर ले | एक हेक्टेयर के खेत में तक़रीबन 6 से 8KG बीजो की आवश्यकता होती है | इन बीजो को खेत में तैयार धोरेनुमा क्यारियों में लगा दिया जाता है, तथा बीजो की रोपाई एक से डेढ़ फ़ीट की दूरी पर 2 से 3 CM गहराई में की जाती है|

पेठा (कद्दू) के बीजो की रोपाई के लिए गर्मी और बारिश का मौसम अच्छा माना जाता है | इसके अतिरिक्त बीजो को फरवरी से मार्च माह के मध्य तक भी लगा सकते है | पहाड़ी क्षेत्रों में बीज की रोपाई मार्च के बाद भी की जा सकती है |

पेठा के पौधों की सिंचाई (Petha Plants Irrigation)

पेठा के पौधों को सामान्य सिंचाई की आवश्यकता होती है | यदि फसल की रोपाई बारिश के मौसम में की गयी है, तो प्रारंभिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है| किन्तु समय पर बारिश न होने पर पौधों को पानी अवश्य दे| यदि गर्मियों के मौसम में बीजो की रोपाई की गयी है, तो पौधों को अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है| इस दौरान पौधों को सप्ताह में दो बार पानी अवश्य दे, इससे पौधों का विकास ठीक तरह से होता है |

पेठा के पौधों पर खरपतवार नियंत्रण (Petha Plants Weed Control)

पेठा की फसल में खरपतवार नियंत्रण की अधिक जरूरत होती है | चूंकि इसके पौधे लता के रूप में बढ़ते है, इसलिए पौधों में कई तरह के रोग देखने को मिल जाते है | यह रोग पैदावार को अधिक प्रभावित करते है | खरपतवार नियंत्रण के लिए प्राकृतिक विधि का इस्तेमाल किया जाता है | इसकी प्रारंभिक गुड़ाई को पौध रोपाई के 20 से 25 दिन पश्चात् करना होता है, तथा बाद की गुड़ाइयो को 15 दिन के अंतराल में करना होता है | इसके पौधों को अधिकतम तीन से चार गुड़ाई की ही आवश्यकता होती है |

पेठा के पौधों में लगने वाले रोग एवं उनकी रोकथाम (Petha Plants Diseases and Prevention)

क्रम संख्यारोगरोग का प्रकारउपचार
1.लाल कद्‌द भृंग  कीटफेनवेलिरेट, क्लोरपाइरीफोस या सायपरमेथ्रिन का छिड़काव
2.सफेद मक्खीकीटइमिडाक्लोप्रिड या एन्डोसल्फानका छिड़काव
3.चेपाकीटइमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस एल या डाइमेथेएट का छिड़काव
4.फल मक्खीकीटएन्डोसल्फानका छिड़काव
5.चूर्णिल आसिताकीटहेक्साकोनाजोल या माईक्लोबूटानिलका छिड़काव
6.फल सडनकिटटेबुकोनाजोल या वैलिडामाईसीनका छिड़काव

पेठा के फलों की तुड़ाई, पैदावार और लाभ (Petha fruits Harvesting, Yield and Benefits)

पेठा के फलों की तुड़ाई दो तरह के इस्तेमाल के लिए की जाती है | यदि आप फलों को सब्जी बनाने के लिए तोड़ना चाहते है, तो आप कच्चे के रूप में इसकी तुड़ाई कर सकते है, तथा पके हुए फलों की तुड़ाई कई तरह की चीजों को बनाने के लिए की जाती है | फलों की तुड़ाई के पश्चात् उन्हें बाजार में बेचने के लिए भेज दिया जाता है| एक हेक्टेयर के खेत में तक़रीबन 400 से 500 क्विंटल का उत्पादन प्राप्त हो जाता है | पेठा का बाज़ारी भाव भी काफी अच्छा होता है, जिससे किसान भाई इसकी एक बार की फसल से एक से दो लाख तक की कमाई आसानी से कर सकते है |

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