पुदीना की खेती कैसे करे | Mint Farming in Hindi | मेंथा की बुवाई कब होती है?


पुदीना की खेती (Mint Farming in Hindi) से सम्बंधित जानकारी

पुदीने की फसल औषधीय रूप में की जाती है, इसे पुदीना और मिंट के नाम से भी पुकारा जाता है | इसके सम्पूर्ण पौधे को इस्तेमाल में लाया जाता है | पुदीने का पौधा भूमि की सतह पर जड़ के रूप में फैलता है, इसमें एक विशेष प्रकार की खुशबु पाई जाती है | जिस वजह पुदीने का इस्तेमाल खाने वाली चीजों में खुशबु उत्पन्न करने के लिए भी किया जाता है | मेंथा का इस्तेमाल विशेष रूप से दवाइयों को बनाने के अलावा पेय पदार्थों, सौंदर्य प्रसाधनों, सिगरेट और पान मसाला बनाने में भी करते है |




पेट की बीमारियों के लिए पुदीना रामबाण औषधि मानी जाती है, इसका सेवन करने से गर्मियों में लू से भी बचा जा सकता है | इसके पौधों में कीट रोग का प्रकोप न के बराबर देखने को मिलता है, इसके पौधे की कटाई 3 से 4 बार की जा सकती है | भारत में पुदीने की खेती बिहार, पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में मुख्य रूप से की जाती है | किसान भाई पुदीने की खेत कर कम समय में अच्छी कमाई कर सकते है, इस लेख में आपको पुदीना की खेती कैसे करे (Mint Farming in Hindi) तथा मेंथा की बुवाई कब होती है? इसके बारे में बताया जा रहा है |

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मेंथा की बुवाई कब होती है, उपयुक्त मिट्टी, जलवायु और तापमान (Mint Cultivation Suitable Soil, Climate and Temperature)

पुदीना की खेती किसी भी उपजाऊ मिट्टी में आसानी से की जा सकती है, इसकी खेती के लिए भूमि उचित जल-निकासी वाली होनी चाहिए | इसके अलावा भारी और चिकनी मिट्टी में इसकी खेती करने से पैदावार ख़राब हो सकती है | पुदीना की खेती में भूमि का P.H. मान 6 से 7.5 के मध्य होना चाहिए |

समशीतोष्ण जलवायु को मेंथा की खेती के लिए उपयुक्त माना जाता है | भारत में पुदीना की खेती खरीफ और जायद के मौसम में की जाती है, तथा सर्दियों के मौसम में इसकी फसल नहीं उगाई जाती है, क्योकि सर्दियों में गिरने वाला पाला इसके पौधों को अधिक हानि पहुँचाता है | बारिश और गर्मी का मौसम इसकी खेती के उपयुक्त माना जाता है |

पुदीना के पौधे 20 से 25 डिग्री तापमान में अच्छे से अंकुरित होते है, जबकि पौध विकास के दौरान पौधों को 30 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है | इसके पौधे न्यूनतम 10 डिग्री तथा अधिकतम 40 डिग्री तापमान (Temperature) को ही सहन कर सकते है |

पुदीने की उन्नत किस्में (Mint Improved Varieties)

जापानी पुदीना

जापानी पुदीना एक विदेशी किस्म है, जिसमे निकलने वाले पौधे सीधे तौर में फैलते है | इसके पौधों में अधिक मात्रा में शाखाएं निकलती है| इसके पौधों में 65 से 75 प्रतिशत मेंथोल की मात्रा पाई जाती है | इस किस्म के पौधों में निकलने वाली पत्तियों का आकर बड़ा और अंडाकार होता है | यह किस्म भारत में राजस्थान, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश राज्यों में विशेष रूप से उगाई जाती है |

स्पीयर मिन्ट

पुदीने की इस क़िस्म को पूरे वर्ष ऊगा सकते है | इसका पौधा भूमि में फैला 30 से 100 CM लम्बा होता है | इसके पौधों की शाखाएं भी अधिक मात्रा में निकलती है, तथा पत्तिया बिल्कुल चिकनी होती है | इसमें निकलने वाली पत्तिया आकार में छोटी होती है, तथा पौधों पर फूल सफ़ेद और गुलाबी रंग का पाया जाता है | पुदीने की इस क़िस्म से तक़रीबन 65 प्रतिशत मेंथाल प्राप्त हो जाता है |

पिपर मिन्ट

पिपर मिन्ट क़िस्म के पौधों को काला पुदीना भी कहा जाता है | यह एक संकर क़िस्म है, जिसे मेंथा एक्वेटिका और मेंथा स्पिकाटा का संकरण कर तैयार किया गया है | इस क़िस्म के पौधों पर अधिक मात्रा में शाखाएं निकलती है, तथा पौधा 30 से 100 CM लम्बा होता है | पुदीने की इस क़िस्म से तक़रीबन 50 प्रतिशत मेंथाल और 15 प्रतिशत मिथाइल प्राप्त हो जाता है |

मेंथा आरवेंसिस

यह पुदीने की एक उन्नत क़िस्म है, जिसमे पौधों की लम्बाई तकरीबन दो फ़ीट तक पाई जाती है | यह क़िस्म जंगली पुदीना भी कहलाती है | जिसके पौधों में शाखाएं बहुत कम निकलती है | इसके पौधों पर 2 CM चौड़ी पत्तिया पाई जाती है, जिसमे रोयें अधिक मात्रा में होते है | इस क़िस्म की पत्तियों पर बैगनी रंग के फूल निकलते है |

पुदीने के खेत की तैयारी और उवर्रक (Mint Field Preparation and Fertilizer)

पुदीने के खेत को तैयार करने के लिए सबसे पहले मिट्टी पलटने वाले हलो से खेत की गहरी जुताई कर दी जाती है | इससे खेत में मौजूद पुरानी फसल के अवशेष पूरी तरह से नष्ट हो जाते है | इसके बाद खेत में 15 से 20 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से देना होता है | गोबर की खाद डालने के बाद खेत की जुताई कर मिट्टी में खाद को अच्छी तरह से मिला दे | खाद मिलाने के बाद खेत में पानी लगा दे, पानी लगाने के पश्चात खेत की मिट्टी सूखने पर रोटावेटर से दो से तीन तिरछी जुताई कर दे, इससे खेत की मिट्टी भुरभुरी हो जाती है, मिट्टी भुरभुरा हो जाने के बाद पाटा लगाकर खेत को समतल कर दे |

यदि आप पुदीने के खेत में रासायनिक खाद का इस्तेमाल करना चाहते है, तो उसके लिए आपको आखरी जुताई के समय दो बोरे एन.पी.के. की मात्रा को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खेत में छिड़कना होता है | इसके अतिरिक्त तीसरी और चौथी सिंचाई के समय 20KG नाइट्रोजन की मात्रा को सिंचाई के साथ देना होता है |

पुदीना के पौधों की रोपाई का सही समय और तरीका (Mint Plants Transplanting Right time and Method)

पुदीना के बीज की रोपाई पौध के रूप में की जाती है, इसके लिए पौधों को नर्सरी में तैयार कर लिया जाता है | यदि आप चाहे तो सीधा खेत में भी इन्हे तैयार कर सकते है, इसके लिए आपको दो फ़ीट की दूरी पर 5 मीटर लम्बी क्यारियों को तैयार करना होता है, इसके बाद क्यारियों में दो फ़ीट की दूरी रखते हुए इसकी जड़ो को लगा दिया जाता है| एक हेक्टेयर के खेत में तक़रीबन 5 क्विंटल 5 से 7 CM लम्बी सर्कराओं की आवश्यकता होती है |

यह सर्कराये वह जड़े कहलाती है, जिन्हे बीज के रूप में खेत में उगाते है | खेत में लगाने से पूर्व उन्हें गोमूत्र या कार्बेंडाजिम से उपचारित कर ले | इसके अलावा आप नर्सरी से भी तैयार और स्वस्थ पौधों को खरीदकर उनकी रोपाई दो फ़ीट की दूरी रखते हुए कर सकते है | पुदीने के पौधों को लगाने के लिए सर्द जलवायु को उपयुक्त नहीं माना जाता है | इसकी अच्छी पैदावार के लिए पौध रोपाई को फ़रवरी और मार्च के महीने में करना सबसे उपयुक्त होता है |

पुदीना के पौधों की सिंचाई (Mint Plants Irrigation)

पुदीना के पौधों को अच्छे से विकास करने के लिए नमी की आवश्यकता होती है, इसके लिए खेत में हल्का-हल्का पानी देते रहना होता है | गर्मियों के मौसम में इसके पौधों को रोपाई दो से तीन दिन के अंतराल में की जानी चाहिए, तथा सर्दियों के मौसम में इसके पौधों को 15 दिन के अंतराल में पानी देना उचित होता है | बारिश के मौसम में यदि बारिश समय पर नहीं होती है, तो आवश्यकतानुसार पौधों की सिंचाई जरूर करे, अन्यथा न करे |

पुदीना के पौधों पर खरपतवार नियंत्रण (Mint Plants Weed Control)

पुदीना के पौधे भूमि की सतह पर ही विकास करते है, इसलिए इसके पौधों पर खरपतवार नियंत्रण विशेष रूप से करना होता है | खरपतवार नियंत्रण के लिए रासायनिक और प्राकृतिक दोनों ही तरीको का इस्तेमाल कर सकते है | रासायनिक विधि में पौध रोपाई से पूर्व खेत में पेन्डीमेथलीन की उचित मात्रा का छिड़काव करना होता है | इसके अलावा यदि आप प्राकृतिक विधि द्वारा खरपतवार पर नियंत्रण पाना चाहते है, तो उसके लिए आपको निराई – गुड़ाई करना होता है | इसके पौधों की प्रारंभिक गुड़ाई पौध रोपाई के 20 दिन पश्चात् की जानी चाहिए | इसके बाद 15 दिन के अंतराल में बाकी की गुड़ाइयो को करना होता है |

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पुदीना के पौधों में लगने वाले रोग एवं उनकी रोकथाम (Mint Plants Weed Control)

कातरा

इस किस्म का रोग पुदीना के पौधों पर कीट के रूप में आक्रमण करता है | इस रोग की सुंडी 3 से 4 CM लम्बी होती है | जिसकी बॉडी पर रोये पाए जाते है | यह देखने में काला, पीला और चितकबरा होता है | यह सुंडी पौधों की पत्तियों को खाकर उन्हें पूरी तरह से नष्ट कर देती है | इस रोग की रोकथाम के लिए पुदीना के पौधों पर सर्फ़ का छिड़काव करना होता है |

जड़ गलन

इस किस्म का रोग पौधों पर आरम्भ में ही आक्रमण करता है | इस रोग से प्रभावित पौधा जड़ के पास से गलने लगता है, जिससे जड़ काले रंग की दिखाई देने लगती है | रोग से अधिक प्रभावित होने पर पौधा कुछ समय पश्चात् ही सड़कर नष्ट हो जाता है | इस रोग से बचाव के लिए कार्बेन्डाजिम की उचित मात्रा का छिड़काव पौधों की जड़ो पर करना होता है |

पर्ण दाग

इस किस्म का रोग पुदीना के पौधों को अधिक प्रभावित करता है, जिससे पैदावार में भी फर्क देखने को मिलता है | इस रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियों पर भूरे रंग के धब्बे दिखाई देने लगते है, तथा रोग के अधिक घातक होने पर पत्तिया पीली पड़कर गिरने लगती है, और पौधा विकास करना बंद कर देता है | पुदीना के पौधों को इस रोग से बचाने के लिए मैंकोजेब की उचित मात्रा का छिड़काव करे |

पुदीना के पौधों की कटाई, पैदावार और लाभ (Mint Plants Harvesting, Yield and Benefits)

पुदीना के पौधे रोपाई के तीन माह पश्चात् पहली कटाई के लिए तैयार हो जाते है, इसके पौधों की कटाई भूमि सतह से 5 CM ऊपर से की जाती है | जिसके बाद पौधा फिर से विकास कर कटाई के लिए तैयार हो जाता है | दूसरी कटाई के लिए तैयार होने में इसके पौधों को 2 महीने का समय लग जाता है | पौध कटाई के पश्चात उन्हें तेज धूप में ठीक तरह से सूखा लिया जाता है |

इसके बाद इन्हे छायादार जगह में सूखाकर तेल निकालते है | एक हेक्टेयर के खेत से तक़रीबन 300 क्विंटल की पैदावार प्राप्त हो जाती है, जिससे 100 KG तेल प्राप्त हो जाता है | इस तेल का बाज़ारी भाव 2000 प्रतिकिलो होता है, जिससे किसान भाई मेंथा की खेती कर अधिक लाभ कमा सकते है |

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