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दूधिया मशरूम (Milky Mushroom) की खेती से सम्बंधित जानकारी
वर्तमान समय में देश के किसान अलग-अलग तरह की खेती कर अधिक मुनाफा कमाने में अधिक दिलचस्पी दिखा रहे है | इसी तरह से मशरूम की खेती की और किसानो का रूझान देखने को मिल रहा है | किसान भाई मशरूम की कई किस्मो को ऊगा कर अच्छी कमाई भी कर रहे है | इन्ही किस्मो में से एक किस्म दूधिया मशरूम की है, जिसे बटन मशरूम के बाद सबसे ज्यादा उगाया जाता है | दूधिया मशरूम का वैज्ञानिक नाम कैलोसाईबीइंडिका (Calosibindica) है, तथा आम बोलचाल में इसे मिल्की मशरूम (Milky Mushroom) भी कहते है | दूधिया मशरूम देखने में बटन मशरूम के जैसा होता है | लेकिन बटन मशरूम की तुलना में इसका तना अधिक लंबा, मांसल और काफी मोटा होता है |
दूधिया मशरूम में विटामिन, प्रोटीन और अनेक खनिज होते है | इस मशरूम की टोपी कम समय में जल्दी खुलने वाली होती है | यही वजह है, कि दूधिया मशरूम को अधिक पसंद किया जा रहा है | यह कम जगह और कम लागत लगाकर अधिक मुनाफा देने वाली फसल है | दूधिया मशरूम की तुड़ाई कर उसे अधिक समय के लिए भंडारित भी कर सकते है | मशरूम की खेती से होने वाले फायदों को जानने के बाद अगर आप भी मशरूम की खेती करना चाहते है, तो यहाँ पर आपको दूधिया मशरूम की खेती कैसे करें [Milky Mushroom Cultivation] – विधि की जानकारी दे रहे है |
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दूधिया मशरूम की खेती में उपयुक्त जलवायु (Milky Mushroom Cultivation Suitable Climate)
दूधिया मशरूम के लिए अधिक तापमान की जरूरत होती है | इसलिए इसकी खेती उस स्थान पर करे जहा का तापमान अधिक रहता हो | इसकी खेती में कवक जाल के फैलाव या बीज जमाव के लिए 25-35 डिग्री तापमान उपयुक्त होता है, तथा 80- 90 प्रतिशत नमी की जरूरत होती है | मशरूम के लिए केसिंग परत बिछाने और फसल का उत्पादन लेने तक 30 से 35 डिग्री तापमान और 80 से 90 नमी होनी चाहिए | दूधिया मशरूम की पैदावार उच्च तापमान 38 से 40 डिग्री पर काफी अच्छी मिलती है |
दूधिया मशरूम की खेती में सामग्री का चुनाव (Mushroom Cultivation Material Selection in Milky)
ढींगरी मशरूम के जैसे ही दूधिया मशरूम को भी विभिन्न प्रकार की कृषि फसलों के अवशेषों पर आसानी से ऊगा सकते है | फसल के अवशेष :- पुआल, ज्वार, गन्ना की खोई, बाजरा व मक्का की कड़वी और भूसा आदि| यह सामग्री बारिश की भीगी हुई न हो बल्कि नई और सूखी होनी चाहिए| उपलब्धता के अनुसार किसी एक सामग्री का चुनाव कर ले| दूधिया मशरूम की खेती में भूसा या पुलाव का काफी अधिक उपयोग किया जा रहा है|
दूधिया मशरूम की सामग्री का उपचार (Milky Mushroom Treatment of Contents)
दूधिया मशरूम उगाने से पहले सामग्री को उपचारित करना होता है, ताकि सामग्री में मौजूद हानिकारक सूक्ष्मजीवियों को नष्ट किया जा सके, और सामग्री मशरूम की खेती के लिए उपयुक्त बन सके | चुनी गई सामग्री को उपचारित करने के लिए निम्न विधियों में से किसी एक विधि को अपनाया जाता है |
- गर्म पानी विधि द्वारा उपचार |
- रासायनिक विधि द्वारा उपचार |
गर्म पानी उपचार विधि
इस विधि द्वारा उपचारित करने के लिए भूसा या धान के पुलाव को कट्टी या टाट के बोरो में भरकर साफ पानी में तक़रीबन 6-7 घंटे तक भिगोना होता है | इस तरह से भूसा या पुलाव पानी को अच्छी तरह से सोख लेता है | इसके बाद इस भूसे से भरे गीले बोर को 40 मिनट तक उबलते हुए गर्म पानी में रखा जाता है | इस दौरान इस बात का ध्यान रखे कि 40 मिनट तक पानी उबलता रहना चाहिए | तभी सामग्री ठीक तरह से उपचारित हो पाएगी |
इसके बाद भूसे के बोर को गर्म पानी से निकालकर फर्श पर फैला दिया जाता है, ताकि भूसा ठंडा हो जाए और अतिरिक्त पानी भी निकल जाए | सामग्री को फ़ैलाने से पहले फर्श को अच्छी तरह से धोकर उस पर 2 प्रतिशत फार्मेलिीन की 50 ML की मात्रा को प्रति लीटर पानी में डालकर उसका छिड़काव करे | इस दौरान भूसे में 65 से 70 प्रतिशत नमी होनी चाहिए, नमी की परख करने के लिए मुठ्ठी भर भूसे को कसकर दबाए, अगर दबाने पर पानी न निकले तथा हथेली में नमी महसूस हो तो समझ जाए की भूसे में नमी की मात्रा पर्याप्त है | इस तरह से भूसे को उपचारित कर बिजाई के लिए तैयार कर लेते है|
रासायनिक विधि द्वारा उपचार
कम सामग्री को उपचारित करने के लिए गर्म पानी को उपयोग में लाया जा सकता है, किन्तु बड़े स्तर यह विधि अपनाने से अधिक खर्च आ सकता है | इसलिए बड़े स्तर पर सामग्री उपचारित करने के लिए रासायनिक विधि ज्यादा उपयुक्त मानी जाती है |
रासायनिक विधि में सबसे पहले किसी हौद या ड्रम में 90 लीटर पानी को भरकर उसमे 10-12 KG भूसा भर दे | इसके बाद एक बाल्टी में तक़रीबन 10 लीटर पानी भर ले और फिर उसमे 7.5 GM बॉविस्टीन के साथ 125 ML फार्मेलीन को डालकर घोल तैयार कर ले | इस घोल को उसी ड्रम में डाल दे जिसमे भूसे को भिगोया हुआ है | अब ड्रम को पालीथीन से ढक दिया जाता है, और लगभग 12 से 17 घंटो तक सामग्री को भिगोया जाता है | इसके बाद भूसे को निकालकर फर्श पर बिखेर दे | इस तरह से भूसे में मौजूद अतिरिक्त पानी निकल जाता है, और कुछ नम भूसा बिजाई के लिए उपयुक्त हो जाता है |
दूधिया मशरूम के बीजो की बीजाई का तरीका (Milky Mushroom Seeds Sowing Method)
सामग्री को बताई गयी विधि द्वारा उपचारित करने के पश्चात् नम भूसे के वजन के अनुसार बीज की दर मिलाई जाती है | एक किलोग्राम भूसे में तक़रीबन 40 से 45 GM बीजो को मिलाना होता है | दूधिया मशरूम की बीजाई में छिटकवां विधि अपनायी जा सकती है, या फिर बीजाई को सतह में भी कर सकते है | सतह में बीजाई के लिए 15-16 इंच चौड़ी और 20-21 इंच ऊँची पॉलिथीन बैग में भूसे की एक परत बिछाई जाती है, फिर उसके ऊपर बीजो को बिखेर दिया जाता है | भूसे की परत पर बीजो को बिखेरे और फिर उसके ऊपर भूसे की एक और परत चढ़ाकर उसपर फिर बीज डालें जाते है | दो परतो के मध्य 3 से 4 इंच का अंतर होना चाहिए | इस तरह से सतह पर बीजाई की जाती है | एक बैग में 3-4 KG उपचारित सामग्री भरी जाती है | इन बिजित बैगो को एक बिना प्रकाश वाले कमरे में रख दिया जाता है, और 15 से 20 दिनों तक 25 – 35 डिग्री के साथ 80 -90 प्रतिशत नमी को बनाए रखना होता है |
दूधिया मशरूम की खेती में केसिंग मिश्रण और केसिंग परत बिछाने का तरीका (Milky Mushroom Cultivation Casing Mixture and Casing Layer Laying Method)
पॉलिथीन बैग में बीजाई किए गए बीजो को भूसे में फैलने के लिए 15 से 20 दिन लग जाते है | इस दौरान भूसे पर सफ़ेद फफूंद दिखाई देने लगती है | केसिंग परत चढ़ाने के लिए यह अवस्था बिलकुल उपयुक्त होती है | केसिंग मिश्रण को केसिंग करने से एक सप्ताह पहले तैयार करना होता है | केसिंग मिश्रण तैयार करने में 3/4 दोमट मिट्टी और 1/4 बालू मिट्टी को आपस में मिला दिया जाता है | इस मिश्रण के वजन के 10% भाग के बराबर चाक पाउडर की मात्रा मिलाई जाती है | अब मिश्रण में 4% फार्मेलीन 100 ML प्रति लीटर पानी के साथ 0.1% बॉविस्टीन का घोल को 1 GM प्रति लीटर पानी से गीला करके ऊपर से पॉलीथीन शीट द्वारा 7-9 दिन के लिए ढक दिया जाता है |
केसिंग करने के 24 घंटे पहले केसिंग मिश्रण से पॉलीथीन हटा दी जाती है, और फिर मिश्रण को बेलचे के माध्यम से उलट-पलट दिया जाता है, ताकि मिश्रण में फार्मेलीन की गंध न रहने पाए | इसके बाद केसिंग मिश्रण की 2-3 CM मोटी परत को पॉलिथीन बैग का मुँह खोलकर सतह की चारो और बिछा दिया जाता है | इस दौरान 80 से 90% नमी और 30 से 35 डिग्री तापमान बनाए रखना होता है | इसके बाद बीजो को केसिंग मिश्रण में फैलने के लिए 10 से 12 दिन लग जाते है |
दूधिया मशरूम में लगने वाले कीट व रोग (Milky Mushrooms Insects and Diseases)
खरपतवार फफूंद :- दूधिया मशरूम के उत्पादन कक्ष में अधिक तापमान और नमी होने के कारण रोगो का पनपना अनुकूल होता है | इसलिए साफ-सफाई पर विशेष ध्यान देना होता है |
- दूधिया मशरूम कीट :- दूधिया मशरूम पर डिप्टेरियन और फोरोइड मक्खी का प्रकोप अधिक देखने को मिलता है | इसलिए मशरूम की फसल की बीजाई से लेकर तुड़ाई करने तक साफ-सफाई पर विशेष ध्यान देना होता है | इसके लिए समय-समय पर उत्पादन कक्ष में 0.2 प्रतिशत DDVP का छिड़काव करना चाहिए | उत्पादन कक्ष के समीप जल को एकत्रित न होने दे | इसके अलावा उत्पादन कक्ष में ट्यूब लाइट या बल्ब के नीचे पीले रंग के कागज को लाइट ट्रेप तेल में भिगोकर लटका देना चाहिए, ताकि कीड़े उसमे चिपक जाए और फसल तक कीट न पहुंच पाए |
- स्पॉनिंग के समय उत्पन्न होने वाले रोग :- दूधिया मशरूम की फसल में कवक जाल फैलने के दौरान खरपतवार वाली फफूंद जैसे :- राइजोपस, ट्राईकोडर्मा, म्यूकर, स्केलेरोशियम रोल्फसाइ, एस्परजिलस और क्रोपाइन्स देखने को मिल सकती है | इस खरपतवार फफूंद से बचाव के लिए समय-समय पर ब्लीचिंग पाउडर का छिड़काव करना चाहिए |
दूधिया मशरूम की तुड़ाई, पैदावार और लाभ (Milky Mushroom Harvest, Yield and Benefits)
जब दूधिया मशरूम के ऊपर बनी टोपी 5 से 6 CM मोटी दिखाई देने लगे तो उसे परिपक्व समझ ले और उसे घुमाकर तोड़ ले | इसके अलावा तने के मिट्टी लगे निचले भाग को काट ले, और पालीथीन बैग में 4-5 छेद करके पैक कर दे | तक़रीबन 1 KG सूखे भूसे वाले बैग में 1 KG ताज़े मशरूम का उत्पादन मिल जाता है | दूधिया मशरूम के उत्पादन में 10 से 15 रूपए प्रति किलोग्राम की लागत आती है | मशरूम का बाज़ारी भाव 150 से 250 रूपए प्रति किलो होता है, जिससे किसान भाई दूधिया मशरूम की खेती से अधिक लाभ कमा सकते है |