लैवेंडर की खेती कैसे करें | Lavender Farming in Hindi | लैवेंडर की उन्नत किस्में


लैवेंडर की खेती (Lavender Farming) से सम्बंधित जानकारी

लैवेंडर की खेती औषधीय पौधे के रूप में की जाती है, जिस वजह से इसका पौधा अधिक उपयोगी माना जाता है | लैवेंडर के पौधों पर निकलने वाले फूलो का उपयोग सजावट के अलावा खाने में भी करते है | इसके फूलो का इस्तेमाल कई तरह के व्यंजनों और मिठाइयों में खुशबु उत्पन्न करने के लिए किया जाता है | इसके फूल स्वाद में मीठे होते है, जिस वजह से इसे मिठास को बढ़ाने के लिए भी इस्तेमाल में लाते है | इसके पौधों से तेल भी प्राप्त किया जाता है, जिसका इस्तेमाल खाने के अलावा इत्र, साबुन और सौन्दर्य प्रसाधन की चीजों को बनाने में करते है | अनेक प्रकार की बीमारियों के उपचार में भी इसके पौधों को इस्तेमाल में लाते है |




लैवेंडर के फूल देखने में लाल, बैंगनी, नीले और काले रंगकेहोते है, तथा पौधा दो से तीन फ़ीट तक ऊँचा होता है| इसके पौधों की उत्पत्ति वाला स्थान एशिया महाद्वीप को कहा जाता है | इसका पूर्ण विकसित पौधा 10 वर्षो तक पैदावार दे देता है | किसान भाई लैवेंडर की खेती कर अधिक मुनाफा भी कमा रहे है | यदि आप भी लैवेंडर की खेती करने का मन बना रहे है, तो इस लेख में आपको लैवेंडर की खेती कैसे करे के बारे में जानकारी दी जा रही है |

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लैवेंडर की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी, जलवायु और तापमान (Lavender Cultivation Suitable Soil, Climate and Temperature)

  • लैवेंडर की खेती में कार्बनिक पदार्थो से युक्त रेतीली मिट्टी की आवश्यकता होती है |
  • पहाड़ी, मैदानी और रेतीली भूमि में इसकी खेती आसानी से की जा सकती है |
  • हल्की क्षारीय भूमि में लैवेंडर की खेती करने पर पौधों से अधिक मात्रा में तेल प्राप्त किया जा सकता है |
  • भूमि का P.H. मान 7 से  8 के मध्य हो|
  • लैवेंडर का पौधा भूमध्यसागरीय जलवायु वाला होता है|
  • इसके पौधे ठंड जलवायु में अच्छे से विकास करते है|
  • इसके पौधों को खुली हवा वाली जगह की जरूरत होती है, तथा अधिक तापमान में पौधा ठीक से विकास नहीं कर पाता है |
  • सामान्य वर्षा इसकी खेती के लिए उपयुक्त होती है|
  • बीज अंकुरण के समय इन्हे 12 से 15 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है |
  • पौध विकास के लिए 20 से 22 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है |
  • इसके पौधे अधिकतम 30 डिग्री तथा न्यूनतम 10 डिग्री तापमान को ही सहन कर सकते है |

लैवेंडर की उन्नत किस्में (Lavender Improved Varieties)

आज के समय में लैवेंडर की कई उन्नत किस्में बाजार में देखने को मिल जाती है| जिन्हे पौध ऊंचाई, फूलो के रंग और उत्पादन के आधार उगाया जा रहा है | उन्नत किस्में इस प्रकार है :-

क्रं.सं.उन्नत क़िस्मपौध प्रकारफूलो का रंगउत्पादन
1.हाइडकोट सुपीरियरपौधों की ऊंचाई 40 से 45 CMकाला, बैंगनी और नीले रंग का फूलप्रति हेक्टेयर 50 KG तेल 
2.रोजा  पौध ऊंचाई 40 CM  गुलाबी रंग का फूलप्रति हेक्टेयर 40 से 50 KG तेल
3.लेडी लैवेंडर  डेढ़ फ़ीट ऊँचा पौधा  नीले रंग का फूल  प्रति हेक्टेयर 50 KG तेल
4.फोल्गेट  दो फ़ीट ऊँचा पौधा  नीले रंग का फूल  प्रति हेक्टेयर 60 KG तेल
5.बीचवुड ब्लूडेढ़ से दो फिट ऊँचा पौधा  बैंगनी और नीले रंग के फूलप्रति हेक्टेयर 65 KG तेल
6.बुएने विस्टा  50 से 60 CM ऊँचा पौधा  नीले और बैंगनी रंग के फूलप्रति हेक्टेयर 55 से 60 KG तेल
7.भोर ए कश्मीर लैवेंडरदो फिट ऊँचा पौधा  नीले रंग के फूल  प्रति हेक्टेयर 80 KG तेल
8.मेलिसा लिलाक  60 से 75 ऊँचा पौधा  हल्के लाल रंग का फूलप्रति हेक्टेयर 55 से 60 KG तेल
अन्य किस्मेंए एम 1, ऐरामा, काजन लुक, वैनेट्स हेमस, स्वेटजैस्ट और कारलोवो आदि|

लैवेंडर के खेत की तैयारी और उवर्रक (Lavender Field Preparation and Fertilizer)

लैवेंडर का पूर्ण विकसित पौधा कई वर्षो तक पैदावार देने के लिए तैयार हो जाता है| इसलिए इसके खेत को ठीक तरह से साफ़ करके अच्छी तरह से तैयार कर ले| इसके लिए सबसे पहले खेत की गहरी जुताई कर दी जाती है, तथा खेत में मौजूद पुरानी फसल के अवशेषों को निकालकर साफ कर दे| जुताई के बाद खेत को कुछ समय के लिए ऐसे ही खुला छोड़ दे, इससे खेत की मिट्टी में सूर्य की धूप ठीक तरह से लग जाती है| इसके बाद खेत में 15 से 20 गाड़ी गोबर की खाद को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से डालना होता है| इसके बाद खेत की ठीक तरह से जुताई कर गोबर की खाद को मिट्टी में अच्छे से मिला दिया जाता है|

मिट्टी में खाद को मिलाने के पश्चात खेत में पानी लगाकर पलेव कर दिया जाता है, पलेव के बाद जब खेत की मिट्टी ऊपर से सूखी दिखाई देने लगे उस दौरान रोटावेटर लगाकर खेत की दो से तीन तिरछी जुताई कर दे| इससे खेत की मिट्टी भुरभुरी हो जाती है| भुरभुरी मिट्टी में पाटा लगाकर खेत को समतल कर दिया जाता है| समतल भूमि में जलभराव की समस्या नहीं होती है|

यदि आप लैवेंडर की खेती में रासायनिक खाद का इस्तेमाल करना चाहते है, तो उसके लिए आपको खेत की आखरी जुताई के समय 40 KG फास्फोरस, 40 KG पोटाश और 20 KG नाइट्रोजन की मात्रा का छिड़काव प्रति हेक्टेयर के हिसाब से करना होता है| इसके पौधों से कई वर्षो तक उचित मात्रा में पैदावार प्राप्त करने के लिए प्रत्येक कटाई के वक़्त रासायनिक मात्रा को देना होता है| इससे पौधे अगली कटाई तक अच्छे से विकास करते है, और पैदावार भी अधिक प्राप्त होती है|

लैवेंडर के पौध की तैयारी (Lavender Plant Preparation)

लैवेंडर के पौधों की रोपाई बीज और पौध दोनों ही रूप में की जाती है | किन्तु पौध रोपाई से पैदावार कम समय में प्राप्त होने लगती है | इसके लिए पौधों को नवंबर और दिसंबर के माह में नर्सरी में तैयार कर लिया जाता है | इसके बीज 12 से 15 के मध्य तापमान पर ही ठीक से अंकुरित होते है|

इसके अतिरिक्त इसके पौधों को उत्तक संवर्धन विधि द्वारा भी तैयार कर सकते है | कटिंग द्वारा पौधों को तैयार करने के लिए एक से दो वर्ष पुराने पौधों की शाखाओ को काटकर इस्तेमाल में लाया जाता है |

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लैवेंडर के पौधों की रोपाई का सही, समय और तरीका (Lavender Plants Transplanting Correct time and Method)

इसके बीजो की रोपाई बीज और कलम दोनों ही विधि द्वारा की जा सकती है | किन्तु किसान भाई लैवेंडर के पौधों की रोपाई पौध के रूप में करना ज्यादा पसंद करते है | इसके लिए खेत में मेड़ को तैयार कर लिया जाता है | इन मेड़ो के मध्य एक से डेढ़ मीटर दी दूरी रखी जाती है, तथा मेड़ पर पौधों की रोपाई 25 से 30 CM की दूरी पर की जाती है | सघन खेती में इसके पौधों को 5 CM की दूरी पर लगाना होता है | एक हेक्टेयर के खेत में तक़रीबन 20 हज़ार पौधों को लगाया जा सकता है | सामान्य तौर पर इसके पौधों की रोपाई पूरे वर्ष में कभी भी कर सकते है, किन्तु व्यापारिक तौर अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए इसके पौधों को अप्रैल माह में लगाना होता है| इसके अलावा अधिक तापमान वाले प्रदेशो में पौध रोपाई सर्दियों के मौसम में की जाती है |

लैवेंडर के पौधों की सिंचाई (Lavender Plants Irrigation)

लैवेंडर के पौधों को अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है | इसकी प्रारंभिक सिंचाई पौध रोपाई के तुरंत बाद कर दी जाती है | इसके बाद खेत में नमी बनाये रखने के लिए पानी देते रहना होता है,किन्तु अधिक मात्रा में भी पानी न दे इससे फसल में रोग लगने का खतरा बढ़ जाता है |

लैवेंडर के पौधों पर खरपतवार नियंत्रण (Lavender Plants Weed Control)

लैवेंडर की फसल में खरपतवार पर नियंत्रण पाने के लिए प्राकृतिक विधि का इस्तेमाल किया जाता है | इसके लिए पौधों की निराई – गुड़ाई कर खेत से खरपतवार को निकाल दिया जाता है | लैवेंडर के पौधों की पहली गुड़ाई पौध रोपाई के 25 दिन के बाद की जाती है, तथा बाद की गुड़ाइयो को 20 से 30 दिन के अंतराल में करना होता है | इसके पौधों को केवल 3 से 4 गुड़ाइयो की ही आवश्यकता होती है |

लैवेंडर के पौधों में लगने वाले रोग एवं उनकी रोकथाम (Lavender Plant Diseases and Prevention)

भारत में लैवेंडर की खेती मुख्य रूप से जम्मू कश्मीर और लद्दाख में की जाती है, और वहां पर अभी तक इसके पौधों में किसी तरह के रोग देखने को नहीं मिले है | किन्तु मैदानी क्षेत्रों में पौधों पर कई कीट रोग आक्रमण करते है | यह कीट रोग पौधों के विकास और पैदावार को प्रभावित करते है | इन कीट रोगो से बचाव के लिए जैविक कीटनाशकों या नीम के तेल का छिड़काव पौधों पर करना चाहिए | इसके अलावा जल भराव से होने वाले रोगो से फसल को बचाने के लिए खेत में जल भराव न होने दे | यदि खेत में जलभराव हो जाता है, तो बोर्डो मिश्रण की उचित मात्रा का छिड़काव पौधों की जड़ो पर करे |

लैवेंडर के पौधों की कटाई, पैदावार और लाभ (Lavender Plant Harvesting, Yield and Benefits)

लैवेंडर के पौधे पूर्ण रूप से विकसित होकर तीन वर्ष बाद अधिक मात्रा में पैदावार देने के लिए तैयार हो जाते है | जब इसके पौधों पर 50 प्रतिशत से अधिक मात्रा में फूल निकल चुके हो, उस दौरान पौधों की कटाई कर ले | इसके पौधों की कटाई भूमि से कुछ ऊंचाई पर धारदार हथियार से कर ले, तथा काटी गयी शाखाओ की लम्बाई 12 CM से कम न हो | लैवेंडर की खेती से किसान भाई कई रूप में कमाई कर सकते है |

बाजार में इसके फूलो को सजावट के लिए बेचकर नगद कमाई कर सकते है, तथा फूलो से तेल को निकालकर अधिक लाभ कमा सकते है | लैवेंडर के तेल का बाज़ारी भाव 10 हज़ार रूपए प्रति किलो होता है, जिससे किसान भाई इसकी एक बार की कटाई से प्राप्त तेल की मात्रा से अधिक मुनाफा कमा सकते है |

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