किन्नू की खेती कैसे करें | Kinnow Farming in Hindi | किन्नू की उन्नत किस्में


किन्नू की खेती (Kinnow Farming) से सम्बंधित जानकारी

किन्नू एक नींबू वर्गीय फसल है | जिसमे संतरा, लैमन, नींबू और कीनू जैसी किस्में शामिल है | भारत में लगभग सभी क्षेत्रों में किन्नू की खेती आसानी से की जा सकती है | इसमें विटामिन सी, की मात्रा सबसे अधिक पायी जाती है, तथा विटामिन ए, बी भी शामिल होता है | यह खट्टे और मीठे का संतुलित आहार है | इसके फलो पर निकलने वाला छिल्का न ही ज्यादा शख्त होता है, और न ही मुलायम | किन्नू का सेवन शरीर में खून को बढ़ाता है, और पाचन शक्ति को दुरुश्त रखता है, साथ ही हड्डियों को मजबूती प्रदान करता है | कुछ समय से अपरम्परागत क्षेत्रों में इसकी खेती अधिक देखने को मिल रही है, जिसके पीछे की वजह देश में किन्नू के प्रति बढ़ती लोकप्रियता है |




इसके फलो से रस अधिक मात्रा में मिल जाता है, जिसकी कीमत बाज़ारो में काफी अच्छी होती है | यही वजह है, की किन्नू फल ने मंडियों में अपनी अलग पहचान बना ली है | भारत में किन्नू का उत्पादन हिमचाल प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, मध्य प्रदेश, हरियाणा, जम्मू और कश्मीर में किया जा रहा है | यदि आप भी किंन्तु की खेती करने का मन बना रहे है, तो इस लेख में आपको किन्नू की खेती कैसे करें (Kinnow Farming in Hindi) तथा किन्नू की उन्नत किस्में कौन सी है, इसके बारे में बताने जा रहे है |

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किन्नू की खेती में भूमि जलवायु और तापमान (Kinnow Cultivation Land, Climate and Temperature)

किन्नू की खेती को कई प्रकार की भूमि में किया जा सकता है | आप गहरी दोमट मिट्टी, चिकनी मिट्टी और तेजाबी मिट्टी में किन्नू की खेती आसानी से कर सकते है | इसकी खेती में भूमि उचित जलनिकासी वाली और उपजाऊ होनी चाहिए | क्षारीय भूमि में इसकी फसल को नहीं उगाया जा सकता है | पौधों के अच्छे विकास के लिए 5.5 से 7.5 के मध्य P.H. मान वाली भूमि होनी चाहिए |

किन्नू का पौधा उपोष्ण जलवायु वाला होता है, जिस वजह से इसे अर्द्ध शुष्क जलवायु की जरूरत होती है | इसके पौधों को आरम्भ में 10 से 35 डिग्री का तापमान चाहिए होता है | ताकि पौध विकास ठीक से हो सके | इसका पौधा अधिकतम 40 डिग्री तथा न्यूनतम 0 डिग्री के तापमान पर अच्छे से विकास कर सकता है | इसे एक वर्ष में औसतन 50 से 60 सेंटीमीटर पानी की जरूरत होती है |

किन्नू की उन्नत किस्में (Improved Varieties Kinnow)

किन्नों

यह राज्य का एक प्रमुख फल होता है | इसके पौधों पर आने वाले फल सुनहरे संतरे रंग के होते है, जो स्वाद में हल्के खट्टे तथा रस मीठा होता है | इस क़िस्म का फल जनवरी के महीने में तुड़ाई के लिए तैयार हो जाता है |

लोकल

इस क़िस्म को पंजाब के छोटे क्षेत्रों में उगाया जाता है | इसमें निकलने वाले फलो का आकार सामान्य और छोटा होता है | यह क़िस्म दिसंबर से जनवरी के महीने में तुड़ाई के लिये तैयार हो जाती है, जिसका छिलका संतरी पीला होता है |

पाव किन्नौ 1

किन्नू की यह क़िस्म जनवरी के महीने में तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है | जिसके फलो में 6 से 9 तक बीज होते है | इस क़िस्म का प्रति वृक्ष उत्पादन 45KG के आसपास होता है |

डेज़ी

यह क़िस्म नवंबर के अंतिम सप्ताह तक तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है | जिसके फलो से 10 से 15 बीज पाए जाते है | इस क़िस्म का औसतन उत्पादन 57 KG प्रति वृक्ष होता है |

किन्नू के खेत की तैयारी (Tangerine Field Preparation)

किन्नू की फसल को भुरभुरी मिट्टी में उगाना सबसे अच्छा माना जाता है | इसके लिए सबसे पहले खेत की सफाई कर गहरी जुताई कर दी जाती है | इसके बाद खेत को कुछ दिन के लिए ऐसे ही खुला छोड़ दे | इसके बाद खेत की एक बार फिर से जुताई कर दी जाती है | जुताई के बाद खेत में पानी छोड़ दिया जाता है | जब खेत का पानी सूखा दिखाई देने लगे तब रोटावेटर लगाकर दो से तीन तिरछी जुताई कर दे | इससे खेत की मिट्टी भुरभुरी हो जाती है, भुरभुरी मिट्टी में पाटा लगाकर खेत को समतल कर दे | इसके बाद पौध रोपाई के लिए उचित दूरी पर गड्डे बना लें |

किन्नू के बीज की रोपाई का समय और ढंग (Kinnow Seeds Sowing Timing and Method)

किन्नू के बीजो की रोपाई सीधा बीज के रूप में न करके पौध के रूप में की जाती है | इसके लिए बीजो को प्रजनन टी-बडिंग विधि के माध्यम से तैयार कर ले | बडिंग में नींबू के जड़ वाले भाग का इस्तेमाल किया जाता है | नर्सरी में बीजो को 2X1 मीटर आकार वाली बैडो पर 15 CM की दूरी पर कतारों में लगाए | जब किन्नू का पौधा 10 से 12 CM लम्बा हो जाये तो उसे निकाल कर खेत में उसकी रोपाई कर दे | खेत में केवल स्वस्थ दिखने वाले पौधों को ही लगाए | कमजोर और छोटे पौधों को खेत में न लगाए | पौधों को खेत में लगाने से पहले जड़ो की छटाई कर लें | खेत में पौधों को लगाने से पहले गड्डो को तैयार कर लें |

इसके लिए 60×60×60 CM आकार वाले गड्डे खोद लें, तथा प्रत्येक गड्डे के मध्य 6×6 मीटर की दूरी रखे | इन गड्डो में 10 KG रूडी और 500 GM सिंगल सुपर फास्फेट की मात्रा को डाले | किन्नू के पौधों को तेज हवा से बचाने के लिए खेत के चारो और अमरुद, जामुन, शीशम, आम, शहतूत और आंवला के पौधों को लगाया जा सकता है | इसके पौधों की रोपाई जून के सितंबर माह के मध्य की जा सकती है | एक एकड़ के खेत में तक़रीबन 200 से 210 पौधों को लगाया जा सकता है |

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किन्नू के पौधों की सिंचाई (Kinnow Plants Irrigation)

किन्नू के पौधों को आरम्भ में अधिक सिंचाई की जरूरत होती है | इसके लिए खेत में हल्की-हल्की सिंचाई कर नमी बनाये रखे | 3 से 4 वर्ष पुराने पौधों को हफ्ते में एक बार पानी देना जरूरी होता है, तथा उससे अधिक पुराने पौधों को मौसम और जलवायु के हिसाब से बारिश के मौसम में 2 से 3 हफ्तों में पानी दे |

किन्नू की फसल में खरपतवार नियंत्रण (Kinnow Crop Weed Control)

किंन्तु के पौधों को आरम्भ में खरपतवार से बचाना बहुत जरूरी होता है | इसके लिए पौधों की निराई – गुड़ाई की जाती है | इसकी पहली गुड़ाई पौध रोपाई के 25 से 30 दिन बाद की जाती है, तथा बाकि की गुड़ाइयो को खेत में खरपतवार दिखाई देने पर ही करना होता है | इसके अलावा पौध अंकुरण के पश्चात् पैराकुएट 1.2 लीटर, गलाईफ़ोसेट या 1.6 लीटर की मात्रा को 200 लीटर पानी में अच्छे से मिलाकर प्रति एकड़ के खेत में छिड़काव करे |

किन्नू के पौधों में लगने वाले रोग एवं उपचार (Kinnow Plants Diseases and Treatment)

क्रं. सं.रोगरोग के लक्षणउपचार
1.सिल्लाकीट15 दिन के अंतराल में टहनियों पर एसीफेट 1 GM या इमीडाक्लोप्रिड 5 ML , प्रोफैनोफॉस + साइपरमैथरिन 1 ML, ट्राइज़ोफॉस + डैल्टामैथरिन 2 ML की मात्रा को एक लीटर पानी में मिलाकर उसका छिड़काव स्प्रे के रूप में करे |
2.पत्ते का सुरंगी कीकीटप्रोफैनोफोस 50 ई सी 60 ML की मात्रा को 15 लीटर पानी में डालकर उसका छिड़काव फलो और पत्तियों पर करे |
3.चेपाकीटकिन्नू के पौधों पर मिथाइल डेमेटन 10 ML या डाइमैथोएट 10 ML की मात्रा को 10 लीटर पानी में डालकर स्प्रे के रूप में छिड़काव करे |
4.जूंजीवपौधों पर डिकोफोल 1.75 ML या घुलनशील सल्फर 3 GM का छिड़काव करे |
5.मिली बगकीटपौधों पर क्लोरपाइरीफॉस 50 ई सी की 500 ML मात्रा को 100 लीटर पानी में डालकर उसका छिड़काव फसल पर करे |
6.पत्ता लपेट सुंडीकीटपौधों पर क्लोरपाइरीफॉस 1250 ML या क्विनलफॉस 800 ML की मात्रा को 200 Ltr पानी में मिलाकर छिड़काव करे |
7.सफेद मक्खी और काली मक्खीकीटपौधों पर प्रति लीटर पानी में एसीफेट 1.25 GM या क्विनलफॉस 1.5 ML या इमीडाक्लोप्रिड 2 ML की मात्रा को मिलाकर छिड़काव करे |
8.टहनियों का सूखनाफल गलन, तना, टहनिया और शिखर का सूखनापौधों पर कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 3 GM की मात्रा को एक लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करे |
9.किन्नुओं का हरापनसूर्य की रौशनी का पर्याप्त मात्रा में न मिल पाना|वृक्षों पर टैट्रासाइक्लिन 500 पी पी एम 5 GM की मात्रा को एक लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करे |
10.गोंदिया रोगजल भरावपौधों की जड़ो पर कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 2.5 GM की मात्रा का छिड़काव करे |

किन्नू के फलो की तुड़ाई और पैदावार (Kinnow Fruit Harvesting and Yield)

किन्नू के पौधों पर लगे फलो का रंग जब आकर्षक दिखाई देने लगे उस दौरान उनकी तुड़ाई कर लें | इसकी तुड़ाई जनवरी से फ़रवरी माह के मध्य करना सबसे अच्छा होता है | इसके फलो की तुड़ाई समय पर कर लेनी चाहिए ताकि फल अच्छी गुणवत्ता वाले प्राप्त हो सके | फलो की तुड़ाई के पश्चात् उन्हें स्वच्छ पानी में डालकर अच्छे से धोकर साफ कर लें | इसके बाद उन्हें छाव में ठीक तरह से सुखा लें | किन्नू का पूर्ण विकसित वृक्ष क़िस्म के आधार पर 80 से 160 KG फलो का उत्पादन दे देता है | जिससे किसान भाइयो को अच्छी मात्रा में फल प्राप्त हो जाते है, और वह अच्छी कमाई भी कर लेते है |

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