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कौंच बीज की खेती (Kaunch Farming) से सम्बंधित जानकारी
कौंच की खेती औषधीय फसल के लिए की जाती है | इसके पौधे झाड़ियों के रूप में पाए जाते है, जिसमे निकलने वाली पत्तियों का झुकाव नीचे की और होता है | यह एक औषधीय पौधा है, जिसके लगभग सभी भागो को इस्तेमाल में लाया जाता है, तथा बीजो में अधिक लाभकारी एवं शक्तिवर्धक तत्व पाए जाते है | जिस वजह से इसका सेवन करना मानव शरीर के लिए लाभकारी होता है | कौंच के बीज अनेक प्रकार की बीमारियों के उपचार में भी लाभकारी सिद्ध हुए है | इसके पौधों को अलग-अलग नामों जैसे :- किवांच, काऊ हैज और कपिकच्छु के नाम से भी जानते है |
इसकी फलियों को सब्जी बनाकर खाने में भी उपयोग कर सकते है | भारत के उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र आदि राज्यों में कौंच की खेती अधिक मात्रा में की जाती है | यदि आप भी कोच की खेती करने का मन बना रहे है, तो इस लेख में आपको कौंच बीज की खेती कैसे करें (Kaunch Farming in Hindi) तथा कौंच बीज का भाव के बारे में समझाया जा रहा है |
कौंच बीज की खेती कैसे करें (Kaunch Farming in Hindi)
कौंच की खेती के लिए सहायक भूमि, जलवायु और तापमान (Kaunch Cultivation Subsidiary Land, Climate and Temperature)के बारे में जानकारी इस प्रकार है:-
कौंच की खेती किसी भी तरह की मिट्टी में की जा सकती है | भारी चिकनी, पथरीली, बंजर और जल भराव वाली भूमि में भी इसकी खेती आसानी से कर सकते है | इसकी खेती किसी भी P.H. मान वाली भूमि में कर सकते है |
कौंच के पौधों को विकास करने के लिए समशीतोष्ण जलवायु की आवश्यकता होती है | इसकी खेती खरीफ के समय की जाती है, तथा पौध विकास के लिए सामान्य गर्म जलवायु उपयुक्त होता है | इसके पौधे बारिश के मौसम में भी ठीक से विकास करते है | कौंच के पौधों को अंकुरण के लिए 20 डिग्री तथा पौध विकास के लिए 30 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है |
कौंच की उन्नत किस्में (Kaunch Improved Varieties)
वर्तमान समय में कौंच की बहुत ही कम किस्में मौजूद है, जिन्हे दो प्रजातियों को बांटा गया है | जिसमे पहली प्रजाति जंगली कौंच और दूसरी हरी कौंच है |
जंगली कौंच
इस प्रजाति की कौंच के पौधों में निकलने वाली फलियों पर अधिक मात्रा में रोये पाए जाते है | इसके पौधे जंगल में मौजूद दूसरे पौधों के साथ वृद्धि करते है, जिसमे निकलने वाली फलियों का रंग पीला होता है | इसकी फलियाँ नीचे से ऊपर की और मुड़ी हुई होती है | कौंच की इस प्रजाति में निकलने वाली फलियों से सब्जी नहीं बनायीं जा सकती है |
हरी कौंच
कौंच की इस प्रजाति में फलियाँ हरे रंग की पायी जाती है, तथा फलियों पर हल्के लाल रंग के रोये दिखाई देते है | इसके पौधों पर निकलने वाले फूल बैंगनी रंग के होते है | इसकी फलियों को सब्जी बनाने के लिए उपयोग में लाते है | इस क़िस्म के पौधों की शाखाओ, तना और पत्तियों को भी इस्तेमाल में लाया जाता है |
कौंच की फसल के लिए खेत की तैयारी और उवर्रक (Kaunch Crop Field Preparation and Fertilizer)
कौंच की खेती में खेत को तैयार करने के लिए आरम्भ में खेत की गहरी जुताई कर दी जाती है | इसके बाद खेत में प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 10 से 15 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद को डालकर मिट्टी में अच्छे से मिलाना होता है | खाद को मिट्टी में मिलाने के पश्चात् पानी लगाकर पलेव कर दे | पलेव के बाद मिट्टी सूखने पर रोटावेटर लगाकर दो से तीन तिरछी जुताई कर खेत की मिट्टी को भुरभुरा कर दे | भुरभुरी मिट्टी में पाटा लगाकर खेत को समतल कर दे |
समतल खेत में पौध रोपाई के लिए उचित दूरी पर मेड़ो को तैयार कर ले | कौंच की खेती में रासायनिक खाद का इस्तेमाल न करे, क्योकि इसकी खेती औषधीय रूप में की जाती है | यदि फिर भी रासायनिक उवर्रक का इस्तेमाल करना चाहते है तो आप 10 KG यूरिया की मात्रा को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से पौध रोपाई के दो माह पश्चात दे सकते है |
कौंच के बीज की रोपाई का समय और तरीका (Kaunch Seeds Transplanting Time and Method)
कौंच के बीजो की रोपाई बीज के रूप में की जाती है | इसके लिए खेत में उचित दूरी पर मेड़ो को तैयार कर लिया जाता है | इसके बाद बीजो को मेड़ पर एक से डेढ़ मीटर की दूरी पर लगाना होता है | कौंच के पौधे सहारा लेकर वृद्धि करते है, जिसके लिए मेड़ो पर डेढ़ से दो मीटर ऊँची बांस या किसी भी तरह की लकड़ी को लगा दिया जाता है| इन लकड़ियों के सहारे ही पौधे अच्छे से विकास करते है | चूंकि कौंच के पौधों को अधिक पानी की जरूरत होती है, इसलिए पौधों की रोपाई के लिए बारिश का मौसम सबसे उपयुक्त होता है | इस दौरान बीजो की रोपाई जून के महीने में की जाती है | ऐसे स्थान जहा पर सिंचाई का ठीक प्रबंध नहीं होता है, वहा पर बीजो की रोपाई मार्च से अप्रैल माह के मध्य की जाती है |
कौंच के पौधों की सिंचाई (Kaunch Plants Irrigation)
कौंच के पौधों को अधिक सिंचाई की जरूरत होती है | इसलिए इसकी पहली सिंचाई पौध रोपाई के तुरंत बाद कर दी जाती है | इसके बाद बीज अंकुरण के समय तक खेत में नमी बनाये रखना होता है | गर्मियों के मौसम में कौंच के पौधों को सप्ताह में एक बार तथा बारिश के मौसम में जरूरत पड़ने पर ही पानी दे |
कौंच की फसल में खरपतवार नियंत्रण (Kaunch Crop Weed Control)
कौंच की खेती में पौधों को खरपतवार से बचाने के लिए निराई – गुड़ाई की जाती है | इसकी पहली गुड़ाई बीज रोपाई के 20 दिन पश्चात् की जाती है, तथा बाद की गुड़ाइयो को 25 दिन के अंतराल में करना होता है | इसके पौधों को अधिकतम 2 से 3 गुड़ाई की ही जरूरत होती है |
कौंच की फसल पर रोग और उनका उपचार (Kaunch Crop Diseases and Treatment)
कौंच की खेती में पौधों पर बहुत कम ही रोग लगते है | किन्तु चूर्णी फफूंदी, झुलसा, सफ़ेद मक्खी का प्रकोप, कीटों का आक्रमण और पत्ती धब्बा कुछ ऐसे रोग है, जो पौधों पर दिखाई दे सकते है | इनकी रोकथाम के लिए नीम के तेल या नीम के काढ़े का छिड़काव पौधों पर करे | इसके अलावा कृषि केन्द्रो से जानकारी प्राप्त कर रासायनिक दवाइयों का भी इस्तेमाल कर सकते है |
कौंच के फलो की तुड़ाई (Kaunch Fruits Plucking)
कौंच के पौधे बीज रोपाई के 6 माह पश्चात् पैदावार देना आरम्भ कर देता है | जब इसकी फलियों में लगे बीज पककर काले रंग के हो जाये उस दौरान फलियों की तुड़ाई कर ले | तुड़ाई के समय फलियों पर लगे रोये से सावधानी रखनी होती है, क्योकि फलियों में लगे रोये मनुष्य की त्वचा के संपर्क में आते ही खुजली पैदा कर देते है | फलियों की तुड़ाई के पश्चात उन्हें तेज धूप में अच्छी तरह से सूखा लिया जाता है | इसके बाद उन्हें मशीन या हाथो से अलग कर लेते है, और बाज़ारो में बेचने के लिए भेज देते है |
कौंच बीज का भाव,पैदावार और लाभ (Kaunch Price, Yields and Benefits)
किसान भाई एक एकड़ के खेत में कौंच की खेती कर 25 से 30 क्विंटल की पैदावार प्राप्त कर सकते है | कौंच का बाज़ारी भाव 50 रूपए प्रति किलो होता है, जिससे किसान भाई कौंच की एक बार की फसल से सवा से डेढ़ लाख तक की कमाई आसानी से कर सकते है |