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जौ ((Joo) की खेती से सम्बंधित जानकारी
जौ की खेती पुराने समय से ही पूरी दुनिया के कई भागो में की जा रही है | प्राचीनकाल से ही मनुष्य जौ को भोजन के रूप में ग्रहण करते आए है, इसके साथ ही जौ के दाने को पशुओ को खिलाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है | भारत में जौ की रोटी बनाई जाती है, तथा चने व गेंहू के साथ मिलाकर भी जौ को इस्तेमाल करते है | कभी-कभी जौ को पीसकर सत्तू बनाकर या भूनकर भी खाते है | इसके अलावा माल्ट व शराब बनाने के लिए भी जौ का उपयोग करते है | जौ की खेती काफी फायदे वाली खेती भी है, क्योकि जौ की फसल को बेचने में काफी आसानी होती है | जिस वजह से किसान भाई जौ की खेती में काफी दिलचस्पी दिखाते है |
जानवरो के लिए हरे चारे और दाने के अलावा मुर्गी पालन में भी जौ के दानो को उपयोग किया जाता है | कई चीजों में उपयोग होने के कारण जौ की मांग बाज़ारो में बनी रहती है | आप भी जौ की खेती कर अधिक से अधिक लाभ कमा सकते है | इस लेख में आपको जौ की खेती कैसे करे तथा जौ की खेती करने का तरीका व लाभ (Joo Ki Kheti) के बारे में बता रहे है |
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जौ की खेती का क्षेत्रफल (Barley Cultivated Area)
जौ का पौधा उष्णकटिबन्धीय होता है, किन्तु इसे शीतोष्ण और समशीतोष्ण जलवायु में भी आसानी से उगाया जा सकता है | विश्व के ज्यादातर भागो में जौ की खेती की जाती है | भारत, कनाडा, जर्मनी, संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, रूस, टर्की, पोलैण्ड, डेनमार्क, ग्रेट ब्रिटेन, जापान, रुमानिया, हंगरी, अर्जेंटीना, मोरक्को, फ्रांस और ऑस्ट्रेलिया ऐसे देश है, जहां पर जौ को विस्तृत रूप से उगाया जाता है | इसके अलावा चीन एक मात्र ऐसा देश है, जहां पर जौ का उत्पादन सबसे अधिक किया जाता है, और भारत को विश्व में छठवां स्थान प्राप्त है | यही पर विश्व का 3.5% जौ उत्पादन किया जाता है |
भारत के ज्यादातर राज्यों में जौ की खेती की जाती है, जिसमे से उत्तर प्रदेश राज्य में सबसे अधिक जौ का उत्पादन किया जाता है | इसके अलावा मध्य प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान और बिहार राज्य में भी जौ का उत्पादन काफी अच्छा हो जाता है | भारत में जौ के उत्पादन का 42% भाग उत्तर प्रदेश राज्य में ही उत्पादित किया जाता है | उत्तर प्रदेश राज्य का इलाहाबाद, जौनपुर, आजमगढ़ और गोरखपुर जिला जौ की खेती का काफी अच्छा स्थान है |
जौ की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु (Barley Cultivation Suitable Climate)
जौ एक शीतोष्ण जलवायु फसल है, लेकिन इसे समशीतोष्ण जलवायु में भी उगाया जा सकता है | समुद्र तल से 4000 मीटर की ऊंचाई पर जौ की खेती सफलतापूवर्क की जा सकती है | जौ की खेती के लिए ठंडी व नम जलवायु को सबसे अच्छा माना जाता है | उन सभी क्षेत्रों में जहां पर 4 माह तक ठंडा मौसम रहता है, वहां जौ की खेती कर सकते है | जौ के पौधों के लिए न्यूनतम 35-40°F तापमान तथा अधिकतम 72-86°F तापमान उपयुक्त होता है | जिन क्षेत्रों में वार्षिक औसतन वर्षा 70 से 100 CM होती है | वहां पर जौ की खेती आसानी से कर सकते है | इसके अलावा कम वर्षा वाले क्षेत्रों में भी जौ की खेती की जा सकती है | किन्तु अधिक वर्षा से जलभराव होने वाले क्षेत्रों में जौ की खेती बिल्कुल न करे |
जौ की खेती के लिए उपयुक्त भूमि (Barley Cultivation Suitable Land)
जौ की खेती के लिए उचित जल निकासी वाली भूमि उपयुक्त होती है | भारी भूमि जिसमे से जल की निकासी नही हो पाती है, ऐसी भूमि में जौ की खेती बिल्कुल न करे | जौ की खेती के लिए ऊँची व रेतीली भूमि उपयुक्त रहती है | ऊसर भूमि में भी जौ की फसल उगाई जा सकती है |
जौ की उन्नत किस्में (Barley Improved Varieties)
उन्नत क़िस्म | उत्पादन समय | उत्पादन |
ज्योति K 572/10 | 130-135 दिन | 35-40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर |
आजाद ( K 125 ) | 125-130 दिन | 30-35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर |
अम्बर ( K 71 ) | 125-130 दिन | 25-30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर |
रतना | 110-120 दिन | 25-30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर |
विजया ( K 572/11 ) | 120-125 दिन | 25-30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर |
आर. एस. 6 | 115-120 दिन | 25-30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर |
रणजीत ( DL 70 ) | 120-125 दिन | 30-35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर |
आर. डी. बी. 1 | 120-125 दिन | 35-40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर |
सी. 138 | 125 दिन | 10-15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर |
सी. 164 | 125 दिन | 20-30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर |
बी. जी. 105 | 125-130 दिन | 15-25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर |
बी. जी. 108 | 120-125 दिन | 15-20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर |
कैलाश | 140-145 दिन | 30-35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर |
डोलमा | 140-145 दिन | 30-40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर |
हिमानी | 130-140 दिन | 30-35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर |
आर. डी. 57 | 120-130 दिन | 30-35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर |
आर. डी. 31 | 120-125 दिन | 30-32 क्विंटल प्रति हेक्टेयर |
डी. एल. 36 | 130-135 दिन | 35-40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर |
डी. एल. 88 | 130-135 दिन | 35-40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर |
करण 3 | 130 दिन | 30-35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर |
करण 4 | 100-110 दिन | 40-45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर |
करण 18 | 125 दिन | 40-45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर |
करण 15 | 115-120 दिन | 40-45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर |
जवाहर जौ 01 | 130-135 दिन | 30.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर |
जौ की खेती के लिए भूमि की तैयारी (Barley Cultivation Land Preparation)
जौ की फसल के लिए गेहूं के मुकाबले कम खेत को कम तैयार करने की जरूरत होती है| इसके लिए बस आपको एक जुताई मिट्टी पलटने के लिए और दो से तीन जुताई देशी हल या हैरो लगाकर करनी होती है| खेती में मौजूद ढेलो को तोड़ने और भूमि में नमी को सुरक्षित रखने के लिए पाटा लगाना जरूरी होता है | भारी मृदा भूमि वाले क्षेत्रों में पहली जुताई में बक्खर का प्रयोग करते है |
जौ की खेती के लिए बीज की मात्रा (Barley Cultivation Seed Quantity)
जौ की खेती में बीज की मात्रा बुवाई की विधि पर निर्भर करती है | सीड ड्रिल विधि द्वारा बुवाई करने पर प्रति हेक्टेयर के खेत में 75 KG जौ के बीजो की जरूरत होती है, तथा छिड़काव विधि में प्रति हेक्टेयर 100 KG बीजो की जरूरत होती है | इसके अलावा डिबलर विधि में सिर्फ 25-30 KG बीज ही प्रति हेक्टेयर के क्षेत्रफल में उपयुक्त होते है |
बीजो की बुवाई से पहले उन्हें कैप्टान (250 GM कैप्टान 100 KG बीज) से उपचारित करके ही बोना चाहिए | असिंचित जगहों पर पछेती बुवाई के लिए प्रति हेक्टेयर 100 KG बीज लगते है, तथा ऐसे स्थान पर बीजो को पानी में भिगोकर बोए ताकि बीज अंकुरण अच्छे से व जल्दी हो सके |
जौ के बीजो की बुवाई का तरीका (Barley Seeds Sowing Method)
- छिड़काव विधि द्वारा :- इस विधि में जौ के बीजो को खेत में छिड़क देते है, और फिर बीजो को मिट्टी से ढकने के लिए जुताई की जाती है | यह बीज बुवाई की उत्तम विधि नहीं है, किन्तु भारत में इस विधि को सबसे अधिक अपनाया जाता है | इस विधि में बीजो की मात्रा अधिक लगती है |
- कुंड द्वारा बुवाई :- इस विधि में बुवाई से पहले हल की सहायता से कुंड तैयार किया जाता है, और हल के पीछे लगे कुंड में हाथ से बीजो को डाला जाता है | इस विधि में बीज पंक्ति में और सामान गहराई में पड़ता है | इस विधि में थोड़ा कम बीज लगते है |
- सीडड्रिल द्वारा बुवाई :- इस विधि को बुवाई के लिए सबसे उत्तम कहा गया है | इसमें ट्रैक्टर या बैलो द्वारा सीडड्रिल चलाकर बीजो की बुवाई की जाती है| इसमें पंक्ति से पंक्ति और पौध से पौध के बीच की दूरी एक सामान रहती है, तथा बुवाई में भी कम समय लगता है |
- डिबिलर विधि :- इस विधि में बीज कम लगते है, लेकिन मेहनत अधिक लगती है | यदि बीजो की मात्रा कम हो तो इस विधि को अपनाया जाता है |
जौ की खेती में खाद व उवर्रक की मात्रा (Barley Cultivation Manure and Fertilizer Amount)
अगर जौ की फसल सिंचित जगह पर की गई है, तो खाद अधिक मात्रा में लगती है, तथा असिंचित जगह पर कम खाद लगती है | जौ की बुवाई करते समय पोटाश व फास्फोरस की पूरी व नाइट्रोजन की आधी मात्रा को बुवाई करते समय 8-10 CM की गहराई पर कुंड में देना होता है | असिंचित जगह पर फास्फोरस, पोटाश और नाइट्रोजन तीनो की पूरी मात्रा को एक साथ खेत में बुवाई से पहले कुंड में डालें | माल्ट बनाने में जौ में अगर नाइट्रोजन की मात्रा अधिक दी जाए तो अनाज का दाना भी अधिक प्रोटीन वाला होता है, जिससे माल्ट की गुणवत्ता में गिरावट होती है |
जौ के फसल की कटाई-मड़ाई व पैदावार (Barley Crop Harvesting and Yield)
जौ की फसल कम समय में तैयार हो जाती है | इसकी फसल की बुवाई नवंबर में की जाती है, तथा मार्च के अंतिम सप्ताह तक फसल कटाई के लिए तैयार हो जाती है | फसल पक जाने पर उसकी कटाई तुरंत कर ले, अन्यथा फसल के दाने खेत में गिरने लगते है | एक हेक्टेयर के खेत से 30-35 क्विंटल दाना व इतना ही भूसा भी मिल जाता है | इस तरह से किसान भाई जौ की फसल से काफी अच्छी कमाई कर लेते है |