झूम खेती कैसे करे | फायदे व नुकसान | Jhoom Farming in Hindi


कृषि की दृष्टि से भारत एक महत्वपूर्ण देश है, जिसकी दो से तीन तिहाई आबादी खेती किसानी से संबंधित कार्य करती है | वर्तमान समय में देश के किसान खेती करने के लिए नए-नए तरीके अपना रहे है | इसी में से एक झूम खेती भी है | जिसकी चर्चा इन दिनों काफी सुनने को मिल रही है | फ़िलहाल झूम खेती को देश के कुछ हिस्सों में ही किया जा रहा है, क्योकि अभी बहुत से लोग है, जिन्हे झूम खेती के बारे कोई विशेष जानकारी नहीं है, जिस वजह से वह झूम की खेती नहीं कर रहे है |




लेकिन जिन किसानो को झूम खेती करने का तरीका पता है, वह झूम खेती कर काफी अच्छी कमाई कर रहे है | अगर आप भी झूम खेती कर अन्य किसानो की तरह अच्छी कमाई करना चाहते है, तो इस लेख में आपको झूम खेती कैसे करे (Jhoom Farming in Hindi) तथा झूम की खेती करने के फायदे व नुकसान बताए जा रहे है |

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झूम खेती कैसे करे (Jhoom Farming)

झूम खेती करने का तरीका सबसे अलग होता है | इस तरह की खेती में जब एक फसल कट जाती है, तो उस जमीन को कुछ वर्षो के लिए ऐसे ही छोड़ दिया जाता है, और उसमे खेती का कार्य नहीं करते है | इस खाली पड़ी भूमि पर कुछ वर्षो में बांस या अन्य जंगली पेड़ उग आते है | इसी जंगल को गिराकर जला दिया जाता है, जो बाद में खाद की तरह कार्य करता है | यदि कोई पहले से ही वृक्ष या वनस्पति तैयार खड़े है, तो आप उन्हें भी जलाकर झूम खेती करने के लिए इस्तेमाल कर सकते है | जलाए गए जंगल की सफाई कर ले, और उसकी जुताई कर बीजो को बो दे | यह कृषि पूर्णत: प्रकृति पर निर्भर करती है, तथा उत्पाद भी कम ही हो पाता है | अब इस भूमि पर पुन: पेड़-पौधे निकल आते है |

कृषि के लिए अन्य जंगली भूमि को साफ कर नई भूमि प्राप्त करते है, और उस पर भी केवल कुछ वर्ष तक ही खेती की जाती है | इस तरह से यह एक स्थानान्तरणशील कृषि होती है, जिसमे कुछ समय के अंतराल में खेत को बदलना पड़ता है | भारत के पूर्वोत्तर पहाड़ियों में रहने वाले आदिम जातियों द्वारा इस तरह की झूम कृषि की जाती है | इस स्थानान्तरणशील कृषि को हिन्देसिया में लदांग, श्रीलंका में चेना और रोडेशिया में मिल्पा के नाम से जानते है | इस खेती को मुख्यता उष्ठकटिबंधीय वन प्रदेशों में किया जाता है |

झूम खेती का इतिहास (Jhum Cultivation History)

झूम खेती के इतिहास की बात करे, तो यह नवपाषाण काल की खेती है, जो तक़रीबन 8000 से 10,000 वर्ष पुरानी खेती है | इस खेती के प्रकोप को लेकर कई विचारधारायें शामिल है | प्लाइस्टोसीन युग में जब बढ़ती जनसंख्या के कारण खाद्य प्रदार्थो की अधिक आवश्यकता पड़ी, तो तब के मानवो के मन में खेती करने का विचार आया होगा | उस ज़माने में खेती के लिए विस्तृत भूमि उपलब्ध थी, और जौ, अनाज बाजरा व् दाल के बीजो को ऐसे ही फैला दिया जाता था | वर्ष ऋतु के पश्चात् फसल काट ली जाती थी | दो तीन वर्ष तक फसल लेने के बाद उस भूमि पर उपज कम हो जाती थी, और फिर भूमि के दूसरे टुकड़े पर यह कार्य चालू कर दिया जाता था | इस तरह से कृषि/झूम, अस्थायी कृषि/स्थानान्तरित खेती का चलन आरम्भ हुआ होगा |

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झूम खेती के फायदे (Jhoom Cultivation Advantages)

झूम खेती करने का फायदा यह है, कि इससे मिट्टी की भौतिक स्थिति में सुधार होता है | इसमें जैसे-जैसे फसल की जड़ में वृद्धि होती है, वैसे-वैसे मिट्टी में पोषक तत्व और नमी तक जड़ पहुंचकर रोपण की गुणवत्ता में सुधार करती है |

झूम खेती के नुकसान (Jhoom Cultivation Disadvantages)

इस तरह की खेती से पर्यावरण को काफी हानि पहुँचती है | इसके अलावा भी झूम खेती के कुछ हानिकारक प्रभाव है, जैसे :- मिट्टी का कटाव, वन्यजीवो के आवासो का विनाश, वनो की कटाई, मिट्टी की उवर्रकता में कमी और नदियों व् झीलों में बाढ़ भी शामिल है | इसका नतीजा यह निकलता है, कि उत्पादन काफी कम हो जाता है, और एक झुमिया परिवार का एक जगह गुजर बसर करना असंभव हो जाता है |

झूम खेती के क्षेत्रफल में कमी (Jhoom Cultivation Area Decrease)

स्थानीय तौर पर झूम खेती नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश, त्रिपुरा, मिज़ोरम, मणिपुर और मेघालय जैसे भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में की जाती है, और वहां की पर्याप्त जनसंख्या के लिए यह खाद्य उत्पादन एक महत्वपूर्ण आधार बन गया है | रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2000 से वर्ष 2010 के मध्य स्थानांतरित कृषि करने के लिए भूमि में 70% की कमी आई है | इस रिपोर्ट को सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा प्रकाशित किया गया है | जिसमे बताया गया है, कि वर्ष 2000 में जहां झूम कृषि का क्षेत्रफल 35,142 वर्ग किलोमीटर था, वही वर्ष 2010 में यह क्षेत्रफल सिर्फ 10,306 वर्ग किलोमीटर में सिमट कर रह गया है |

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झूम खेती में खाद्य सुरक्षा (Jhoom Farming Food Security)

खेती में स्थानांतरित कृषि प्रणाली को अपनाने वाले समुदायों में वृद्धि हुई है | किन्तु स्थानांतरित कृषि खाद्य सुरक्षा से परिवारों को पर्याप्त नकदी नहीं प्राप्त होती है | इस वजह से नियमित कृषि बागवानी की ओर रूख कर रही है | मनरेगा भी लोगों की बढ़ती निर्भरता को स्थानांतरित कृषि से हटाने के लिए प्रभाव डालने का कार्य कर रही है | नियादी खाद्य पदार्थों व् अनाज तक लोगो की व्यापक पहुँच को सुनिश्चित करने के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) का विस्तार किया जा रहा है, और संक्रमण परिवर्तन के दौरान झूम कृषि में शामिल समुदायों के लिए पोषण और खाद्य की रिपोर्ट पर भी चर्चा की गई है | पहले झूम खेती के कृषक 10-12 वर्ष बाद परती भूमि पर लौटते थे, लेकिन अब वह 3 से 5 वर्ष में ही लोट रहे है | क्योकि इसने मिट्टी की गुणवत्ता पर काफी असर डाला है |

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