हरी खाद (Green Manure) क्या है ? हरी खाद कैसे बनती है – हरी खाद के फायदे और नुकसान


हरी खाद (Green Manure) से सम्बंधित जानकारी

कृषि के क्षेत्र में खेती करने के लिए हरी खाद को विशेष रूप में इस्तेमाल करते है| किन्तु किसान भाई गोबर की खाद की तरह उपयोग करने के बजाय उसके कंडे बनाकर ईंधन के रूप में इस्तेमाल करते है | हरी खाद का उपयोग कर भूमि के भौतिक गुणों में सुधार कर मृदा की उवर्रक शक्ति को बढ़ा सकते है | हमारे देश में मई-जून के महीने में अधिक गर्म जलवायु होने की वजह से जीवांश पदार्थ अधिक तेजी से विघटित हो जाते है | जिस वजह से मृदा की उवर्रकता पर बुरा असर पड़ता है | जिसके बाद जीवांश खाद देकर पूर्ती की जाती है | ग्रामीण क्षेत्रों में विष्ठा खाद का प्रयोग न के बराबर करते है, तथा कम्पोस्ट खाद को तैयार करने के लिए किसानो के पास समय नहीं होता है |




कलियों की कीमत काफी अधिक होती है, तथा पशुओ को ही पर्याप्त मात्रा में नहीं मिल पाता है | जिस वजह से हरी खाद को सबसे सस्ता और अच्छा विकल्प माना गया है | हरी खाद मृदा की उवर्रक शक्ति को बनाए रखने में मदद करता है | अगर आप भी हरी खाद को तैयार करने की सोच रहे है, तो यहाँ पर आपको हरी खाद (Green Manure) क्या है, तथा हरी खाद कैसे बनती है – हरी खाद के फायदे और नुकसान की जानकारी से अवगत कराया जा रहा है |

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हरी खाद क्या है (Green Manure)

देश में खाद्य जरूरतों को पूरा करने के लिए सघन क्रिया अपनाई जाने लगी है, इससे फसलों का उत्पादन भी अधिक तेजी से बढ़ा है, तथा भूमि में पोषक तत्वों का भारी मात्रा में व्हृास हुआ है | जिस वजह से भूमि की उत्पादकता में भी कमी देखने को मिली है | भूमि की उत्पादकता को बनाए रखने और अधिक उत्पादन प्राप्ति के लिए पोषक तत्वों की पूर्ती करना जरूरी होता है | भूमि में पोषक तत्वों को बनाए रखने और उत्पादकता बढ़ाने में कार्बनिक खादों में हरी खाद को विशेष स्थान प्राप्त है |

हरी खाद की परिभाषा (Green Manure Definition)

मृदा की उवर्रक शक्ति को बढ़ाने के लिए हरी फसलों व दलहनी फसलों को खेत में उगाया जाता है | इसके बाद तैयार हुई हरी फसल को ही जोतकर सड़ा देने की प्रक्रिया को हरी खाद कहते है |

हरी खाद के लिए फसल का चुनाव (Green Manure Crop Selection)

  • हरी खाद को तैयार करने के लिए फसल का चुनाव करते समय निम्न बातो पर विशेष ध्यान देना होता है:-
  • फसल अधिक पत्तीदार और अति शीघ्रता से बढ़ने वाली होनी चाहिए |
  • कम समय में उगने वाली ही फसल उगाए |
  • फसल का वानस्पतिक अंग मुलायम हो |
  • फसल की जड़े भूमि में अधिक गहराई में होनी चाहिए |
  • कम खर्च वाली फसल उगाए |
  • रोग व कीट मुक्त फसल लगाए |
  • फसल के बीज आसानी से और सस्ते दामों पर मिल जाए |
  • फसल प्रतिकूल परिस्थितियों में भी उगने में सक्षम हो |
  • फसल मृदा में वायुमंडल की नाइट्रोजन संस्थापित करने वाली हो |
  • पेड़ो की जड़ो पर पर्याप्त संख्या में ग्रंथिया आती हो |
  • फसल कम सिंचाई वाली हो |
  • फसल उगाने में कम पोषक तत्व की जरूरत पड़े |
  • फसल कई उद्देश्य जैसे :- रेशा, हरा चारा और हरी खाद को पूरा करती हो |
  • फसल किसी भी तरह की भूमि में उगने में सक्षम हो |
  • अधिक नाइट्रोजन ग्रहण करने वाली फसल लगाए |
  • फसल उपयोगी फसल चक्र |
  • फसल खरपतवार नियंत्रण में सक्षम हो |
  • फसल अधिक तापमान और अधिक वर्षा सहने की क्षमता रखती हो |

हरी खाद बनाने में प्रयोग की जाने वाली फसले (Green Manure Making Using Crops)

हरी खाद बनाने में जिन फसलों का उपयोग किया जाता है, उन्हें मुख्य दो भागो में बांटा गया है:-

फलीदार व दलहनी फसलें (Leguminous Crops)

इस तरह की फसलों में मृदा के लिए जीवांश पदार्थ के साथ ही वायुमण्डल से नाइट्रोजन को ग्रहण करने की क्षमता होती है, इससे मृदा की गुणवत्ता में सुधार होता है, और उवर्रक शक्ति भी बढ़ती है | इन फसलों का विघटन काफी जल्दी हो जाता है | ऋतुओ के हिसाब से निम्न हरी खाद वाली फसलों का उपयोग कर सकते है |

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बिना फलीदार और अदलहनी फसलें (Leguminous and Leguminous Crops)

इस तरह की फसले मृदा में नाइट्रोजन की पूर्ती नहीं करती है, किन्तु कार्बनिक पदार्थो को बढ़ाती है | इन फसलों से घुलनशील नाइट्रोजन का संरक्षण संभव है | इस श्रेणी में आने वाली फसले :- राई, शलजम, ज्वार, मक्का, तोरई, भांग, जई, सूरजमुखी और सरसों शामिल है | इन फसलों का प्रचलन भारत में काफी कम है, जबकि अमेरिका और यूरोप में हरी खाद के लिए फलीदार फसलों का अधिक प्रयोग किया जाता है |

हरी खाद के फायदे (Green Manure Benefits)

  • हरी खाद से भूमि संरचना और पानी सोखने की शक्ति बढ़ जाती है |
  • भूमि में नाइट्रोजन को बढ़ाना |
  • कार्बनिक पदार्थ की मात्रा में भी इजाफा देखने को मिलता है |
  • मिट्टी को कम हानि होती है |
  • भूमि की ऊपरी सतह महफूज रहती है |
  • क्षारीय व लवणीय भूमि में सुधार |
  • हरी खाद के विघटन से उत्पन्न अम्ल मिट्टी को उदासीन कर देते है |
  • दूसरी विधियों की तुलना में हरी खाद के माध्यम से पोषक तत्व देना सस्ता व सरल है |

हरी खाद में सावधानिया (Green Manure Precautions)

  • हरी खाद की फसल में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का अभाव होना |
  • बाज़ारो में अच्छे बीज का न होना |
  • चारे व अनाज की अधिक मांग के चलते किसान हरी खाद वाली फसल उगाना नहीं पसंद करते है |
  • सघन खेती होने के चलते किसान हरी खाद फसल पर ध्यान नहीं देते है |
  • छोटी जोत के कारण किसान अनाज व सब्जी फसल को उगाना पसंद करते है |

हरी खाद कैसे बनती है (Green Manure Make)

खेत में हरी खाद को दो तरह से तैयार करते है:-

हरी खाद की सीटू विधि (Green Manure Situ Method)

इस विधि के माध्यम से हरी खाद बनाने के लिए खेत में हरी खाद वाली फसल को उगाया जाता है | इसके बाद उसी फसल की जुताई कर खेत में उसे दबा देते है | अधिक वर्षा और सिंचित क्षेत्रों में इस विधि को अधिक अपनाया जाता है |

हरी पत्तियों से हरी खाद तैयार करना (Green Manure Making From Green Leaves)

इस विधि में हरी खाद की फसल को एक क्षेत्र में उगाकर उसके पेड़ो और पौधों की हरी पत्तिया तोड़ ली जाती है, और उन्हें खेत में डालकर जुताई कर दबा देते है | भारत के केरल, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और तमिलनाडु राज्यों में जहा फसल उगाने के लिए भूमि में नमी की मात्रा कम पाई जाती है, वहा पर इस विधि को अपनाते है|

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