अंगूर की खेती कैसे होती है | Grapes Farming in Hindi | खेती से लाभ


अंगूर की खेती (Grapes Farming) से सम्बंधित जानकारी

अंगूर की खेती एक मुलायम और रेशेदार मीठे फल के रूप में की जाती है | भारत में अंगूर की अच्छी पैदावार होती है, जिस वजह से इसे व्यापारिक रूप से तक़रीबन 6 दशकों से उगाया जा रहा है | आर्थिक दृष्टि से अंगूर की उन्नत किस्मो को सर्वाधिक बागवानी उधम के रूप में किया जा रहा है |




वर्तमान समय में महाराष्ट्र को सर्वाधिक अंगूर की खेती वाला क्षेत्र कहा जाता है, क्योकि महाराष्ट्र में इसे अधिक भूमि में उगाया जाता है | भारत को विश्व का सर्वोच्च अंगूर उत्पादक कहा जाता है | किसान भाई अंगूर की खेती कैसे होती है (Grapes Farming in Hindi) इसकी जानकारी प्राप्त करके अच्छा लाभ कमा सकते है |

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अंगूर की खेती कैसे करे (Grapes Farmingin Hindi)

अंगूर की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी और जलवायु (Grapes Cultivation Suitable Soil and Climate)

अंगूर के फलो की अच्छी पैदावार के लिए इसे कंकरीली और रेतीली चिकनी मिट्टी में उगाना चाहिए| अंगूर की खेती के लिए अच्छी जल निकासी वाली भूमि की आवश्यकता होती है| इसकी फसल कुछ हद तक खारापन सहन कर सकता है, तथा भूमि में अधिक खारापन इसकी पैदावार के लिए अच्छा नहीं होता है| इसके अलावा अंगूर के फलो को अच्छे से विकास के लिए सामान्य तापमान की आवश्यकता होती है| गर्म, शुष्क, तथा अधिक गर्म जलवायु इसके फलो के लिए उपयुक्त होता है| फलो के वृद्धि के समय वर्षा इसके फलो को अधिक प्रभावित करती है, उस दौरान इसके दानो के फट जाने का खतरा होता है|

अंगूर की उन्नत किस्मे (Grapes Improved Varieties)

अनब-ए-शाही किस्म के अंगूर

अंगूर की इस किस्म को आंध्र प्रदेश, पंजाब, हरियाणा और कर्नाटक जैसे राज्यों में अधिक उगाया जाता है| इसमें निकलने वाले अंगूरों का जूस देखने में अधिक साफ और 14-16% TSS सहित मीठा होता है | इस किस्म के पौधे 35 टन तक की अधिक पैदावार देने के लिए जाने जाते है |

बैंगलोर ब्लू किस्म के अंगूर

इस किस्म के पौधों को अधिकतर कर्नाटक में उगाया जाता है| इसके पौधों की पत्तिया आकार में छोटी, पतली तथा फल देखने में गहरे बैंगनी रंग और अंडाकार के होते है| इसमें तक़रीबन 16-18% सुगंधित TSS की मात्रा पाई जाती है | यह एक उत्तम गुणवत्ता किस्म वाला फल है, जिसका इस्तेमाल खासकर जूस और शराब को बनाने में किया जाता है|

भोकरी

अंगूर की इस किस्म को अधिकतर तमिलनाडु में उगाया जाता है| इसके फल देखने में हल्के पीले रंग के होते है, तथा आकार में माध्यम होते है| इसमें लगने वाले फल की गुणवत्ता ज्यादा अच्छी नहीं होती है| इस किस्म का पौधा औसतन 35 टन की प्रति हेक्टेयर के हिसाब से पैदावार देता है|

गुलाबी

यह अत्यधिक संवेदनशील पौधा होता है | इसमें मिलने वाले TSS की मात्रा 18-20% तक होती है | यह फल देखने में गोलाकार होता है | पैदावार के मामले में यह औसतन 10-12 टन की उपज देता है |

इसके अतिरिक्त भी अंगूर की कई उन्नत किस्मो को उगाया जाता है | जिन्हे जगह और पैदावार के हिसाब से लगाया जाता है | इसमें काली शाहबी, परलेटी, थॉम्पसन सीडलेस, शरद सीडलेस जैसी:- किस्मे उपस्थित है |

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अंगूर के खेत की तैयारी (Vineyard Preparation)

अंगूर की अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए उसके पौधों को खेत में लगाने से पहले खेत को अच्छी तरह से तैयार कर लेना चाहिए| इसके लिए खेत की अच्छी तरह से गहरी जुताई कर लेनी चाहिए| इसके बाद खेत को कुछ समय के लिए ऐसे ही खुला छोड़ दे जिससे खेत की मिट्टी में अच्छी तरह से धूप लग जाये,इसके बाद खेत में पानी लगा दे| उसके बाद जब खेत की मिट्टी ऊपर से सूखी दिखाई देने लगे, तो उसमे रोटावेटर लगा कर फिर से दो से तीन तिरछी जुताई कर दे| इससे खेत की मिट्टी भुरभुरी हो जाएगी, खेत की मिट्टी के भुरभुरा हो जाने के बाद उसमे पाटा लगा कर फिर से जुताई कर दे|

इससे खेत समतल हो जायेगा और जलभराव जैसी समस्या का सामना नहीं करना पड़ेगा| अंगूर के पौधा भूमि से अधिक मात्रा में पोषक तत्वों को अवशोषित करता है, जिस वजह से खेत में उवर्रक की अच्छी मात्रा को देना जरूरी होता है| इसके लिए खेत में जुताई के बाद 15 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद को प्राकृतिक खाद के रूप में देना चाहिए| गोबर को खेत में डालने के बाद एक बार जुताई कर देनी चाहिए, जिससे खाद मिट्टी में अच्छी तरह से मिल जाये | रासायनिक खाद के रूप में 500 GM नाइट्रोजन, 700 GM म्यूरेट ऑफ पोटाश, 700 GM पोटेशियम सल्फेट की मात्रा को देना चाहिए|

अंगूर के पौधों की रोपाई (Grapes Planting)

अंगूर के पौधों की रोपाई को कलम के रूप में किया जाता है | इसकी कलमों को खेत में लगाने से पहले गड्ढो को तैयार कर लेना चाहिए | गड्डो को तैयार करते समय उसमे उवर्रक की सही मात्रा देनी चाहिए| इसके लिए बराबर मात्रा में मिट्टी और सड़ी गोबर के साथ 30 GM क्लोरिपाईरीफास, 1 KM सुपर फास्फेट व 500 GM पोटेशीयम सल्फेट को मिलाकर गड्डो में भर देना चाहिए| गड्डो में लगाने वाली कलम 1 वर्ष पुरानी होनी चाहिए | बेल को खेत में लगाने के तुरंत बाद इसकी सिंचाई कर देनी चाहिए|

अंगूर के पौधों की सिंचाई (Grapes Irrigation)

अंगूर के पौधों की रोपाई को नवम्बर से दिसंबर के माह में किया जाता है, जिस वजह से इसके पौधों को अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है | लेकिन जब पौधों में फल लगने लगे उस दौरान फलो की अच्छी वृद्धि के लिए सिंचाई की आवश्यकता होती है | यदि उस दौरान इसके पौधों को पर्याप्त मात्रा में पानी नहीं मिल पाता है, तो पैदावार अधिक प्रभावित होती है | तापमान और पर्यावरण के हिसाब से जरूरत पड़ने पर इसके पौधों की सिंचाई करनी चाहिए |

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खरपतवार नियंत्रण (Weed Control)

अंगूर के पौधों में खरपतवार नियंत्रण के लिए प्राकृतिक तरीके का इस्तेमाल किया जाता है | इसके पौधों में खरपतवार नियंत्रण की अधिक आवश्यकता नहीं होती है | किन्तु जब खेत में खरपतवार दिखाई दे तो इसके पौधों को निराई -गुड़ाई विधि से खरपतवार नियंत्रण करना चाहिए|

अंगूर के फलो की तुड़ाई पैदावार और लाभ (Grapes Fruit Harvesting Yield and Benefits)

अंगूर के फल कलम की रोपाई के तीन वर्ष बाद पैदावार देने के लिए तैयार हो जाते है | अंगूर के फलो के पक जाने पर उन्हें बाजार में बेचने के समय ही उनकी तोड़ाई करनी चाहिए | इसके पके फलो की पहचान वृद्धि और अम्लता में कमी से लगाई जाती है | फलो को तोड़ने के लिए सुबह या शाम का समय अधिक उचित माना जाता है | अंगूर के फलो का बाजार में अच्छा दाम प्राप्त करने के लिए उनके गुच्छो का वर्गीकरण करना चाहिए, तथा बाजार में बेचने से पहले बेकार और टूटे हुए अंगूर को हटा देना चाहिए | 

अंगूर का बाजारी भाव गुणवत्ता के हिसाब से 60-100 के मध्य होता है | इसका पूर्ण रूप से विकसित पौधा 2 से 3 दशक तक पैदावार देता है | अंगूर के पौधे किस्मो के आधार पर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 20-35 टन तक की पैदावार देते है| इस हिसाब से किसान भाई अंगूर की फसल कर अच्छा लाभ कमा सकते है |

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