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GM फसलों से सम्बंधित जानकारी
आज के समय में लोग खेती किसानी करने के लिए कई तरह की उन्नत तकनीकों का सहारा ले रहे है, और अधिक से अधिक पैदावार प्राप्त कर ज्यादा से ज्यादा मुनाफा भी कमा रहे है | अधिक मुनाफा लेने के लिए लोग नई-नई तकनीकों का इजात करते रहते है | वर्तमान समय में लोगो के बीच में जीएम फसलें चर्चा का विषय बनी हुई है | जहां एक तरफ बीज कंपनियों द्वारा इन फसलों को प्रोत्साहित किया जा रहा है, वही दूसरी और NGO और सामाजिक कार्यकर्ता इन फसलों का विरोध भी कर रहे है |
जीएम फसलों के बारे में अभी बहुत ही कम लोगो को जानकारी है, कि यह कौन सी फसलें है, या इन फसलों की पैदावार कैसे की जाती है | अगर आप जीएम फसलों के बारे में जानकारी प्राप्त करना चाहते है, तो इस लेख में आपको जीएम फसलें क्या है तथा जीएम फसलों की लिस्ट और GM फसलों के लाभ GM Food Crops in Hindi की जानकारी दी जा रही है |
इजराइल में खेती कैसे की जाती है ?
जीएम फसलें क्या है (GM Crops)
आज कल खेती में फसलों को उगाने के लिए वैज्ञानिको द्वारा कई शोध किए जा रहे है | वर्तमान समय में जेनेटिक इंजीनियर्स प्राकृतिक बीजो का नवीनीकरण कर फसल की नई प्रजाति को तैयार कर रहे है | इसके लिए बीज के जीन्स में बदलाव कर उसमे मनचाही विशेषताओं को पैदा किया जाता है | इन फसलों को हाइब्रिड फसल भी कहते है | यह फसलें बिल्कुल प्राकृतिक फसल की तरह ही दिखती है, किन्तु उनसे बिल्कुल अलग होती है| इन फसलों को वैज्ञानिक तकनीक का इस्तेमाल कर तैयार किया जाता है, जिस वजह से इन फसलों में अपनी इच्छानुसार बदलाव भी कर सकते है, और मनचाही उपज ले सकते है |
जैव प्रौद्योगिकी में फसल के जींस में विशिष्ट प्रजाति वाले एक ऐसे जीन को डाला जाता है, जो उस फसल में पहले से मौजूद नहीं होता है, और फिर फसल में विशिष्ट गुणों को विकसित किया जाता है, इन्हे अनुवांशिक संवर्धित फसल या जीएम फसल भी कहते है | उदाहरण गोल्डन राइस और बीटी कॉटन फसल है |
यह एक अनुवांशिक अभियांत्रिकी एवं पुनर संयोजना तकनीक है, इस तकनीक से फसलों में रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है | उत्पादन के साथ ही गुणवत्ता भी बढ़ाई जा सकती है, तथा जल की पूर्ती को कम करने का प्रयास करते है | ताकि कम जल में भी उत्पन्न होने की क्षमता आ सके | इसके साथ ही जीएम फसलों को शीतरोधी और गर्मरोधी बनाया गया है |
दुनिया में जीएम तकनीक का सर्वप्रथम उपयोग वर्ष 1982 में तम्बाकू को बनाने में किया गया था | इसके बाद जीएम फ़ूड में फ्लेवर सेवर टमाटर को वर्ष 1994 में अनुमति मिली थी, जिसके तहत रंग और स्वाद को बनाए रखने और अधिक समय तक न ख़राब होने की प्रवृति को बढ़ाया जाता है |
जीएम फसलों के लाभ (GM Crops Benefits)
- जीएम तकनीक का इस्तेमाल कर फसल की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा सकते है |
- जीएम तकनीक में ऐसी फसलों को तैयार किया जाएगा, जिन्हे प्रतिकूल जलवायु में भी उगाया जा सके |
- कुछ विशेष फसलें जो सिर्फ विशेष परिस्थितियों में उगती है, उनके जीन को निकालकर दूसरी फसलों में प्रतिस्थापित किया जाता है, जिससे वही गुण उन फसलों में भी आ जाता है |
- नाइट्रोजन स्थिरीकरण के लिए राइजोबियम को जिम्मेदार माना जाता है, और एन आई एफ के जीन को दलहनी फसलों के अलावा अन्य फसलों में डालते है, जिससे फसल में नाइट्रोजन उर्वरक की जरूरत कम हो जाती है, और किसान को कम लागत लगानी पड़ती है | इसके साथ ही पर्यावरण प्रदूषण भी कम होगा और किसानो की आर्थिक स्थिति सुधरेगी | किसानो को अक्सर ही पर्यावरण संबंधी मुद्दे का सामना करना पड़ता है, जीएम फसल के प्रयोग से उन्हें इस मुद्दे से छुटकारा मिल जाएगा |
- जीएम तकनीक में अधिक समय तक ताज़ा रहने वाली सब्जी और फलो को विकसित किया जाएगा |
- इस तकनीक में विकसित फसल की सहायता से पोषण में सुधार होगा और उत्पादकता में वृद्धि भी संभव है |
- जीएम फसलों से खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित होगी, और किसानो को आत्मनिर्भरता प्राप्त होगी, और सामाजिक कल्याण को बढ़ावा दिया जाएगा |
जीएम फसलों के नुकसान (GM Crops Disadvantages)
- जीएम फसलों को लगाने में अधिक लागत आती है, क्योकि इसके लिए हर बार नए बीज को खरीदना होता है |
- जीएम फसल के एकाधिकार बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के पास होते है, जिस वजह से किसानो को महंगे दामों पर बीज और कीटनाशक उनसे ही खरीदना पड़ता है |
- वर्तमान में हाइब्रिड बीजो पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है, और ज्यादातर हाइब्रिड बीज चाहे वह जीएम हो या नहीं पुन: उपयोग के लायक नहीं बचते है, और जो दोबारा इस्तेमाल के लिए बच भी जाते है, उनका प्रदर्शन कुछ खास नहीं होता है |
- जीएम फसलों को पर्यावरण, स्वास्थ और जैव विविधता के लिए हानिकारक कहा गया है |
- भारत में जीन लोगो द्वारा प्रौद्योगिकी का विरोध किया जा रहा है, उनका कहना है, कि जीएम प्राद्यौगिकी को अपनाने से जैव विविधता ख़त्म हो जाएगी |
जीएम फसलों की लिस्ट (GM Crops List)
जीएम कपास (GM Cotton)
- यह भारत में खेती की एकमात्र जीएम फसल है |
- सर्वप्रथम भारत में बीटी कपास का उपयोग वर्ष 2002 में किया गया था |
जीएम बैंगन (GM Eggplant)
- बीटी बैंगन के लिए GEAC ने वर्ष 2007 में सिफारिश की थी |
- इसका विकास MHSC (Maharashtra Hybrid Seeds Company) द्वारा तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय और कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय के सहयोग से किया गया था |
- इसकी पहल वर्ष 2010 में अवरुद्ध की गयी थी|
जीएम सरसों (GM Mustard)
- हाल के वर्ष 2017 में जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति द्वारा जीएम सरसो की फसल के लिए वाणिज्यिक अनुमोदन किया गया था |
- यदि पर्यावरण मंत्रालय अनुमोदन देती है, तो भारत में उगाई जाने वाली सरसो की फसल पहली संशोधित खाद्य फसल होगी |
जीएम फसल विवाद (GM Crop Controversy)
भारत में बीटी कपास (जीएम फसल) की फसल आरंभ की काफी सफल किंतु विवादास्पद रही है | इस फसल की शुरुआत वर्ष 2002 में हुई और एक दशक पश्चात् कपास का उत्पादन दोगुना से भी ज्यादा हो गया है | किंतु इसी दौरान मूल्य निर्धारण एवं बौद्धिक संपदा अधिकार का विवाद भी आरंभ हो गया था |
बीटी बैंगन को विकसित करने के लिए वर्ष 2005 में भारत की मोनसेंटो सहयोगी कंपनी ने अमेरिकन कृषि बायोटेक कंपनी के साथ मिलकर दो विश्वविद्यालयों का साथ लेकर एक समझौता तैयार कर उस पर हस्ताक्षर किए | भारत में बीटी बैंगन को वर्ष 2009 में GEAC (Genetic Engineering Appraisal Committee) कमेटी द्वारा वाणिज्यिक मंजूरी दी गई थी | किंतु बाद में भारी विरोध को ध्यान में रखते हुए सरकार द्वारा इसके उत्पादन को स्थगित कर दिया गया था |