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मछली पालन के लिए तालाब का निर्माण (Fish Farming Pond Construction)
आज के समय में बढ़ती आबादी की वजह से कृषि योग्य भूमि कम होती जा रही है, इससे कम समय में अधिक उपज ले पाना भी बहुत ही मुश्किल होने लगा है | इस तरह की समस्याओ के लिए कुछ अलग तरह की कृषि का चयन एक बेहतर विकल्प हो सकता है | ताकि कम समय में अधिक पैदावार प्राप्त कर मूल्य भी अच्छा प्राप्त किया जा सके | ऐसा ही एक व्यवसाय मछली पालन का है | मछली पालन के व्यवसाय में मुनाफे वाले सभी गुण मौजूद है, क्योकि इसमें 6 माह के कम समय में फसल तैयार हो जाती है | यह एक उच्च कोटि खाद्य पदार्थ व्यवसाय है, जिसके उत्पादन में वृध्दि करने के लिए उत्तर प्रदेश का मत्स्य विभाग पूरी तरह से प्रयत्नशील है |
राज्य के ग्रामीण इलाको में पोखर तालाब और जल प्रणालियाँ पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है | इन जगहों पर वैज्ञानिक रूप से मछली पालन के व्यवसाय को अपना कर उत्पादन में वृद्धि कर पोषक और संतुलित आहार की मात्रा को लोगो तक पहुचाया जा रहा है | किसानो की रुचि भी मछली पालन की और बढ़ती जा रही है, जिसे देखते हुए आम लोग भी मतस्य पालन करने लगे है | यहां आपको मछली पालन के लिए तालाब का निर्माण कैसे करें, तथा तालाब की लम्बाई, गहराई कितनी होनी चाहिए जैसी महत्वपूर्ण जानकारी दी जा रही है |
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मछली पालन के लिए तालाब का निर्माण कैसे करें (Fish Farming Pond Construction)
- मछली पालन में विशेष बातो को ध्यान में रखकर ही तालाब का निर्माण किया जाना चाहिए | जिन जगहों पर रेतीली मिट्टी होती है, वहां पर तालाब के निचले हिस्से को ठीक तरह से उपचारित करना आवश्यक होता है | इसके लिए बेन्टोनाइट क्ले, सोइल कॉम्पेक्सन और पॉलीथिन लेयर का इस्तेमाल पानी के रिसाव को ख़त्म करने के लिए किया जाता है |
- तालाब में बीजो का संचय करने से पहले भूमि और जल की गुणवत्ता का परिक्षण प्रयोगशाला में अवश्य करवाए |
- किसी रजिस्टर्ड हेचरी से 5 से 10 CM आकार वाले बीजो को लेकर उन्हें तालाब में एक निश्चित मात्रा के अनुपात में डाले |
- ऑक्सीजन के उचित स्तर को बनाए रखने के लिए तालाब में पेडल व्हील एरेटर का इस्तेमाल कर सकते है |
- मछलियों को 25 से 30 प्रतिशत की मात्रा वाला प्रोटीन युक्त आहार अवश्य दे |
- मछलिया उचित आकार पा सके इसके लिए उनके भार का 2 से 3 प्रतिशत आहार रोजाना जरूर दे |
- मछलियों की प्रजाति का चयन तालाब के अनुसार सावधानीपूर्वक करे |
- ताज़ा पानी वाले क्षेत्रों में मुख्य रूप से रोहू, इंडियन मेजर कॉर्प, ग्रास कार्प, नैनद्ध एवं एक्जोटिक कार्प, सिल्वर कार्प, कामन कार्पद्ध और कटला प्रजाति का उत्पादन करे |
- तालाब में पादप प्लवक की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए यूरिया, गाय का गोबरद्ध एवं अकार्बनिक खाद, कार्बनिक और सुपर फास्फेट का इस्तेमाल करते है |
- मछलियों को आहार की पूर्ती करने का कार्य इन्ही पादप प्लवक द्वारा किया जाता है, इससे बाहरी स्रोत के जरिये दिए जाने वाले कृत्रिम आहार की जरूरत कम पड़ेगी, और लागत मूल्य भी कम लगेगा, जिससे किसानो के लाभ में प्रतिशत की मात्रा भी बढ़ेगी |
मछली पालन के लिए तालाब का क्षेत्रफल (Fish Farming Pond Area)
मत्स्य पालन के लिए तक़रीबन 0.2 से 5.0 हेक्टेयर वाली जगह का चुनाव करे | जिसमे वर्ष के 8 से 9 माह तक पानी के स्तर में कमी न हो | तालाब सदाबहार बने रहे इसके लिए जल आपूर्ति वाले साधन की उचित व्यवस्था रखे, ताकि वर्ष में जरूरत पड़ने पर एक से दो मीटर तक पानी की मात्रा बनाई जा सके |
मछली के तालाब की लंबाई और गहराई (Fish Pond Length and Depth)
- मतस्य पालन के लिए आयताकार तालाब को सबसे अच्छा मानते है, जिसकी लंबाई व चौड़ाई का अनुपात 1:2-3 से अधिक होना चाहिए |
- तालाब निर्माण के लिए उपलब्ध भूमि का 70 से 75 प्रतिशत के भाग को जल क्षेत्र के रूप में विकसित करते है, शेष 25-30% बची भूमि तालाब के बांध में चली जाती है | इस हिसाब से यदि आप एक एकड़ के तालाब को तैयार करना चाहते है, तो आपको तक़रीबन 1.35 से 1.40 एकड़ भूमि की जरूरत होती है |
- तालाब के लंबाई की दिशा पूरब से पश्चिम की और रखना बेहतर होता है | इस तरह के तालाब में हवा का बहाव बना रहता है, जिससे हलचल अधिक होती है, और तालाब में ऑक्सीजन की पर्याप्त मात्रा भी बनी रहती है |
- तालाब की गहराई उतनी ही रखे जितने में सूर्य की रौशनी आसानी से पहुंच सके, पानी की उचित व्यवस्था वाले क्षेत्र में तालाब की गहराई 4 से 6 फ़ीट ही रखे तथा वर्षा आधारित वाले क्षेत्रों में तालाब की गहराई 8 से 10 फ़ीट तक रख सकते है |
मछली के तालाब का परीक्षण व प्रबंधन (Fish Pond Testing and Management)
तालाब में मछली पालन के दौरान उचित जल स्तर को बनाए रखना बहुत जरूरी होता है, जिन तालाबों में पानी का रिसाव होता है, वहां मतस्य पालन बहुत मुश्किल होता है | तालाब के बॉटम में अधिक मात्रा में कंकड़ पत्थर होने पर जल रिसाव की समस्या अधिक बढ़ जाती है | पानी रिसाव को कम करने के लिए गोबर की खाद कुछ हद तक कामगार साबित होता है, अगर पॉलीथिन बिछाकर उसके ऊपर 20 से 30 CM की ऊंचाई तक मिट्टी डाल दी जाए तो जल रिसाव से छुटकारा पा सकते है | तालाब में काई ज्यादा हो जाने की स्थिति में कपड़े या फ्राइनेट से काई को कुछ हद तक साफ कर सकते है, तथा काई की सम्पूर्ण समाप्ति के लिए रासायनिक पदार्थो के साथ सीमाजीन की 5-10 किग्रा की मात्रा का प्रति हे.मी. के हिसाब से घोल तैयार कर छिड़काव करे | इससे तीन सप्ताह में ही काई पूरी तरह से साफ हो जाती है |
इसके अलावा तालाब में रोड़ेदार चूने (CaCo3) की अच्छी तरह से कुटाई कर उसे दो से तीन दिन तक रखकर उसका उपयोग करे | आप कली चूने और बुझे हुए चूने का भी इस्तेमाल कर सकते है | रोड़ेदार चूने के रूप में 200 से 250 KG चूना तथा कली चूने की 100 से 125 KG की मात्रा और 150 से 187 KG बुझे हुए चूने का इस्तेमाल किया जाता है | इस तरह के उपचार के 10 से 15 दिन के पश्चात् ही मतस्य बीजो का संचय किया जाता है | 9 से अधिक P.H. मान वाले जल के प्रति हेक्टेयर तालाब में 5 हज़ार से 6 हज़ार किलोग्राम जिप्सम का उपयोग करना चाहिए | जिप्सम न होने की स्थिति में जल का पी. एच. मान उदासीन करने के लिए कच्चे गोबर की 200 से 300 टन की मात्रा को डाला जाना चाहिए |
मतस्य खरपतवार नियंत्रण (Fish Weed Control)
तालाब में खरपतवार मतस्य उत्पादन को अधिक प्रभावित करते है, जिन्हे पूर्ण रूप से निकाल पाना संभव नहीं है, किन्तु समय-समय पर विभिन्न तरीको का इस्तेमाल कर खरपतवार की उत्पादकता को नियंत्रित किया जा सकता है | जलीय वनस्पतियो पर नियंत्रण पाने के लिए विशेष रूप से मशीन, श्रमिक द्वारा तथा रासायनिक तरीको का इस्तेमाल करते है | श्रमिकों द्वारा खरपतवार हटाने के लिए जाल, पंजे, हंसिया, बांस, कांटेदार तार और मोती रस्सी का उपयोग करते है | जब इस तरह की तकनीक कारगर साबित नहीं होती है, तब रासायनिक प्रयोग कर खरपतवार को नष्ट करते है | इसमें अलग-अलग प्रजाति के खर विनाश के लिए भिन्न-भिन्न रासायनिक तरीके अपनाए जाते है, जैसे :- तरल अमोनिया की 200 – 250 KG की प्रति हेक्टेयर मात्रा जलमग्न वनस्पति जैसे :- कारा, पोटैमोजिटान, हाइड्रिला, वैलिसनेरिया के उपचार के लिए, जलकुम्भी के लिए 2-4 डी की 10-20 MG / पौधभार का उपयोग कर नियंत्रण किया जा सकता है |
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मतस्य का बीज संचय (Fish Seed Collection)
भारत में सामान्य तौर पर तीन देशी (कतला, रोहू, मृगल) और तीन विदेशी (सिल्वर कार्प, कामन कार्प, ग्रास कार्प) मछलियों का पालन किया जाता है | बारिश के मौसम में मछली के बीज प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हो जाते है | इस दौरान बीजो का संचय करना काफी अच्छा होता है, हालाँकि मतस्य बीज का संचय किसी भी मौसम में किया जा सकता है | मीठे जल में कार्प मछलियों का मिश्रित पालन काफी फायदेमंद रहता है | कामन कार्प, सिल्वर कार्प, कतला, नैन, ग्रास कार्प तथा रोहू जैसी मछली की मिश्रित प्रजातियां उत्पादन के लिए उपयुक्त होती है |
इसमें सिल्वर कार्प और कतला सतहभक्षी मछलियाँ है, जिसमे 15 प्रतिशत कतला और 20 प्रतिशत सिल्वर कार्प को तालाब में डाला जाता है | कामन कार्प और नैन तल भक्षी मछलियाँ है, जिसमे 20 प्रतिशत कामन कार्प और 15 प्रतिशत नैन मछलियाँ तालाब में डाली जाती है | 20 प्रतिशत संख्या वाली रोहू को तालाब के मध्य में रखा जाता है, तथा 10 प्रतिशत घास खाने वाली ग्रास कार्प को रखना चाहिए | प्रति हेक्टेयर के जल क्षेत्र वाले भाग में तक़रीबन 8,000 से 10,000 मतस्य बीजो को संचित किया जा सकता है | इसके अलावा मतस्य पालन में कुछ विशेष बातो को भी ध्यान में रखना होता है, जो इस प्रकार है:-
- पोटेशियम परमैगनेट की 2-3 मिग्रा/ली की मात्रा का घोल तालाब में डाले |
- टेरामाइसिन की 65-80 मिग्रा/किग्रा के भार को आहार के रूप में मछलियों को 10 दिन तक दे |
- प्रति किलोग्राम भार वाली मछलियों को 20000 आई यू पेनिसिलीन व 25 MG स्ट्रेप्टोमाइसिन का इंजेक्शन देना होता है |
मतस्य रोग व उपचार (Fish Disease and Treatment)
- ड्राप्सी :- इस तरह का रोग मछलियों को पोषक युक्त भोजन न मिल पाने की स्थिति में देखने को मिलता है | इसमें मछली की बॉडी उसके सिर की तुलना में अधिक पतली हो जाती है, और एरोमोनास हाईड्रिला किस्म का जीवाणु मछली पर आसानी से आक्रमण कर लेता है, जिससे मछली का पेट पानी से भर जाता है | इस तरह के रोग से बचाव के लिए प्रतिदिन मछलियों को पर्याप्त मात्रा में पोषक आहार दे तथा तालाब का उचित जल स्तर बनाए रखे | इसके अलावा 100KG चूने का इस्तेमाल प्रति हेक्टेयर के तालाब में 15 दिन के अंतराल में करे |
- कोलुम्नैरिस रोग :- इस तरह की बीमारी मीठे जल वाली मछलियों में देखने को मिलती है | मछलियों में तनाव होने की स्थिति में साइटोफैगा कोलुम्नैरिस और फ्लेक्सीबैक्टर नामक रोग आक्रमण करते है | इस तरह के रोग को गिलराट या टेलराट भी कहते है| इस रोग से प्रभावित मछलियों के शरीर के ऊपरी भाग और गलफड़ो पर घाव बन जाते है, और कुछ समय पश्चात् ही मछली के ऊतकों में यह जीवाणु प्रवेश कर लेता है| इस रोग का उपचार करने के लिए मछली के घावों पर लाल दवा के लेप को लगाते है, तथा तालाब में 2-3 मिग्रा./ली. पोटैशियम परमैंगनेट की मात्रा का छिड़काव करे | इसके अलावा कॉपर सल्फेट की 1-2 मिग्रा./ली. की मात्रा को तालाब में डालने से रोग का खतरा कम हो जाता है, साथ ही मछली भार के सामान नाइट्रोफ्यूराजोन की 6.5 ग्रा. की मात्रा भोजन के साथ दे |
- एडवर्डसिलोसिस :- ऐडवर्डसिएला टारडा का रोग जीवाणु के रूप में फैलता है | इसे सड़न रोग के नाम से भी जानते है | इस रोग से प्रभावित होने पर मछली के शरीर पर गैस से भरे फोड़े बनने लगते है| इस रोग की अंतिम अवस्था में मछलियों से सड़ने जैसी दुर्गन्ध आने लगती है | इस तरह का रोग मछलियों के लार्वा और जीरो में भी मिल जाता है | इस रोग से बचाव के लिए संक्रमित मछलियों को 15 मिनट तक कापर सल्फेट के मिश्रण डुबोए, तथा आयोडीन की 0.04 मिग्रा./ली. की मात्रा में रोग ग्रस्त मछली को 2 घंटे तक रखे |
- विब्रियोसिस :- मछलियों में इस तरह का रोग विब्रियो प्रजाति के जीवाणु के रूप देखने को मिलता है | इस रोग से प्रभावित मछली भोजन ग्रहण करना छोड़ देती है, जिससे मछली के पेट में पानी भार जाता है, और वह मर जाती है | इस तरह के रोग से मछलियों की आँखे भी प्रभावित होती है, जिससे आँखे सफेद होकर सूझ जाती है | इस रोग के उपचार के लिए टीकाकरण कराया जाता है, तथा सल्फोनामाइड या आक्सीटेट्रा साइक्लिन की 8 -12 ग्रा./किग्रा. की मात्रा को भोजन के साथ देना होता है |
- फिन राट :- इस तरह का रोग मुख्यता स्यूडोमोनास पुट्रीफेसीऐन्स, ऐरोमोनास फ्लुओरेसेन्स तथा स्यूडोमोनास फ्लुओरेसेन्स नामक जीवाणुओं के द्वारा लगता है | जिसके उपचार के लिए तालाब में स्वच्छ जल भरे और फोलिक एसिड की उचित मात्रा को भोजन के साथ दे | रोगग्रस्त मछलियों को 1000 Litr पानी में एक्रिफ्लेविन की 100 ML की मात्राको मिलाकर 30 मिनट तक रखना चाहिए |
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