फालसा की खेती (Falsa Farming) कैसे करें | फालसा का पेड़ व बागवानी की जानकारी


फालसा (Falsa) की खेती से सम्बंधित जानकारी

फालसा एक शरबती बेरीदार फल है, जो कि काफी पोषक फल भी है | गर्मियों के मौसम में इस फल की मांग काफी अधिक रहती है | इसके फल से ताजा और पेय पदार्थ बनाया जाता है | फालसा का वानस्पतिक नाम ग्रेविया एशियाटिका है | यह भारतीय नस्ल का पेड़ है, जो भारत, नेपाल, पाकिस्तान, थाईलैंड, लाओस और कम्बोडिया में उगाया जाता है | जबकि ऑस्ट्रेलिया और फिलीपींस में इस पौधे को खतरनाक मानते है | फालसा एक झाड़ीनुमा पेड़ है, जो तिलासिया परिवार से संबंध रखता है | इस परिवार में तक़रीबन 150 प्रजातियां शामिल है, लेकिन सिर्फ फालसा के फल को ही खाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है | फालसा की खेती के लिए अनुपजाऊ, शुष्क और सूखापीड़ित क्षेत्र बेहद उपयोगी होता है, क्योकि इसका फल काफी महंगा होता है | फालसा फल एक सेंटीमीटर व्यास वाला गोल आकार का होता है | इसका कच्चा फल देखने में मटमैला, लाल और जामुनी रंग का होता है |




मई और जून के महीने में यह फल पककर पूरी तरह से काला हो जाता है, जो स्वाद में खट्टा-मीठा और फल के बीज पर पतली परत में गुदा लगा होता है | फालसा पौधे की झाड़ी में कांटे नहीं होते है, जिस वजह से इन्हे हाथो से भी तोड़ सकते है | फालसा के फल को अधिक समय तक भंडारित नहीं किया जा सकता है, क्योकि यह बहुत जल्द ख़राब होने लगते है | फालसा की खेती में कम लागत लगाकर अच्छी पैदावार मिल जाती है | जिस वजह से किसानो की रुचि भी फालसा फल की खेती की और बढ़ रही है | अगर आप भी फालसा फल की खेती करना चाहते है, तो इस लेख में आपको फालसा की खेती (Falsa Farming) कैसे करे तथा फालसा का पेड़ व बागवानी की जानकारी दे रहे है |

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फालसा फल के फायदे (Phalsa Fruit Benefits)

फालसा का फल स्वाद और स्वास्थ दोनों ही मामलो में लाभप्रद है | इस फल में एंटीऑक्सीडेंट और कई पोषक तत्व जैसे :- सोडियम, फॉस्फोरस, मैग्नीशियम, पोटेशियम, प्रोटीन, विटामिन, कैल्शियम और विटामिन की भरपूर मात्रा होती है | जिस वजह से यह शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने और इम्युनिटी को बूस्ट करने का कार्य करता है | फालसा के फलो का सेवन गर्मियों में लू से बचने के लिए भी किया जाता है | इसका रस शरीर में टॉनिक की तरह कार्य करता है | इसके अलावा फालसा फल पाचन तंत्र, पित्त की समस्या, कोलेस्ट्रॉल और रक्तचाप को नियंत्रित करने के साथ ही शरीर को एनीमिया और कैंसर जैसे रोगो से बचाने में भी काफी सहायता करता है |

पौष्टिक और औषधीय गुणों से भरपूर होने के कारण बाजार में फालसा के फलो की काफी मांग होती है | किन्तु बाज़ारो में अनुपातिक आपूर्ति नहीं हो पा रही है | फ़िलहाल फालसा की व्यावसायिक खेती बहुत ही कम की जा रही है | लेकिन उचित देखभाल एवं उन्नत क़िस्म का चुनाव कर फालसे की खेती से अच्छा लाभ लिया जा सकता है |

फालसा फल के उत्पाद (Phalsa Fruit Products)

फालसा का फल बहुत ही मुलायम और नाजुक होता है | जिस वजह से इन्हे लंबी दूरी तक ले जाना आसान नहीं होता है | यही वजह है, कि इसकी उपज को बड़े शहरो तक पहुंचने में दिक्कत होती है | फालसा के बीजो से तेल निकाला जाता है, तथा दवाइयों को बनाने के लिए भी बीजो को इस्तेमाल में लाते है | इसके अलावा फालसा के फल से चटनी, अचार, स्क्वैश, जेम और मिठाईया बनाई जाती है | इसके पौधे की पतली टहनियों का उपयोग टोकरी बनाने और अंगूर की बेल चढ़ाने वाले जाल को बनाने के लिए करते है | इसके जड़े मिट्टी के कटाव को रोकने में भी सहायक होती है |

भारत में फालसा की खेती (Falsa Farming in India)

फालसा की खेती काफी लोकप्रिय नहीं है | जिस वजह से इसकी खेती कम क्षेत्रों में की जाती है, खासकर बड़े शहरो के आसपास ही फालसा की फसल उगाई जाती है | भारत में फालसा की खेती मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, बिहार, गुजरात, पंजाब और हरियाणा राज्य में की जा रही है | इसके अलावा वैज्ञानिको और औद्योगिक अनुसन्धान परिषद (CSIR) द्वारा जम्मू कश्मीर में भी किसानो को फालसे की खेती के प्रति प्रोत्साहित किया जा रहा |

फालसा की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी व जलवायु (Phalsa Cultivation Suitable Soil and Climate)

फालसा की खेती किसी भी तरह की मिट्टी में की जा सकती है, किन्तु अच्छी वृद्धि और उपज पाने के लिए जीवांशयुक्त दोमट मिट्टी को अच्छा माना गया है | फालसा के पौधे अधिक गर्म और शुष्क मैदानी भागो तथा अधिक वर्षा वाले नम क्षेत्रों की जलवायु में भी सफलतापूवर्क वृद्धि कर लेते है | सर्दियों में फालसा का पौधा सुषुप्तावस्था में होता है, जिस वजह से यह पाले को आसानी से सहन कर लेता है | इसका पौधा न्यूनतम 3 डिग्री और अधिकतम 45 डिग्री तापमान पर भी बढ़ सकता है | फालसा के फलो को पकने तथा अच्छी गुणवत्ता और रंग पाने के लिए पर्याप्त धूप व गर्म तापमान की जरूरत होती है |

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फालसा की उन्नत किस्में (Phalsa Improved Varieties)

फालसा की मान्यता प्राप्त किस्में मौजूद नहीं है, किन्तु दो किस्में ऐसी है, जिन्हे कई वर्षो से वैज्ञानिको द्वारा विकसित कर उगाया जा रहा है |

  • इन दो किस्मो में थार प्रगति और सी० आई० ए० एच०-1 शामिल है, यह उन्नत किस्में काफी अच्छी गुणवत्ता वाली है, जो कम पानी में भी अधिक उत्पादन देने में सक्षम है |
  • इसमें थार क़िस्म अर्ध-शुष्क और सी० आई० ए० एच०-1 शुष्क क्षेत्रों के लिए काफी उपयुक्त साबित हुई है | इन्ही क़िस्मों द्वारा व्यसायिक खेती को बढ़ाने की कोशिश की जा रही है |

फालसा के पौधों की रोपाई (Phalsa Plants Planting)

फालसा के पौधों की रोपाई मानसून के मौसम जून-जुलाई में की जाती है | इसके पौधों को खेत में तैयार पंक्तियों में लगाया जाता है | जिसमे पंक्ति को 3 X 2 मीटर या 3 X 1.5 मीटर की दूरी पर तैयार करते है | पौध रोपण से एक-दो माह पूर्व 60 X 60 X 60 CM आकार वाले गड्डो को गर्मियों (मई-जून) के महीने में खोदकर उसमे अच्छी तरह से मिट्टी के साथ सड़ी हुई गोबर की खाद को मिलाकर गड्डो में भर देते है |

फालसा के पौधों की सिंचाई (Phalsa Plants Irrigation)

फालसा के पौधों को अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है, क्योकि इसके पौधों के लिए शुष्क और अर्धशुष्क जलवायु उपयुक्त होती है | किन्तु अच्छी उपज लेने के लिए सिंचाई करना जरूरी होता है | इसके पौधों के लिए गर्मियों के मौसम में केवल एक से दो सिंचाई पर्याप्त होती है | ताकि पौधों को गर्मी सहन करने में सहायता मिल सके | इसके बाद दिसंबर और जनवरी के पश्चात् दो सिंचाई 15 दिन के अंतराल पर करे, इससे पौधों का फुटान जल्दी और अच्छा होता है | मार्च और अप्रैल के महीने में पुष्प और फलन के समय एक-एक सिंचाई करे, ताकि फल की गुणवत्ता और वृद्धि अच्छी हो |

फालसा की फसल में खाद एवं उर्वरक (Falsa Crop Fertilizers and Fertilizers)

फालसा के पौधों को अधिक खाद व उवर्रक की भी जरूरत नहीं होती है | किन्तु मरुस्थलीय-रेतीली भूमि से अच्छी गुणवत्ता वाले फलो की उपज लेने के लिए उचित मात्रा में खाद एवं उर्वरक देने की आवश्यकता पड़ती है | फालसा के खेत में उवर्रक शक्ति को बनाए रखने के लिए प्रति वर्ष गोबर की सड़ी हुई खाद देना जरूरी होता है | इसके बाद जब पौधा 3 वर्ष का हो जाए तो 10 KG सड़ी गोबर की खाद के साथ 50 GM डाई अमोनियम फ़ॉस्फेट, 100 GM यूरिया एवं 100 GM म्यूरेट ऑफ़ पोटाश की मात्रा को प्रति पौधे के हिसाब से हर साल देना चाहिए | इस मात्रा को दो भागो में बांटकर एक महीने के अंतराल पर दिया जाना चाहिए |

फालसा के पौधों की कटाई-छटाई (Phalsa Plant Pruning)

फालसा की फसल में पौधों की कटाई-छटाई करना बहुत जरूरी होता है | ताकि पौधा झाड़ीनुमा आकार ले सके | क्योकि फालसा का पौधा जितना झाड़ीनुमा होगा, उसमे उतने ही कल्ले निकलेंगे, और उपज भी उतनी ही ज्यादा मिलेगी | उत्तर भारत में फालसा के पौधों की एक कटाई-छटाई और दक्षिण भारत में दो कटाई-छटाई की जाती है | इसके लिए पौधों को मध्य जनवरी के महीने में भूमि की सतह से 15 से 20 CM की ऊंचाई से प्रूनिंग करना चाहिए |

फालसा के फलो की तुड़ाई, पैदावार और लाभ (Phalsa Fruit Harvesting, Yield and Benefits)

फालसा के पौधों की छटाई होने के लगभग दो माह पश्चात् पौधों पर फूल आना आरंभ कर देते है, और 15 से 20 दिनों में ही फूल पूरी तरह से खिल जाते है | इसके फूल गुच्छो में निकलते है, जो पीले रंग के होते है | कटाई-छटाई के तक़रीबन 90 से 100 दिन पश्चात् अप्रैल के महीने में फालसा के पौधों पर फल पकना आरंभ कर देते है, जो मई माह के अंत तक पकते रहते है | अप्रैल के अंतिम सप्ताह से फालसा के फलो की तुड़ाई शुरू हो जाती है, जो मई माह के अंत तक चलती रहती है | जब इसके छोटे आकार वाले लाल रंग के फल बैंगनी रंग में बदल जाए तो उनकी तुड़ाई कर लेनी चाहिए | इसका फल स्वाद में थोड़ी खटास लिए हुए मीठा होता है | फालसा के फलो को तोड़कर तुरंत ही टोकरी में रख ले, क्योकि फल जल्द ही ख़राब होने लगते है | इसलिए इसके तोड़े हुए फलो को 24 घंटे के अंदर बाजार में बेच दे या फिर फल का सेवन कर ले |

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