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मेथी की खेती (Fenugreek Farming) से सम्बंधित जानकारी
मेथी की फसल को मसाले के रूप में उगाया जाता है | मेथी के पौधे और दाने दोनों का ही उपयोग खाने में करते है | इसकी हरी पत्तियों को सब्जी बना कर खाने में इस्तेमाल करते है | वही मेथी के दानो को दवाइयों, सौन्दर्य प्रसाधन के चीजों और अचार को बनाने के लिए मसाले के रूप में इस्तेमाल करते है | मेथी के दानो का इस्तेमाल करने से पेट सम्बंधित बीमारियों से छुटकारा पाया जा सकता है | इसके दानो का इस्तेमाल पशुओ को खिलाने के लिए भी करते है | जिस वजह से यह एक औषधीय फसल भी है |
मेथी की खुशबु काफी अच्छी होती है, लेकिन इसके स्वाद में कड़वापन पाया जाता है | किसान भाई मेथी की फसल व्यापारिक रूप में कर के अच्छा मुनाफा भी कमा सकते है | इस पोस्ट में आपको मेथी की खेती कैसे करें (Fenugreek Farming in Hindi) तथा मेथी की उन्नत किस्में इसके बारे में जानकारी दी जा रही है |
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मेथी की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी, जलवायु और तापमान (Fenugreek Cultivation Suitable Soil, Climate and Temperature)
मेथी की अच्छी फसल के लिए रेतीली बलुई दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है | काली भरी और जल-भराव वाली भूमि में इसकी खेती को नहीं किया जा सकता है | जल-भराव की स्थिति में इसके पौधों के ख़राब होने का खतरा बढ़ जाता है | इसकी खेती के लिए भूमि का P.H. मान 5.5 से 7 के मध्य होना चाहिए|
मेथी की फसल और रबी की फसल साथ में ही की जाती है, इसलिए इसके पौधों को अधिक वर्षा की आवश्यकता नहीं होती है| इसके पौधे सर्दियों के मौसम में अच्छे से वृद्धि कर सकते है | आरम्भ में इसके पौधों को अंकुरित होने के लिए सामान्य तापमान की आवश्यकता होती है, तथा पौधों की वृद्धि के समय 15 से 20 डिग्री तापमान को उपयुक्त माना जाता है |
मेथी की उन्नत किस्में (Fenugreek Improved Varieties)
वर्तमान समय में मेथी की कई उन्नत किस्में बाजार में मौजूद है, जिन्हे अलग-अलग जलवायु के हिसाब से अधिक पैदावार देने के लिए उगाया जाता है, जिनकी जानकारी इस प्रकार है –
हिसार सोनाली
मेथी की इस उन्नत क़िस्म को राजस्थान और हरियाणा राज्य में अधिक मात्रा में उगाया जाता है | इसमें निकलने वाले पौधों की लम्बाई अधिक पाई जाती है, तथा इसके पौधे बीज रोपाई के 140 से 150 दिन पश्चात् उत्पादन देने के लिए तैयार हो जाते है | इस क़िस्म के पौधों में जल गलन रोग नहीं देखने को मिलता है | इसके पौधे प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 17 से 18 क्विंटल की पैदावार देते है |
लेम सेलेक्शन 1
इस क़िस्म के पौधे बीज रोपाई के 70 दिन बाद पककर तैयार हो जाते है, जिसके बाद इनकी कटाई की जा सकती है| यह सामान्य ऊंचाई वाले पौधे होते है, जिनसे प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 8 क्विंटल की पैदावार प्राप्त हो जाती है |
इसके अतिरिक्त मेथी की कई उन्नत किस्मो को उगाया जाता है, जिसमे ए एफ जी 1, राजेंद्र क्रांति, आर एम टी 1, आर एम टी 305, ए एफ जी- 2,3, हिसार माधवी, आर एम टी- 143, हिसार सुवर्णा, को- 1 और पूसा कसूरी जैसी किस्मो को अधिक उत्पादन के लिए उगाया जाता है |
मेथी के खेत की तैयारी (Fenugreek Field Preparation)
मेथी की खेती करने से पहले उसके खेत को अच्छी तरह से तैयार कर लिया जाता है | इसके लिए सबसे पहले खेत की अच्छी तरह से गहरी जुताई कर लेनी चाहिए | जुताई के बाद खेत को कुछ समय के लिए ऐसे ही खुला छोड़ दे | इसके बाद खेत में प्राकृतिक खाद के रूप में पुरानी गोबर की खाद तथा जैविक खाद के रूप में कम्पोस्ट या पुरानी गोबर की खाद को डालकर मिट्टी में मिला देना चाहिए | खाद को खेत में मिलाने के बाद पानी लगा कर पलेव कर दे | इसके बाद जब खेत की मिट्टी ऊपर से सूखी दिखाई देने लगे, तब रोटावेटर चलवाकर खेत की मिट्टी को भुरभुरा कर दे | इसके बाद पाटा लगवा कर जुताई करवा दे, जिससे खेत समतल हो जायेगा और जल-भराव जैसी समस्या नही देखने को नहीं मिलेगी |
मेथी के बीजो की रोपाई का सही समय और तरीका (Fenugreek Seeds Planting Right time and Method)
मेथी के पौधों की रोपाई बीजो के रूप में की जाती है | इसके लिए ड्रिल और छिड़काव विधि का इस्तेमाल किया जाता है | खेत में बीजो की रोपाई से पहले उन्हें बाविस्टिन से उपचारित कर ले | एक हेक्टेयर के खेत में ड्रिल विधि द्वारा रोपाई करने के लिए 25 से 30 KG बीजो की आवश्यकता होती है, तथा छिड़काव विधि में 35 KG बीज लगते है |
छिड़काव विधि द्वारा बीजो की रोपाई के लिए समतल भूमि में बीजो को छिड़ककर कल्टीवेटर के माध्यम से दो से तीन हल्की तिरछी जुताई कर दे | इससे बीज मिट्टी की गहराई में चला जाता है | ड्रिल विधि द्वारा बीजो की रोपाई के लिए खेत में पंक्तियो को तैयार कर लिया जाता है | इसके लिए खेत में 25 से 30 CM की दूरी रखते हुए पंक्तियों को तैयार कर ले, तथा प्रत्येक बीज के बीच में 10 CM की दूरी अवश्य रखे |
मेथी के बीजो की रोपाई को अक्टूबर से नवम्बर के मध्य करना चाहिए | इसके अलावा भारत के कुछ राज्यों में इसे खरीफ की फसल के साथ बोया जाता है |
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मेथी के पौधों की सिंचाई (Fenugreek Plants Irrigation)
मेथी के पौधों को अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है | मेथी के बीजो के अंकुरण के लिए खेत में नमी की आवश्यकता होती है | इसलिए खेत में नमी बनाये रखने के लिए समय-समय पर सिंचाई करते रहना चाहिए | मेथी के खेत की पहली सिंचाई बीज रोपाई के एक महीने बाद कर दे | इसके पौधों को 5 से 6 सिंचाई की आवश्यकता होती है, तथा प्रत्येक सिंचाई को 20 दिन के अंतराल में करते रहना चाहिए |
मेथी के खेत में खरपतवार नियंत्रण (Fenugreek Field Weed Control)
मेथी की फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए प्राकृतिक और रासायनिक दोनों ही विधियों का इस्तेमाल कर सकते है | प्राकृतिक विधि से खरपतवार नियंत्रण के लिए निराई – गुड़ाई विधि का इस्तेमाल किया जाता है | वही रासायनिक तरीके से खरपतवार पर नियंत्रण पाने के लिए फ्लूक्लोरेलिन की उचित मात्रा का छिड़काव करना चाहिए | बीजो की रोपाई के लगभग 25 दिन पश्चात् इसकी पहली गुड़ाई कर खरपतवार पर नियंत्रण करना चाहिए | इसके बाद समय-समय खेत में खरपतवार दिखाई देने पर गुड़ाई कर देनी चाहिए |
मेथी के पौधों में लगने वाले रोग एवं उनकी रोकथाम (Fenugreek Plant Diseases and Their Prevention)
चेपा कीट रोग
इस क़िस्म का रोग कीट के रूप में छोटे आकार का होता है,जिसे माहू नाम से भी पुकारा जाता है | यह कीट देखने में काला, हरा, और पीला होता है | यह कीट रोग समूह बना कर पौधों पर आक्रमण करते है, जो पौधों के कोमल भागो का रस चूस कर उसके विकास को पूरी तरह से रोक देता है | मोनोक्रोटोफास या डाईमेथोएट की उचित मात्रा का पौधों पर छिड़काव कर इस रोग से पौधों को बचा सकते है |
पाउडरी मिल्ड्यू
इस क़िस्म का रोग मेथी के पौधों पर फफूंद के कारण लग जाता है | पाउडरी मिल्ड्यू रोग को छाछया रोग के नाम से भी पुकारते है | पाउडरी मिल्ड्यूरोग से प्रभावित होने पर पौधे की पत्तियों पर सफ़ेद रंग का धब्बा दिखाई देना लगता है | इस रोग के लग जाने से पौधे प्रकाश संश्लेषण नहीं कर पाते है | जिससे पौधा वृद्धि करना बंद कर देता है | इस रोग से बचाव के लिए पौधों पर घुलनशील गंधक या कैराथेन का घोल बना कर उचित मात्रा का छिड़काव करना चाहिए |
मेथी के पौधों की कटाई, पैदावार और लाभ (Fenugreek Plants Harvesting, Yield and Benefits)
मेथी की फसल को तैयार होने के लिए 130 से 140 दिन का समय लग जाता है | जब इसके पौधों पर पत्तियां पीले रंग की दिखाई देने लगे है, तब इनकी कटाई कर लेनी चाहिए | फसल की कटाई के बाद इसके पौधों को धूप में अच्छे से सूखा लेना चाहिए | सूखी हुई फसल से मशीन की सहायता से दानो को निकल ले | एक हेक्टेयर के खेत में तक़रीबन 12 क्विंटल की पैदावार प्राप्त हो जाती है | मेथी के दानो का बाज़ारी भाव 5 हज़ार रूपये प्रति क्विंटल थोक के रूप में होता है,जिससे किसान भाई मेथी की एक बार की फसल से 50 हज़ार रूपए से अधिक की कमाई कर सकते है |