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ढैंचा (Dhaincha) से सम्बंधित जानकारी
ढैंचा एक दलहनी फसल है, जिसकी खेती हरी खाद और बीज के लिए की जाती है | ढैंचा के हरे पौधों का इस्तेमाल हरी खाद को तैयार करने के लिए किया जाता है | किसान भाई खेत की उवर्रक क्षमता को बढ़ाने के लिए हरी खाद का इस्तेमाल करते है | यह भूमि की उवर्रकता को बढ़ाने में काफी प्रभावशाली है | इसकी खेती करने से भी भूमि की उवर्रक क्षमता बढ़ती है, साथ ही पौधे मिट्टी में नाइट्रोजन की पूर्ती करते है | इसका पौधा 10 से 15 फ़ीट की ऊंचाई वाला होता है, तथा पौध विकास के लिए किसी खास तरह की जलवायु की आवश्यकता नहीं होती है | भारत में ढैंचा की खेती खरीफ के फसल के साथ की जाती है, तथा कई राज्य सरकारों द्वारा ढैंचा की खेती के लिए सब्सिडी भी प्रदान की जा रही है |
जिसमे किसानो को ढैंचा की खेती के लिए प्रोत्साहित करने के लिए बीज की खरीद पर 80% छूट जाती है| योजना के माध्यम से एक किसान एक बार की फसल के लिए सिर्फ 120 KG बीज ही ले सकता है| अगर आप भी सब्सिडी प्रदान कर ढैंचा की खेती करने का मन बना रहे है, तो इस लेख में आपको ढैंचा (Dhaincha) क्या होता है, ढैंचा की खेती कैसे करें तथा ढैंचा बीज की कीमत व सब्सिडी के बारे में जानकारी दी जा रही है |
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ढैंचा क्या होता है (Dhaincha)
ढैंचा चकवँड़ जैसा एक पौधा होता है, जिसका वानस्पतिक नाम Sesbania Bispinosa है | इसके पेड़ की छाल से रस्सी तैयार की जाती है, तथा इसे खरी खाद की तरह भी इस्तेमाल करते है | राजस्थान में इसका पौधा इकड़ नाम से पुकारा जाता है | यह मध्यम कठोर भूमि और बारिश के मौसम में प्रचुरता से उगता है | इसे खरीफ की फसल में गिना जाता है |
ढैंचा की खेती में मिट्टी व् जलवायु (Dhaincha Cultivation Soil and Climate)
ढैंचा की अच्छी उपज के लिए इसके पौधों को काली चिकनी मिट्टी में उगाए | इसके अलावा हरी खाद का उत्पादन लेने के लिए किसी भी तरह की भूमि में उगाया जा सकता है | सामान्य P.H. मान और जलभराव वाली भूमि में भी इसके पौधे अच्छे से विकास कर लेते है |
ढैंचा की खेती में पौधों को किसी खास जलवायु की जरूरत नहीं होती है | किन्तु उत्तम पैदावार के लिए इसे खरीफ की फसल के साथ उगाते है | इसके पौधों पर गर्म और ठंड जलवायु का कोई विशेष असर नहीं पड़ता है, लेकिन पौधों को सामान्य बारिश की जरूरत होती है |
ढैंचा के पौधों के लिए सामान्य तापमान उपयुक्त होता है | ठंडियों में अगर अधिक समय तक तापमान 8 डिग्री से कम रहता है, तो पैदावार में फर्क पड़ सकता है |
ढैंचा की उन्नत किस्में (Dhincha Improved Varieties)
- पंजाबी ढैंचा 1 :- ढैंचा की यह क़िस्म काफी तेजी से व्यद्धि करती है | इसमें निकलने वाले बीज आकार में मोटे तथा मटियाले रंग के होते है | इस क़िस्म का पौधा बुवाई के 150 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाता है| यह क़िस्म मुख्य रूप से हरी खाद के लिए उगाई जाती है |
- सी.एस.डी. 137 :- यह क़िस्म क्षारीय भूमि में ऊगा सकते है, साथ ही इस तरह की भूमि में ढैंचा के पौधों को उगाने से भूमि में क्षारीय गुण कम हो जाता है | इस क़िस्म का बीज रोपाई के तक़रीबन 130 से 140 दिन बाद पूर्ण रूप से तैयार हो जाता है | इस क़िस्म से 20 से 30 टन की पैदावार प्रति हेक्टेयर के खेत से मिल जाती है |
- हिसार ढैंचा-1 :- हिसार ढैंचा के पौधे जल्दी पैदावार देने के लिए तैयार हो जाते है, इसे मुख्य रूप से हरी खाद के लिए उगाते है | जिसका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 15 से 20 टन होता है |
- सी.एस.डी. 123 :- ढैंचा की यह क़िस्म पानी सोखने वाली भूमि के लिए उपयुक्त होती है | इसके अलावा इसे भूमि में क्षारीय गुण को कम करने के लिए भी उगाते है | इसमें पौधे रोपाई के तक़रीबन 120 से 130 दिन बाद पैदावार देना शुरू कर देते है | जिसका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 20 से 25 टन होता है |
- पंत ढैंचा-1 :- इस क़िस्म को सबसे अधिक उत्तर प्रदेश में उगाया जाता है | इसे ज्यादातर हरी खाद के रूप में उगाते है | ढैंचा की इस क़िस्म में निकलने वाला पौधा काफी अधिक पैदावार दे देता है, जिसका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 30 टन से भी अधिक होता है | इसमें आने वाले बीज सामान्य आकार और मटियाले रंग वाले होते है |
ढैंचा के खेत की तैयारी (Dhincha’s Field Preparation)
ढैंचा के पौधों को खेत में लगाने से पहले खेत की जुताई मिट्टी पलटने वाले हलो से करे | खेत की गहरी जुताई करने के बाद उसे खुला छोड़ दे | इसके बाद खेत में प्रति एकड़ के हिसाब से 10 गाड़ी पुरानी सड़ी गोबर की खाद डालें और अच्छे से मिट्टी में मिला दे | इसके बाद खेत में पलेव कर दे | पलेव के बाद जब खेत की भूमि सूख जाए तो रासायनिक खाद का छिड़काव कर रोटावेटर चलवा दे | जिसके बाद पाटा लगाकर खेत को समतल कर दिया जाता है |
ढैंचा के बीजो की रोपाई का समय व तरीका (Dhincha Sowing Seeds Time and Method)
ढैंचा के बीजो को समतल खेत में ड्रिल मशीन के माध्यम से लगाते है | ड्रिल के माध्यम से ढैंचा के बीजो को सरसो की तरह ही पंक्तियों में लगाते है | इसमें पंक्ति से पंक्ति के मध्य एक फ़ीट की दूरी रखी जाती है, तथा बीजो को 10 CM की दूरी के आसपास लगाते है | छोटी भूमि में ढैंचा के बीजो की रोपाई छिड़काव तरीके से भी कर सकते है | इसमें बीजो को समतल खेत में छिड़क दिया जाता है, और फिर कल्टीवेटर से दो हल्की जुताई की जाती है | इस तरह से बीज मिट्टी में मिल जाएगा | दोनों ही विधियों में ढैंचा के बीजो को 3 से 4 CM की गहराई में लगाना चाहिए | हरी खाद की फसल लेने के लिए ढैंचा के बीजो को अप्रैल के महीने में लगाते है, और पैदावार लेने के लिए बीजो को खरीफ की फसल के समय बारिश के मौसम में लगाते है | एक एकड़ के खेत में तक़रीबन 10 से 15 KG बीज पर्याप्त होते है |
हरी खाद बनाने की विधि (Green Manure)
हरी खाद बनाने की विधि में खाद को उसी खेत में उगाया जाता है, जिसमे हरी खाद तैयार करनी होती है | इसमें दलहनी और गैर दलहनी फसल को उचित समय पर जुताई कर मिट्टी में अपघटन के लिए दबाया जाता है | दलहनी फसलों की जड़े भूमि में सहजीवी जीवाणु का उत्सर्जन करती है, और वातावरण में नाइट्रोजन का दोहन कर मिट्टी में स्थिरता बनाती है | आश्रित पौधों के उपयोग से भूमि में नाइट्रोजन शेष रह जाती है, जो अगली फसल में उपयोग हो जाती है |
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ढैंचा बीज पर सब्सिडी (Dhaincha Seed Subsidy)
हरियाणा सरकार किसानो को ढैंचा की खेती करने पर प्रोत्साहन के रूप में बीज की खरीद पर 80 फीसदी छूट दे रही है| जिसमे एक किसान अधिकतम 120 KG ढैंचा के बीज प्राप्त कर सकेगा | बीज सब्सिडी पाने के लिए किसान भाई 25 अप्रैल तक कृषि विभाग हरियाणा की आधिकारिक वेबसाइट agriharyana.gov.in पर जाकर आवेदन कर सकते है | राज्य के सभी किसान भाइयो को मेरी फसल मेरा ब्यौरा पोर्टल पर जाकर योजना का लाभ लेने के लिए रजिस्ट्रेशन करवाना होगा | इसमें एक किसान को सिर्फ 120 KG बीज पर छूट मिलेगी | सरकार खरीफ के मौसम में किसानो को ढैंचा फसल के लिए बीज उपलब्ध करवा रही है | योजना के तहत ढैंचा बीज की खरीद पर किसानो को सिर्फ 20% राशि देनी होगी |
ढैंचा के पौधों की सिंचाई (Dhaincha Plants Irrigation)
ढैंचा के पौधों को सामान्य सिंचाई की जरूरत होती है | पैदावार तैयार होने तक पौधों की 4 से 5 बार सिंचाई उपयुक्त होती है | चूंकि ढैंचा के बीजो को नम भूमि में लगाते है, इसलिए पहली सिंचाई तक़रीबन 20 दिन बाद करे | इसके बाद एक माह के अंतराल में दूसरी और तीसरी बार पानी दे |
ढैंचा के खेत में खरपतवार नियंत्रण (Dhincha Field Weed Control)
ढैंचा की खेती में खरपतवार को नष्ट करने के लिए मात्र एक से दो गुड़ाई की जरूरत होती है | जिसमे पहली गुड़ाई बीज बुवाई के तक़रीबन 25 दिन पश्चात् तथा दूसरी गुड़ाई 20 दिन बाद की जाती है |
ढैंचा के पौध रोग व उपचार (Dhaincha Plant Diseases and Treatment)
ढैचा के पौधों पर बहुत ही कम रोग दिखाई देते है | किन्तु कीट की सुंडी का आक्रमण पौधों की पैदावार को कम कर देता है | इसके कीट का लार्वा पौधों की पत्तियों और शाखाओ को खाकर उन्हें नष्ट कर देता है | इस रोग से बचाव के लिए ढैंचा के पौधों पर सर्फ के घोल या नाम के काढ़े का छिड़काव करे |
ढैंचा के फसल की कटाई, पैदावार और बीज की कीमत (Dhincha Crop Harvesting, Yield and Seed Price)
ढैंचा की फसल तक़रीबन 4 से 5 माह में कटाई करने के लिए तैयार हो जाती है | जब इसके पौधों का रंग सुनहरा पीला दिखाई देने लगे तब फलियों की शाखाओ को काट ले, तथा शेष बचे हुए भाग को ईंधन के रूप में उपयोग कर सकते है | इसकी फलियों को धूप में सुखाकर मशीन की सहायता से बीजो को निकाल लेते है, जिसके बाद उन्हें बाजार में बेच देते है |
एक एकड़ के खेत से तक़रीबन 25 टन की पैदावार मिल जाती है | ढैंचा बीज का बाज़ारी भाव 40 से 42 रूपए प्रति किलो होता है, इस हिसाब से किसान भाई फसल से बीजो का उत्पादन प्राप्त कर अच्छी कमाई कर सकते है |