कपास की खेती कैसे करें | Cotton Farming in Hindi | कपास का उपयोग


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कपास की खेती से सम्बंधित जानकारी

कपास (Cotton) की खेती किसानो के लिए फायदे की खेती के रूप में जानी जाती है इसकी पैदावार नगद फसल के रूप में होती है कपास की फसल को बाजार में बेच कर किसान अच्छी कमाई भी करते है जिससे उनकी आर्थिक स्थिति में काफी सुधार आता है देश के कई राज्यों में इसकी फसल को किया जाने लगा है | बाजारों में आज कपास की कई तरह की किस्मे देखने को मिल जाती है |




तटीय इलाको में इसकी अधिक पैदावार होती है तथा लम्बे रेशें वाले कपास को ज्यादा सर्वश्रेष्ठ माना जाता है | यदि आप भी कपास की खेती करने का मन बना रहे है, तो इस पोस्ट में आपको कपास की खेती से जुड़ी जानकारी कपास की खेती कैसे करें, Cotton Farming in Hindi, कपास का उपयोग इसके बारे में बताया गया है |

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कपास की खेती कैसे करे (How to Cultivate Cotton)

कपास की खेती मेहनती खेती के रूप में जानी जाती है, कपास की खेती करने में अधिक परिश्रम की आवश्यकता होती है | इसका उपयोग कपड़े बनाने में किया जाता है, इसमें रूई से बीज़ो को साफ कर रूई का उपयोग कपड़ो के रेशें बनाने तथा बीज़ो से तेल निकाला जाता है | तेल निकालने के बाद बीज़ो का जो हिस्सा बचता है, उसे पशुओ के खाने में इस्तेमाल करते है |

इसकी खेती के लिए किसी खास तरह की जलवायु की आवश्यकता नहीं होती है, कपास की खेती कई जगह होने के कारण बाजार में इसकी कई किस्मे देखने को मिल जाती है इसे सफ़ेद सोना भी कहा गया है | कपास की खेती में सिंचाई की ज्यादा जरूरत न होने के कारण इसे कभी भी उगाया जा सकता है|

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कपास की खेती की लिए उपयुक्त मिट्टी (Suitable Soil for Cotton Cultivation)

बुलई दोमट मिट्टी और काली मिट्टी को कपास की खेती के लिए अच्छा माना जाता है, ऐसी मिट्टी में कपास की उपज काफी अच्छी होती है | लेकिन वर्तमान समय में कई तरह की किस्मे बाजार में आ चुकी है, जिससे कपास को अब पहाड़ी और रेतीली जगहों पर भी आसानी से ऊगा सकते है, कपास की खेती में कम पानी की आवश्यकता होती है | इसलिए इसे अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी में उगाना चाहिए | इसके लिए भूमि का P.H. मान 5.5 से 6 के मध्य होना चाहिए |

कपास की खेती की लिए जरूरी जलवायु और तापमान (For Cotton Cultivation Required Climate and Temperature)

वैसे तो कपास की खेती में किसी खास तरह की जलवायु की आवश्यकता नहीं होती है, किन्तु जब पौधों में फल लगने लगे तब इसे सर्दियों में गिरने वाले पाले से हानि होती है | जब इसमें टिंडे निकलने लगे तब इसे तेज चमक वाली धूप की आवश्यकता होती है |

कपास की खेती में तापमान की विशेष जरूरत नहीं होती है, जब कपास के बीज खेत में अंकुरित होने लगे तब इसे 20 डिग्री तापमान की जरूरत होती है | इसके बाद इसके पौधों को बड़ा होने के लिए 25 से 30 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है | इससे अधिक तापमान पर भी यह अच्छी वृद्धि कर सकते है|

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कपास की विकसित किस्मे (Developed Varieties of Cotton)

वर्तमान समय में बाजार में कपास की कई विकसित किस्मे देखने को मिलती है, यह सभी किस्मे अलग – अलग श्रेणियों में रक्खी गयी है | कपास के रेशो के आधार पर इनकी किस्मो को अलग-अलग श्रेणी में रखा गया है | रेशो के आधार पर इन्हे तीन भागो में बांटा गया है | जिनकी जानकारी इस प्रकार दी गई है:-

छोटे रेशें वाली कपास (Short Fiber Cotton)

इस किस्म के कपास की रेशें 3.5 सेंटीमीटर से भी कम लम्बे होते है | यह उत्तर भारत में अधिक उगाई जाने वाली किस्म है यह असम, हरियाणा, राजस्थान, त्रिपुरा, मणिपुर, आन्ध्र प्रदेश, पंजाब, उत्तर प्रदेश और मेघालय में अधिक उगाई जाती है | उत्पादन की बात करे तो कपास के कुल उत्पादन का 15% उत्पादन इस राज्यों से होता है |

मध्यम रेशें वाली कपास (Medium Fiber Cotton)

इस श्रेणी में आने वाले कपास के रेशों की लम्बाई 3.5 से 5 सेंटीमीटर के मध्य होती है | यह कपास की मिश्रित श्रेणी में आता है, इस तरह की किस्म का उत्पादन भारत के लगभग हर हिस्से में होता है | इस तरह के कपास का उत्पादन का लगभग 45% हिस्सा उत्पादित होता है |

बड़े रेशेदार कपास (Large Fibrous Cotton)

कपास की श्रेणियों में इस कपास को सबसे सर्वश्रेष्ठ माना जाता है, इस कपास के रेशे की लम्बाई 5 सेंटीमीटर से अधिक होती है | यह रेशा उच्च कोटि के कपड़ो को तैयार करने में उपयोग होता है | यह किस्म भारत में दूसरे नंबर पर उगाई जाती है, तटीय हिस्सों में इसकी खेती को मुख्य रूप से किया जाता है, इसलिए यह समुद्री द्वीपीय कपास भी कहलाता है | कपास के कुल उत्पादन में इसकी हिस्सेदारी 40% तक की होती है |

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कपास की खेती के लिए जुताई का तरीका (Method of Tillage for Cotton Cultivation)

इसके लिए पहले खेत की अच्छे से जुताई करवा दे फिर उसे ऐसे ही छोड़ दे, फिर उसमे गोबर की खाद को डाल कर दो से तीन बार फिर से जुताई करवा दें जिससे गोबर और खाद मिट्टी में अच्छे से मिल जायेंगे|

इसके बाद खेत में पानी लगाना चाहिए पानी के सूख जाने के बाद खेत की फिर से जुताई कर दें | ऐसा करने से खेत में लगने वाले सभी खरपतवार निकल जायेंगे और जुताई के बाद एक बार फिर से खेत में पानी लगा दें|

इसके बाद खेत की समतल तरह से पाटा लगाकर जुताई करे | अब जमीन के समतल हो जाने पर खेत में उवर्रक डालकर खेत की जुताई खेत में पाटा लगाकर कर दे | फिर दूसरे दिन खेत में बीज़ो को लगा दें, खेत में कपास का बीज लगाना शाम के वक़्त ज्यादा अच्छा माना जाता है|

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कपास के बीज की रोपाई का सही तरीका (Correct way of Planting Cotton Seeds)

कपास के बीज़ो को खेत में लगाने से पहले उन्हें उपचारित कर लेना चाहिए | जिससे बीज़ो में लगने वाले कीट रोग का खतरा कम हो जाता है | कार्बोसल्फान या इमिडाक्लोप्रीड से बीज़ो को उपचारित कर खेत में लगाना चाहिए |

देशी किस्म के बीज़ो को खेत में लगाते समय दो लाइन के बीच 40 सेंटीमीटर तथा दो पौधों की बीच में 30 से 35 सेंटीमीटर की दूरी का होना जरूरी होता है |

वही अगर अमेरिकन किस्म के बीज़ो की बात करे तो इसमें दो लाइनो की बीच 50 से 60 सेंटीमीटर की दूरी तथा दो पौधों की बीच में 40 सेंटीमीटर की दूरी होनी चाहिए | इन बीज़ो को ज्यादा अंदर नहीं लगाना चाहिए, इससे इन्हे बाहर निकलने में दिक्कत हो सकती है तथा प्रति एकड़ के एरिये में 4 किलो तक बीज लगाए जा सकते है |

संकर बीटी वाले पौधों के बीज खेत में लगाते समय दो कतारों के बीच 100 सेंटीमीटर तथा दो पौधों के बीच में 60 से 80 सेंटीमीटर की दूरी होनी चाहिए | यह लम्बी दूरी तक फैलने वाले पौधे होते है, इसलिए इसे एक बीघा खेत में 450 ग्राम बीज ही लगाने चाहिए|

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कपास की खेती में खरपतवार पर नियंत्रण (Weed Control in Cotton Cultivation)

कपास की खेती में जब पौधों में फूल लगने वाले हो तब खरपतवार पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए | उस समय कई तरह के खरपतवार उग आते है, जिसमे कई प्रकार की कीट जन्म लेते है | यही कीट पौधों में कई तरह के रोग उत्पन्न करते है | इन रोगो से बचाव के लिए ही खरपतवार नियंत्रण पर अधिक ध्यान देना चाहिए |

इसके लिए समय – समय पर कपास के खेत की निराई – गुड़ाई करते रहना चाहिए | खेत में बीज लगाने के 25 दिन के बाद से ही निराई – गुड़ाई शुरू कर देनी चाहिए | इससे पौधों के विकास में किसी तरह की रुकावट नहीं आती है, तथा पौधे अच्छे से विकास भी कर पाते है |

कपास के खेत में उवर्रक की सही मात्रा (The Right Amount of Fertilizer in the Cotton Field)

कपास की खेती करने के लिए खेत में लगभग 15 गाड़ी गोबर की खाद को प्रति एकड़ के हिसाब से डालनी होती है, इसके बाद इस खाद को उस खेत में अच्छे से मिला दें | बुवाई के समय नाइट्रोजन और फास्फोरस की पर्याप्त मात्रा को किस्मो के अनुसार उस खेत में डालनी चाहिए |

यदि बीज संकर बीटी कपास के है, तो उसमे जिंक सल्फेट की पर्याप्त मात्रा को मिलाकर खेत में छिड़काव करना चाहिए | वही अमेरिकन किस्म के कपास में फास्फोरस, डीएपी और सल्फर की पर्याप्त मात्रा का छिड़काव खेत में करने से अच्छी पैदावार होती है|

कपास की सिंचाई का तरीका (Cotton Irrigation Method)

कपास की खेती में बहुत ही कम पानी की जरूरत होती है, यदि फसल बारिश के मौसम में की गयी है तो इसे पहली सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है, और यदि खेती बारिश के मौसम में नहीं की गयी है तो 45 दिन के बाद सिंचाई कर देनी चाहिए |

कपास के पौधे अधिक धूप में अच्छे से विकसित होते है इसलिए पहली सिंचाई करने के बाद जरूरत पड़ने पर ही इसकी सिंचाई करनी चाहिए किन्तु पौधों में फूल लगने के वक़्त खेत में नमी की उचित मात्रा  बनी रहनी चाहिए जिससे पौधों के फूल झड़े नहीं, किन्तु अधिक पानी भी नहीं देना चाहिए इससे फूलो के ख़राब होने का खतरा हो सकता है |

जब फूल से टिंडे बनने लगे तब खेत में 15 दिन के अंतराल में पानी देते रहना चाहिए, जिससे टिंडे का आकार बड़ा तथा पैदावार भी अधिक होती है |

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कपास की पौधों में लगाने वाले रोग (Cotton Plant Diseases)

कपास के पौधों में भी कई तरह के रोग लगते है, जो कि कीट की वजह से लगते है | ऐसे ही कुछ रोगो के बारे में यहाँ बताया गया है, जिनकी जानकारी कुछ इस प्रकार है:-

हरा मच्छर कीट रोग (Green Mosquito Pest Disease)

इस तरह का रोग नयी पत्तियों पर देखने को मिलता है हरा मच्छर कीट रोग पत्तियों की निचली सतह पर शिराओ के पास बैठकर रस चूसते रहते है, जिस वजह से पत्तिया पीली पड़ जाती है, और कुछ समय पश्चात यह पत्तिया टूट कर नीचे गिर जाती है | इमिडाक्लोप्रिड 17.8 SL या मोनोक्रोटोफॉस 36 SL का उचित मात्रा में छिड़काव करने से इस रोग से बचाव किया जा सकता है |

इसी तरह से सफ़ेद मक्खी कीट भी पत्तियों पर पाई जाती है यह भी पत्तियों की निचली सतह पर बैठकर रस चूसती है यह कीट पत्तियों पर चिपचिपा प्रदार्थ छोड़ देती है जिससे पत्तियों में पत्ता मरोड़ नमक रोग हो जाता है इससे भी पत्तिया सूख कर गिर जाती है कुछ नयी तरह की किस्मे है जिनमे यह रोग नहीं लगता है, जैसे – बीकानेरी नरमा, आर एस- 875, मरू विकास आदि | अन्य किस्म के पौधों पर इस रोग से बचाव के लिए ट्राइजोफॉस 40 EC या मिथाइल डिमेटान 25 EC की पर्याप्त मात्रा में छिड़काव करना चाहिए|

चितकबरी सुंडी नामक कीट (Pied Beetle)

चितकबरी सुंडी नामक कीट जब फूल टिंडे बनते है, तब उन पर आक्रमण करता है | जिससे पौधे का ऊपरी भाग सूखने लगता है, तथा टिंडे की पंखुड़ी पीली पड़ जाती है, और टिंडे के अंदर का कपास ख़राब हो जाता है | इस कीट से बचाव के लिए मोनोक्रोटोफॉस 36 SL, क्लोरपायरीफास 20 EC, मेलाथियान 50 EC में से किसी एक दवा का छिड़काव पर्याप्त मात्रा में करना चाहिए |

तेल कीट रोग (Oil Pest Disease)

तेल कीट रोग की वजह से पत्तियों को ज्यादा हानि होती है, यह काले रंग का कीट होता है जो कि छोटे आकार का होता है | इस तरह के कीट से रोकथाम के लिए इमिडाक्लोप्रिड 17.8 S.L. या थायोमिथाक्जाम 25 WG नामक दवा का छिड़काव पर्याप्त मात्रा में करते रहना चाहिए |

तम्बाकू लट कीट रोग (Tobacco Braided Pest Disease)

पौधे के लिए यह कीट अधिक हानिकारक माना जाता है, यह कीट लम्बे आकार का होता है जो कि पत्तियों को खाकर उन्हें जालीनुमा बना देता है, जिससे पत्तिया पूरी तरह से नष्ट हो जाती है | इस कीट से बचाव के लिए फलूबैन्डीयामाइड 480 S, थायोडिकार्ब 75 SP और इमामेक्टीन बेंजोएट 5 S G दवा का छिड़काव करते रहना चाहिए |

झुलसा कीट रोग से बचाव (Prevention of Scorch Pest Disease)

अन्य कीट रोगो की तुलना में झुलसा कीट रोग अधिक खतरनाक होता है इस रोग के लग जाने पर टिंडे पर काले रंग के चित्ते बनने लगते है, और टिंडा समय से पहले खिल जाता है, जिससे उसका रेशा भी ख़राब हो जाता है | यह कीट रोग कम समय में ही पौधे को पूरी तरह से नष्ट कर देता है | इस तरह के रोग से बचाव के लिए काँपर ऑक्सीक्लोराइड दवा का छिड़काव पौधों पर नियमित रूप से करना चाहिए साथ ही बीज को बोने के वक़्त बाविस्टिन कवकनाशी दवा से उपचारित करना चाहिए |

पौध अंगमारी रोग से बचाव (Plant Blight Disease Prevention)

इस रोग के हो जाने पर कपास के टिंडो के पास वाले पत्ते लाल कलर के हो जाते है, खेत में नमी होने पर भी पौधा मुरझाने लगता है | इस रोग के लग जाने पर पौधा कुछ दिन बाद ही नष्ट हो जाता है | इस रोग की रोकथाम के लिए एन्ट्राकाल या मेन्कोजेब का छिड़काव पौधों पर करना चाहिए|

अल्टरनेरिया पत्ती धब्बा रोग से बचाव (Preventing Alternaria Leaf Spot Disease)

यह बीज जनित रोग होता है, जिसके लग जाने पर पहले पत्तियों पर भूरे रंग के धब्बे बन जाते है | फिर काले भूरे रंग का गोलाकार बन जाता है, यह रोग पत्तियों को जल्द ही गिरा देता है | इसका असर पैदावार को सिमित कर देता है, स्ट्रेप्टोसाइक्लिन नामक दवा से इस पर छिड़काव कर इस रोग की रोकथाम की जा सकती है |

जड़ गलन रोग से बचाव (Root Rot Disease Prevention)

जड़ गलन यह समस्या पौधों में ज्यादा पानी की वजह से देखने को मिलती है, इससे बचाव के लिए एक ही तरीका है कि खेत में जल का भराव न रहने दें | इस तरह की समस्या अधिकतर बारिश के मौसम में देखने को मिलती है | इस रोग में पौधा शुरुआत से ही मुरझाने लगता है, इससे बचाव के लिए खेत में बीज को लगाने से पहले कार्बोक्सिन 70 डब्ल्यूपी 0.3% या कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्यूपी 0.2% से उपचारित कर लेना चाहिए | कपास की फसल के साथ मोठ की बुवाई करने से भी इसका बचाव किया जा सकता है|

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कपास की तुड़ाई का सही समय (Cotton Harvest Time)

कपास की तुड़ाई को सितम्बर से अक्टूबर माह के दौरान शुरू कर देनी चाहिए | जब कपास के टिंडे 40 से 60 प्रतिशत तक खिल जाये तब पहली तुड़ाई करनी चाहिए | फिर जब सभी टिंडे पूरी तरह से खिल जाये तब उसकी तुड़ाई कर ले |

कपास की पैदावार और लाभ (Cotton Production and Benefits)

कपास की खेती से किसानो की अच्छी आमदनी हो जाती है, अलग – अलग तरह की किस्मो से अलग -अलग तरह की पैदावार होती है | जैसे देशी किस्म की कपास में प्रति हेक्टेयर 20 से 25 क्विंटल और अमेरिकन किस्म में प्रति हेक्टयेर 30 क्विंटल तक की पैदावार होती है, तथा बीटी कपास में 30 से 40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर से भी ज्यादा होती है | कपास का बाजारी भाव 5 हजार प्रति क्विंटल तक होता है | जिससे किसान भाई एक बार में कपास की खेती कर तीन से चार लाख तक प्रति हेक्टेयर की कमाई कर सकते है|

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बीज से कपास उगाना (Growing Cotton from Seed)

जैसा कि टमाटर, काली मिर्च और अन्य पौधों के साथ होता है| कपास के पौधे स्वभाव से बारहमासी होते हैं। हालाँकि चूंकि हम हर साल काफी समान और संतोषजनक उत्पादन लेने की उम्मीद करते हैं, इसलिए हम इसे वार्षिक रूप से खेती करते हैं। दुर्भाग्य से कपास की खेती व्यावसायिक रूप से केवल विशिष्ट बढ़ती परिस्थितियों वाले क्षेत्रों में ही की जा सकती है। ताजा और सावधानी से चुने गए कपास के बीज खरीदना अच्छी उपज की दिशा में पहला कदम है। दूसरा चरण खेत की तैयारी है, ताकि यह बीजों को तैयार कर सके और उनके अंकुरण को सुगम बना सके।

कपास के बीजों की बुवाई वसंत ऋतु में होती है। उर्वरक, सिंचाईऔर कीट नियंत्रण अच्छी उपज के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं और अधिकांश लागतों का प्रतिनिधित्व करते हैं। दुर्भाग्य से कपास के पौधे विभिन्न खरपतवारों के प्रति बहुत संवेदनशील होते हैं, जो पानी, पोषक तत्वों और सूर्य के प्रकाश तक पहुंच के मामले में उनके साथ प्रतिस्पर्धा करते हैं। कपास खरपतवार नियंत्रण तकनीक और प्रबंधन देशों के बीच काफी भिन्न हैं।

कपास के पौधे की जलवायु आवश्यकताएँ (Cotton Plant Climatic Requirements)

कपास एक ऐसा पौधा है, जिसे लंबी ठंढ-मुक्त अवधि, बहुत अधिक गर्मी और भरपूर धूप की आवश्यकता होती है। यह गर्म और आर्द्र जलवायु को तरजीह देता है। यदि मिट्टी का तापमान 60°F (15°C) से कम है, तो कपास के बीजों का अंकुरण दर कम होगा। सक्रिय वृद्धि के दौरान, आदर्श वायु तापमान 70 से 100°F (21-37°C) होता है। 100 डिग्री फारेनहाइट से ऊपर का तापमान वांछनीय नहीं है। हालांकि औसत कपास का पौधा 110°F (43°C) तक के तापमान में बिना किसी नुकसान के छोटी अवधि के लिए जीवित रह सकता है, लेकिन यह नमी के स्तर पर भी निर्भर करता है। कपास के पौधों की सफलतापूर्वक खेती करने के लिए हमें परिपक्व (गर्मी) और फसल के दिनों (शरद ऋतु के दौरान) के दौरान बार-बार बारिश नहीं होगी।

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कपास के उपयोग (Cotton Uses)

कपास ने मानव इतिहास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जब से इसका पहली बार उपयोग किया गया था, जो मानव विज्ञानी प्रागैतिहासिक काल से पहले के हैं। आज दुनिया में सबसे व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाने वाला फाइबर, कपास अत्यंत बहुमुखी, मुलायम और मजबूत है। इसके उपयोग इस प्रकार है-

कपड़े (Cloths)

कपड़ों के लेबल पर आमतौर पर देखे जाने वाले कई कपड़े सूती रेशों से उत्पन्न होते हैं| कपास को मखमल, कॉरडरॉय, डेनिम, जर्सी, फलालैन, वेलोर और चेम्ब्रे में बुना या बुना जा सकता है। इसका मतलब है कि हमारे पास पहनने वाले कपडे कपास से निर्मित है, भले ही उस पर लेबल पर कपास न लिखा हो। सूती और संबंधित कपड़ों का उपयोग परिधान उद्योग में लगभग सब कुछ बनाने के लिए किया जाता है|

अन्य उपभोक्ता उत्पाद (Other Consumer Products)

कपास को आसानी से कई उत्पादों में संसाधित किया जा सकता है, जिनका उपयोग हम दैनिक आधार पर करते हैं, जैसे कॉफी फिल्टर, बुक बाइंडिंग, पेपर और बैंडेज। बिनौला तेल, जो कपास के पौधों के कुचले हुए बीजों से बनता है, साबुन, सौंदर्य प्रसाधन और मार्जरीन सहित कई उत्पादों में उपयोग किया जाता है। कपास उपयोग किए जाने वाले कई उत्पादों का एक महत्वपूर्ण घटक है, जिसमें तंबू और तिरपाल, मछली पकड़ने के जाल, डोरियां और रस्सियां ​​शामिल हैं।

कृषि और औद्योगिक अनुप्रयोग (Agricultural and Industrial Applications)

कपास एक खाद्य और रेशेदार फसल है। कपास के बीज अक्सर मवेशियों और घोड़ों को प्रोटीन के स्वस्थ स्रोत के रूप में खिलाए जाते हैं। मनुष्य कपास में पाए जाने वाले सेल्यूलोज को पचा नहीं सकता, लेकिन जानवरों में एक विशेष एंजाइम होता है जो इसे तोड़ देता है। यहां तक ​​कि कपास के पौधे के डंठल और पत्तियों को भी उपयोगी बनाया जा सकता है| मिट्टी को समृद्ध करने के लिए डंठल को जमीन के नीचे जोता जाता है और उनसे निकाले गए रेशे का उपयोग कागज और कार्ड बोर्ड (Card Board) बनाने में किया जाता है।

इसके अलावा कपास फार्मास्यूटिकल्स (Pharmaceuticals) से लेकर रबर और प्लास्टिक तक लगभग हर उद्योग में एक कार्य करता है। कॉटन लिंटर्स (छोटे रेशे जो पौधे पर जुताई के बाद बने रहते हैं) का उपयोग चिकित्सा क्षेत्र में एक्स-रे, स्वैब और कॉटन बड्स के साथ-साथ क्लीनरूम सूट और आपूर्ति में किया जाता है। कॉटन लिंटर्स का उपयोग गद्दे, फर्नीचर, ऑटोमोबाइल कुशन और यहां तक ​​कि फ्लैट स्क्रीन टीवी (Flat Screen TV) में भी किया जाता है।

कपास सबसे व्यापक रूप से उपयोग की जाने वाली और बहुमुखी सामग्री में से एक है। कपड़ों, लिनेन और घरेलू आपूर्ति जैसे दैनिक उपयोग किए जाने वाले कई उत्पादों के लिए हमारे पास कपास है। जिन सेवाओं पर हम भरोसा करते हैं, जैसे चिकित्सा और ऑटोमोबाइल उद्योग, सेवाओं के उत्पादन और वितरण में कपास पर निर्भर हैं। अपने चारों ओर देखें – संभावना है, आप दो हाथों पर गिन सकते हैं कि आप कितनी चीजें देखते हैं जो कपास या उसके उप-उत्पादों से बनाई गई थीं, वास्तव में कपास हर जगह है।

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भारत में सबसे बड़ा कपास उत्पादक राज्य कौन सा है (Largest Cotton Producing State in India)

गुजरात (Gujrat)

भारत में प्रमुख कपास उत्पादक गुजरात है। यह भारत में 95 लाख गांठ कपास का उत्पादन करता है और 26.59 लाख हेक्टेयर में फैला है। वार्षिक वर्षा और काली मिट्टी के कारण यह राज्य भारत में कपास उत्पादन के लिए 2019-20 में एक लाभदायक क्षेत्र है। लोकप्रिय कपास उत्पादन क्षेत्र वडोदरा, मेहसाणा, भरूच, सुरेंद्रनगर और अहमदाबाद हैं। कपास के विशाल उत्पादन के कारण गुजरात कपड़ा उद्योग के लिए एक केंद्रीय राज्य है।

महाराष्ट्र (Maharashtra)

महाराष्ट्र भारत में कपास का सबसे बड़ा उत्पादक है और भारत में 82 लाख गांठ कपास का उत्पादन करता है। महाराष्ट्र में कपास का उत्पादन 42.54 लाख हेक्टेयर है। महाराष्ट्र के सबसे बड़े कपास उत्पादक क्षेत्र के रूप में यवतमाल (Yavatmal), विदर्भ (Vidarbha), खानदेश (Khandesh), मराठवाड़ा (Marathwada), अकोला (Akola), वर्धा (Wardha) और अमरावती (Amravati) हैं।

तेलंगाना (Telangana)

तेलंगाना भारत में लगभग 53 लाख गांठ कपास का उत्पादन करता है और 18.27 लाख हेक्टेयर में फैला है।गुंटूर (Guntur), अनंतपुर (Anantapur), प्रकाशम (Prakasam) और कुरनूल राज्य के प्रमुख कपास उत्पादक क्षेत्र हैं।

राजस्थान (Rajasthan)

राजस्थान भारत में 25 लाख गांठ कपास का उत्पादन करता है और भारत के 6.29 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को कवर करता है। क्षेत्र भीलवाड़ा (Bhilwara), अजमेर (Ajmer), चित्तौड़गढ़ (Chittorgarh), झालावाड़, पाली और हनुमानगढ़ हैं।

हरियाणा (Hariyana)

हरियाणा 22 लाख गांठ कपास का उत्पादन करता है और 5वें स्थान पर है। कपास के बागान हरियाणा में 7.08 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में फैले हुए हैं। प्रमुख क्षेत्र फतेहाबाद (Fatehabad), सिरसा (Sirsa), हिसार (Hisar), भिवानी, झज्जर, चरखी दादरी, फरीदाबाद, मेवात, पलवल, पानीपत, करनाल, गुरुग्राम, रोहतक, जींद और कैथल हैं।

मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh)

मध्य प्रदेश में हर साल 20 लाख गांठ का उत्पादन होता है। मध्य प्रदेश में 5.79 लाख हेक्टेयर कपास उत्पादन से आच्छादित है। कपास उत्पादन क्षेत्र भोपाल, देवास, रतलाम, निमाड़ और शाजापुर हैं।

कर्नाटक (Karnataka)

भारत में कपास की 18 लाख गांठों के साथ, कर्नाटक भारत के सबसे बड़े कपास उत्पादक राज्य में 7वें स्थान पर है। कपास कर्नाटक राज्य के 6.88 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में फैली हुई है। कपास उत्पादन के लिए आदर्श परिस्थितियों के कारण उत्तरी कर्नाटक के पठार में कपास की वृद्धि हुई। प्रमुख कारण धारवाड़, गुलबर्गा, धारवाड़, बेल्लारी और बेलगाम हैं।

पंजाब (Punjab)

पंजाब भारत में प्रति वर्ष 13 लाख गांठ का उत्पादन करता है और 2.68 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को कवर करता है। प्रमुख क्षेत्र लुधियाना, मोगा, भटिंडा, फरीदकोट, संगरूर और मनसा हैं।

तमिलनाडु (Tamil Nadu)

तमिलनाडु राज्य कपास की 6 लाख गांठों का योगदान करता है और राज्य में 1.31 लाख हेक्टेयर भूमि को कवर करता है। तमिलनाडु में वेल्लोर, रामनाथपुरम, कोयंबटूर, सेलम और मदुरै, तिरुचिरापल्ली कपास उत्पादक जिले हैं।

उड़ीसा (Orissa)

उड़ीसा भारत के लिए प्रति वर्ष 4 लाख कपास और 1.58 लाख हेक्टेयर क्षेत्र का उत्पादन करता है। सुबर्णापुर उड़ीसा का प्रमुख कपास उत्पादन राज्य है।

राज्य क नामउत्पादन (2020-21)क्षेत्रफल (हेक्टेयर)उपज (किलो/हेक्टेयर)
गुजरात 95 लाख26.59 लाख556.22
महाराष्ट्र82 लाख42.54 लाख 307.71
तेलंगाना53 लाख18.27 लाख 437.33
राजस्थान25 लाख6.29 लाख675.68
हरियाणा22 लाख7.08 लाख552.26
मध्य प्रदेश20 लाख5.79 लाख664.50
कर्नाटक18 लाख6.88 लाख 370.64
पंजाब13 लाख2.68 लाख 729.48
तमिलनाडु6 लाख1.31 लाख 778.63
उड़ीसा4 लाख 1.58 लाख 484.18

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विश्व के टॉप 10 कपास उत्पादक देश (Top 10 Cotton Producing Countries in the World)

भारत शीर्ष कृषि प्रधान देश है जो दुनिया में कपास की सबसे बड़ी फसल पैदा करने वाला देश है। यहां, हम रैंकिंग और उत्पादन (1000 480 lb. गांठ) के साथ विश्व के सबसे बड़े कापा उत्पादन देशों को दिखा रहे हैं। 28500 (1000 480 lb. गांठ) के साथ भारत सबसे बड़ा कपास उत्पादक देश है। भारत में कपास उत्पादन के लिए 125.84 लाख हेक्टेयर क्षेत्र शामिल है। विश्व के प्रमुख कपास उत्पादक देश इस प्रकार हैं-

1.भारत (India)
2.चीन (China)
3.अमेरिका (America)
4.ब्राजील (Brazil)
5.पाकिस्तान (Pakistan)
6.तुर्की (Turkey)
7.उज़्बेकिस्तान (Uzbekistan)
8.ऑस्ट्रेलिया (Australia)
9.ग्रीस (Greece)
10.बेनिन (Benin)

दुनिया किसी भी अन्य प्राकृतिक फाइबर की तुलना में कपास का अधिक उपयोग करती है और इसे मुख्य रूप से उगाया जाता है और कपड़ा बनाने के लिए उपयोग किया जाता है। कपास के पौधे के अन्य हिस्सों को अच्छे उपयोग में लाया जाता है और खाद्य पदार्थों, प्लास्टिक और कागज उत्पादों के उत्पादन में उपयोग किया जाता है। क्योंकि कपास एक नेचुरल प्रोडक्ट है और जिस प्रकार इसको कपड़ों के रूप में डिजाइन अर्थात आकृति के साथ  निर्मित किया जाता है, उसके कई लाभ हैं, जैसे कि ह्यूमिडिटी को कंट्रोल करने, इन्सुलेट करने, आराम प्रदान करने की क्षमता और यह हाइपोएलर्जेनिक (Hypoallergenic), वेदरप्रूफ भी है और एक टिकाऊ कपड़ा है।

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कपास और पॉलिएस्टर के लक्षण (Cotton and Polyester Characteristics)

कपास फसलों से काटा गया एक प्राकृतिक कपड़ा है, जबकि पॉलिएस्टर प्राकृतिक रसायनों से प्राप्त मानव निर्मित बहुलक है। दशकों से वस्त्र निर्माताओं ने मिश्रित कपास और पॉलिएस्टर का उपयोग किया है ताकि वह दोनों के लाभों का आनंद प्राप्त कर सकें। मिश्रण में कई विशेषताएं हैं जो इसे आधुनिक कपड़ों में उपयोग के लिए आदर्श बनाती हैं-

कपास की व्यक्तिगत विशेषताएं (Individual Characteristics)

कपास एक नरम, रेशेदार पदार्थ है जो कपास के पौधों से उगता है और यह सांस लेने योग्य होने के कारण एक लोकप्रिय कपड़ों का फाइबर है। कपास नमी को अच्छी तरह से अवशोषित करती है, पानी में अपने वजन का लगभग 24 से 27 गुना तक बरकरार रखती है। दूसरी ओर पॉलिएस्टर एक मजबूत मानव निर्मित फाइबर है, जो कम होने और झुर्रियों का प्रतिरोध करता है। यह एक बहुलक है जो कोयले, वायु जल और तेल से पेट्रोकेमिकल्स का उप-उत्पाद है। ड्यूपॉन्ट कंपनी (DuPont Company) ने वर्ष 1953 में पॉलिएस्टर फाइबर (Polyester Fiber) का उत्पादन शुरू किया था।

मिश्रण लाभ (Mixture Advantage)

मिश्रण कपास के आराम को शिकन प्रतिरोध और पॉलिएस्टर की मजबूती के साथ जोड़ता है। यह कपड़ों को धोना आसान और अधिक आरामदायक बनाता है। यह टिकाऊ है, उच्च तापमान का सामना करता है और अपने रंग को लंबे समय तक रखता है। सामग्री भी जल्दी सूख जाती है, और आप इसे शुद्ध कपास की तुलना में कम तापमान पर इस्त्री कर सकते हैं।

इतिहास (History)

निर्माताओं ने पहली बार 1960 के दशक में पॉलिएस्टर को कपास के साथ मिश्रित करना शुरू किया, और यह अपने लाभकारी गुणों के कारण दुनिया भर में फैशन में लोकप्रिय हो गया। इसके लाभों के बावजूद, कुछ उपभोक्ता पॉलिएस्टर की भावना को नापसंद करते हैं और अधिक आराम के लिए 100 प्रतिशत कपास का अनुरोध करते हैं। पॉलिएस्टर-कपास (Polyester-Cotton) का मिश्रण आज कपड़ों के निर्माण में एक आम सामग्री है।

विनिर्माण देश (Manufacturing Country)

संयुक्त राज्य अमेरिका, सुदूर पूर्व और भारत आज पॉलिएस्टर कपड़ों के शीर्ष उत्पादक हैं। आयरलैंड में निर्माता बड़ी मात्रा में पॉलिएस्टर यार्न का उत्पादन भी करते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत कपास के प्रमुख निर्यातक हैं, साथ ही ब्राजील (Brazil), उज्बेकिस्तान (Uzbekistan) और पाकिस्तान (Pakistan) भी हैं। दूसरी ओर सुदूर पूर्व अपने कपास का अधिकांश आयात करता है।

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