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चेरी की खेती (Cherry Farming) से सम्बंधित जानकारी
चेरी की खेती स्वादिष्ट फल के रूप में की जाती है | इसके फल का स्वाद खट्टा-मीठा होता है, तथा फल देखने में बहुत आकर्षक होता है | चेरी को स्वास्थ के नज़रिये से अच्छा फल माना जाता है | इसमें पोषक तत्व भरपूर मात्रा में पाए जाते है, जैसे:- विटामिन ए, विटामिन 6, थायसिन, नायसिन, मैगनीज, आयरन, कॉपर और फास्फोरस प्रचुर मात्रा में उपस्थित होता है, तथा चेरी में एंटीऑक्सीडेंट भी अधिक मात्रा में पाया जाता है | विश्व के यूरोप और एशिया, तुर्की और अमेरिका जैसे देशो में चेरी का उत्पादन सबसे अधिक किया जाता है |
भारत में चेरी का उत्पादन हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, कश्मीर राज्य में किया जाता है, जिसमे कश्मीर के लोग चेरी का उत्पादन कर अच्छी कमाई भी करते है | यदि आप भी चेरी की खेती कैसे करे जानना चाहते है, तो इस लेख में आपको चेरी की खेती कैसे करें (Cherry Farming in Hindi) चेरी से होने वाली कमाई के बारे में बताया जा रहा है |
चेरी की खेती के लिए भूमि व उपयुक्त जलवायु (Cherry Cultivation Suitable Land and Climate)
चेरी की खेती सामान्य भूमि में भी कर सकते है, किन्तु अच्छे उत्पादन के लिए 6 से 7.5 पी.एच.मान वाली रेतीली दोमट मिट्टी की जरूरत होती है | इसके अलावा भूमि नम व उपजाऊ भी होनी चाहिए | समुद्र तल से 2100 मीटर की ऊंचाई पर चेरी का उत्पादन नहीं किया जा सकता है | किन्तु कुल्लू और कश्मीर की 1500 मीटर ऊँची घाटियों पर भी इसे सफलता से ऊगा सकते है |
चेरी के पौधों को तक़रीबन 120 से 150 दिन तक ठंडी जलवायु की जरूरत होती है | जिसमे तापमान 7 डिग्री से भी कम हो, वही चेरी के फलो की खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है |
चेरी उन्नत किस्में (Cherry Improved Varieties)
बाजार में चेरी की अनेको किस्में देखने को मिल जाती है | किन्तु कुछ किस्में ऐसी है, जिन्हे व्यापारिक तौर पर उगाया जाता है, इन्हे अलग-अलग श्रेणी में रखा गया है, जो इस प्रकार है:-
- कम समय में तैयार होने वाली किस्में :- ब्लेक हार्ट, एल्टन, फ्रोगमोर अर्ली, अर्ली राईवरर्स |
- सामान्य रूप से तैयार होने वाली किस्में :- वाटरलू, बेडफोर्ड प्रोलोफिक |
- अधिक समय में तैयार होने वाली किस्में :- गर्वरनर उड़, फ्रैंसिस, इम्परर |
चेरी की बिगररेड और हार्ट समूह वाली किस्में (Cherries Barrow red and Heart Group Varieties)
बिगररेउ समूह
इस क़िस्म की चेरी का आकार सामान्य और गोलाकार होता है, जिसका फल हल्का लाल भिन्न रंग का होता है |
बिगररेउ समूह में उगाई जाने वाली संकर किस्में
- लैपिंस
- सनबर्ट
- सिखर सम्मेलन सैम
- स्टेला
हार्ट समूह
इस क़िस्म में निकलने वे चेरी का आकार दिल के जैसा होता है, और फल हल्का लाल और रेडिस रंग का होता है |
भारत में क्षेत्र के आधार पर पाई जाने वाली किस्में (Varieties Found Basis of Region in India)
हिमाचल प्रदेश में उगाई जाने वाली किस्में
- वाइट हार्ट |
- लैम्बर्ट स्टैला |
- ब्लैंक रिबलन |
- पींक अर्ली |
- अर्ली रिवर |
- तरतरियन |
जम्मू कश्मीर में उगाई जाने वाली किस्में
- गुनेपोर |
- ब्लैक हार्ट |
- अर्ली परर्पिल |
- बिगरेयस नायर ग्रास |
उत्तर प्रदेश में उगाई जाने वाली किस्में
- बेडफोर्ड
- ब्लैक हार्ट
- गर्वेनश वुड
चेरी के पौध की तैयारी (Cherry Seedlings Preparation)
चेरी के पौधों को बीज या जड़ कटाई के माध्यम से तैयार किया जाता है | ग्राफ्टिंग विधि द्वारा चेरी के पौधों को लगाना अच्छा होता है | बीजो के अंकुरण के लिए शीतल उपचार करते है | इसके बीजो को पूर्ण रूप से पके हुए फलो से निकाला जाता है | जिसके बाद इन्हे ठन्डे व सूखे स्थान पर संग्रहित किया जाता है, तथा एक दिन तक बीजो को विशेष रूप से भिगोकर रखना होता है |
पौधों को 15 से 20 CM ऊँची क्यारियों में लगाते है, जिसमे क्यारियों की चौड़ाई 105 से 110 CM तक होनी चाहिए | दो क्यारियों के मध्य 45 CM का अंतर रखा जाता है, तथा क्यारियों में लगाए गए पौधों के मध्य 15 से 25 CM की दूरी रखे | चेरी के पौधों की रोपाई के लिए ठंडियों का मौसम सबसे अच्छा होता है |
चेरी के पौधों की सिंचाई और खरपतवार नियंत्रण (Cherry Plant Irrigation and Weed Control)
चेरी के पौधों को अधिक सिंचाई की जरूरत नहीं होती है, क्योकि पौधों की रोपाई ठंडी के मौसम में की जाती है, और कम समय में फसल भी तैयार हो जाती है | जिस वजह से इन्हे अधिक गर्म मौसम नहीं देखना पड़ता है | किन्तु सूखी जलवायु जहां पर उत्स्वेदन की क्रिया अधिक होती हो वहां पर इसके पेड़ो को पानी देना होता है | गर्मी के प्रकोप को कम करने और नमी बनाए रखने के लिए मल्चिंग (पलवार बिछाना) अधिक लाभकारी सिद्ध होता है | खट्टी चेरी में अधिक मात्रा में उत्स्वेदन होता है, जिस वजह से इसे अधिक पानी की जरूरत पड़ती है |
चेरी की फसल में खरपतवार बिलकुल न होने दे | इसके लिए समय-समय पर खेत में खरपतवार दिखाई देने पर प्राकृतिक विधि से निराई-गुड़ाई करे |
चेरी के खेत में खाद और उवर्रक (Cherry Field Manure and Fertilizer)
चेरी के पौधों को आडू के पौधों की अपेक्षा अधिक नाइट्रोजन की जरूरत होती है | इसके पेड़ो में पोटाश की कमी भी नहीं देखने को मिलती है, क्योकि इसके पौधों में पोटाश लेने की क्षमता भी अधिक पाई जाती है | खाद की मात्रा की बात करे तो सेब की फसल में दी जाने वाली खाद के बराबर ही स्वीट चेरी के फलो को खाद देना होता है, तथा खट्टी चेरी में पौधों को नाइट्रोजन अधिक मात्रा में दे |
चेरी के पौधों की कटाई-छटाई (Pruning Cherry Plants)
चेरी के पौधे सामान्य देख रेख से ही उचित आकार प्राप्त कर लेते है | किन्तु फिर भी पेड़ो का प्रशिक्षण करने के लिए अग्र प्ररोह विधि अपनाई जाती है | मीठी चेरी में फूलो का उत्पादन दीर्घकालीन स्परों पर लगता है | यह स्पर 10 से 12 वर्ष के लंबे समय तक फल और फूल का उत्पाद देते रहते है | जिस वजह से अन्य वृक्षों की तुलना में इसके वृक्षमें कम कांट छांट की जाती है | वृक्षों की कंटाई-छटाई इस तरह से करे कि प्रत्येक वर्ष तक़रीबन 10 प्रतिशत तक पुराने स्परों को निकाल दे, ताकि नए स्परों का निर्माण हो सके |
चेरी की फसल में रोग व कीट की रोकथाम (Cherry Crop Disease and Pest Control)
- बैक्टीरियल गमोसिस :- इस क़िस्म का रोग चेरी के पौधों पर बहुत अधिक देखने को मिलता है | इस रोग से प्रभावित पौधों के भाग को छीलकर अलग कर दे और रोग ग्रसित स्थान पर चौबटिया पेस्ट लगाए | बसंत और पतझड़ के मौसम में बोर्डोमिश्रण का छिड़काव करे |
- लीफ स्पाट :- इस रोग से ग्रसित पौधों की पत्तियों पर गहरे बैंगनी रंग के धब्बे दिखाई देने लगते है, जिसका आकार बाद में बढ़कर पूरे क्षेत्र में फ़ैल जाता है, और पत्ती भूरे रंग की हो जाती है, तथा धब्बे का सूखा हुआ क्षेत्र झड़ जाने पर पत्तियों पर छिद्र बन जाते है, और कुछ समय पश्चात की पत्ती टूटकर गिर जाती है | इस रोग से बचने के लिए ज़ीरम या थीरम की 0.2 प्रतिशत की मात्रा का छिड़काव पौधों पर करे |
- भुरी व्याधि :- इस तरह का रोग फल तुड़ाई के समय आद्रता की वजह से लग जाता है | चेरी की मीठी और ड्यूक किस्मों पर यह रोग अधिक आक्रामक होता है | पौधे के सड़े हुए हिस्सों में पाउडर के रूप में भूरे रंग के जीवाणु आ जाते है | चेरी के पौधों पर इस तरह के रोग की रोकथाम के लिए कैप्टान का छिड़काव 15 दिन के अंतराल में दो बार करे |
- ब्लेक फ्लाई :- चेरी के पौधों पर लगने वाला यह एक मुख्य कीट है, जो पौधों की नयी शाखाओ और पत्तियों पर झुण्ड बनाकर आक्रमण करते है, और चिपचिपा पदार्थ छोड़ देते है | जिसके बाद फल बाजार में बेचने के योग्य नहीं रह जाता है | नीम के काढ़े या रोगोर से पौधों को उपचारित कर इस रोग से बच सकते है |
चेरी के फलो की तुड़ाई, पैदावार और कमाई (Cherry Fruit harvesting, Yield and Earnings)
चेरी के पौधे पांच वर्ष पश्चात् पूरी तरह से फल देने के लिए तैयार हो जाते है, तथा 10 वर्ष के बाद फल अच्छी तरह से पकना आरम्भ कर देते है | इसका पौधा लम्बे समय तक जीवित रहता है, जिसकी ठीक तरह से देख-रेख कर 50 वर्षो तक उत्पादन प्राप्त कर सकते है | मई के मध्य महीने तक फल पकना आरम्भ कर देते है | इसमें फलो का फटना एक गंभीर समस्या है, किन्तु ब्लैक हार्ट और बिंग क़िस्म के फल बहुत ही कम फटते है | चेरी की फसल में विरलन नहीं किया जाता है, क्योकि उपज पहले से ही कम प्राप्त होती है |
चेरी के एक पूर्ण विकसित पेड़ से तक़रीबन 15 से 25 KG फलो का उत्पादन मिल जाता है | इसके फलो की तुड़ाई पकने से पहले ही करे ले, ऐसा करने से फल जल्दी ख़राब नहीं होता है | चेरी की तुड़ाई के पश्चात् उन्हें लकड़ी के बक्सों या छोटी-छोटी टोकरियों में बाजार में बेचने के लिए संग्रहित कर ले | चेरी के मीठे फलो का सेवन ताज़ा ही करते है, तथा खट्टे फल से जड़ी-बूटी तैयार की जाती है | इसके फलो से मुरब्बा भी बनाया जाता है | चेरी का बाज़ारी भाव अलग-अलग स्थान व गुणवत्ता के अनुसार 300 से 500 रूपए प्रति किलो होता है, जिससे किसानो की चेरी की खेती से बहुत अच्छी कमाई हो जाती है |