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अरंडी की खेती (Castor Oil Farming) से सम्बंधित जानकारी
अरंडी की खेती खरीफ के मौसम में औषधीय तेल के रूप में की जाती है| इसका पौधा झाड़ी के रूप में विकास करता है | इसकी खेती व्यापारिक तौर पर अधिक लाभ कमाने के लिए की जाती है| अरंडी का बीज लम्बे समय तक पकता रहता है, जिसमे 40 से 60 प्रतिशत तेल की मात्रा पायी जाती है| इसके तेल के इस्तेमाल से कपड़ा, साबुन, प्लास्टिक, कपड़ा रंगाई, हाइड्रोलिक ब्रेक तेल, वार्निश और चमड़े आदि चीजों को बनाया जाता है| इसके अलावा इस तेल को पाचन, पेट दर्द, और बच्चो की मालिश के लिए भी उपयोग करते है, तथा तेल निकालते समय निकलने वाली खली को जैविक खाद के रूप में इस्तेमाल करते है|
शून्य से कम तापमान पर भी अरंडी तेल जमता नहीं है, जिस वजह से इसे फार्मास्यूटिकल्स और विमानन में इस्तेमाल में लाते है | भारत को अरंडी का सबसे प्रमुख उत्पादक देश माना जाता है | जिसके बाद चीन और ब्राज़ील दूसरे और तीसरे नंबर पर आते है | अकेले भारत में ही तक़रीबन 10 लाख मीट्रिक टन अरंडी का उत्पादन प्रति वर्ष किया जाता है | जिसमे तेलंगाना, गुजरात, हरियाणा और राजस्थान राज्य इसके मुख्य उत्पादक राज्य है | यदि आप भी अरंडी की खेती व्यापारिक तौर पर करने का मन बना रहे है, तो इस लेख में आपको अरंडी की खेती कैसे करें (Castor Oil Farming in Hindi) तथा अरण्डी का भाव के बारे में जानकारी दी जा रही है |
अरंडी की खेती कैसे करें (Castor Oil Farming in Hindi)
अरंडी की खेती करने के लिए क्या क्या जरूरी होता है, इसकी विस्तृत जानकारी यहाँ दी गई है, इसका पालन करके किसान भाई अच्छी खेती के साथ अच्छा लाभ कमा सकते है, अरंडी की जानकारी प्रकार है:-
अरंडी की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी, जलवायु और तापमान (Castor Cultivation Suitable Soil, Climate and Temperature)
- इसकी खेती किसी भी उपजाऊ मिट्टी में की जा सकती है |
- इसकी खेती में भूमि उचित जल निकासी वाली अवश्य हो |
- अरंडी की खेती बंजर भूमि में कर सकते है |
- इसकी खेती क्षारीय भूमि में बिल्कुल न करे |
- भूमि का P.H. मान 5 से 6 के मध्य होना चाहिए |
- इसकी खेती किसी भी जलवायु में की जा सकती है, किन्तु शुष्क और आद्र जलवायु में इसके पौधे अच्छे से विकास करते है |
- सर्दियों में गिरने वाला पाला पौधों को कुछ हद तक हानि पहुँचाता है |
- आरम्भ में पौधों को विकास करने के लिए सामान्य तापमान की आवश्यकता होती है |
- फसल पकने के दौरान पौधों को उच्च तापमान की आवश्यकता होती है |
अरंडी की उन्नत किस्में (Castor Improved Varieties)
व्यापारिक तौर पर की जाने वाली अरंडी की खेती के लिए बाज़ारो में कई तरह की उन्नत किस्में देखने को मिल जाती है | यह सभी किस्में दो प्रजातियों में विभाजित की गयी है, जिसमे साधारण और संकर प्रजाति शामिल है |
प्रजाति | उन्नत किस्म | तेल की मात्रा | उत्पादन समय | उत्पादन |
साधारण प्रजाति | ज्योति | 50 प्रतिशततक | 140 से 160 दिनमें | 14 से 16 क्विंटल प्रतिहेक्टेयर |
अरुणा | 52 प्रतिशततक | 170 दिन में | 15 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर | |
भाग्य | 54 प्रतिशततक | 150 दिनमें | 22 से 25 क्विंटलप्रति हेक्टेयर | |
क्रांति | 50 प्रतिशततक | 180 दिनमें | 18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर | |
ज्वाला 48-1 | 49 प्रतिशततक | 160 से 190 दिनमें | 16 से 18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर | |
संकर प्रजाति | आर एच सी 1 | 50 प्रतिशततक | 100 दिनमें | 30 से 35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर |
जी सी एच 4 | 48 प्रतिशततक | 90 से 110 दिनमें | 18 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर | |
डी सी एस 9 | 48 प्रतिशततक | 120 दिनमें | 25 से 27 क्विंटलप्रति हेक्टेयर |
अरंडी के खेत की तैयारी (Castor Field Preparation)
अरंडी के पौधों की जड़े भूमि में अधिक गहराई तक जाती है | इसलिए इसकी खेती में मिट्टी भुरभुरी होनी चाहिए | इसके लिए खेत की सबसे पहले गहरी जुताई कर दी जाती है | इससे खेत में मौजूद पुरानी फसल के अवशेष पूरी तरह से नष्ट हो जाते है | खेत की जुताई के बाद उसे कुछ समय के लिए ऐसे ही खुला छोड़ दिया जाता है, इससे खेत की मिटटी में सूर्य की धूप ठीक तरह से लग जाती है, और मिटटी में मोजूद हानिकारक तत्व नष्ट हो जाते है |
खेत की पहली जुताई के बाद उसमे प्राकृतिक खाद के रूप में 15 से 20 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद को डालना होता है | खाद डालने के बाद जुताई कर मिट्टी में खाद को ठीक तरह से मिला दे | इसके बाद खेत में पानी लगाकर पलेव कर दे | पानी लगे खेत में जब पानी सूख जाता है, तो उसकी दो से तीन तिरछी जुताई कर दी जाती है | इससे खेत की मिट्टी भुरभुरी हो जाती है| इसके बाद खेत में पाटा लगाकर भूमि को समतल कर दिया जाता है |
समतल भूमि में जल भराव की समस्या नहीं होती है| यदि आप अरंडी की खेती में रासायनिक खाद का इस्तेमाल करना चाहते है, तो उसके लिए आपको खेत की आखरी जुताई के समय 200KG जिप्सम और 20 KG सल्फर की मात्रा को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से डालना होता है| इसके अलावा मशीन के माध्यम से खेत की गहराई में 40 KG एन. पी. के. की मात्रा को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से देना होता है |
अरंडी के बीजो की रोपाई का सही समय और तरीका (Castor Seeds Planting Right time and Method)
अरंडी के बीजो की बुवाई के लिए ड्रिल विधि का इस्तेमाल किया जाता है | इसके लिए खेत में चार फ़ीट की दूरी रखते हुए पंक्तियों को तैयार कर लिया जाता है | इन पंक्तियों में बीजो को दो से ढाई फ़ीट की दूरी पर लगाया जाता है | इसके अलावा यदि आप चाहे तो बीज रोपाई हाथ के माध्यम से भी कर सकते है |
एक हेक्टेयर के खेत में संकर क़िस्म के 11 से 15 किलो बीज तथा साधारण प्रजाति के तक़रीबन 20 किलो बीजो की आवश्यकता होती है | बीज रोपाई से पूर्व उन्हें कार्बेन्डाजिम की उचित मात्रा से उपचारित कर लेते है | अरंडी के बीजो की रोपाई के लिए जून और जुलाई का महीना सबसे उचित होता है |
अरंडी के पौधों की सिंचाई (Castor Plant Irrigation)
अरंडी के बीजो की बुवाई बारिश के मौसम में की जाती है, जिस वजह से इसे पहली सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है | किन्तु बारिश के मौसम के पश्चात् पौधों को 18 से 20 दिन के अंतराल में पानी देना होता है | इसके पौधों को अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है | जिस वजह से इसके पौधों को जरूरत पढ़ने पर ही पानी देना होता है |
अरंडी के पौधों पर खरपतवार नियंत्रण (Castor Plants Weed Control)
इसके पौधों को आरम्भ में खरपतवार नियंत्रण की अधिक जरूरत होती है | इसके लिए जब फसल में आरम्भ में खरपतवार दिखाई दे तो तुरंत गुड़ाई कर उन्हें निकाल देना होता है | इसके पौधों को अधिकतम दो से तीन गुड़ाई की ही आवश्यकता होती है | यदि आप चाहे तो खरपतवार नियंत्रण के लिए रासायनिक विधि का भी इस्तेमाल कर सकते है | रासायनिक विधि में पेंडीमेथालिन की उचित मात्रा का छिड़काव बीज रोपाई से पूर्व खेत में करना होता है |
अरंडी के पौधे में लगने वाले रोग एवं उनकी रोकथाम (Castor Plant Diseases and Prevention)
झुलसा रोग
इस क़िस्म का रोग पौधों पर मध्य अवस्था में देखने को मिलता है | इस रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियों पर भिन्न-भिन्न आकार के धब्बे दिखाई देने लगते है, तथा कुछ समय पश्चात् ही यह धब्बे और बढ़ जाते है, जिससे पौधे प्रकाश संश्लेषण नहीं कर पाते है, और कुछ समय पश्चात ही पौधा सूख कर नष्ट हो जाता है | इस रोग से बचाव के लिए मैन्कोजेब की उचित मात्रा का छिड़काव पौधों पर करना होता है |
उकठा रोग
अरंडी के पौधों पर यह रोग फूल बनने के दौरान देखने को मिलता है | इस क़िस्म का रोग पौधों पर फ्यूजेरियम आक्सीस्पोरियम नामक फफूंदी की वजह से लगता है | इस रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियों का रंग पीला होने लगता है, तथा कुछ समय पश्चात् ही पौधा पूरी तरह से नष्ट हो जाता है | अरंडी के पौधों को इस रोग से बचाने के लिए खेत में गोबर की खाद डालते समय ट्राइकोडर्मा विरिडी की उचित मात्रा का छिड़काव किया जाता है|
सफेद मक्खी रोग
सफ़ेद मक्खी का रोग पौधों की पत्तियों पर आक्रमण करता है | इस रोग से प्रभावित पौधों की निचली सतह पर सफ़ेद रंग के कीट नज़र आने लगते है | जो पत्तियों का रस चूसकर उन्हें हानि पहुंचाते है | इस रोग से बचाव के लिए नीम के तेल या निम्बीसिडीन की उचित मात्रा का छिड़काव किया जाता है |
अरंडी का भाव, फसल की कटाई, पैदावार और लाभ (Castor Harvest, Yield and Benefits)
अरंडी की उन्नत किस्में 120 से 150 दिन पश्चात् पैदावार देना आरम्भ कर देते है | जब इसके पौधों पर लगे बीजो का रंग भूरा या पीला दिखाई देने लगे उस दौरान पौधों की कटाई कर लेनी चाहिए | इसके सिकरे की कटाई के पश्चात् उन्हें अच्छी तरह से धूप में सूखा लिया जाता है | इसके बाद मशीन की सहायता से बीजो को अलग कर लिया जाता है |
एक हेक्टेयर के खेत से तक़रीबन 25 क्विंटल का उत्पादन प्राप्त हो जाता है | अरंडी का बाज़ारी भाव 5 हज़ार रूपए प्रति क्विंटल होता है | जिससे किसान भाई इसकी एक बार की फसल से सवा लाख तक की कमाई आसानी से कर सकते है |