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शिमला मिर्च की खेती ( Capsicum Farming ) से सम्बंधित जानकारी
शिमला मिर्च की खेती सब्जी फसल के रूप में उगाई जाती है | भारत में इसे पंजाब, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, हरियाणा और झारखण्ड में मुख्य रूप से उगाया जाता है | शिमला मिर्च में बीटा कैरोटीन और विटामिन ए, सी की उच्च मात्रा पाई जाती है, जिस वजह से शिमला मिर्च का सेवन शरीर के लिए काफी लाभदायक होता है | यह वजन को स्थिर रखने में भी मदद करता है, खाने के अलावा शिमला मिर्च का उपयोगऔषधीय रूप में भी करते है |
शिमला मिर्च की फसल कम समय और कम मेहनत में तैयार हो जाती है,जिस वजह से किसान भाई शिमला मिर्च की खेती करना पसंद करते है | इसकी उन्नत क़िस्मों से पीला, लाल, हरा और गुलाबी रंग का शिमला मिर्च उगाया जाता है, जिससे किसान भाई इसकी खेती कर अच्छा लाभ भी कमा सकते है | इस पोस्ट में आपको शिमला मिर्च की खेती कैसे करें (Capsicum Farming in Hindi) तथा मिर्च की सबसे अच्छी वैरायटी कौन सी है, इसके बारे में जानकारी दी जा रही है |
शिमला मिर्च की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी, जलवायु और तापमान (Capsicum Cultivation Suitable Soil, Climate and Temperature)
शिमला मिर्च की अच्छी फसल के लिए चिकनी दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है | इसके अलावा इसकी खेती के लिए उचित जल निकासी वाली भूमि का होना भी जरूरी होता है | इसकी खेती में भूमि का P.H. मान 6 के 7 से मध्य होना चाहिए | शिमला मिर्च की फसल के लिए नर्म और आद्र जलवायु की आवश्यकता होती है | इसके पौधे अधिक सर्दी और गर्मी को सहन नहीं कर पाते है |
इसकी खेती में तापमान अधिक और कम होने पर पैदावार पर असर पड़ता है | सामान्य तापमान में शिमला मिर्च के पौधे अच्छे से वृद्धि करते है | इसके पौधे अधिकतम 40 डिग्री तथा न्यूनतम 10 डिग्री तापमान को ही सहन का सकते है |
शिमला मिर्च की उन्नत किस्में (Capsicum Improved Varieties)
कैलिफोर्निया वन्डर
यह शिमला मिर्च की एक विदेशी किस्म है, जिसे अधिक पैदावार देने के लिए उगाया जाता है | इसका पौधा सामान्य आकार का होता है, जो पौध रोपाई के 75 दिन बाद पैदावार देना आरम्भ कर देता है | इसमें निकलने वाले फल हरे रंग के चमकीले होते है,शिमला मिर्च की यह किस्म प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 125 से 150 क्विंटल की पैदावार दे देती है |
येलो वन्डर
इस किस्म का पौधा बीज रोपाई के 60 दिन बाद फल देना आरम्भ कर देता है | इसमें निकलने वाले पौधों का आकार सामान्य होता है, जिसमे आने वाले फल गहरे रंग के होते है | यह किस्म प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 150 क्विंटल की पैदावार दे देती है |
सोलन हाइब्रिड –1 और 2
यह शिमला मिर्च की एक संकर किस्म है, जिसमे फल सड़न और जीवाणु किस्म के रोग देखने को नहीं मिलते है | इसके पौधे ज्यादातर बड़े आकार के होते है, तथा इसमें फलो का आकार भी आयताकार होता है | इस किस्म के पौधे 60 से 65 दिन बाद पैदावार देना आरम्भ कर देते है, जो प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 325 से 375 क्विंटल की उपज देती है |
सोलन भरपूर
इस किस्म को तैयार होने में 70 दिन का समय लग जाता है | इसमें निकलने वाले पौधों का आकार बड़ा होता है, तथा यह किस्म जीवाणु जनित और फल सड़न रोग रहित होती है | शिमला मिर्च की इस किस्म से 300 क्विंटल का उत्पादन प्राप्त हो जाता है |
पूसा दीप्ति
पूसा दीप्ति किस्म के पौधे पौध रोपाई के 70 दिन बाद उत्पादन देना आरम्भ कर देते है | इसका पौधा झाड़ीनुमा होता है, जिसमे आरम्भ में हरे रंग के फल निकलते है, किन्तु पकने के बाद इसके फलो का रंग लाल हो जाता है | यह किस्म प्रति हेक्टेयर में 300 से 350 क्विंटल की उपज देती है |
शिमला मिर्च के खेत की तैयारी और उवर्रक (Capsicum Field Preparation and Fertilizer)
शिमला मिर्च के खेत को तैयार करने के लिए उसके खेत की अच्छी तरह से जुताई कर दी जाती है | इसके बाद खेत की मिट्टी में धूप लगने के लिए कुछ समय के लिए उसे ऐसे ही खुला छोड़ दिया जाता है | इसके बाद खेत में प्राकृतिक खाद के रूप में 15 से 20 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद डालनी होती है | गोबर की खाद डालने के बाद जुताई कर खेत की मिट्टी में खाद को अच्छे से मिला दिया जाता है | यदि आप चाहे तो गोबर की खाद के स्थान पर कम्पोस्ट खाद का भी इस्तेमाल कर सकते है|
इसके बाद खेत में पानी लगा कर पलेव कर दिया जाता है | पलेव के बाद खेत की आखरी जुताई के समय एन.पी.के. की उचित मात्रा का छिड़काव करना होता है | यदि भूमि में सल्फर की मात्रा कम पाई जाती है, तो खेत में 60 KG सल्फर की मात्रा को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से देना होता है | इसके बाद खेत में पाटा लगाकर खेत को समतल कर दिया जाता है, इससे खेत में जलभराव की समस्या नहीं देखने को मिलती है |
शिमला के पौधों की रोपाई के लिए सही समय और तरीका (Shimla Plants Transplanting Right time and Method)
शिमला के पौधों की रोपाई बीज के रूप में सीधे तौर पर न करके पौध के रूप में की जाती है | इसलिए इसके पौधों की रोपाई से पहले बीजो को नर्सरी या खेतो में तैयार कर लेते है | बीजो को तैयार करने से पहले उन्हें बाविस्टिन की उचित मात्रा से उपचारित कर लिया जाता है | इसके अलावा यदि आप चाहे इसके पौधों की रोपाई के लिए पौधों को किसी रजिस्टर्ड नर्सरी से खरीद सकते है | इससे किसान के समय की बचत होती है, और पैदावार भी जल्द प्राप्त होती है | पौधों को खरीदते समय यह जरूर ध्यान दे कि पौधे बिलकुल स्वस्थ और एक महीने पुराने होने चाहिए |
इसके बाद पौधों की रोपाई के लिए खेत में मेड़ो को तैयार किया जाता है, तथा प्रत्येक मेड़ के मध्य तीन फ़ीट की दूरी रखी जाती है | पौध रोपाई में प्रत्येक पौध के बीच एक फ़ीट की दूरी रखी जाती है | शिमला मिर्च के पौधों की रोपाई के लिए जुलाई का महीना उचित माना जाता है | इसके अलावा शिमला मिर्च के पौधों की रोपाई जनवरी और सितम्बर के माह में भी की जाती है | शिमला मिर्च के पौधों की अच्छी देखभाल से 6 महीने तक पैदावार प्राप्त की जा सकती है |
शिमला मिर्च के पौधों की सिंचाई (Capsicum Plants Irrigation)
शिमला की खेती में पौधों की सिंचाई के लिए ड्रिप विधि का इस्तेमाल किया जाता है | इसके पौधों की प्रारंभिक सिंचाई पौध रोपाई के तुरंत बाद कर दी जाती है | इसकी फसल को अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है| ड्रिप विधि द्वारा पौधों की सिंचाई करने से इसके बीजो को बहने का खतरा नहीं होता है, तथा पौधों को पर्याप्त मात्रा में पानी भी प्राप्त हो जाता है | इसके लिए शिमला मिर्च के पौधों पर रोज20 मिनट तक सिंचाई करनी होती है |
शिमला मिर्च के पौधों पर खरपतवार नियंत्रण (Capsicum Plants Weed Control)
शिमला मिर्च के पौधों पर खरपतवार नियंत्रण के लिए प्राकृतिक तरीके का इस्तेमाल किया जाता है | यदि खरपतवार पर नियंत्रण नहीं किया जाता है, तो पैदावार अधिक प्रभावित होती है | इसके पौधों को 5 से 6 गुड़ाई की आवश्यकता होती है | शिमला मिर्च के पौधों की पहली गुडाई पौध रोपाई के तुरंत बाद कर दी जाती है | इसके बाद की गुड़ाई को 10 से 15 दिन के अंतराल में करना होता है |
शिमला मिर्च के पौधों में लगने वाले रोग एवं उनकी रोकथाम (Capsicum Plants Diseases and Prevention)
कीटों द्वारा रोग
शिमला मिर्च के पौधों पर सफ़ेद मक्खी, थ्रिप्स और माहो के रूप में कीट रोग देखने को मिलते है | यह कीट रोग पौधों की पत्तियों को अधिक हानि पहुंचाते है, जिससे पौधा ठीक से वृद्धि नहीं कर पाता है और कुछ समय पश्चात् ही पौधा सूखकर नष्ट हो जाता है | इस रोग की रोकथाम के लिए शिमला मिर्च के पौधों पर मिथाइल डेमेटान, मेलाथियान और डायमेथोएट की उचित मात्रा का छिड़काव किया जाता है |
पाउडर मिलोडी
इस किस्म का रोग पौधों की पत्तियों पर आक्रमण कर उन्हें हानि पहुँचाता है | इस रोग से प्रभावित पौधे की पत्तियों पर छिद्र दिखाई देने लगते है | यह रोग पत्तियों की निचली सतह पर आक्रमण करता है, जिसके बाद पत्तियों के नीचे सफ़ेद रंग का पॉउडर दिखाई देने लगता है | एक लीटर पानी में सल्फर की 2 GM की मात्रा को मिलाकर पौधों पर छिड़काव करने से इस रोग से बचा जा सकता है |
उकठा रोग
इस किस्म का रोग अक्सर औषधीय पौधों और सब्जियों पर देखने को मिलता है| यह रोग पौधों की जड़ो पर आक्रमण कर उन्हें गलाकर नष्ट कर देता है | उकठा रोग ज्यादातर बारिश के मौसम में पौधों पर देखने को मिलता है, जिसके बाद पौधा मुरझा जाता है, और कुछ समय पश्चात् ही सूखकर नष्ट भी हो जाता है | इस रोग की रोकथाम के लिए खेत की पहली जुताई के बाद भूमि में धूप लगने के लिए उसे ऐसे ही खुला छोड़ दिया जाता है | इससे मिट्टी में मौजूद जीवाणु नष्ट हो जाते है | इसके अतिरिक्त ब्लीचिंग पाउडर का छिड़काव खेत में पौध रोपाई से पहले करनी होती है |
मोजेक रोग
इस किस्म का रोग पौधों पर विषाणु के रूप में आक्रमण करता है | इस रोग से प्रभावित पौधों की पत्तिया सिकुड़कर छोटी होने लगती है, तथा रोग से अधिक बढ़ने पर पत्तिया कठोर होकर गोल आकार ले लेती है, और कुछ समय पश्चात् ही पीली पड़कर नष्ट होने लगती है | इस रोग से बचाव के लिए कार्बोफ्यूरान 3 जी की उचित मात्रा से मिट्टी को उपचारित कर ले | इस रोग के लक्षण अधिक दिखाई देने पर डाइमिथोएट 30 ई सी या इमिडाक्लोप्रिड की उचित मात्रा का छिड़काव पौधों पर करना होता है |
शिमला मिर्च के फलो की तुड़ाई, पैदावार और लाभ (Capsicum Fruit Harvesting, Yield and Benefits)
शिमला मिर्च के फल पौध रोपाई के 60 से 70 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते है | जब इसके फलो का रंग आकर्षक दिखाई देने लगे उस दौरान इसकी तुड़ाई कर ली जाती है| शिमला मिर्च के एक हेक्टेयर के खेत से 250 से 500 क्विंटल की पैदावार प्राप्त हो जाती है | जिससे किसान भाई शिमला मिर्च के एक हेक्टेयर के खेत से पैदावार प्राप्त कर 3 से 5 लाख तक की अच्छी कमाई कर सकते है |