काले अंगूर की खेती | Black Grapes Benefits in Hindi (Kale Angur)


काले अंगूर (Black Grapes) से सम्बंधित जानकारी

अंगूर की खेती स्वादिष्ट फल के लिए की जाती है | अंगूर का नाम सुनते ही सभी लोगो के मुँह में पानी आ जाता है | इसका रसीलापन और स्वाद लोगो को काफी भांता है | अंगूर का फल खाने में अधिक स्वादिष्ट तो होता ही है, साथ ही इसके कई स्वास्थ फायदे भी है | अपने इन गुणों के कारण ही अंगूर की मांग बाजार में अच्छी खासी रहती है | सामान्य तौर पर बाजार में आपको कई रंग वाले अंगूर मिल जाएंगे, किन्तु सबसे ज्यादा लोकप्रिय जो अंगूर है, वह है काला अंगूर |




काले अंगूर को लोगो द्वारा अधिक पसंद किया जाता है, जिस वजह से इसकी मांग भी काफी रहती है | काला अंगूर अपने रंग की वजह से लोगो को अपनी और अधिक आकर्षित करता है, तथा इसमें अन्य अंगूरों के मुकाबले कई सारे गुण पाए जाते है | किसान भाई काले अंगूर की खेती कर लाखो की कमाई आसानी से कर रहे है, अगर आप भी काले अंगूर की बागबानी करना चाहते है, तो इस लेख में आपको काले अंगूर की खेती (Black Grapes Benefits in Hindi (Kale Angur)) के बारे में विस्तार से बता रहे है |

अंगूर की खेती कैसे होती है

काले अंगूर की विशेषताए (Black Grapes Characteristics)

काले अंगूर का सेवन करने से वजन कम होता है, तथा इस अंगूर का इस्तेमाल कर जूस, जेली, जैम और शराब बनाई जाती है | यही वजह है, कि काले अंगूर को मंडियों में अच्छे दामों पर बेचा और ख़रीदा जाता है| बड़े – बड़े माल्स और फ़ूड मार्ट जहा पर फलसब्जी को विक्रय किया जाता है, वहां पर साधारण अंगूर के मुकाबले काले अंगूर का भाव ज्यादा होता है | इसके भाव खुदरा और थोक दोनों ही अधिक होता है | अच्छा भाव मिलने की वजह से किसानो के लिए हरे अंगूर के उत्पादन के मुकाबले काले अंगूर का उत्पादन करना फायदेमंद साबित होता है | व्यावसायिक रूप से काले अंगूर का उत्पादन कर लाखो की कमाई भी की जा रही है |

भारत में काले अंगूर की खेती (Black Grapes Cultivation in India)

भारत में नाशिक को अंगूर की राजधानी कहा जाता है, और नाशिक को ही अंगूर निर्यात में सबसे अच्छा जाना जाता है| इसके अलावा काले अंगूर को आंध्रप्रदेश, मिजोरम, कर्नाटक, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, पंजाब और हरियाणा राज्य में उगाया जाता है |

काले अंगूर की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी एवं जलवायु (Black Grapes Cultivation Suitable Soil and Climate)

काले अंगूर के जड़ो की बनावट काफी मजबूत होती है | जिस वजह से इसका पौधा रेतीली, चिकनी, कंकरीली, उथली और गहरी मिट्टी में सफलतापूर्वक उगता है | किन्तु उचित जल निकासी वाली दोमट, रेतीली मिट्टी को अंगूर की खेती के लिए उपयुक्त पाया गया है | इसकी खेती में भूमि शुष्क, गर्म और दीर्घ ग्रीष्म ऋतु अनुकूल होती है |

काले अंगूर की उन्नत किस्में (Black Grapes Improved Varieties)

  • अरका श्याम :- यह क़िस्म काला चंपा और बंगलौर ब्लू के बीच का क्रॉस है| इसमें निकलने वाली बेरिया काली चमकदार, मध्यम लंबी, बीजदार, अंडाकार और हल्के स्वाद वाली होती है | इस क़िस्म के अंगूरों को शराब बनाने के उद्देश्य से उगाया जाता है, तथा यह एंथराकनोज के प्रति प्रतिरोधक होती है |
  • अरका नील मणि :- काले अंगूर की यह क़िस्म ब्लैक चंपा और थॉम्पसन के बीच का एक बीजरहित क्रास है, जिसकी बेरिया बीजरहित काली, 20-20% TSS और खस्ता लुगदी वाली होती है | इस क़िस्म की औसतन पैदावार 28 टन प्रति हेक्टेयर है, और यह एंथराकनोज के प्रति सहिष्णु है | इस क़िस्म को तालिका उद्देश्य और शराब बनाने के लिए उपयुक्त माना गया है |
  • अरका कृष्णा :- यह क़िस्म ब्लैक चंपा और थॉम्पसन बीजरहित के मध्य क्रास से विकसित है | इसमें निकलने वाली बेरी काले रंग की बीज रहित और अंडाकार गोल रहती है| इसमें 20-21% टीएसएस पाया जाता है | काले अंगूर की इस क़िस्म से 33 टन प्रति हेक्टेयर की पैदावार मिल जाती है | इसे जूस बनाने के लिए अधिक इस्तेमाल करते है|
  • अरका राजसी :- यह क़िस्म ब्लैक चंपा और अंगूर कलां के मध्य का एक क्रॉस है, जिसमे एकसामान, गोल, गहरे भूरे रंग की बीजदार बेरिया निकलती है| इसमें 18 से 20% टीएसएस होता है | यह पौधा एनथराकनोज के प्रति सहिष्णु है | इस क़िस्म की औसतन पैदावार 38 टन प्रति हेक्टेयर है | 
  • बंगलौर ब्लू :- काले अंगूर की यह क़िस्म मुख्य रूप से कर्नाटक में उगाई जाती है | इसमें निकलने वाली बेरिया गहरे बैंगनी रंग की, बीजदार, छोटे आकार की अंडाकार होती है | इसके फल से निकलने वाला रस साफ़, बैंगनी रंग का आनन्दमयी सुगंधित और 16 से 18% TSS वाला होता है | इस फल की क्वालिटी काफी अच्छी होती है, जिस वजह से इसे शराब और जूस बनाने के लिए इस्तेमाल करते है | यह क़िस्म एन्थराकनोज प्रतिरोधी और कोमल फफूदी के प्रति अतिसंवेदनशील मानी जाती है |
  • गुलाबी :- इस क़िस्म को तमिलनाडु में उगाया जाता है | इसमें निकलने वाली बेरिया गहरे बैंगनी रंग की, आकार में छोटी, गोलाकार और बीज रहित होती है | इसमें 18-20% टीएसएस होता है | काले अंगूर की इस क़िस्म की क्वालिटी काफी अच्छी होती है, जिस वजह से यह टेबल प्रयोजन के लिए उपयोग में लायी जाती है | यह जंग और कोमल फफूंद के प्रति अतिसंवेदनशील और क्रैकिंग के प्रति संवेदनशील नहीं है |

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काले अंगूर का कलम द्वारा रोपण (Black Grape Grafting)

काले अंगूर का प्रवर्धन करने के लिए कटिंग का इस्तेमाल किया जाता है | इसके लिए जनवरी माह में ही कटाई – छटाई से निकली टहनियों से कलम को लिया जाता है | टहनियों से ली गई कलम सदैव स्वस्थ होनी चाहिए | कलम सामान्यता 23 -45 CM लंबी और 4-6 गाँठ वाली होनी चाहिए | कलम तैयार करने के दौरान कलम के नीचे लगाया गया कट गांठ के नीचे होना चाहिए व ऊपर तिरछा कट लगाए | इन कलमों को अच्छे से तैयार कर सतह से ऊँची क्यारियों में लगाए | जब कलम एक वर्ष पुरानी हो जाए तो उन्हें जनवरी के माह में नर्सरी से निकाल ले और उन्हें बगीचे में रोप दे |

काले अंगूर के बेलों की रोपाई (Black Grape Vine Planting)

काले अंगूर के बेलो की रोपाई से पूर्व मिट्टी का परीक्षण करना जरूरी होता है | बेल के मध्य की दूरी को विशेष किस्म और साधने की पद्धति के आधार पर तय किया जाता है | बेलो को लगाने के लिए और सभी चीजों को ध्यान में रखकर 90 CM आकार वाले गड्डे खोदने के पश्चात् उन्हें 1/2 मिट्टी और 1/2 भाग सड़ी गोबर खाद के साथ 1 KG सुपर फास्फेट, 30 GM क्लोरिपाईरीफास, 500 GM पोटेशियम सल्फेट को अच्छे से मिलाकर गड्डे में भर दे | इसके बाद जनवरी के महीने में इन गड्डो में 1 वर्ष पुरानी जड़वाली कलमों को लगाया जाता है, और उसके तुरंत बाद पानी लगा देते है |

काले अंगूर के बेलों की सधाई एवं छंटाई (Black Grape Vines Pruning and Pruning)

बेलो को उचित आकार और उनसे अच्छी फसल प्राप्त करने के लिए उन्हें साधना एवं कांट-छांट करना पड़ता है | बेलो को उचित आकार देने के लिए उनके गैर जरूरी भाग को काटकर हटा देना ही साधना कहलाता है | इसके अलावा बेल की शाखाओ से सामान्य रूप से वितरण लेने के लिए उनके किसी हिस्से की छंटनी ही छटाई कहलाती है |

काले अंगूर के बेलो की सिंचाई (Black Grape Vines Irrigation)

काले अंगूर के बेलो को नवंबर से दिसंबर तक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है | सुसुप्त अवस्था में होने के कारण इन्हे पानी की जरूरत नहीं होती है, लेकिन छंटाई के पश्चात् पानी देना होता है | इसके बाद फूल और फल आने (मार्च से मई) तक सिंचाई करे | इस दौरान पानी की कमी न होने अन्यथा उत्पादन एवं हुन्वात्ता दोनों पर ही बुरा असर देखने को मिल सकता है | तापमान और पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए बेलो को 7 से 10 दिन में पानी दे | इसके बाद जब फल पकना आरम्भ कर दे तो पानी देना बंद कर दे, वरना फलो में फटने और सड़ने की समस्या हो सकती है | फलों की तुड़ाई के पश्चात् एक बार सिंचाई अवश्य करे |

काले अंगूर की खेती में खाद एवं उर्वरक (Black Grapes Cultivation Manure and Fertilizer)

अंगूर की बेल भूमि से ही अधिक मात्रा में पोषक तत्वों को ग्रहण करती है | इसलिए मिट्टी की उवर्रकता को बनाए रखने एवं अच्छी गुणवत्ता वाली फसल का उत्पादन लेने के लिए भूमि में खाद व उवर्रक द्वारा पोषक तत्वों की पूर्ती की जाती है | पण्डाल विधि द्वारा लगाई गई बेल के मध्य 3 X 3 मीटर की दूरी रखी जाती है, तथा 5 वर्ष पुरानी बेल में 700 GM म्यूरेट ऑफ़ पोटाश, 500 GM नाइट्रोजन, 700 GM पोटेशियम सल्फेट और 50-60 किलोग्राम गोबर खाद डालनी चाहिए | बेल छटाई के पश्चात् जनवरी के आखरी हफ्ते में पोटाश व नाइट्रोजन की आधी मात्रा व फास्फोरस की पूरी मात्रा डालनी चाहिए | शेष बची मात्रा को फल आने के बाद दे | खाद को मुख्य तने से दूर और 15-20 CM गहराई में डाले और खाद देने के पश्चात् ही सिंचाई कर दे |

काले अंगूर की पैदावार और लाभ (Black Grapes Yield and Benefits)

भारत में अंगूर का औसतन उत्पादन 30 टन प्रति हेक्टेयर के आसपास है | जो कि विश्व का सबसे अधिक उत्पादन क्षेत्र है | अंगूर की पैदावार मिट्टी, जलवायु और पैदावार पर निर्भर करती है, किन्तु वैज्ञानिको ने तकनीकी पद्धति से एक पूर्ण विकसित बाग़ से 30 से 50 टन अंगूर की पैदावार प्राप्त की है | कमाई के नजरिये से काले अंगूर का बाज़ारी भाव औसतन 50 रूपए प्रति किलो होता है, और पैदावार 30 टन प्रति हेक्टेयर है | इस हिसाब से एक बाग से 15 लाख रूपए की कमाई आसानी से की जा सकती है | इसमें से अगर 5 लाख रूपए तक अधिकतम खर्च भी निकाल दे तो शुद्ध लाभ 10 लाख रूपए का बैठता है |

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