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बाँस की खेती (Bamboo Farming) से सम्बंधित जानकारी
बाँस की खेती सदाबहार पौधे के रूप में की जाती है | यह घास प्रजाति का पौधा होता है, जो की सबसे अधिक तेजी से बढ़ने वाला पौधा भी कहलाता है | बाँस की कुछ किस्में ऐसी है जिसके पौधे एक दिन में तकरीबन 90 CM तक बढ़ जाते है | बाँस के पौधा वायुमंडल में 35% तक ऑक्सीजन का निर्वाह करना है, तथा कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा को कम कर करता है | भारत को बाँस उत्पादन के मामले में विश्व में दूसरा स्थान प्राप्त है, वही चीन को बाँस उत्पादन में पहला स्थान प्राप्त है | पूरे विश्व में बाँस की तक़रीबन 1400 से अधिक प्रजातियों को उगाया जाता है |
बाँस की कटाई पर सरकार फॉरेस्ट एक्ट का कानून भी नहीं लगाती है | देश के वह किसान जो बंजर भूमि या जलवायु परिवर्तन से परेशान होकर किसी तरह की खेती करने में असमर्थ है, वह बाँस की खेती कर अच्छी कमाई कर सकते है | बाँस एक ऐसा पौधा जिसे किसी भी तरह की मिट्टी में उगाया जा सकता है | केंद्र सरकार द्वारा चलाई जा रहीं राष्ट्रीय बांस मिशन में किसानो को बाँस की खेती करने पर सब्सिडी भी प्रदान की जा रहीं है |
इसमें छोटे किसानो को सरकार प्रति बाँस के पौधे पर 120 रूपए तक की सहायता भी प्रदान कर रहीं है | वर्तमान समय में बाँस की 136 किस्मों को उगाया जा रहा है, जिसमे से 125 स्वदेशी तथा 11 विदेशी किस्में मौजूद है | कृषि मंत्रालय के अनुसार भारत में प्रति वर्ष 13.96 मिलियन टन बाँस का उत्पादन किया जाता है | बाँस के पौधे एक बार लग जाने के बाद 40 वर्ष तक उत्पादन देते है, जिससे किसान भाई बाँस की खेती कर अधिक समय तक लाभ कमा सकते है | यदि आप भी बाँस की खेती कर कई वर्षो तक लाभ कमाना चाहते है, तो इस लेख में बाँस की खेती कैसे करें (Bamboo Farming in Hindi) तथा बांस की कीमत के बारे में जानकारी दी जा रहीं है |
बाँस की खेती में मिट्टी, जलवायु और तापमान (Bamboo Cultivation Soil, Climate and Temperature)
बाँस की खेती के लिए किसी खास तरह की मिट्टी की जरूरत नहीं होती है, इसे किसी भी सूखी मिट्टी में ऊगा सकते है | किन्तु रेतीली दोमट मिट्टी में बाँस के पौधे अधिक तेजी से विकसित होते है | इसकी खेती में भूमि 4.5 से 6 P.H. मान वाली होनी चाहिए |
बाँस के पौधे उष्ण शीतोष्ण और उष्णकटिबंधीय जलवायु में अच्छे से विकास करते है | ऐसा कहा जाता है, कि इस जलवायु में बाँस के पौधे प्रति दिन 3 इंच तक बढ़ जाते है | इसके पौधों पर जलवायु परिवर्तन का कोई खास असर देखने को नहीं मिलता है | अधिक ठण्ड तथा दल-दल में भी पौधे ठीक से वृद्धि कर लेते है |
बाँस की उन्नत किस्में (Bamboo Improved Varieties)
सामान्य तौर पर बाँस की अनेको किस्मों को उगाया जाता है | किन्तु भारत में उगाई जाने वाली कुछ प्रजातियां ऐसी है, जिन्हे व्यापारिक तौर पर उगाया जाता है, जो इस प्रकार है :-
- बंबूसा बालकोआ
- बम्बूसा तुलदा
- डेंड्रोकलामस सख्त
- मेलोकन्ना बम्बूसोइड्स
- थ्रोस्टैचिस ओलिवेरि
- डेंड्रोकलामस हैमिल्टन
- बंबूसा वल्गरिस
- बम्बूसा नूतन
- बंबूसा बम्बोस
- बंबूसा पॉलीमोरफा
- बंबूसा पलिडा
- ऑक्सीटेनेंथेरा स्टॉक्सि
- डेंड्रोकालमुस गिगेंटस
- स्चिज़ोस्ताच्यम डुलोआ
- डेंड्रोकलामस ब्रांडिसि
- ओचलैंड्रा ट्रावनकोरिका
बाँस के पौधों की तैयारी (Bamboo Plants Preparation)
बाँस के बीजो की रोपाई पौध के रूप में की जाती है | इसके लिए नर्सरी में बीजो को तैयार कर लिया जाता है | नर्सरी में पौध तैयार करने के लिए 12 X 15 मीटर पर क्यारियों को तैयार कर लिया जाता है | इसके बाद 30 CM की गहरी खुदाई कर गड्डो में सड़ी गोबर की खाद को भर दिया जाता है, और गड्डो की सिंचाई कर दी जाती है | बीज रोपाई से पूर्व बीजो को तक़रीबन 8 घंटे तक पानी में भिगोकर रखना होता है | इस दौरान जो बीज ऊपर पानी पर तैरता दिखाई दे उसे निकाल कर फेक दे, और सतह पर बैठे बीजो की रोपाई क्यारियों में कर दे | 12 X 15 मीटर की क्यारी में तक़रीबन 500 GM बीजो की जरूरत होती है | बीजो को क्यारियों में लगाने से पहले उन्हें बी० एच० सी० रसायन के चूर्ण से उपचारित कर लिया जाता है | चूहों से बीजो को बचाने के लिए गैमेक्सीन का इस्तेमाल किया जाता है | बीजो के अंकुरण तक नमी बनाये रखने की जरूरत होती है | जब बीजो से प्रकन्द विकसित हो जाये तो उन्हें पॉलीथिन में लगाकर समय-समय पर सिंचाई करते रहना होता है, और पौध तैयार होने पर उन्हें खेत में लगा दिया जाता है |
बाँस के पौधों की रोपाई (Bamboo Plants Planting)
बाँस के पौधों की रोपाई खाली पड़ी भूमि या फिर खेत किनारे बाड़ की तरह की जाती है | इसके पौधों की रोपाई 5 मीटर की दूरी पर तैयार 0.3 मीटर गहरे गड्डे में की जाती है | इन गड्डो में तैयार प्रकंदो की रोपाई कर दी जाती है |
बाँस के पौधों की सिंचाई एवं खरपतवार नियंत्रण (Bamboo Plants Irrigation and Weed Control)
बाँस के पौधों को अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है | इसके पौधों को केवल आरम्भ में ही नमी की आवश्यकता होती है | कम वर्षा वाले क्षेत्र या शुष्क क्षेत्रों में मल्चिंग मिट्टी पानी को वाष्पीकृत होने से रोकती है | मिट्टी में नमी बनाये रखने के लिए सूखे कार्बनिक पदार्थो या सूखे पत्तो को गीला कर घांस की तरह पौधे के चारो और फैला दिया जाता है | जिससे अंकुरों को जन्म लेने में आसानी होती है |
बाँस के पौधों को खरपतवार से बचाना होता है, क्योकि खरपतवार बाँस की वृद्धि को पूरी तरह से रोक देता है | इसके लिए समय – समय पर पौधों के पास खरपतवार दिखाई देने पर निराई – गुड़ाई कर खर को निकाल दे |
बाँस के पौधों में लगने वाले रोग (Bamboo Plants Diseases)
- दीमक
- तराजू
- एफिड्स
- माइलबग्स
- बीटल कारों
बाँस के पेड़ो की कटाई और पैदावार (Bamboo Plants Cutting& Yield)
बाँस के पौधे सामान्य तौर पर 5 वर्ष में कटाई के लिए तैयार हो जाते है | इसकी कुछ किस्में कटाई के पश्चात अपने आप फिर से वृद्धि कर लेती है | इसके पेड़ो की कटाई पुलियो का चयन कर की जाती है | बाँस की कटाई मध्य बिंदु से की जाती है, जिससे नयी पुलियो का निर्माण बहार की और हो सके | इसके अलावा पुराने झुरमुट को केंद्र में ही छोड़ देते है |
कटाई के पश्चात् 10 की एक पुली बना ले, इस पुली का औसतन वजन 15-20 KG होता है | एक एकड़ की भूमि में 200 बाँस तक मिल जाते है, जो उत्पादन में तक़रीबन 13.5 टन तक होते है | चूँकि बाँस के पौधे एक बार लग जाने के बाद 40 वर्ष तक पैदावार दे देते है, तथा पौधों को तैयार होने में भी अधिक समय लग जाता है|
बांस की कीमत और लाभ
इसके अलावा एक बांस की कीमत लगभग 100 रु होती है, इसके अलावा आप इसकी पत्तियों को भी बेच सकते है | इस दौरान किसान भाई खाली पड़ी भूमि में अन्य फसलों का उत्पादन कर बाँस की फसल के तैयार होने तक अच्छी खासी कमाई कर सकते है | किसान भाइयो को बाँस की एक बार की फसल से भी अच्छा लाभ प्राप्त हो जाता है |