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अश्वगंधा की खेती ( Ashwagandha Farming) से सम्बंधित जानकारी
अश्वगंधा की खेती औषधीय फसल के रूप में की जाती है | इसका पौधा झाड़ीनुमा और बहुवर्षीय होता है | जिसमे निकलने वाली छाल, बीज और फल को अनेक प्रकार की दवाइयो को बनाने के लिए इस्तेमाल में लाते है | अश्वगंधा की जड़ो से अश्व (घोड़ा) की तरह ही गंध आती है, जिस वजह से इसे अश्वगंधा कहते है | अश्वगंधा के पौधों को सभी जड़ी-बूटियों में सबसे अधिक महारत हासिल है | चिंता और तनाव की समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए अश्वगंधा अधिक लाभकारी है | यह शरीर की ताकत को भी बढ़ाता है | महिलाओ के लिए यह बहुत ही लाभकारी औषधि है, जिस वजह से बाज़ारो में इसकी मांग अधिक मात्रा में बनी रहती है |
भारत में अश्वगंधा की खेती हरियाणा, आंध्रप्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, गुजरात, पंजाब, केरल और जम्मू कश्मीर में की जा रही है | अश्वगंधा का सम्पूर्ण पौधा इस्तेमाल में लाया जाता है, जिस वजह से किसान भाई इसकी खेती कर अधिक मात्रा में लाभ कमाते है | यदि आप भी अश्वगंधा की खेती कर अधिक मुनाफा कमाना चाहते है, तो इस लेख में आपको अश्वगंधा की खेती कैसे करे (Ashwagandha Farming In Hindi) तथा अश्वगंधा की खेती से कमाई के बारे में भी जानकारी से अवगत करा रहे है |
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अश्वगंधा की खेती कैसे करे (Ashwagandha Farming In Hindi)
यहाँ अश्वगंधा की खेती के लिए आवश्यक मिट्टी, जलवायु एवं तापमान (Ashwagandha Cultivation Soil, Climate and Temperature) कितना आवश्यक इस विषय में जानकारी कुछ इस तरह से है:-
अश्वगंधा की खेती के लिए उचित जल निकासी वाली भूमि की आवश्यकता होती है | इसकी खेती में लाल मिट्टी और बलुई दोमट मिट्टी की जरूरत होती है | अश्वगंधा की खेती के लिए 7.5 से 8 P.H. मान वाली भूमि की आवश्यकता होती है |
इसकी खेती के लिए शीतोष्ण जलवायु की आवश्यकता होती है | बारिश के मौसम में इसके पौधों को 500-750 मिली मीटर वर्षा की आवश्यकता होती है, क्योकि पौध विकास के लिए नम भूमि की आवश्यकता होती है | इसके पौधों को विकास करने के लिए 25 से 30 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है |
अश्वगंधा की तासीर (Ashwagandha Effect)
अश्वगंधा की तासीर अधिक गर्म होती है | इसलिए इसका सेवन करते समय बहुत ही कम मात्रा का उपयोग करे | इसके अलावा अश्वगंधा को अन्य जड़ी बूटियों के साथ इस्तेमाल करे, ताकि शरीर में अधिक गर्मी उत्पन्न न हो | जाड़ों के मौसम में इसका सेवन करना अच्छा माना जाता है |
अश्वगंधा के फायदे (Ashwagandha Benefits)
रोग प्रतिरोधक क्षमता
यह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है | कोरोना काल में डाक्टरों द्वारा शरीर की इम्युनिटी को बढ़ाने के लिए भी इसका सेवन करने के लिया कहा गया है | इसमें एंटी ऑक्सीडेंट गुणों की भरपूर मात्रा पायी जाती है, जो रोग प्रतिरोधक शक्ति को मजबूत करती है, जिससे आप कई प्रकार की बीमारियों से बच सकते है|
तनाव एवं डिप्रेशन में लाभकारी
यह मानसिक तनाव और डिप्रेश की समस्याओ को अधिक तेजी से दूर करता है | शरीर में होने वाले तनाव के चलते ब्लड का शुगर लेवल कम हो जाने के चलते आप टाइप 1 शुगर के शिकार हो सकते है, और आपका वजन भी तेजी से बढ़ सकता है | अश्वगंधा का नियमित रूप से सेवन कर आप कोर्टिसोल हार्मोन को नियंत्रित कर सकते है, जिससे आपको तनाव जैसी समस्या में 60 फीसदी तक लाभ प्राप्त होगा |
कैंसर में लाभकारी
अश्वगंधा में कैंसर रोधी गुणों की भरपूर मात्रा पायी जाती है | यह गुण शरीर में कैंसर सेल्स को बढ़ने से रोकता है, और इस भयावह बीमारी के संक्रमण को दूर रखने में सहायता करता है | कैंसर रोगी व्यक्तियों के शरीर में यह रिएक्टिव ऑक्सीजन स्पीशीज गुणों का निर्माण करता है, जिससे कैंसर में होने वाले कीमियोथेरेपी के साइड इफेक्ट का खतरा कम हो जाता है |
पुरुष के लिए अधिक लाभकारी
अश्वगंधा का सेवन पुरुषो की शारीरिक समस्याओं के लिए अधिक लाभकारी माना जाता है | यह पुरुषो में पुरुषतत्व का अधिक मात्रा में निर्माण कर बाँझपन की समस्या को दूर करता है | यह सीमेन को अधिक गाढ़ा करता है, जो बाँझपन की समस्या को ख़त्म करता है | इसके लिए पुरुषो को नियमित तौर पर एक चुटकी अश्वगंधा का सेवन दूध के साथ करना चाहिए |
कोलस्ट्रोल को कम करने में सहायक
अश्वगंधा में एंटी इंफ्लेमेंट्री औऱ एंटी ऑक्सीडेंट के भरपूर गुण पाए जाते है, जो कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करता है | जिससे दिल संबंधित होने वाली बीमारियों से खतरा कम हो जाता है | इसका नियमित रूप से सेवन करने पर दिल की मांसपेशियां मजबूत बनती है, औऱ हार्टअटैक के साथ ही दिल की अन्य बीमारियों के होने का खतरा भी कम हो जाता है |
अश्वगंधा की उन्नत किस्में (Ashwagandha Improved Varieties)
जवाहर अश्वगंधा 20
अश्वगंधा की यह एक उन्नत क़िस्म है, जिसे तैयार होने में 150 से 160 दिन का समय लग जाता है | जो प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 6 से 8 क्विंटल सूखी जड़ो का उत्पादन दे देती है |
डब्लू.स. 10, 134
इस क़िस्म को मंदसौर अनुसंधान केन्द्र के माध्यम से तैयार किया गया है | यह क़िस्म 155 से 165 दिन बाद पैदावार देना आरम्भ कर देती है, जिसका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 8 क्विंटल के आसपास होता है |
पौशिता किस्म
अश्वगंधा की इस क़िस्म को सीमेप लखनऊ के माध्यम से तैयार किया गया है | जिन्हे तैयार होने में 160 से 170 दिन का समय लग जाता है | यह क़िस्म प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 7 से 8 क्विंटल सूखी जड़ो का उत्पादन दे देती है |
अश्वगंधा के खेत की तैयारी (Ashwagandha Field Preparation)
अश्वगंधा की खेती करने से पहले उसके खेत को अच्छी तरह से तैयार कर लेना चाहिए | इसके लिए सबसे पहले खेत की गहरी जुताई कर दी जाती है, इससे खेत में मौजूद पुरानी फसल के अवशेष पूरी तरह से नष्ट हो जाते है| खेत की पहली जुताई के पश्चात् उसमे 15 से 18 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से देना होता है | इसके बाद खेत की दो से तीन तिरछी जुताई कर दी जाती है, इससे खेत की मिट्टी में गोबर की खाद ठीक तरह से मिल जाती है |
मिट्टी में खाद को मिलाने के पश्चात खेत में पानी लगा दिया जाता है | इसके बाद जब खेत की मिट्टी सूख जाती है, तो उसकी रोटावेटर लगाकर अच्छे से जुताई कर मिट्टी में मौजूद मिट्टी के ढेलो को तोड़ कर उसे भुरभुरा कर दिया जाता है | भुरभुरी मिट्टी में पाटा लगाकर खेत को समतल कर देते है | इसके बाद बीज रोपाई के लिए खेत में 20 CM की दूरी रखते हुए कतारों को तैयार कर लिया जाता है |
अश्वगंधा के बीज रोपाई का समय और तरीका (Ashwagandha Seed Planting Time and Method)
अश्वगंधा के बीजो की रोपाई बीज के माध्यम से की जाती है | बीज रोपाई के लिए छिड़काव और कतार दो विधियों का इस्तेमाल किया जाता है | कतार के माध्यम से रोपाई करने के लिए खेत में 20 CM की दूरी पर कतारों को तैयार कर लिया जाता है | इन कतारों में बीजो को 5 CM की दूरी पर लगाना होता है | इसके अलावा यदि आप बीजो की रोपाई छिड़काव विधि द्वारा करना चाहते है, तो उसके लिए आपको समतल खेत में बीजो का छिड़काव करना होता है |
उसके बाद खेत में हल्का पाटा लगाकर खेत में चला दिया जाता है, इससे बीज भूमि की कुछ गहराई में चला जाता है | एक हेक्टेयर के खेत में तक़रीबन 8 से 12 माह पुराने 10 से 12 KG बीजो की आवश्यकता होती है | बीज रोपाई से पहले उन्हें एम-45 या डायथेन एम. की उचित मात्रा से उपचारित कर ले | अश्वगंधा की खेती के लिए अगस्त का महीना सबसे उपयुक्त माना जाता है |
अश्वगंधा के पौधों की सिंचाई (Ashwagandha Plants Irrigation)
खरीफ के मौसम में की गयी अश्वगंधा की फसल को सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है | किन्तु रबी के मौसम में की गयी फसल के लिए अश्वगंधा के पौधों को 4 से 5 सिंचाई की जरूरत होती है| इसकी पहली सिंचाई पौधा रोपाई के 8 से 10 दिन बाद की जाती है, जिसके लिए ड्रिप विधि का इस्तेमाल करना सबसे अच्छा माना जाता है | उसके बाद की गुड़ाइयो को 20 से 25 दिन के अंतराल में करना होता है |
अश्वगंधा की फसल पर खरपतवार नियंत्रण (Ashwagandha Crop Weed Control)
अश्वगंधा की फसल में खरपतवार नियंत्रण की अधिक जरूरत नहीं होती है | प्राकृतिक विधि द्वारा खरपतवार नियंत्रण के लिए पौधों की नीलाई-गुड़ाई की जाती है| इसके खेत की पहली गुड़ाई 20 से 25 दिन बाद की जाती है, तथा जरूरत पड़ने पर ही दूसरी गुड़ाई करे | इसके अलावा यदि आप रासायनिक तरीके से खरपतवार को नष्ट करना चाहते है, तो उसके लिए आपको बीज रोपाई से पहले खेत में ग्लाइफोसेट 1.5 KG, ट्राइफ्लुरेलिन 2 KG, आईसोप्रोटूरान 0.5 का छिड़काव खेत में करना होता है |
अश्वगंधा की खेती से कमाई, पैदावार और खुदाई (Ashwagandha Digging, Yield and Benefits)
अश्वगंधा के पौधों को तैयार होने में 160 से 170 दिन का समय लग जाता है | जब इसके पौधों पर लगी पत्तियां पीली पड़कर गिरने लगे उस दौरान इसकी जड़ो की खुदाई कर ली जाती है | जड़ो की खुदाई से पहले खेत में पानी लगा दे, इससे जड़ो को निकलने में आसानी होगी | इसके बाद अश्वगंधा के पौधों को जड़ से उखाड़ ले |
पौधों को जड़ सहित उखाड़ने के पश्चात् उसके छोटे – छोटे टुकड़े कर ठीक तरह से धूप में सूखा ले, और फलो से बीज और पत्तियों को भी अलग कर ले| एक हेक्टेयर के खेत से तक़रीबन 6 से 8 क्विंटल अश्वगंधा की सूखी जड़ो का उत्पादन प्राप्त हो जाता है, तथा 50 KG बीज प्राप्त हो जाते है | अश्वगंधा का बाज़ारी भाव काफी अधिक होता है, जिससे किसान भाई इसकी एक बार की फसल से लाखो की कमाई कर सकते है |