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अरहर की खेती से सम्बंधित जानकारी
हमारे शरीर के लिए प्रोटीन बहुत ही लाभदायक होता है, यदि मानव शरीर को उपयुक्त मात्रा में प्रोटीन नहीं मिल पाता है, तो हमारे शरीर का मानसिक और शारीरिक विकास रुक जाता है | अरहर की दाल को प्रोटीन का स्त्रोत माना जाता है | हमारे देश में अरहर को अरहर,तुर,रेड ग्राम, पिजन पि (Pigeon) के नाम से भी जाना जाता है | भारत और दक्षिण अफ्रीका को अरहर दाल का जन्म स्थान कहा जाता है | प्रोटीन के अच्छे स्त्रोत के लिए लगभग सभी के घरो में अरहर की दाल का सेवन किया जाता है |
अरहर की दाल में तक़रीबन 21 से 22 प्रतिशत तक का प्रोटीन पाया जाता है | अरहर का बाजारी भाव भी काफी अच्छा होता है | जिससे किसान अरहर की खेती कर अच्छी कमाई भी कर सकते है | यदि आप भी एक किसान है, और अरहर की खेती करना चाहते है, तो इस पोस्ट में आपको अरहर की खेती कैसे होती है, Pigeon (Arhar) Farming in Hindi, अरहर की कीमत से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी के बारे में बताया जा रहा है |
अरहर की खेती (Pigeon (Arhar) Farming Hindi)
भारत के किसान वर्षो से अरहर की खेती के साथ बाजरा, ज्वार, उर्द और कपास को उगाते चले आ रहे है| भूमि के कटाव को रोकने के लिए कृषि वैज्ञानिको द्वारा अरहर की खेती को करने की सिफारिश की जाती है| इसकी खेती से हमें दाल के साथ-साथ सूखी लकड़ियों का प्रयोग टोकरी, छप्पर, मकान आदि की छत तथा ईंधन के रूप में भी किया जा सकता है|
भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में अरहर की खेती को लगभग 20% के क्षेत्र में उगाया जाता है | फतेहपुर, कानपुर, हमीरपुर, जालौन, प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश के वह जिले है जिनमे अरहर की अधिक पैदावार की जाती है |
अरहर की खेती के लिए उचित जलवायु और तापमान (Arhar Climate and Temperature For Farming)
अरहर के पौधे नम तथा शुष्क जलवायु वाले होते है | इसके पौधों की अच्छी वृद्धि के लिए नम जलवायु की आवश्यकता होती है | ऐसी जलवायु में पौधों में लगने वाले फूल, फली और दानो का विकास भी अच्छे से होता है | अत्यधिक बारिश वाले क्षेत्रों में इसकी फसल को नहीं करना चाहिए | 75-100 सेंटीमीटर बारिश वाले क्षेत्रों में इसकी खेती को किया जा सकता है |
अरहर की खेती के लिए उचित भूमि का चयन (Arhar Land Selection For Pigeon Farming)
यदि किसान भाई अरहर की अच्छी फसल करना चाहते है, तो उसके लिए उचित भूमि का चुनाव जरूरी होता है | जीवांश युक्त बलुई दोमट वा दोमट मिट्टी वाली भूमि को इसके खेती के लिए अच्छा माना जाता है | इसकी खेती के लिए उचित जल निकासी वाली ढालू जगह को सर्वोत्तम माना जाता है |
लवणीय तथा क्षारीय भूमि को इसकी फसल के उपयुक्त नहीं माना जाता है | इसके अलावा काली मृदा वाले खेत में भी सफलतापूर्वक इसकी फसल को उगाया जाता है | अधिक उत्पादन के लिए जल धारण व चूने की पर्याप्त मात्रा वाली जगह को उचित माना जाता है |
अरहर के खेत की तैयारी (Arhar Field Preparation)
अरहर की अच्छी फसल के लिए खेत को अच्छे से तैयार कर लेना चाहिए | सबसे पहले खेत को अच्छे से जुतवा दे | इसके बाद कल्टीवेटर से 2 व 3 बार जुताई कर दे | इसके बाद खेत को कुछ समय के लिए ऐसे ही छोड़ दे | जिससे खेत की मिट्टी में मौजूद कीड़े धुप से नष्ट हो जायेंगे | इसके बाद प्राकृतिक गोबर की खाद को खेत में डालकर जुताई कर अच्छे से मिला दे | इससे खेत में गोबर की खाद अच्छी तरह से मिल जाएगी | इसके बाद पाटा लगा कर एक बार फिर अच्छे से खेत को जुतवा दे | इस तरह से आपका खेत फसल लगाने के लिए तैयार हो जायेगा |
अरहर की उन्नत किस्मे (Arhar Varieties)
पारस :- अरहर की यह एक अगेती किस्म होती है, जिसे उत्तर प्रदेश तथा पश्चिम क्षेत्रों को इसके लिए उपयुक्त माना जाता है | इसमें फसल की बुवाई को जून माह के पहले सप्ताह कर देना चाहिए | अरहर की यह किस्म 130 से 140 दिनों फसल देने के लिए तैयार हो जाती है | इस पारस किस्म में प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 18-20 कुंतल की उपज प्राप्त होती है |
पूसा 992 :- पौधों की यह किस्म भी एक अगेती किस्म होती है, इस किस्म की फसल को खेत में 1 जून से 10 जून के मध्य लगा देना चाहिए | यह उकठा किस्म के लिए सहनशील है | इस किस्म में फसल 150 – 160 दिन में पककर तैयार हो जाती है | यह प्रति हेक्टयेर के हिसाब से 15-20 कुंतल की पैदावार देती है |
टा 21 :- अरहर की इस किस्म को 1 अप्रैल से जून के प्रथम सप्ताह में बुवाई के लिए उपयुक्त माना जाता है | टा 21 किस्म को उत्तर प्रदेश राज्य में लगभग सभी जगह उगाया जाता है | इस किस्म की फसल को तैयार होने में 160-170 दिन का समय लगता है | इसमें प्रति हेक्टयेर के हिसाब से 15-20 कुंतल की पैदावार होती है |
UPAS 120 :- अरहर की यह किस्म भी लगभग सभी जगह उगाया जाती है | इस किस्म की फसल की बुवाई को जून के पहले सप्ताह में किया जाना उचित माना जाता है | अगेती की अन्य किस्मो के मुकाबले यह किस्म अधिक तेजी से तैयार होती है | इसकी फसल को पककर तैयार होने में 130-140 दिन का समय लगता है | पैदावार के मामले में प्रति हेक्टेयर के हिसाब से इसमें 15 से 20 कुंतल की फसल होती है |
अरहर की देर से पकने वाली किस्मे (Arhar Late Ripening Variety)
अरहर की कुछ ऐसी भी किस्मे होती है, जिनकी बुवाई देर से होती है, तथा फसल को तैयार होने में भी 260 से 280 दिन का समय लगता है | अगेती किस्मो की तुलना में देर से बौने वाली किस्म को तैयार होने में अधिक समय लगता है, किन्तु इसकी पैदावार थोड़ा अधिक होती है | इस किस्म की फसल में 25 से 30 कुंतल पैदावार आसानी से हो जाती है |
देर से बुवाई वाली किस्मे :- बहार , अमर, नरेंद्र अरहर -1, नरेंद्र अरहर -2, पूसा- 9, मालवीय विकास (MA-4) मालवीय चमत्कार (MA-6), PDA-11, आज़ाद, इन किस्मो में बाँझ रोग, उकठा रोग आदि के लगने का खतरा नहीं होता है |
अरहर की बुवाई का सही समय (Arhar Sowing Correct Time)
अरहर की फसल में अच्छी पैदावार को तैयार करने के लिए वैज्ञानिक तरीको का इस्तेमाल करना चाहिए | अरहर की बुवाई को अगेती व सिंचाई वाले इलाको में 15 जून तक व देर से पकने वाली किस्मो को जुलाई माह करना चाहिए | सरल भाषा में कहे तो 270 अधिक दिन में तैयार होने वाली फसल को जुलाई महीने में लगा देना चाहिए | टा-21 प्रजाति की अच्छी पैदावार के लिए 15 अप्रैल तक बुवाई कर देनी चाहिए | इस नियमो का पालन कर बुवाई करने से तीन तरह के लाभ प्राप्त होते है |
- फसल नवंबर के मध्य तक तैयार हो जाती है जिससे गेहू की बुवाई में देरी नहीं होती है |
- जून में खरीफ की बोई गई फसल से इसकी फसल अधिक होती है |
- मेड़ो पर बौने से पैदावार अच्छी होती है |
अरहर के बीजो को कैसे उपचारित करे (How to Treat Pigeonpea Seeds)
सबसे पहले एक किलो बीज को 2 ग्राम थीरम तथा एक ग्राम कार्बोन्डाजिम के मिश्रण अथवा 4 ग्राम ट्रइकोडर्मा + 1 ग्राम कारबाक्सिन या कार्बिन्डाजिम से उपचारित कर लेना चाहिए | खेत में बीजो को बौने से पहले प्रत्येक बीज को अरहर के विशिष्ट राइजोबियम कल्चर से उपचारित कर लेना चाहिए |
इसके बाद 10 किलोग्राम बीजो के ऊपर एक पैकेट का छिड़काव करना चाहिए | जब बीच अच्छे से उपचारित हो जाये तो उन्हें तुरंत खेत में बो देना चाहिए | अत्यधिक धूप से कल्चर के जीवाणुओं के नष्ट की आशंका बढ़ जाती है | उन जगहों पर कल्चर का इस्तेमाल जरूर करना चाहिए, जहाँ पर अरहर की बुवाई को पहली बार किया गया है |
अरहर के बीजो की बुवाई का तरीका (Arhar Sowing Method)
खेत के ठीक तरह से तैयार हो जाने के बाद बीजो को बौने के लिए सही प्रजाति और मौसम को जरूर ध्यान में रखना चाहिए | प्रत्येक बीज को बौने के लिए बीजो के बीच में उचित दूरी होनी चाहिए | यदि बुवाई करते समय रिज विधि का इस्तेमाल किया जाता है, तो पैदावार अच्छी होती है |
खेत में बीजो को बौने के लिए अगेती किस्म के 12 से 15 किलो ग्राम तथा पछेती किस्म में 15-18 किलो ग्राम बीज की मात्रा को उपयुक्त माना जाता है| बुवाई करते समय प्रत्येक बीज के बीच में 20 सेंटीमीटर तथा प्रत्येक रोह के बीच में 60 सेंटीमीटर की दूरी होनी चाहिए |
अरहर की खेती में खाद तथा उवर्रक की सही मात्रा (Pigeon Pea Cultivation Proper Amount of Manure and Fertiliser)
यदि आप अरहर की अच्छी पैदावार करना चाहते है, तो उसके लिए आपको 10-15 कि.ग्रा. नत्रजन, 40-45 कि.ग्रा. फास्फोरस तथा 20 किग्रा. सल्फर की आवश्यकता होती है| फास्फोरस युक्त उर्वरकों जैसे सिंगल सुपर फास्फेट, डाई अमोनियम फास्फेट को अरहर की अधिक पैदावार के लिए उपयोग में लाया जाना चाहिए |
सिंगिल सुपर फास्फेट प्रति हे. 250 कि.ग्रा. या 100 कि.ग्रा. डाई अमोनियम फास्फेट तथा 20 किग्रा. सल्फर पंक्तियों में बुवाई के समय चोंगा या नाई का उपयोग करना चाहिए | जिससे उवर्रक के बीजो का आपस में संपर्क न हो सके |
अरहर की खेती में सिंचाई का तरीका (Arhar Cultivation Irrigation Method)
अरहर की फसल को असिंचित दशा में बोया जाता है, इसलिए अधिक समय तक वर्षा न होने पर तथा पूर्व पुष्पकरण अवस्था व दाना बनते समय फसल की जरूरत के अनुसार सिंचाई करनी चाहिए | अच्छी पैदावार के लिए उचित जल निकासी वाली जगह का होना बहुत जरूरी होता है |
अरहर की खेती में खरपतवार नियंत्रण कैसे करे (Arhar Farming Control Weeds)
खेत में बीजो की रोपाई के तक़रीबन 60 दिन बाद तक खरपतवार की उपस्थिति फसल के लिए अधिक हानिकारक होती है| इसलिए इसके खरपतवार नियंत्रण के लिए पहली निराई-गुड़ाई 25-30 दिन तथा दूसरी निराई-गुड़ाई 45-60 दिन के बाद कर देनी चाहिए | खरपतवार नियंत्रण के लिए नीलाई गुड़ाई का तरीका सबसे उचित माना जाता है|
इसके अतिरिक्त यदि आप चाहे तो रासायनिक तरीको का इस्तेमाल कर भी खरपतवार पर नियंत्रण कर सकते है | इसके लिए आपको वैसालिन की एक कि0ग्रा0 सक्रिय मात्रा को 800-1000 ली0 पानी में घोलकर या लासो की 3 कि0ग्रा0 की उचित मात्रा को बीजो के अंकुरण से पहले छिड़काव कर खरपतवार पर नियंत्रण किया जा सकता है|
अरहर की फसल की कटाई का सही समय (The Right Time to Harvest The Pigeon pea Crop)
जब अरहर को पौधों पर लगने वाली फलियाँ 80 प्रतिशत तक पककर भूरे रंग की हो जाये, तब इसकी कटाई कर लेनी चाहिए | इसके बाद कटाई के 7 से 10 दिन बाद जब पौधे पूरी तरह से सूख जाये तो उसकी लकड़ी को पीट-पीट कर फलियों को अरहर के पौधों से अलग कर लेना चाहिए |
इसके बाद डंडे व बैलो का इस्तेमाल कर किसान भाई अरहर के दानो को निकाल सकते है | अरहर की दाल के निकाले गए दानो को 7 से 10 दिन तक धुप में अच्छे सूखा कर भंडारित कर लेना चाहिए |
अरहर की पैदावार और कीमत (Yield and Price of Pigeonpea)
अरहर की उन्नत किस्म में किसान भाई को एक हेक्टेयर के क्षेत्र में तक़रीबन 15-20 कुंतल अरहर की दाल, 50-60 कुंतल लकड़ी तथा 10-15 कुंतल भूसा प्राप्त हो जाता है | उत्तर प्रदेश में अरहर की दाल का बाजारी भाव किस्मो के आधार पर 80-100 रूपए किलो के हिसाब से होता है, जिसे बेचकर किसान भाई अच्छी कमाई कर सकते है |