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अरबी की खेती (Arabic Farming) से सम्बंधित जानकारी
अरबी की फसल सब्जी के रूप में उगाई जाती है, इसके पौधों में निकलने वाली अरबी कंद के रूप में होती है, जिस वजह से अरबी कंद वर्गीय फसल श्रेणी में शामिल है | भारत में अरबी की खेती लगभग सभी जगह की जाती है | गर्मी और बारिश के मौसम में इसके पौधे अच्छे से विकास करते है | अरबी का सेवन कच्चे के रूप में नहीं करना चाहिए, क्योकि कच्चे फल में कुछ जहरीले गुण होते है, जो शरीर के लिए काफी हानिकारक होते है | इस तरह के विषैले गुणों को पानी में डालकर भी नष्ट कर सकते है | सब्जी के अलावा अरबी का उपयोग औषधीय रूप में भी करते है | इसका सेवन करने से कई तरह की बीमारियों के छुटकारा पाया जा सकता है, किन्तु अधिक मात्रा में अरबी का उपयोग हानिकारक होता है |
इसके पौधो में निकलने वाले पत्तो का आकार भी केले के पत्तो की भांति चौड़ा होता है, जिन्हें सुखाने के बाद उनकी सब्जी और पकोड़ो को बना कर खा सकते है, इसके सूखे कंदों से आटा प्राप्त किया जाता है | किसान भाई अरबी की खेती अंतरवर्ती फसल के रूप में कर सकते है, जिससे उन्हें एक बार में ही दो फसलो का लाभ प्राप्त हो सकता है | यदि आप भी अरबी की खेती करने का मन बना रहे है, तो इस लेख में आपको अरबी की खेती कैसे करें (Arabic Farming in Hindi) तथा घुइयाँ की खेती कब होती है, इसके बारे में जानकारी दी जा रही है |
अरबी की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी, जलवायु और तापमान (Arabic Cultivation Suitable soil, Climate, Temperature)
अरबी की खेती किसी भी तरह की उपजाऊ मिट्टी में की जा सकती है | इसकी खेती के लिए उचित जल निकासी वाली भूमि की आवश्यकता होती है | बलुई दोमट मिट्टी इसकी खेती के लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती है | इसकी खेती में भूमि का P.H. मान 5.5 से 7 के मध्य होना चाहिए | उष्ण और समशीतोष्ण जलवायु को अरबी की खेती के लिए उपयुक्त माना जाता है|
इसके पौधे बारिश और गर्मियों के मौसम में अच्छे से विकास करते है, किन्तु अधिक गर्म और सर्द जलवायु इसके पौधों के लिए हानिकारक होता है | सर्दियों के मौसम में गिरने वाला पाला पौधों की वृद्धि रोक देता है | अरबी के कंद अधिकतम35 डिग्री तथा न्यूनतम 20 डिग्री तापमान में ही अच्छे से वृद्धि करते है | इससे अधिक तापमान पौधों के लिए हानिकारक होता है |
अरबी की उन्नत किस्में (Arabic Improved Varieties)
व्हाइट गौरैया
अरबी की यह किस्म रोपाई के तक़रीबन 180 से 190 दिन बाद पैदावार देने के लिए तैयार हो जाती है | इसके पौधों में निकलने वाले डंठल और कंद खुजलाहट मुक्त होते है | यह किस्म प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 170 से 190 क्विंटल की पैदावार दे देती है |
पंचमुखी
अरबी की यह किस्म बीज रोपाई के 180 से 200 दिन बाद खुदाई के लिए तैयार हो जाती है | इसके प्रत्येक पौधे में पांच मुख्य पुत्री कन्दिकायें होती है, जिस वजह से इसका पौधा पंचमुखी नाम से भी पुकारा जाता है | यह किस्म अधिक पैदावार देने के लिए उगाई जाती है, जो प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 200 से 250 क्विंटल की पैदावार दे देती है |
मुक्ताकेशी
मुक्ताकेशी किस्म कम समय में पैदावार देने के लिए उगाई जाती है | इसके पौधे कंद रोपाई के तक़रीबन 160 से 170 दिन पश्चात खुदाई के लिए तैयार हो जाते है | इसके पौधों और पत्तियों का आकार भी सामान्य होता है | इस किस्म के पौधे प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 200 क्विंटल की पैदावार दे देते है |
आजाद अरबी 1
इस किस्म के पौधों को जल्द उत्पादन देने के लिए तैयार किया गया है, जो बीज रोपाई के तक़रीबन 4 महीने बाद उत्पादन देना आरम्भ कर देते है | यह किस्म प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 280 क्विंटल की पैदावार दे देती है, जिसके पौधे सामान्य आकार के होते है |
नरेंद्र अरबी
अरबी की यह किस्म कंद रोपाई के 160 से 170 दिन बाद पैदावार देना आरम्भ कर देती है | इसका सम्पूर्ण पौधा खाने योग्य होता है, जो देखने में पूरा हरे रंग का होता है | यह किस्म प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 150 क्विंटल की पैदावार दे देती है, इसका पौधा सामान्य आकार का होता है |
इसके अलावा भी अरबी की कई उन्नत किस्मो को अलग-अलग स्थान और जलवायु के हिसाब से पैदावार देने के लिए तैयार किया गया है, जो कि इस प्रकार है :- पंजाब अरबी 1, ए. एन. डी. सी. 1, 2, 3, सी. 266, लोकल तेलिया, मुक्ता काशी, बिलासपुर अरूम, सफेद गौरिया, नदिया, पल्लवी, पंजाब गौरिया, सहर्षमुखी कदमा, फैजाबादी, काका कंचु, अहिना, सतमुखी, लाधरा और बंसी आदि |
अरबी के खेत की तैयारी और उवर्रक (Arbic Farm Preparation and Fertilizer)
अरबी की खेती के लिए भुरभुरी मिट्टी की आवश्यकता होती है | इसके लिए सबसे पहले खेत की मिट्टी पलटने वाले हलो से गहरी जुताई कर दी जाती है | इससे खेत में मौजूद पुरानी फसल के अवशेष पूरी तरह से नष्ट हो जाते है | जुताई के बाद खेत को कुछ समय के लिए ऐसे ही खुला छोड़ दिया जाता है, ताकि खेत की मिट्टी में अच्छी तरह से धूप लग सके और मिट्टी में मौजूद हानिकारक कीट पूरी तरह से नष्ट हो जाये | इसके बाद खेत में 15 से 17 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद, केंचुआ खाद खेत में डाल दी जाती है, इसके बाद खेत की जुताई कर दी जाती है, जिससे खेत की मिट्टी में गोबर की खाद अच्छे से मिल जाती है |
इसके बाद कल्टीवेटर लगाकर खेत की दो से तीन तिरछी जुताई कर दी जाती है, जो किसान भाई अरबी के खेत में रासायनिक उवर्रक का इस्तेमाल करना चाहते है, उन्हें आखरी जुताई के समय 40 KG, नाइट्रोजन, 50 KG पोटाश और 60 KG फास्फोरस की मात्रा को खेत में छिड़कना होता है | खेत में खाद को देने के बाद उसमे पानी लगा कर पलेव कर दिया जाता है, पलेव के पश्चात जब खेत की मिट्टी ऊपर से सूखी दिखाई देने लगती है, उस दौरान खेत में रोटावेटर लगाकर दो से तीन तिरछी जुताई कर मिट्टी को भुरभुरा कर दिया जाता है | मिट्टी के भुरभुरा होने के बाद पाटा लगाकर खेत को समतल कर देते है, इससे खेत में जलभराव की समस्या नहीं उत्पन्न होती है | इसके अलावा पौधों के विकास के समय खेत में सिंचाई के दौरान 20 से 25 KG यूरिया का छिड़काव करना होता है |
अरबी के बीजो की रोपाई का सही समय और तरीका (Arabic Seeds Sowing Right time and Method)
अरबी के बीजो की रोपाई कंद के रूप में की जाती है, कंद रोपाई के लिए एक हेक्टेयर के खेत में तक़रीबन 15 से 20 क्विंटल बीजो की आवश्यकता होती है | यह मात्रा कंद आकार और रोपाई की विधि पर निर्भर करती है | कंद की रोपाई से पहले उन्हें बाविस्टीन या रिडोमिल एम जेड- 72 की उचित मात्रा से उपचारित कर लिया जाता है | इसके बाद कंद की रोपाई दो तरीको से की जाती है, पहला समतल भूमि में क्यारियों में और दूसरा खेत में मेड़ को तैयार करके,इन दोनों ही तरीको में कंदो की रोपाई 5 CM की गहराई में की जाती है |
क्यारियों में की गई रोपाई में प्रत्येक नाली के मध्य दो फ़ीट की दूरी अवश्य रखी जाती है | इसके अलावा कंद से कंद के मध्य एक से डेढ़ फ़ीट की दूरी होनी चाहिए | मेड़ पर रोपाई करने के लिए खेत में डेढ़ से दो फ़ीट की दूरी रखते हुए नालीनुमा मेड़ को तैयार कर लिया जाता है | इन मेड़ो के मध्य नाली में ही कंद को डालकर मिट्टी से ढक देते है | अरबी के कंदो की रोपाई के लिए जून और जुलाई का महीना सबसे उचित होता है | गर्मियों के मौसम में पैदावार प्राप्त करने के लिए इसके कंदो की रोपाई फ़रवरी और मार्च माह के मध्य में की जाती है |
अरबी के पौधों की सिंचाई (Arabica Plants Irrigation)
बारिश के मौसम में पैदावार प्राप्त करने के लिए लगाए गए पौधों को अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है, उस दौरान इसके खेत में नमी की आवश्यकता होती है | जिस वजह से आरम्भ में इसके पौधों को सप्ताह में दो बार सिंचाई की आवश्यकता होती है | इसके अतिरिक्त यदि कंदो की रोपाई बारिश के मौसम में की गई है, तो इसके पौधों को अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है | यदि बारिश समय पर नहीं होती है, तो पौधों को 20 दिन के अंतराल में पानी दे देना चाहिए, अन्यथा बारिश होने पर जरूरत के हिसाब से ही सिंचाई करे |
अरबी के पौधों पर खरपतवार नियंत्रण (Arabic Plants Weed Control)
अरबी के पौधों पर खरपतवार नियंत्रण के लिए रासायनिक और प्राकृतिक दोनों ही विधियों का इस्तेमाल किया जा सकता है | किन्तु प्राकृतिक विधि द्वारा खरपतवार पर नियंत्रण पौधों के लिए उपयुक्त माना जाता है | प्राकृतिक तरीके में मल्चिंग विधि का इस्तेमाल किया जाता है, इस विधि में कंद रोपाई के बाद खेत में बनी पंक्तियों को छोड़कर शेष स्थान पर सूखी घास या पुलाव बिछाकर मल्चिंग की जाती है |
इसके बाद खेत में खरपतवार जन्म नहीं लेते है | रासायनिक तरीके से खरपतवार पर नियंत्रण पाने के लिए कंद रोपाई के तुरंत बाद पेंडामेथालिन की उचित मात्रा पानी में मिलाकर खेत में छिड़क दी जाती है |
अरबी के पौधों में लगने वाले रोग एवं उनकी रोकथाम (Arabic Plants Diseases and their Prevention)
एफिड
एफिड, माहू, और थ्रिप्स या तीनो एक ही प्रजाति के रोग है, जो कीट के रूप में पौधों के नाजुक अंगो और पत्तियों पर आक्रमण कर उनका रस चूस लेते है | इससे पौधे की पत्तिया पीली पड़ जाती है, और पौधे की वृद्धि भी पूरी तरह से रुक जाती है | इस रोग से पौधों को बचाने के लिए क्विनालफॉस या डाइमेथियोट की उचित मात्रा का छिड़काव पौधों पर किया जाता है | इसके अतिरिक्त 10 दिन के अंतराल में नीम के तेल का छिड़काव पौधों पर किया जाता है |
पत्ती अंगमारी
इस किस्म का रोग मुख्य रूप से पौधों की पत्तियों पर देखने को मिलता है | यह रोग फफूंद के रूप में पौधे की पत्तियों को प्रभावित करता है | इस रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियों पर भूरे रंग के गोल आकार के धब्बे दिखाई देने लगते है, तथा रोग का प्रभाव अधिक बढ़ने पर सम्पूर्ण पत्ती काले रंग की होकर नष्ट हो जाती है, और पौधा भी विकास नहीं कर पाता है, जिससे कंद भी छोटे आकार के ही रह जाते है | इस रोग से पौधों को बचाने के लिए फेनामिडोंन, मेन्कोजेब या रिडोमिल एम जेड- 72 की उचित मात्रा का छिड़काव पौधों पर किया जाता है |
गांठ गलन
गांठ जलन रोग एक मृदा जनित रोग है| इस किस्म का रोग पौधों की पत्तियों पर आक्रमण करता है, जिससे पत्तियों पर काले रंग के धब्बे दिखाई देने लगते है | रोग का प्रभाव अधिक बढ़ने पर पौधे की पत्तिया पीली पड़ कर नष्ट हो जाती है, और पौधे का विकास पूरी तरह से रुक जाता है | जिसके कुछ समय पश्चात् ही पूरा पौधा ख़राबहो जाता है | इस रोग से बचावके लिए जिनेब 75 डब्ल्यू पी की या एम 45 की उचित मात्रा पानी में मिलाकर पौधों पर छिड़काव करते है |
कंद सडन रोग
इस किस्म का रोग पौधों पर फफूंद के रूप में लगता है | यह रोग खेत में अधिक समय तक नमी और नम मौसम के रहने से देखने को मिलता है | यह रोग पौधों पर किसी भी अवस्था में आक्रमण कर सकता है | इस रोग से प्रभावित पौधे आरम्भ में मुरझाने लगते है, तथा कुछ समय पश्चात् सूखकर पूरी तरह से नष्ट हो जाते है | खेत में जलभराव की समस्या को रोककर इस रोग से पौधों को बचाया जा सकता है | जल भराव की स्थिति में बोर्डो मिश्रण का छिड़काव पौधों की जड़ो पर करना होता है |
अरबी के कंदो की खुदाई, सफाई, पैदावार और लाभ (Arabica Tubers Digging, Cleaning, Yield and Benefits)
अरबी की विभिन्न प्रकार की उन्नत किस्मो को तैयार होने में 170 से 180 दिन का समय लग जाता है | जब इसके पौधों की पत्तिया पीले रंग की दिखाई देने लगती है, उस दौरान कंदो की खुदाई कर ली जाती है | पौधों की खुदाई के पश्चात उन्हें साफ पानी से धोकर साफ कर ले | इसके बाद कंदो की छटाई की जाती है, छटाई में मातृ और पुत्री कंद को छाँटकर अलग कर लिया जाता है |
फसल में लगी हरी पत्तियों को भी बेचा जा सकता है | किस्मो के आधार पर अरबी के एक हेक्टेयर के खेत में 180 से 200 क्विंटल की पैदावार प्राप्त हो जाती है | जिसका बाज़ारी भाव 15 से 20 रूपए प्रति किलो होता है, जिससे किसान भाई अरबी की एक बार की फसल से तीन से चार लाख तक की कमाई कर अच्छा लाभ कमा सकते है |