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सेब की खेती (Apple Farming) से सम्बंधित जानकारी
सभी फलो में सेब (Apple) को एक निरोग फल के रूप में जाना जाता है, यदि आप रोज एक सेब का सेवन करते है, तो आप अनेक प्रकार की बीमारियों से छुटकारा पा सकते है | सेब दिखने में सामान्य रूप से लाल और हरे रंग का होता है | वैज्ञानिक भाषा में सेब को मेलस डोमेस्टिका (Melus domestica) कहा जाता है | यह मुख्य रूप से मध्य एशिया में उगाये जाते है, किन्तु इन्हे अब यूरोप में भी उगाया जाने लगा है, तथा इन्हे हज़ारो वर्षो से एशिया और यूरोप में उगाया जा रहा है |
इसके साथ ही यूरोप और ग्रीक में इसका धार्मिक महत्त्व है | सेब को खासकर ठन्डे प्रदेशो में उगाया जाता है | भारत देश में सेब को सबसे ज्यादा हिमाचल प्रदेश और जम्मू कश्मीर में उगाया जाता है, किन्तु वर्तमान समय में सेब की कई ऐसी किस्मो को तैयार किया गया है, जिन्हे अब मैदानी भागो में उगाया जा सकता है | सेब को आप खाने के अलावा जूस बना कर पीने में भी कर सकते है | यदि आप भी सेब की उन्नत खेती को करने का मन बना रहे है, तो इस पोस्ट में आपको सेब की खेती कैसे होती है, Apple Farming in Hindi, सेब की उन्नत किस्में आदि के बारे में सम्पूर्ण जानकारी दी जा रही है |
सेब की खेती कैसे की जाती है (Apple Farming)
सेब की खेती में पौधों पर सेब गुच्छो के रूप में लगते है | सेब का पौधा आरम्भ में झाड़ीनुमा दिखाई देता है | सेब हरे, लाल और पीले रंगो में पाए जाते है | सेब की खेती में दोमट मिट्टी को सबसे उपयुक्त माना जाता है | समुद्रीय तल से 1500 से 2700 मीटर की ऊंचाई पर सेब के पौधों को उगाया जाता है |
उपयुक्त मिट्टी जलवायु और तापमान
सेब की खेती को करने में गहरी उपजाऊ और दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है | इसकी खेती करने के लिए खेत ऐसा होना चाहिए, जहाँ जलभराव न होता हो, क्योकि जलभराव की स्थिति पौधों को कई तरह के रोगो से ग्रसित होने का दर होता है | इसके अतिरिक्त भूमि में डेढ़ से दो मीटर की गहराई तक चट्टानी मिट्टी नहीं होनी चाहिए, क्योकि इससे पौधों का विकास रुक जाता है | सेब की खेती में भूमि का P.H. मान 5 से 7 के मध्य होना चाहिए |
सेब की खेती में जलवायु का भी ध्यान रखना होता है, ठंडी जलवायु वाले प्रदेशो को सेब की खेती के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है | इसके पौधों को अच्छे से वृद्धि करने के लिए अधिक ठण्ड की आवश्यकता होती है| सर्दियों के मौसम में फलो के अच्छे विकास के लिए पौधों को लगभग 200 घंटे सूर्य की धूप की आवश्यकता होती है, किन्तु फूल निकलने के दौरान सर्दियों के मौसम में गिरने वाला पाला और बारिश दोनों ही इसकी फसल के हानिकारक होते है | ऐसी परिस्थितियों में फूलो पर फफूंदी जनित रोग लगने का खतरा होता है | इन्हे अधिक बारिश की भी आवश्यकता नहीं होती है |
सेब के पौधों को अच्छे से विकास करने के लिए ठन्डे तापमान की आवश्यकता होती है जिसमे 20 डिग्री तापमान पौधे के विकास के लिए काफी उपयुक्त माना जाता है | फलो के पकने के दौरान इन्हे 7 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है |
सेब की उन्नत किस्में (Apple Varieties)
वर्तमान समय में सेब की कई किस्मो को उगाया जाने लगा है | जिन्हे अलग – अलग जगहों की जलवायु के हिसाब से पैदावार के लिए तैयार किया गया है | सेब की उन्नत किस्में कुछ इस प्रकार है:-
सन फ्यूजी किस्म के सेब
इस किस्म में फलो का रंग काफी आकर्षक होता है | इसमें धारीदार गुलाबी रंग के सेब पाए जाते है | सेब की इस किस्म का गूदा स्वाद में मीठा, ठोस और थोड़ा कुरकुरा होता है | वह स्थान जहा पर फसल को पकने में काफी समय लगता है उस जगह के लिए इस किस्म के पौधों को तैयार किया गया है |
रैड चीफ किस्म के फल
सेब की इस किस्म में पौधा आकार में थोड़ा छोटा होता है | यह पौधे 5 फ़ीट की दूरी पर लगाए जाते है | यह गहरे लाल रंग के होते है, जिनपर सफ़ेद रंग के बारीक़ धब्बे दिखाई देते है | सेब के फलो की यह किस्म जल्दी पैदावार देने के लिए तैयार की गई है|
ऑरिगन स्पर
इस किस्म के पौधों में फल लाल रंग के होते है, तथा फलो पर धारिया बनी हुई भी नजर आती है | यदि फलो का रंग और गहरा लाल हो जाता है, तो यह धारिया मिट जाती है|
रॉयल डिलीशियस किस्म के पौधे
इसमें भी फलो का रंग लाल ही पाया जाता है, तथा इसमें फल गोल आकृति के होते है, किन्तु फल का ऊपरी भाग डंठल के पास हरे रंग के होते है | यह फल पकने में अधिक समय लेते है, लेकिन इसमें पैदावार काफी अच्छी होती है | इसमें फल पौधों पर गुच्छे की तरह लगते है|
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हाइब्रिड 11-1/12 किस्म के फल
फलो की यह एक संकर किस्म है, जिसमे फल अगस्त माह के मध्य तक बाजार में आना शुरू हो जाते है | इसमें फल लाल रंग और धारीदार होते है | फलो की इस किस्म को कम सर्दी पड़ने वाली जगहों पर भी उगाया जा सकता है, तथा इन फलो को अधिक समय तक रखकर भी उपयोग में ला सकते है | सेब की इस किस्म को रेड डिलिशियस और विंटर बनाना संकरण से तैयार किया गया है|
इसके अतिरिक्त भी सेब की कई किस्मे पायी जाती है, जिनमे टाप रेड, रेड स्पर डेलिशियस, रेड जून, रेड गाला, रॉयल गाला, रीगल गाला, अर्ली शानबेरी, फैनी, विनौनी, चौबटिया प्रिन्सेज, ड फ्यूजी, ग्रैनी स्मिथ, ब्राइट-एन-अर्ली, गोल्डन स्पर, वैल स्पर, स्टार्क स्पर, एजटेक, राइमर जैसी किस्मे मौजूद है जिन्हे अलग – अलग जगहों और अलग – अलग जलवायु में उगाया जाता है |
सेब के खेत और पौधों को कैसे तैयार करे
सेब के पौधों को खेत में लगाने से पहले खेत की अच्छी तरह से दो से तीन गहरी जुताई कर लेनी चाहिए | इसके बाद खेत में रोटावेटर चलवा दे, जिससे खेत की मिट्टी भुरभुरी हो जाएगी | इसके बाद ट्रैक्टर में पाटा लगवा कर चलवा दे, जिससे खेत बिल्कुल समतल हो जायेगा और जलभराव जैसी समस्या नहीं होगी | इसके बाद 10 से 15 फ़ीट की दूरी रखते हुए गड्डो को तैयार कर ले |
गड्डे एक फ़ीट गहरे और दो फ़ीट चौड़े होने चाहिए, इस तरह से गड्डो की पंक्तिया तैयार कर ले और प्रत्येक पंक्ति के बीच में 10 फ़ीट की दूरी होनी चाहिए | इसके बाद तैयार किये गए गड्डो में गोबर और रासायनिक खाद को डालकर मिट्टी में अच्छे से मिला दे | इसके बाद इन गड्डो की थोड़ी सिंचाई कर देनी चाहिए, जिससे मिट्टी ठीक से नीचे बैठ जाये और कठोर हो जाये | यह सभी गड्डे पौधों की रोपाई से एक डेढ़ महीने पहले तैयार कर लिए जाते है |
वह पौधे जिनकी रोपाई होनी होती है, पहले उन्हें भी तैयार करना होता है | इस पौधों को बीज और कलम के जरिये तैयार किया जाता है | कलम से पौधों को तैयार करने के लिए पुराने पेड़ो की शाखाओ को ग्राफ्टिंग और गूटी विधि से तैयार किया जाता है | इसके अतिरिक्त यदि आप चाहे तो किसी भी सरकारी रजिस्टर्ड नर्सरी से इन्हे खरीद सकते है |
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सेब का पौध रोपण (Apple Planting Seedlings)
पौधों की रोपाई खेत में तैयार किये गए गड्डो में जाती है | यह सभी गड्डे उचित दूरी पर तैयार किये जाते है |इस गड्डो के बीच में एक छोटा सा गड्डा तैयार कर उसे गोमूत्र से उपचारित कर लेते है | इसके बाद उन पौधों को इन गड्डो में लगा दिया जाता है | पौधों की जड़ो में अधिक समय तक नमी बनाये रखने के लिए गड्डो में मिट्टी के साथ नारियल के छिलके भी डाल सकते है |
नर्सरी से लाये गए पौधे एक साल पुराने और बिल्कुल स्वस्थ होने चाहिए | पौधों की रोपाई जनवरी और फ़रवरी के माह में की जाती है | इससे पौधों को ज्यादा समय तक उचित वातावरण मिलता है, जिससे पौधे अच्छे से विकास करते है |
सेब के पौधों की सिंचाई और उवर्रक की सही मात्रा (Apple Irrigation and Fertilizers)
सेब के पौधों की रोपाई ठंडियों के मौसम में की जाती है, इसलिए इन्हे अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है | लेकिन पौध रोपण के तुरंत बाद इनकी पहली सिंचाई कर देनी चाहिए | सर्दियों के महीने में केवल दो से तीन सिंचाई ही इसके पौधों के लिए पर्याप्त होती है, लेकिन गर्मियों के मौसम में इन्हे प्रत्येक हफ्ते में सिंचाई की जरूरत होती है | इसके अलावा बारिश के मौसम में जरूरत पड़ने पर ही इसकी सिंचाई करनी चाहिए |
सेब के पौधों को उवर्रक की सही मात्रा की आवश्यकता होती है | इसके लिए गड्डो को तैयार करते समय प्रत्येक गड्डे में 10 से 12 किलो गोबर की खाद के साथ N.P.K की आधा किलो की मात्रा को मिट्टी में अच्छे से मिला दे | उवर्रक की इसी मात्रा को पौधों को हर साल देना चाहिए | पौधों के विकास के साथ उवर्रक की मात्रा को बढ़ा देना चाहिए |
सेब की खेती में खरपतवार पर नियंत्रण (Weed Control)
सेब के पौधों की अच्छी वृद्धि के लिए खरपतवार पर नियंत्रण करना बहुत जरूरी होता है | इसके लिए खेत की निराई-गुड़ाई की जाती है | खरपतवार को रोकने के लिए रासायनिक तरीके का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए | इससे पौधों को हानि हो सकती है | खरपतवार पर पूरी तरह से रोकथाम के लिए खेत की समय – समय पर जब खेत में खरपतवार दिखाई दे तो उसकी निराई-गुड़ाई कर देनी चाहिए |
सेब के पौधों में लगने वाले रोग तथा उनकी रोकथाम (Diseases and Their Prevention)
सेब के पौधों में भी कई तरह के रोग देखने को मिल जाते है, इन रोगो के कारण पौधों का विकास रुक जाता है, तथा पैदावार भी काफी प्रभावित होती है | इस रोगो का उचित समय में उपचार कर फसल को होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है:-
सेब क्लियरविंग मोठ
इस तरह का रोग पौधों के पूरी तरह से विकसित हो जाने पर लगता है | इस रोग का लार्वा पौधे की छाल में छेद कर उसे नष्ट कर देता है | जिससे पौधों में अन्य तरह के जीव रोग लग जाते है, और पौधा संक्रमित हो जाता है | इस तरह के रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर क्लोरपीरिफॉस का छिडकाव 20 दिन में अंतराल में तीन बार करना चाहिए |
सफ़ेद रूईया कीट रोग
इस तरह का पौधों की पत्तियों पर देखने को मिलता है | सफ़ेद रूईया कीट रोग शुरुआत में खुद को सफ़ेद आवरण में ढककर रखता है | यह अंदर ही अंदर पत्तियों का रस चूसता रहता है, और पौधों की जड़ो में गांठे बनने लगती है, तथा रोग लगी पत्तिया सूखकर गिर जाती है | इमिडाक्लोप्रिड या मिथाइल डेमेटान से उपचारित कर इस रोग की रोकथाम की जा सकती है |
सेब पपड़ी रोग (Apple Scab Disease)
यह रोग सेब के फलो के लिए अधिक हानिकारक होता है | इस रोग के लग जाने से फलो पर धब्बे दिखाई देने लगते है तथा फल फटा-फटा दिखाई देने लगता है | फलो के अलावा यह रोग पत्तियों को भी प्रभावित करता है | जिससे पत्तिया आकार में टेढ़ी-मेड़ी हो जाती है, और पत्तिया समय से पहले ही गिर जाती है | इस रोग से बचाव के लिए बाविस्टिन या मैंकोजेब का छिड़काव पौधों पर उचित मात्रा में करना चाहिए |
इन रोगो के अलावा भी सेब के पौधों में कई तरह के रोग देखने को मिल जाते है, जिनमे पाउडरी मिल्ड्यू,कोडलिंग मोठ,रूट बोरर जैसे रोग शामिल है |
सेब के फलो की तुड़ाई पैदावार और लाभ (Harvesting Yields and Benefits)
सेब की फसल फूल आने के 130 से 140 दिनों में पककर तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है | जब फल पूरी तरह से अपने आकार में दिखाई देने लगे तथा रंग भी आकर्षक हो, तो यह तुड़ाई के लिए तैयार है | फलो को थोड़ा डंठल के साथ तोड़ना चाहिए, जिससे फल कुछ दिनों तक ताजे बने रहे | जब सभी फलो को तोड़ ले, तो इन्हे आकार और चमक के आधार पर अलग कर लेना चाहिए | इसके बाद इन्हे मार्केट में बेचने के लिए भेज देना चाहिए |
सेब के पौधे तीन से चार साल बाद पैदावार देने के लिए तैयार हो जाते है | सेब के पौधों में फल धीरे – धीरे आना शुरू होते है | तीन वर्ष बाद इसमें 80 प्रतिशत तक फल आ जाते है, तथा 6 वर्ष बाद पौधा पूर्ण विकसित हो चुका होता है, और एक बार में काफी फसल दे देता है | एक एकड़ के एरिये में सेब के लगभग 400 पौधों को लगाया जा सकता है | जिससे किसान भाई अच्छी कमाई कर सकते है |