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एलोवेरा की खेती (Aloe Vera Farming ) से सम्बंधित जानकारी
एलोवेरा की खेती औषधीय फसल के रूप में की जाती है, किन्तु वर्तमान समय में इसे चिकित्सकीय दवाइयो के अलावा सौन्दर्य की सामग्री, अचार, सब्जी और जूस को बनाने के लिए उगाया जाता है | एलोवेरा यह एक अंग्रेजी नाम है, हिंदी में इसे घृतकुमारी और ग्वारपाठा के नाम से जानते है | धरती पर एलोवेरा की खेती प्राचीन काल से होती आ रही है, जिसका इस्तेमाल अधिक मात्रा में दवाइयों को बनाने में किया जाता है | वर्तमान समय में एलोवेरा की खेती अधिक मात्रा में की जाती है |
भारत की कई फार्मासिटिकल कंपनियां द्वारा ख़रीदा जाता है, इसके अतिरिक्त कॉस्मेटिक का सामान उत्पादन करने वाली भी कई कंपनियां है, जिनमे एलोवेरा की अधिक मात्रा में मांग होती है | जिसके चलते मार्केट में इसकी मांग बढ़ती जा रही है | इसकी मांग को देखते हुए ही किसान भाई एलोवेरा की खेती अधिक मात्रा में कर अच्छा लाभ कमा रहे है | इस पोस्ट में आपको एलोवेरा की खेती कब और कैसे करें (Aloe Vera Farming in Hindi) इससे जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान की जा रही है, इसके अलावा यह भी बताया गया है कि एलोवेरा की मंडी भाव क्या है |
एलोवेरा की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी (Aloe Vera Cultivation Suitable Soil)
एलोवेरा की खेती के लिए उपजाऊ मिट्टी की आवश्यकता होती है | इसके अलावा इसे पहाड़ी और बलुई दोमट मिट्टी में भी उगाया जा सकता है | उत्तर प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, गुजरात, और हरियाणा ऐसे राज्य है, जहां एलोवेरा की खेती व्यापारिक रूप से की जाती है | इसकी खेती में भूमि का P.H. मान 8.5 तक होना चाहिए |
एलोवेरा की उन्नत किस्में (Aloe Vera Improved Varieties)
भारत में एलोवेरा की कई उन्नत किस्में मौजूद है, जिन्हे अधिक पैदावार और मुनाफे के लिए उगाया जाता है| एलोवेरा की अच्छी उपज के लिए बढ़िया किस्म का पौधा ही लगाना चाहिए | केंद्रीय औषधीय संघ पौध संस्थान द्वारा ऐसी किस्मो का वर्णन किया गया है, जिनसे अधिक पैदावार प्राप्त की जा सकती है | अधिक पैदावार देने वाली एलोवेरा की किस्म एल- 1,2,5 , सिम-सीतल और 49 है | अनेक प्रकार के परीक्षण के बाद इन किस्मो को तैयार किया गया है, जिसमे अधिम मात्रा में एलोवेरा का गूदा प्राप्त हो जाता है |
इसके अतिरिक्त भी एलोवेरा की कई उन्नत किस्म मौजूद है, जिन्हे व्यापारिक रूप से उगाने के लिए काफी उपयुक्त माना जाता है| इसमें आई. सी. 111273, आई.सी.111280, आई. सी. 111269 और आई. सी. 111271 शामिल है | जिन्हे भारत के कई हिस्सों में बड़े पैमाने पर उगाया जाता है |
एलोवेरा के खेत की तैयारी (Aloe Vera Field Preparation)
एलोवेरा की फसल को खेत में लगाने से पहले उसके खेत को अच्छी तरह से तैयार कर लेना चाहिए | एलोवेरा की जड़े भूमि के अंदर 20 से 30 CM गहराई में पाई जाती है | किन्तु इसके पौधे भूमि की ऊपरी सतह से ही पोषक तत्वों को ग्रहण करते है | जिसे वजह से इसके खेत की गहरी जुताई करनी होती है, जुताई के बाद खेत को कुछ समय के लिए ऐसे ही खुला छोड़ दिया जाता है | इसके बाद खेत में रोटावेटर लगाकर इसकी दो से तीन तिरछी जुताई की जाती है |
जुताई के बाद एक एकड़ के खेत में तक़रीबन 10 से 15 पुरानी गोबर की खाद को डालकर मिट्टी में अच्छे से मिला देना चाहिए | इसके पौधों को अच्छे से विकास करने के लिए पर्याप्त मात्रा में खाद की आवश्यकता होती है | इसके पौधों की कटाई एक वर्ष में कर ली जाती है | खेत में नमी बनाये रखने के लिए पानी छोड़ कर उसकी जुताई कर दी जाती है | इसके कुछ दिनों बाद खेत फ़सल लगाने के लिए तैयार हो जाता है |
एलोवेरा की खेती कब और कैसे करे (Aloe Vera Plants Transplanting Right Time and Method)
एलोवेरा के बीजो की रोपाई बीज के रूप में न होकर पौध के रूप में की जाती है | इसके पौधों को किसी सरकारी रजिस्टर्ड नर्सरी से खरीद लिया जाता है | इसके पौधों को खरीदते समय इस बात का जरूर ध्यान रखे की पौधे बिल्कुल स्वस्थ होने चाहिए | ख़रीदा गया पौधा 4 महीना पुराना होना चाहिए, जिसमे 4 से 5 पत्तियां लगी होनी चाहिए | इसके पौधों की एक खासियत यह भी है, कि इसके उखाड़े गए पौधों को महीनो बाद भी लगाया जा सकता है |
इसके अलावा इसके पौधों की अच्छी पैदावार के लिए सही समय और तरीका भी मायने रखता है | इसके पौधों की अधिक समय तक पैदावार प्राप्त करने के लिए भूमि से 15 CM की दूरी पर लगाना उपयुक्त माना जाता है | एलोवेरा के पौधों के बीच में 60 CM की दूरी अवश्य रखे| पौधों को दूरी में लगाने से पत्तियों के तैयार होने पर उनकी तुड़ाई करने में आसानी होती है | इसके पौधों को लगाते समय जड़ो को मिट्टी से अच्छे से दबा दिया जाता है | एलोवेरा के पौधों को लगाने के लिए जुलाई का महीना सबसे उपयुक्त माना जाता है | क्योकि इस दौरान बारिश का मौसम होता है, जिससे इसके पौधों को पर्याप्त मात्रा में नमी प्राप्त हो जाती है,किन्तु सिंचाई वाली जगहों पर इसकी खेती को कभी भी किया जा सकता है | सर्दियो के मौसम में इसकी रोपाई नहीं करनी चाहिए |
एलोवेरा के पौधों की सिंचाई का तरीका (Aloe Vera Plants Irrigate)
एलोवेरा के पौधों को अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है | इसलिए इसके पौधों को खेत में लगाने के तुरंत बाद इसकी पहली सिंचाई कर दी जाती है | इसके खेत में नमी बनाये रखने के लिए हल्की-हल्की सिंचाई करते रहना चाहिए,किन्तु अधिक पानी भी इसके पौधों के लिए हानिकारक होता है | पानी की कमी में भी इसके पौधे आराम से विकास कर सकते है | पौधों की सिंचाई के समय मिट्टी के कटाव का जरूर ध्यान रखे, मिट्टी का कटाव होने की स्थिति में उस जगह पर मिट्टी लगाकर रोक दे | बारिश के मौसम में इसके खेत में जलभराव न होने दे | जलभराव होने की स्थिति में इसके खेत से पानी को निकाल देना चाहिए |
एलोवेरा के पौधों में लगने वाले रोग एवं उनकी रोकथाम (Aloe vera plant Diseases and their Prevention)
इसके पौधों में न के बराबर ही रोग देखने को मिलते है | किन्तु कभी-कभी इसके पौधों की पत्तियों में सड़न और धब्बा रोग दिखाई दे जाता है | इस तरह के रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर मैंकोजेब, रिडोमिल और डाइथेन एम-45 की उचित मात्रा का छिड़काव करे |
एलोवेरा की मंडी भाव, फ़सल की तुड़ाई और पैदावार (Aloe Vera Crop Harvesting, Yield and Market Rate)
एलोवेरा के पौधे रोपाई के 8 महीने के बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते है | यदि भूमि कम उपजाऊ वाली है, तो इसके पौधों को तैयार होने में 10 से 12 महीने का समय लग जाता है | जब इसके पौधों की पत्तियां पूर्ण रूप से विकसित दिखाई देने लगे तब उनकी कटाई कर लेनी चाहिए | पहली कटाई के बाद इसके पौधे 2 महीने बाद दूसरी कटाई के लिए तैयार हो जाते है | इसके एक एकड़ के खेत में तक़रीबन 11,000 से अधिक पौधों को लगाया जा सकता है,जिससे आपको 20 से 25 टन की पैदावार प्राप्त हो जाती है | एलोवेरा का बाजारी भाव 25 से 30 हजार रूपए प्रति टन होता है, जिससे किसान भाई एलोवेरा की एक बार की फसल से 4 से 5 लाख तक की कमाई आसानी से कर सकते है |