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लाख (लाह) की खेती से सम्बंधित जानकारी
लाख एक कुदरती राल होती है, जिसका उत्पादन एक कीट द्वारा किया जाता है, जिसे केरिया लेका नाम से पुकारते है | यह मादा कीट होती है, जो अपने शरीर से एक लिक्विड निकालती है, और यह लिक्विड हवा के संपर्क में आते ही काफी सख्त होता जाता है | लाह यानि लाख के उत्पादन में झारखंड राज्य को अग्रणी माना गया है | इस लाख का उत्पादन विशेषकर जंगलो के किनारे रहने वाले जनजाति समुदायों द्वारा किया जाता है | लाह का यही उत्पादन जनजातियों की जीविका का एक खास जरिया बना हुआ है | भारत में लाख उत्पादन के मामले में मध्य प्रदेश को तीसरा स्थान प्राप्त है | मध्यप्रदेश के जबलपुर जिले में स्थित जवाहर कृषि विश्वविद्यालय कई वर्षो से किसानो को लाख की खेती करने के प्रति प्रोत्साहित करता आ रहा है |
किसानो को लाख खेती की जानकारी और खेती से जुड़े फायदे बताए जाते है | ताकि किसान भाई ज्यादा से ज्यादा लाख की खेती करने में दिलचस्पी दिखाए | कुसुम के पेड़ से सबसे अधिक लाख का उत्पादन होता है, तथा कुसुम के पेड़ से उत्पादित किए गए लाख की कीमत बाजार में काफी अधिक रहती है | जिस वजह से किसानो को कुसुम के पेड़ पर लाख का उत्पादन करने की सलाह दी जाती है | अगर आप भी लाख की खेती कर ज्यादा से ज्यादा लाभ कमाना चाहते है, तो इस लेख में आपको लाख की खेती से जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी जैसे लाख (लाह) की खेती कैसे करे तथा Lah (Lakh) Ki Kheti – Lac Farming in Hindi के बारे में बता रहे है|
लाख की खेती कहाँ- कहाँ होती है (Lac Cultivation)
लाख उत्पादन की दृष्टि से भारत को विश्व का सर्वप्रथम देश कहाँ गया है | पूरे विश्व के लाख उत्पादन का कुल 80 फीसदी हिस्सा भारत में होता है | भारत के बाद इसे थाईलैंड में अधिक उत्पादित किया जाता है | इसके अलावा चीन, रूस, बर्मा और वियतनाम में भी लाख की खेती की जाती है | अगर सिर्फ भारत में लाख उत्पादन की बात करे तो इसे झारखंड राज्य के छोटा नागपुर, मध्यप्रदेश, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ राज्य, उड़ीसा, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में उत्पादित किया जाता है|
छत्तीसगढ़ राज्य में सरगुजा (भैयाथान, कुसमी, रामानुजगंज, सीतापुर, शंकरगढ़, बैकुंठपुर), रायगढ़, (लैलुंगा, सारंगढ़, धरमजयगढ़), राजनांदगाँव, कांकेर, जाँजगीर, दुर्ग, दंतेवाड़ा जिलों में लाख की खेती की जाती है | इसके अलावा मध्यप्रदेश राज्य के कई जिलों में भी लाख की फसल की जाती है | जिसमे मंडला, डिंडोरी, शहडोल, दमोह सागर के कुछ भागो के साथ ही जिलों में भी लाख उगाया जाता है | कांकेर जिले में वैज्ञानिक विधि से कुसमी लाख की खेती बड़े पैमाने पर की जा रही है|
लाख की खेती वाले पेड़ (Lacquered Trees)
ढाक के तीन पात’ या टेसू’ के फूलो के बारे में लगभग सभी लोग जानते है | इसे ही परसा, पलास, छिऊल, खगरा, बंगला में पलास, अंग्रेजी में (बस्टर्ड टीक या बंगाल कीनो), उड़िया में मुरका, परसा यह कमरकस, मुंडारी में मुरुद, तेलगू में मोदुगा या पालाडुलु, संथाली में मुरूप दारे मुरूप, मलयालम में पिलाचम या मुरुक्का मरम, कोल में मुरुद कहते है | इन वृक्षों पर ही लाख कीट पालन का कोई विपरीत असर नहीं देखना को मिलता है|
चूंकि लाख कीट से उत्पन्न होता है, इसलिए इन कीटो को लाख कीट या लैसिफर लाक्का के नाम से भी जानते है| यह कॉक्सिडी कुल का कीट होता है | यह कीट उसी गुण में आता है, जिस गुण में खटमल आते है | लाख कीट सिर्फ कुछ ही पेड़ो पर पनपता है, और यह पेड़ भारत, थाईलैंड, बर्मा और इंडोनेशिया में उपजते है | एक समय था जब लाख सिर्फ भारत और बर्मा में ही उत्पादित की जाती थी, किन्तु अब इसे थाईलैंड और इंडोनेशिया में भी उपजाया जाता है, और अमेरिका एवं यूरोप देशो में भेजा जाता है|
भारत में जिन पेड़ो पर लाख कीट पनपती है, उनके नाम इस प्रकार है:-
लाख की फसल (Lac Crop)
लाख की फसल दो तरह की होती है | जिसमे एक कतकी अगहनी और दूसरी बैसाखी जेठवी कहलाती है | कार्तिक, बैशाख, अगहन और जेठ मास में कच्ची लाख एकत्रित की जाती है, जिसके आधार पर ही इन फसलों के नाम पड़े है | जून और जुलाई के महीने में कतकी अगहनी फसल को अक्टूबर – नवंबर में लाख के बीजो को बैसाखी जेठानी फसल के लिए बैठाया जाता है | एक पेड़ पर तक़रीबन दो सेर से दस सेर बीज लगते है | इसके बाद कच्चा लाख बीज ढाई से तीन गुना ज्यादा मिलता है | कुसुमी और कार्तिकी व् बैसाख की फसल से प्राप्त कच्चे लाख को ‘रंगीली लाख’ के नाम से जानते है| रंगीन लाख से अधिक लाख प्राप्त होती है| कुसुमी से मिलने वाली लाख उत्कृष्ट कोटि की होती है, जिसमे लाख ‘एरी’ या फुंकी हो सकती है |
वृक्षों पर कीट के पोआ छोड़ने से पूर्व लाखवानी टहनी को काटकर लाख प्राप्त करते है | यह एरी लाख कहलाती है | इस एरी लाख में जीवित कीट परिपक्व या अपरिपक्व अवस्था में पाए जाते है | इसके अलावा जब कीट पोआ छोड़ चुके होते है, तब टहनी काटकर जो लाख प्राप्त होती है, उसे फुंकी लाख कहते है | फुंकी लाख में मृत मादा कीट के अवशेष मौजूद रहते है | रंगीनी लाख कीट की फसल वर्ष में दो बार तैयार हो जाती है | यह बैसाखी (ग्रीष्मकालीन) और कतकी (वर्षाकालीन) फसल कहलाती है | बैसाखी फसल को लाख कीट या बीहन को अक्टूबर या नवंबर में वृक्षों पर कटकी फसल के लिए जून से जुलाई के महीने में लगाया जाता है | वैसाखी और कतकी फसल क्रमशः 8 से 4 माह में तैयार हो जाती है|
लाख व लाख कीट किसे कहते है (Lakhs and Lakhs of Insects Called)
यह एक तरह का प्राकृतिक राल होता है, जो मादा कीट के लेसीफेरा लेक्का के स्राव से बनता है | पूरे विश्व में लाख की नो प्रजातियां मौजूद है, किन्तु भारत में लाख की सिर्फ दो ही जातिया है, जिनके नाम लेसीफेरा और पैराटेकारडिना है| इसमें लेसीफेरा की लेक्का उपजाति को पूरे देश में ही पाया जाता है, जिसमे कुसमी और रंगीनी है |
लाख कीट अपने जीवन की शुरुआत शिशु कीट के रूप में करता है | यह शिशु कीट वृक्षों की टहनियों का रस चूसकर अपने जीवन चक्र को पूरा करते है | कुछ समय बाद शिशु वृक्ष की टहनी में स्थाई रूप से बैठकर अपने शरीर के ऊपर रस स्राव का एक आवरण तैयार कर लेते है | यह आवरण न तो मुँह से बनता है, और न ही मल द्वारा क्योकि इन स्थानों पर मोम का जमाव होता है, और यह नहीं जम पाता है | इसमें प्यूपा से निकलने के पश्चात् नर वयस्क कीट मादा वयस्क कीट के साथ प्रजनन क्रिया करने के बाद तीन दिनों में मर जाता है, और प्रजनन मादा प्रचुर मात्रा में स्राव करना आरम्भ कर देती है| इसके अलावा अंडो का विकास भी शुरू हो जाता है | एक मादा कीट पंद्रह दिन तक लगाकर शिशुओं को जन्म देती रहती है, यह संख्या अधिकतम 400 तक होती है | मादा कीट के जीवन का चक्र समाप्त होते-होते स्राव भी बंद हो जाता है, तथा नए शिशुओं के बाहर आने के पश्चात् मादा कीट मर जाती है | जिस डंठल पर शिशु कीट रहते है, उसे बहिन लाख कहते है, जिसे लेकर अगली फसल की तैयारी शुरू की जाती है|
लाख के पौधों की रोपाई (Lac Plants Planting)
फ्लेमेंजिया सेमियालता पौधों के लिए थोड़ी अम्लीय और 5.5 पी. एच. मान वाली भूमि की जरूरत होती है| इसमें नर्सरी के लिए ऐसी जगह की जरूरत होती है, जहा से फालतू पानी आसानी से निकल जाए| फ्लेमेंजिया सेमियालता की पौध को बीज और डालियों द्वारा नर्सरी में भी आसानी से तैयार कर सकते है| बीज बुवाई के लिए पहले 9×1.2 मीटर लंबे-चौड़े और 4 इंच ऊँचे बेड को नर्सरी में तैयार कर ले | बीजो को सीधा बेड या प्लास्टिक की थैलियों में 2:1:1 के अनुपात के साथ सड़ी गोबर खाद, मिट्टी व बालू का मिश्रण तैयार कर अप्रैल से मई के महीने में बुवाई की जाती है | बीज बुवाई के पश्चात् समय-समय पर हल्की पलटाई करते रहना होता है|
नर्सरी में पौध से पौध के मध्य 8-10 CM की दूरी रखने पर पैदावार अच्छी होती है| बुआई के लिए गड्डो को एक महीने पहले मई से जून के महीने में 45×45×45 CM आकार वाले तैयार किए जाते है, इन गड्डो को सिंचित व असिंचित इलाको में 30×30×30 CM वाले खोदे | एक लाइन में पौधों को 1 मीटर की दूरी और लाइन के बीच में 2 मीटर की दूरी रखे |
पौध रोपाई से पूर्व गड्डो में 5-10 KG सड़ी गोबर की खाद डाले | फ्लेमेंजिया का पौधा कम लंबाई वाला होने के कारण इस पर लाख कीट का पालन अन्य पोषक पौधों के मुकाबले आसान होता है, तथा एक से डेढ़ वर्ष बाद पौधों पर कीट को छोड़ देते है|
फ्लेमेंजिया की खेती में आप अतिरिक्त कमाई करने के लिए लाइनों के मध्य में फल व सब्जी की फसल भी ऊगा सकते है| फ्लेमेंजिया का पौधा छोटा होता है, जिस वजह से इसे ठीक तरह से मैनेज कर सकते है| लाख कीट की कुसुमी प्रजाति को फ्लेमेंजिया पौधे पर काफी अच्छा पाया गया है| जाड़े वाली फसल फायदे के नजरिये से ज्यादा उपयुक्त है| कुसुमी लाख कीट को प्रति पौधा 20 GM की मात्रा जुलाई के महीने में छोड़े| बीहन लाख को नुकसानदायक कीट से बचाने के लिए प्लास्टिक की जाली में उन्हें भर दिया जाता है| पेड़ से बंधी बीहन लाख को 21 दिन पश्चात् उतार लेना चाहिए | जिसके बाद इसे ख़त्म न कर छील कर बेच दे|
वर्टीकल फार्मिंग या खड़ी खेती क्या होती है
लाख की खेती में दवा छिड़काव (Lac Farming Spraying Medicine)
लाख की फसल में कोहरे से होने वाले नुकसान व शत्रु कीटो की रोकथाम के लिए कीटनाशक/फुफंदनाशक दवाइयों का छिड़काव किया जाता है | पलास पर शत्रु कीटो की रोकथाम के लिए फिप्रोनिल 5% S.C. 0.0.0 7% का छिड़काव किया जाता है | दवा का पहला छिड़काव कीट निर्गमन या बीहन चढ़ाने के 30 दिन के भीतर और दूसरा 60 दिनों में | कीट और फफूंदनाशक दवा को तैयार करने के लिए 22-25 M.L. फिप्रोनिल और कारबेन्डाजिम 10 GM पाउडर को 15 लीटर पानी में मिलाकर तैयार करे |
लाख की खेती में पेड़ों की कटाई-छँटाई (Lac Cultivation Pruning of Trees)
पोषक पेड़ो को कोमल और रसदार टहनिया पाने के लिए समय-समय पर पेड़ो हल्की कटाई-छटाई करते रहना चाहिए| ताकि कीटो का पालन आसानी से हो सके | कुसुम वृक्ष की कटाई-छटाई जनवरी से फ़रवरी और जून से जुलाई के महीने में की जाती है | इसके अलावा पलास के वृक्ष की कटाई – छटाई पतझड़ के मौसम के बाद नई कोपलों के आने से पूर्व करे | बेर फसल की छटाई मई के महीने में करे |
बीहन लाख से संचारण (Lac Through Transmission)
इस तरह के कीट पोषक पौधों की डंठलों में रहते है, जिसमे से शिशु कीट निकलता है, इन्हे बीहन लाख कीट कहते है | पोषक पेड़ो पर लाख कीट को संचारित करने के लिए 6 से 9 इंच लंबी और 3 से 4 डंठल वाला बंडल बनाकर बीहन लाख लगाई जाती है | इसके बाद इसे पोषक पेड़ की डालियों पर समान्तर ऊंचाई पर बांधते है | इन बीहन लाख के शिशु कीट नई टहनियों पर आकर रेंगने लगते है, और हमेशा के लिए कोमल रसदार टहनी पर बैठ जाते है |
फूंकी उतारना
जब बीहन लाख के शिशु कीट बाहर निकल जाते है, तब डंठलों की जो लाख बंधी होती है, उसे फुंकी कहते है | इसमें जब शिशु कीट बीहन लाख से निकल जाए तो पेड़ से डंठलों को हटा दे, अन्यथा शत्रु कीट बीहन लाख के शिशुओं को हानि पहुँचाना शुरू कर देते है |
लाख के फसल की कटाई (Lac Harvest)
रंगीनी लाख की फसल बैसाखी (ग्रीष्मकालीन) और कतकी (वर्षा कालीन), संचरण के 4 से 8 महीने पश्चात परिपक्व हो जाती है | इसी तरह से कुसमी लाख जेठवी (ग्रीष्मकालीन) और अगहनी (शीतकालीन) की फसल जून से जुलाई और जनवरी से फ़रवरी के महीने में तैयार हो जाती है| यदि आप परिपक्व फसल को दोबारा बीहन लाख के लिए उपयोग में लाना चाहते है, तो पेड़ो पर कीट निकलने के दौरान काटते रहे| किन्तु यदि छिली लाख का इस्तेमाल करना चाहते है, तो समय से पहले की कटाई कर ले|