ग्लैडियोलस की खेती कैसे होती है | Gladiolus Farming in Hindi | ग्लेडियोलस फ्लावर हिंदी नाम


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ग्लैडियोलस की खेती (Gladiolus Farming) से सम्बंधित जानकारी

ग्लेडियोलस की खेती नगदी फसल के रूप में जानी जाती है | यह अत्यधिक पसंद किया जाने वाला कट फ्लावर है | ग्लेडियोलस के पौधे दो से आठ फ़ीट तक लम्बे होते है | यह धब्बे रहित, सफ़ेद गुलाबी से लेकर गहरे लाल रंगो में पाए जाते है | ग्लेडियोलस के फूलो को मुख्य रूप से बगीचों की आंतरिक सजावट तथा गुलदस्तों को बनाने में होता है | इसके फूलो की उत्पत्ति का स्थान अफ्रीका है तथा भारत में इसकी खेती को अंग्रेजो द्वारा 16-17 शताब्दी में किया गया | इसके पौधों पर फूल इसकी डंडियों में लगते है |




इसके फूल दिखने में सितारों की तरह होते है | यह फूल अधिक समय तक नहीं ख़राब होते है, इन्हे एक सप्ताह तक रखा जा सकता है | जिस कारण इन फूलो की अधिक मांग होने लगी है | यदि आप भी ग्लेडियोलस की खेती करना चाहते है तो पोस्ट में आपको ग्लैडियोलस की खेती कैसे होती है, Gladiolus Farming in Hindi, ग्लेडियोलस फ्लावर हिंदी नाम के बारे में जानकारी दी जा रही है|

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ग्लेडियोलस की खेती कैसे करे (Gladiolus Cultivation)

ग्लेडियोलस की खेती को भारत के सभी प्रदेशो में किया जा सकता है | इसकी खेती में बलुई दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है | इसकी खेती को छायादार जगहों पर नहीं करना चाहिए क्योकि छायादार जगह पर इसके फूलो के ख़राब होने का खतरा बढ़ जाता है | जिसके चलते इसके पौधे अच्छे से विकास नहीं कर पाते है | इसकी फसल के लिए सुहाने मौसम को सबसे उपयुक्त माना जाता है | यहाँ पर आपको ग्लेडियोलस की खेती कैसे करे इसके बारे में बताया जा रहा है |

ग्लेडियोलस की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी जलवायु और तापमान

इसकी खेती में अच्छी जल निकासी वाली जगहों की आवश्यकता होती है | ग्लेडियोलस की अच्छी पैदावार के लिए बलुई दोमट मिट्टी को सबसे अच्छा माना जाता है | इसमें भूमि का P.H. मान 5.5 से 6.5 के मध्य होना चाहिए |

ग्लेडियोलस की खेती में उपयुक्त जलवायु के लिए समशीतोष्ण जलवायु को सबसे अच्छा माना जाता है | इसकी खेती को सर्दियों और गर्मियों दोनों ही मौसम में आसानी से किया जा सकता है, किन्तु सर्दियों में गिरने वाली ओस जिससे फूलो पर पानी जमा हो जाता है इससे फूलो के ख़राब होने का खतरा बढ़ जाता है | जब फूल खिलने लगे उस दौरान बारिश का होना इनके लिए हानिकारक होता है,क्योकि इससे फूल ख़राब हो जाते है | ग्लेडियोलस के पौधों को अच्छे से विकास करने के लिए सूर्य की सीधी धूप की आवश्यकता होती है |

ग्लेडियोलस के पौधों को अच्छे से वृद्धि करने के लिए सही तापमान की जरूरत होती है | इसके पौधों को शुरुआत में अंकुरित होने के लिए सामान्य तापमान की आवश्यकता होती है | इसके बाद पौधों को विकसित होने के लिए अधिकतम 25 तथा न्यूनतम 16 डिग्री का तापमान इनके लिए उपयुक्त होता है | ग्लेडियोलस के फूल अधिकतम 40 डिग्री तापमान को सहन कर सकते है|

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ग्लेडियोलस की उन्नत किस्में (Gladiolus Varieties)

इस फूल की भी वर्तमान समय में 260 से अधिक प्रजातियां मौजूद है | जिन्हे उनकी डंडियों की लम्बाई और फूलो के रंगो के आधार पर तैयार किया गया है |

संस्कार किस्म के पौधे

पौधे की इस किस्म में डाली डेढ़ फ़ीट तक लम्बी होती है | इसके प्रत्येक पौधे में लगभग 80 से 90 गांठे तैयार होती है | इसमें 15 से 17 छोटे आकार के फूल पाए जाते है | यह सफ़ेद रंग के होते है तथा बीज रोपाई के 120 दिन के उपरांत फूल देने लगते है |

अमेरिकन ब्यूटी किस्म के पौधे

इस किस्म के पौधे रोपाई के तीन महीने बाद पैदावार देने लगते है | इसकी एक डंडी में 10 से 12 फूल पाए जाते है, यह फूल लाल रंग के होते है | इसकी डालिया तीन फ़ीट लम्बी होती है |

सफेद समृद्धि किस्म के पौधे

पौधे की इस किस्म में सफ़ेद रंग के फूल पाए जाते है | यह बीज रोपाई के तक़रीबन 110 से 120 दिन बाद पैदावार देने के लिए तैयार हो जाते है | इसकी डाली पर लगभग 17 फूल पाए जाते है तथा प्रत्येक डाली की लम्बाई ढाई फ़ीट के आसपास होती है |

हर मेजेस्टी किस्म के पौधे

पौधों की इस किस्म में पौधों की डंडियों की लम्बाई ढाई फ़ीट के आसपास होती है तथा एक डाली में 15 से 17 फूल निकलते है | इसमें निकलने वाले फूल बैंगनी रंग के होते है | इसके पौधे बीज रोपण के 100 से 115 दिन के अंतराल में पैदावार देना आरम्भ कर देते है |

सिल्विया किस्म के पौधे

इस किस्म के पौधों में एक डंडी में 12 से 15 फूल पाए जाते है | इसमें फूल सुनहरे पीले रंग के होते है | इस एक पौधे में 15 गांठे पायी जाती है तथा गांठो पर बनने वाले फूल गुच्छे में पाए जाते है | इसके पौधे रोपाई के लगभग 110 दिन बाद पैदावार देने के लिए तैयार हो जाते है |

इसके अतिरिक्त भी कई तरह की किस्मे पायी जाती है जिन्हे अलग – अलग समय पर अलग – अलग पैदावार के लिए लगाया जाता है | इन किस्मो में पंजाब पिंक,गोल्डन मेलोडी,पंजाब फ्लेम,रोज सुप्रीम ग्लेडियोलस,पिंक फ्रेंडशिप जैसी किस्मे पायी जाती है|

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खेत को तैयार करने का तरीका (Farm Preparation)

ग्लेडियोलस के पौधों को खेत में लगाने से पहले खेत की अच्छी तरह से गहरी जुताई करनी चाहिए | इसके बाद मिट्टी पलटने वाले हलो से गहरी जुताई कर खेत को कुछ दिन के लिए ऐसे ही छोड़ देना चाहिए | कुछ दिन बीत जाने के बाद खेत में पुरानी गोबर की खाद को डालकर उसे अच्छे से मिट्टी में मिला दे | इसके बाद कल्टीवेटर का इस्तेमाल कर खेत की तीन तिरछी जुताई कर देनी चाहिए |

इसके कंदो की रोपाई को नमी वाली भूमि में किया जाता है इसलिए जब खेत की जुताई हो चुकी हो तो उसमे पानी को भर पलेव कर दे | इसके बाद जब खेत की मिट्टी सूखी दिखाई देने लगे तो खेत में रोटावेटर को चलाकर एक बार फिर से जुताई कर दे | इससे खेत की मिट्टी भुरभुरी हो जाएगी | अब खेत में पाटा लगाकर खेत को समतल कर दे | जिससे खेत में जलभराव जैसी समस्या नहीं होगी |

बीज की मात्रा तथा बीज की रोपाई का सही समय और तरीका

ग्लेडियोलस की खेती में बीज के स्थान पर कंदो का उपयोग किया जाता है | इसकी खेती में एक एकड़ के एरिये में तक़रीबन 65,000 हजार कंदो की आवश्यकता होती है | कंदो को खेत में लगाने से पहले इन्हे बाविस्टिन की उचित मात्रा से उपचारित कर लेना चाहिए | इसके कंदो का एक फ़ायदा यह है की आरम्भ में इसके पौधों को किसी तरह के रोग नहीं लगते है तथा कंद अच्छे से अंकुरित होते है |

इसके कंदो की रोपाई समतल भूमि में मेड को तैयार कर की जाती है | इसके लिए खेत में एक – एक फ़ीट की दूरी रखते हुए मेड की पंक्तियों को तैयार कर लिया जाता है, जिसमे प्रत्येक कंद की रोपाई 20 सेंटीमीटर की दूरी रखते हुए की जाती है | इन कंदो को जमीन में 5 से 7 सेंटीमीटर की गहराई में उगाना चाहिए, जिससे सभी कंद अच्छे से अंकुरित हो सके |

कंदो की रोपाई करते वक्त सही समय का चुनाव भी काफी अहमियत रखता है | इसके पौधों की रोपाई पूरे भारत में अलग-अलग स्थान के हिसाब से अलग – अलग समय पर की जाती है | भारत के उत्तरी क्षेत्रों में इसके खेती को रबी की फसल से पहले की जाती है | वही पर्वतीय क्षेत्रों में इसके कंदो की रोपाई जून के महीने में की जाती है | पर्वतीय भागो में इसकी पैदावार को अधिक समय तक प्राप्त किया जा सकता है|

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पोधो की सिंचाई (Irrigation)

ग्लेडियोलस के पौधों की अच्छी पैदावार के लिए खेत में नमी का होना जरूरी होता है इसलिए इन्हे अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है | इसके कंदो की खेत में रोपाई के बाद इनकी पहली सिंचाई कर देनी चाहिए | गर्मी के मौसम में इन्हे अधिक पानी की आवश्यकता होती है जिसमे इन्हे 5 दिन के अंतराल में सिंचाई कर पानी देते रहना चाहिए | वही सर्दियों के मौसम में इनके पौधों को 10 से 12 दिन के अंतराल में आवश्यकतानुसार सिंचाई करना चाहिए | जब इसके पौधों की पत्तिया पीली दिखाई देने लगे तब इन्हे पानी देना बंद कर देना चाहिए |

उवर्रक की मात्रा

ग्लेडियोलस के पौधों में उवर्रक की सामान्य मात्रा ही काफी होती है | इसके लिए खेत में जुताई के बाद 15 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद को डालकर अच्छे से मिला देना चाहिए | इसके अतिरिक्त यदि आप रासायनिक खाद का इस्तेमाल करते है, तो नाइट्रोजन 100 kg, फास्फोरस 100 kg और पोटाश 200 किलो की मात्रा को अच्छे से मिलाकर खेत में प्रति हेक्टयेर की दर से देना चाहिए | इसके अतिरिक्त जब पौधों में तीन से चार पत्तिया दिखाई देने लगे तो 25 किलोग्राम रासायनिक खाद को खेत में छिड़काव कर देना चाहिए | इसके बाद जब पौधों की सिंचाई करे तब उवर्रक का छिड़काव करना चाहिए |

पौधों की देख – रेख 

इसके पौधों की अच्छी देख – रेख के लिए खरपतवार पर नियंत्रण बहुत जरूरी होता है | खरपतवार नियंत्रण दो तरह से किया जा सकता है पहला प्राकृतिक और दूसरा रासायनिक | प्राकृतिक तरीके से इसकी निराई – गुड़ाई कर खरपतवार पर नियंत्रण कर सकते है | रासायनिक तरीके से खरपतवार पर नियंत्रण करने के लिए कंदो की रोपाई से 15 दिन पहले इसमें ग्लाइफोसेट की उचित मात्रा का छिड़काव करना चाहिए| यदि आप इसके खरपतवारो पर पूरी तरह से नियंत्रण करना चाहते है, तो आपको इसकी समय – समय पर जब इसमें खरपतवार दिखे तब हल्की – हल्की गुड़ाई करते रहना चाहिए|

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पौधों में लगने वाले रोग तथा उनकी रोकथाम (Diseases and Their Prevention)

इसके पौधों में कई तरह के रोग देखने को मिल जाते है | जिनकी सही समय में रोकथाम कर इनके पौधों को नष्ट होने से बचा सकते है,जिससे पैदावार प्रभावित न हो | निचे ऐसे ही रोगो तथा उनके उपचार के बारे में बताया गया है:-

चेपा रोग

यह चेपा रोग ग्लेडियोलस की पैदावार को अधिक प्रभावित करता है | यह कीट रोग पौधों के नाजुक अंगो में एक समूह के रूप में एकत्रित होकर पौधे का रस चूस लेता है जिससे पौधे का विकास रुक जाता है | इस रोग की रोकथाम के लिए डायमोथेएट रोगोर या मैलाथिओन का उचित मात्रा में छिड़काव करना चाहिए |

थ्रिप्स कीट रोग

यह एक कीट जनित रोग होता है,जो कि पौधों में पहले हलके पीले रंग के दिखाई देते है | यह रोग पौधों की पत्तियों का रस चूस कर उन्हें हानि पहुँचाता है | इससे पौधों पर खिलने वाले फूलो का विकास रुक जाता है, और वह ठीक से खिल नहीं पाते है | इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर मैलाथिओन या नीम के तेल का उचित मात्रा में छिड़काव करना चाहिए |

विल्ट रोग

विल्ट रोग का प्रभाव अक्सर गर्मियों के मौसम में पौधों के विकास के दौरान देखने को मिलता है | यह विल्ट रोग पौधों के विकास को पूरी तरह से रोक देता है जिससे पत्तिया पिली पड़कर सूख जाती है | इसके कुछ समय पश्चात् ही पौधा पूरी तरह से सूखकर ख़राब हो जाता है | पौधों की जड़ों में ट्राइकोडर्मा विरडी का उचित मात्रा में छिड़काव कर इस रोग की रोकथाम की जा सकती है |

गाठों में कालापन रोग

ग्लेडियोलस के पौधों का यह रोग पौधों की गाठो पर दिखाई देता है | इस रोग के लग जाने से पौधे की गांठ गहरे भूरे काले रंग की हो जाती है | यह रोग भी पैदावार को प्रभावित करता है | थायोफिनेट मिथाइल का छिड़काव कर इस रोग की रोकथाम की जा सकती है|

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फसल की कटाई तथा पैदावार और लाभ (Harvesting, Yield and Profit)

ग्लेडियोलस के पौधे 100 दिन के अंतराल में पैदावार देना शुरू कर देते है | इसके पौधों में डंडियों पर फूल निकलने लगे तब किसी धारदार हथियार से काटकर अलग कर दे | इसकी कटाई को सुबह के समय करना चाहिए | कटाई के तुरंत बाद उन्हें पानी भरे बर्तन में रख देना चाहिए | इसके बाद इन्हे बेचने के लिए बाजार में भेज देना चाहिए | जब पौधों से फूलो को निकाल लिया जाता है तब उन्हें बाविस्टिन के घोल में साफ करने के बाद किसी छायादार जगह पर सूखा लेना चाहिए | इसके बाद इन्हे किसी चीज़ में भरकर रख ले और फिर बाजार में बेच दे |

इसके पौधे फूल और गांठ दोनों ही रूप में पैदावार देते है | इसमें प्रति हेक्टेयर के हिसाब से तीन लाख के आसपास गांठे प्राप्त हो जाती है | इससे किसान भाई इन्हे बेचकर अच्छी कमाई कर सकते है|

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