देसी गाय की पहचान कैसे करें | देसी गाय की कीमत व कहाँ से ख़रीदे ?


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देसी गाय (Desi Cows) से सम्बंधित जानकारी

भारत देश में कई तरह के दुधारू पशुओ का पालन किया जाता है | हमारे देश की आधी से ज्यादा आबादी अभी भी ग्रामीण क्षेत्रो में निवास करती है, तथा ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वालो लोगो के लिए आय का साधन खेती और पशुपालन होता है | खेती के अलावा पशुपालन पैसा कमाने का एक बेहतरीन साधन है | दुधारू पशुओ में गाय को प्रमुख स्थान प्राप्त है |




गाय तो आपने देखी ही होगी, लेकिन क्या आप जानते है, कि आप जो गाय देख रहे है, वह किस नस्ल की है | भारत में गाय की कई नस्ले पायी जाती है | इसमें से कुछ नस्ले देसी गाय की होती है, और कुछ जर्सी गाय की पर क्या आपको मालूम है, कि देसी गाय की पहचान किस तरह से की जाती है | इस लेख में आपको इसी बारे में बताया जा रहा है, कि देसी गाय की पहचान कैसे करें तथा देसी गाय की कीमत व कहाँ से ख़रीद सकते है |

गिर गाय की पहचान कैसे करें

देसी गायों के प्रकार (Desi Cows Breeds)

भारत में लगभग 30 से अधिक देसी गाय की नस्ले पायी जाती है, जिन्हे आवश्यकता और उपयोगिता के हिसाब से 3 भागो में बांटा गया है |

  • दुग्धप्रधान एकांगी नस्ल :– इस प्रकार की गाय दूध उत्पादन में बेहतर मानी जाती है, लेकिन इसके बछड़े खेती के कार्य को करने के लिए उपयोगी नहीं होते है |
  • वत्सप्रधान एकांगी नस्ल :– इस नस्ल की गाय कम दूध देती है, लेकिन इसकी संतान कृषि कार्यो के लिए उपयोगी होती है |
  • सर्वांगी नस्ल :– इस नस्ल की गाय दूध का अच्छा उत्पादन देने के साथ ही गाय से उत्पन्न बछड़े खेती के कार्यो को करने में भी उपयोगी होते है |

देशी गाय की पहचान (Indigenous Cow Identification)

साहीवाल गाय (Sahiwal Cow)

इस नस्ल की गाय हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पंजाब, बिहार और दिल्ली में पायी जाती है | इसमें गाय का सर उभरा हुआ चौड़ा, माथा मझोला और सींग छोटी होती है | यह गाय पंजाब के मांटगुमरी जिले के रावी नदी के करीब गंजीवार, लायलपुर, लोधरान आदि स्थानों में पाली जाती है | यह भारत के किसी भी क्षेत्र में रह सकती है | एक बार ब्याने के पश्चात् यह 10 महीने तक दूध का उत्पादन दे देती है, जिसमे रोजाना 10 से 20 लीटर दूध का उत्पादन मिल जाता है | इसके दूध से मक्खन का अंश मिल जाता है, तथा दूध में 4 से 6 प्रतिशत तक वसा होती है |

रेड सिंधी गाय (Red Sindhi Cow)

इस नस्ल की गाय का मुख्य स्थान सिंध का कोहिस्तान इलाका है | बलोचिस्तान का केलसबेला क्षेत्र भी रेड सिंधी गाय के लिए प्रसिद्ध है | इस गाय का शरीर लंबा, वर्ण बादामी और चमड़ा मोटा होता है | यह अन्य जलवायु में भी रहने में सक्षम है | इस गाय में रोगो से लड़ने के लिए अद्भुद शक्ति होती है | एक बार ब्याने के बाद यह गाय 300 दिनों में लगभग 2000 लीटर दूध का उत्पादन दे देती है |

कांकरेज गाय (Kankrej Cow)

कांकरेज गायो का मूल स्थान सिंध का दक्षिण-पश्चिम इलाका, छोटी खाड़ी, दक्षिण का भूभाग, रधनपुरा का प्रदेश और अहमदाबाद है | वैसे तो यह गाय बड़ोदा, काठियावाड़ और सूरत में मिलती है | इस गाय की मांग विदेशो में भी रहती है | इसका रंग लोहिया भूरा, काला और रुपहला भूरा होता है | इसके टांगों में काले चिह्न और खुर का ऊपरी भाग काले रंग का होता है | यह गाय सर उठाकर लंबे और सख्त कदम वाली चाल चलती है, तथा चलने के समय टांगो को छोड़कर पूरा शरीर निष्क्रिय मालूम होता है | केंद्रीय गोवंश अनुसंधान संस्थान द्वारा इस गाय पर किए गए शोध के अनुसार वैज्ञानिको का कहना है, कि कांकरेज गाय किसानो की आय बढ़ा सकती है |

मालवी गाय (Malvi Cow)

मालवी गाय का मूल स्थान ग्वालियर और मध्य प्रदेश है | यह गाय कम दुधारू होती है, जिस वजह से कम दूध देती है | इस किस्म की गाय का रंग खाकी होता है, और गर्दन कुछ काली होती है | यह गाय आयु बढ़ने के साथ-साथ सफ़ेद रंग में बदल जाती है | इस प्रजाति के बैलो को सड़को पर गाड़ी खींचने और खेती करने के लिए इस्तेमाल करते है |

थारपारकर गाय की पहचान कैसे करें

नागौरी गाय (Nagori Cow)

इस गाय का मूल स्थान जोधपुर के करीबी प्रदेश है | यह गाय भी कम दुधारू होती है, किन्तु ब्याने के कुछ दिन तक थोड़ा-थोड़ा दूध दे देती है | राजस्थान के नागौर जिले में यह गाय पाई जाती है |

थारपरकर गाय (Tharparkar Cow)

थारपारकर गाय का मूल स्थान राजस्थान का जैसलमेर और जोधपुर जिला है | इस नस्ल की गाय को भारत की सबसे सुधारू गाय में गिना जाता है | मालाणी (बाड़मेर) स्थल इस गाय की उत्पत्ति का स्थान है | राजस्थान के स्थानीय क्षेत्रों में इसे मालाणी नाम से जानते है | थारपारकर गाय का रंग सफ़ेद और खाकी भूरा होता है | इसका मुँह थोड़ा लंबा बना होता है | इस गाय का औसतन भार 400 KG होता है | यह गाय 1400 से 1500 लीटर दूध का उत्पादन दे देती है |

पोंवर गाय (Ponwar Cow)

यह गाय पूरनपुर तहसील, पीलीभीत और खीरी में पाई जाती है | इस गाय का मुँह सँकरा तथा सींग सीधी व लंबी होती है, जिसकी लंबाई 12 से 18 इंच तक हो सकती है | इसकी पूँछ भी लंबी होती है| यह कम दूध देने वाली और स्वभाव से गुस्से वाली होती है |

गिर गाय (GIR Cow)

गिर गाय भारत की सबसे दुधारू गाय मानी जाती है | इस गाय की उत्पत्ति का मूल स्थान गुजरात के दक्षिण में स्थित गिर जंगल है | जिसे वजह से इन गायो को गिर नाम दिया गया है | गिर गाय एक दिन में लगभग 50 से 80 लीटर दूध दे देती है | इस नस्ल की गाय का औसतन भार 400 KG होता है | यह गाय पूरी लाल, लाल सफ़ेद या लाल सफ़ेद काले रंग की हो सकती है | इसकी सींग पीछे की और घूमी हुई और कान चौड़े होते है | यह गाय भारत के अलावा अन्य देशो में भी पाई जाती है | ब्राजील और इजराइल देशो में भी इसे मुख्य रूप से पाला जाता है |

भगनाड़ी गाय (Runaway Cow)

इस गाय की उत्पत्ति का स्थान नाड़ी नदी का तटवर्ती प्रदेश है | इसका प्रिय भोजन नाड़ी घास और उसकी बनाई हुई रोटी होती है | यह गाय भी दुधारू होती है |

दज्जल गाय (Dajjal Cow)

भगनारी गाय का दूसरा नाम ही दज्जल गाय है | इस नस्ल की गाय को पंजाब के दरोगाजी खाँ जिले में काफी बड़ी संख्या में पाला जाता है | ऐसा कहा जाता है, कि इस जिले के कुछ भगनारी नस्ल के साड़ो को विशेषकर भेजा गया था | यही वजह है, कि इस जिले में यह नस्ल काफी अधिक पाली जाती है | दज्जल गाय भी अधिक दुधारू होती है |

गावलाव गाय (Village Cow)

यह गाय साधारण मात्रा में दूध देती है | इस गाय की प्राप्ति का स्थान वर्धा, नागपुर, सतपुड़ा की तराई, छिंदवाड़ा, बहियर तथा सिवनी है| इस नस्ल की गाय देखने में सफ़ेद रंग की और मझोले कद की होती है | यह अपने कानो को उठाकर चलती है |

हरियाणवी गाय (Haryanvi Prajati)

इस नस्ल की गाय अच्छी मात्रा में दूध का उत्पादन देती है | हरियाणवी गाय सफ़ेद रंग की होती है, जो रोजाना 8 से 12 लीटर दूध दे देती है | यह गाय गठीले बदन वाली ऊँचे कद की होती है, जो सर उठाकर चलती है | इस गाय की प्राप्ति का स्थान सिरसा, गुड़गांव, जिंद, हिसार और करनाल है | यह गाय भारत की 5 सबसे श्रेष्ठ नस्लों में गिनी जाती है |

अंगोल या नीलोर गाय (Angolan or Nilor Cow)

यह एक दुधारू, मंथरगामिनी और सुन्दर गाय होती है | इस गाय की उत्पत्ति का स्थान आंध्र प्रदेश, बपटतला, तमिलनाडु, नीलोर, सदनपल्ली और गुंटूर है | इस नस्ल की गाय की खुराक काफी कम होती है | 

राठी गाय (Rathi Cow)

यह गाय राजस्थान के श्रीगंगानगर और बीकानेर मूल की है | इस गाय का रंग काला-सफ़ेद, चकत्तेदार लाल-सफ़ेद, काली और भूरी रंग की होती है | इस नस्ल की गाय कम आहार लेकर खूब दूध देती है | यह गाय रोजाना 10 से 20 लीटर दूध दे देती है | राजस्थान के बीकानेर में स्थित पशु विश्वविद्यालय में इस गाय पर कई रिसर्च किए गए है | इस गाय की सबसे बड़ी खासियत यह है, कि इसे भारत के किसी भी कोने में पाला जा सकता है |

देवनी प्रजाति (Devni Prajati)

इस नस्ल की गाय काफी दुधारू होती है | देवनी प्रजाति गिर गाय की प्रजाति से काफी मिलती-जुलती है | इस प्रजाति का बैल अधिक भार ढोने में सक्षम होता है | देवनी गाय मुख्य रूप से कर्नाटक और आंध्रप्रदेश में देखने को मिलती है |

नीमाड़ी गाय (Nimari Cow)

इस गाय की उत्पत्ति का स्थान नर्मदा नदी की घाटी है| नीमाड़ी गाय के मुँह की बनावट कुछ-कुछ गिर प्रजाति की गाय जैसी होती है | यह गाय लाल रंग की होती है, जिस पर सफ़ेद रंग के धब्बे होते है | इस नस्ल की गाय दूध देने में काफी अच्छी होती है |

साहिवाल गाय की पहचान कैसे करें

कंगायम प्रजाति (Kangayam Prajati)

इस प्रजाति की गाय गोवंश कोयम्बटूर के दक्षिणी क्षेत्रों में पाली जाती है | यह नस्ल कम दुधारू होने के बावजूद 10 से 12 वर्षो तक दूध दे देती है | इस नस्ल का गोवंश काफी फुर्तीला होता है |

मालवी प्रजाति (Malvi Prajati)

मध्य प्रदेश के ग्वालियर इलाके में इस प्रजाति की उत्पत्ति हुई है | यह नस्ल भी कम दुधारू होती है, तथा नर बैलो को खेती और सड़क पर गाड़ी खींचने के लिए काम में लाया जाता है | इसमें गाय का रंग खाकी और लाल होता है |

वेचूर प्रजाति (Vetchur Prajati)

वेचूर प्रजाति की गाय की उत्पत्ति केरल राज्य में हुई है| इस प्रजाति के गोवंश को पालने में बकरी पालने की तुलना में आधा खर्च आता है| इस प्रजाति पर रोगो का प्रभाव काफी कम पड़ता है | इस नस्ल का गोवंश छोटे कद का होता है, लेकिन गाय के दूध में औषधीय गुण अधिक होते है |

बरगूर प्रजाति (Bargur Prajati)

बरगूर गायो में दूध देने की क्षमता काफी कम होती है | इस नस्ल को तमिलनाडु के बरगुर नामक पहाड़ी इलाके में पाला जाता है | इस प्रजाति की गायो की पूँछ छोटी, सिर लंबा और मस्तक उभरा होता है | बरगूर प्रजाति के बैल काफी फुर्तीले होते है |

कृष्णाबेली प्रजाति (Krishnabeli Prajati)

इस प्रजाति की गाय महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश में पाली जाती है | इन गायो की सींग और पूँछ की लंबाई छोटी होती है, तथा मुँह बड़ा होता है | गाय की यह प्रजाति अच्छी मात्रा में दूध का उत्पादन दे देती है |

डांगी प्रजाति (Dangi Prajati)

डांगी प्रजाति की गाय काफी कम दूध दे पाती है | इस नस्ल के गोवंश नासिक, अहमद नगर और अंग्स इलाको में देखने को मिल जाते है | इस प्रजाति की गाय का रंग काला, सफ़ेद व लाल होता है |

धन्नी प्रजाति (Dhanni Prajati)

इस प्रजाति को पंजाब राज्य के अनेक स्थानों में पाया जाता है | धन्नी नस्ल की गाय कम दुधारू होती है, लेकिन गोवंश काफी फुर्तीले होते है |

खिल्लारी प्रजाति (Khilari Prajati)

इस नस्ल के गोवंश का सिर बड़ा, पूँछ छोटी, सींग लंबी और रंग खाकी होता है | खिल्लारी गाय का गलंकबल अधिक बड़ा होता है | इस प्रजाति का बैल अधिक शक्तिशाली होता है | किन्तु गाय अधिक दूध देने में सक्षम नहीं होती है | इस नस्ल की उत्पत्ति का स्थान महाराष्ट्र तथा सतपुड़ा (म.प्र.) को कहा जाता है |

देसी गाय की कीमत व कहाँ से ख़रीदे (Desi Cow Price and Where to Buy)

किसानो को पशुपालन आरम्भ करते समय कई तरह की समस्याए होती होती है, जिसमे से एक समस्या पशुओ की खरीद की है | देशी पशुओ की खरीद कहा से की जाए इस बात से किसान परेशान रहते है | यहाँ पर आपको एक ऐसी जगह के बारे में जानकारी दी जा रही है, जहा से आप अच्छी गुणवत्ता वाली देशी और दुधारू गाय को कम कीमत पर खरीद सकते है | हरियाणा के हिसार जिले में स्थित रावलवास कलां गांव में सभी तरह की देसी गाय मिल जाएगी | आप सिर्फ 25 हज़ार रूपए की शुरुआती कीमत से गाय की खरीद कर सकते है | इसके अलावा गाय की कीमत उसकी नस्ल, आयु, दूध देने की क्षमता के अनुसार बढ़ती जाती है | यह कीमत लाखो में भी हो सकती है |

भारत में सबसे ज्यादा दूध देने वाली गाय कौन सी है ?