करौंदा (Carissa Carandas) की खेती | लागत व कमाई – करौंदा के फायदे और नुकसान


करौंदा (Carissa Carandas) की खेती से सम्बंधित जानकारी

करोंदे की खेती किसानो के लिए काफी फायदेमंद साबित हो रही है | इस फसल से किसानो को अधिक मुनाफा होता है, साथ ही उन्हें देख – रेख करने की भी जरूरत नहीं होती है | करोंदे का पौधा झाड़ीनुमा कांटेदार होता है, जिस वजह से वृक्षों को जंगली जानवर नुकसान नहीं पंहुचा पाते है, और फसल भी अच्छी होती है| इसे आप किसी भी फसल के चारो लगाकर ऊगा सकते है | यह एक सदाबहार पौधा है, जिसे किसी भी मौसम में लगा सकते है | करोंदे का फल वर्षा आधारित क्षेत्रों में पाया जाता है |




भारत में करोंदे का उत्पादन मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, गुजरात और हिमालय राज्य में किया जाता है | यदि आप भी करोंदे की खेती करना चाह रहे है, तो इस लेख में आपको करौंदा (Carissa Carandas) की खेती कैसे करे, तथा खेती में लागत व कमाई – करौंदा के फायदे और नुकसान जैसी सभी जानकारी दे रहे है |

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करोंदे का फल (Cranberry Fruit)

करोंदे का फल स्वाद में अधिक खट्टा होता है, लेकिन पौष्टिकता और स्वास्थ की दृष्टि से यह बहुत गुणकारी फल है | इसमें अम्लीय स्वाद के साथ एक विशेष गंध होती है| करोंदे का इस्तेमाल जेली, करोंदा क्रीम, जूस और सॉस जैसे प्रिय उत्पादों को बनाने के लिए करते है| इसका कच्चा फल खट्टा और कसेला होता है, जिसे अचार और चटनी बनाने के लिए बखूबी इस्तेमाल करते है| इसके अधपके फल में छिद्र करके नक़ल चेरी नमक उत्पाद बनाते है, जिसे कम तापमान पर 5 से 6 महीने तक सुरक्षित रख सकते है| इसके अलावा इसे मिठाई और पेस्ट्री को सजाने में रगीन चेरी के स्थान पर करते है|

करोंदे में पौष्टिक एवं औषधीय गुण (Karonda Nutritional and Medicinal Properties)

करोंदे के फल को पौष्टिक तत्वों का खजाना कहते है | इसमें विटामिन ‘सी‘, कार्बोहाइड्रेट व पेक्टिन प्रचुर मात्रा में पाया जाता है | शुष्क करोंदे में 2.3 प्रतिशत प्रोटीन, 364 कैलोरी ऊर्जा, 9.6 प्रतिशत वसा, 67.1 प्रतिशत कार्बोहाईड्रेट, 2.8 प्रतिशत खनिज लवण और 39.1 MG आयरन प्रति 100 GM की मात्रा में पाया जाता है | भारत के बैंगलोर में स्थित बागवानी रिसर्च इंस्टीट्यूट के अनुसार करोंदा पैंटोथेनिक एसिड (विटामिन B5), थायमीन (विटामिन B1), बायोटिन (विटामिन B7), रिबोफ्लेविन (विटामिन B2), (विटामिन B6) और फोलिक एसिड (विटामिन B9) का उत्तम स्त्रोत है | करोंदे में मौजूद विटामिन्स और पौष्टिक तत्व के कारण इसे आयुर्वेदिक दवाईओ को बनाने में भी उपयोग करते है |

इसके अलावा भी इसमें कई गुण है, जैसे :- कच्चा करौंदा भूख बढ़ाने और प्यास शांत करने में कारगार है, और पक्का करौंदा वातहारी और रूचिकर होता है | आयरन की प्रचुर मात्रा एनीमिया रोग में लाभकारी होता है, तथा विटामिन सी स्कर्वी रोग से लड़ने में मदद करता है | इसके पेड़ की जड़ से रस निकालकर छाती में लगाने से दर्द से राहत मिल जाती है, और पत्तियों को पीसकर पीने से बुखार में राहत मिलती है |

करोंदा खाने के फायदे (Karonda Eating Benefits)

  • इसमें कैल्शियम की मात्रा अच्छी होती है, जिस वजह से इसका सेवन हड्डियों को मजबूत बनाने में सहायक है |
  • इसमें प्रोंथोसाइनिडिन का गुण पाया जाता है, जो कैंसर सेल्स को बढ़ने से रोकता है |
  • करोंदे में कई विटामिंस पाए जाते है | यदि आप करोंदे का जूस पीते है, तो आपके बाल चमकदार और हेल्दी रहेंगे |
  • इसमें फाइबर की अच्छी मात्रा होती है, जिस वजह से भूक नहीं लगती है | इसके जूस का सेवन मोटापे को कम कर सकता है |
  • करोंदे का जूस कोलेस्ट्रॉल लेवल को संतुलित रखता है, जिस वजह से हार्ट अटैक का खतरा कम हो जाता है |

करोंदा खाने के नुकसान (Karonda Eating Disadvantages)

  • इसमें काफी अधिक सैलिसिलिक एसिड मौजूद होता है, जो वजह से एलर्जी जैसी समस्या हो सकती है |
  • करोंदे में विटामिन B12 को अवशोषित करने का गुण होता है, जिस वजह से पेट में सूजन और एसिडिटी जैसे समस्या हो सकती है | इसलिए बहुत ही कम करोंदा खाए |
  • इसमें ऑक्सालेट नामक तत्व पाया जाता है, जो यूरिन के स्तर को 43% तक बढ़ा देता है, जिस वजह से पथरी या किडनी पर बुरा असर जैसी समस्या हो सकती है |
  • जिन लोगो को अल्सर, गाउट, अर्थराइटिस एवं साइटिका की समस्या है, वह करोंदे का सेवन न करे |
  • यदि आप करोंदे के जूस का सेवन जरूरत से ज्यादा करते है, तो आपको आंत और पाचन संबंधी समस्या हो सकती है |

करोंदे की खेती में भूमि व जलवायु का चुनाव (Karonda Cultivation Land and Climate)

करोंदे का वृक्ष झाड़ीनुमा और काँटायुक्त होता है, जिस वजह से यह गर्म जलवायु को भी आसानी से सहन कर लेता है | भारत में करौंदा समशीतोष्ण, उष्ण, शुष्क एवं अर्द्धशुष्क जलवायु वाले इलाको में आसानी से ऊगा सकते है | अधिक ठन्डे क्षेत्रों में इसकी खेती नहीं की जाती है | करोंदे की खेती को किसी भी तरह की भूमि जैसे :- ऊसर, बंजर, घास जमीन, कंकरीली-पथरीली और छत्तीसगढ़ की भाटा जमीन में कर सकते है | उचित जल निकासी बलुई, दोमट तथा 6 से 8 P.H. मान वाली भूमि को करोंदे की फसल के लिए अच्छा माना जाता है |

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करोंदे की उन्नत किस्में (Karonda Improved Varieties)

पूरी दुनिया में करोंदे की तक़रीबन 30 प्रजातियों को उगाया जाता है, जिसमे से 4 प्रजातियां भारत में उगाई जाती है | इसमें कैरिसा कैरन्डास भारत की सबसे प्रसिद्ध प्रजाति है | करोंदे की उन्नत किस्मे इस प्रकार है:-

  • केरिसा ग्रैन्डीफ्लोरा :- इस क़िस्म के पौधों में निकलने वाला करौंदा आकार में गोल, पतला छिलका और गहरे लाल रंग का होता है | यह क़िस्म घरेलू उपयोग के लिए उगाई जाती है | इसमें विटामिन सी अधिक मात्रा में होता है, जिससे जेली को तैयार किया जाता है |
  • कैरिसा इडूलिसा :- यह क़िस्म बाड़ के प्रति उपयुक्त है | इसमें निकलने वाले फूल खुशबूदार हल्के लाल व  सफ़ेद रंग के होते है, तथा फल गोल अंडाकार और लाल रंग का होता है, जो पकने पर काले रंग में बदल जाता है| इसके एक पौधे से 25 से 30 KG फल मिल जाते है |
  • पंत मनोहर :- इस क़िस्म का पौधा झाड़ीनुमा कम ऊंचाई का होता है, जिसमे निकलने वाले फल गहरे गुलाबी और सफ़ेद रंग के होते है | इसके एक फल का औसतन भार 3.49 GM होता है | एक फल से 3-4 बीज मिल जाते है, तथा प्रत्येक झाड़ी से 27 KG फल का उत्पादन प्राप्त हो जाता है |
  • पंत सुदर्शन :- इस क़िस्म में भी पौधे कम ऊंचाई वाले होते है, जिसमे फल गुलाबी आभा लिए हुए सफ़ेद रंग के होते है | इसकी एक झाड़ी से 29 KG फल मिल जाते है, तथा एक फल का औसतन वजन 3.46 GM के आसपास होता है |
  • पंत स्वर्णा :- इस क़िस्म में निकलने वाला पौधा अधिक ऊंचाई वाला झाड़ीनुमा होता है | जिसमे निकलने वाला फल हल्की भूरी आभा के साथ गहरा हरा होता है, जो पकने पर गहरा भूरा हो जाता है | इसके एक फल में 4 से 6 बीज होते है, तथा फल औसतन वजन 3.62 GM होता है | इसकी एक झाड़ी से 22 KG फल का उत्पादन मिल जाता है |
  • सी.आई.एस.एच. करौंदा – 2 :- इस क़िस्म को लखनऊ में स्थित केन्द्रीय उपोष्ण उद्यान संस्थान द्वारा विकसित किया गया है | यह कम समय में पकने वाली क़िस्म है, जिसमे निकलने वाला फल का रंग लाल और वजन 6 GM तक होता है| इसकी एक झाड़ी से 35 से 40 KG फल प्राप्त हो जाते है |

करोंदे के पौध की तैयारी (Karonde Seedlings Preparation)

करोंदे के पौधों को बीज के माध्यम से तैयार किया जाता है | इसके लिए पूर्ण रूप से पके फलो से बीजो को निकाल लेते है, और पौधशाला में बुवाई कर देते है | 30 से 60 दिन पुराने पौधों को पारदर्शी पन्नी में भरकर किसी छायादार जगह पर एकत्रित कर लिया जाता है | वर्षा न होने की स्थिति में सिंचाई की जाती है | दो वर्ष पूर्ण हो जाने पर बीज पौधा रोपाई के लिए तैयार हो जाता है | बीज से तैयार पौधों में फूल देरी से आते है | कम समय में अच्छी उपज लेने के लिए पौधों को वानस्पतिक विधि जैसे :- गूटी और कटिंग विधि से तैयार करे | कटिंग या बडिंग विधि से तैयार पौधा बीज की तुलना में कम समय में फल देने लगता है |

करोंदे के पौधों की रोपाई (Tansplanting Karonda Plants)

करोंदे के पौधों की रोपाई के लिए जुलाई से अगस्त का महीना उपयुक्त होता है, तथा सिंचित जगहों पर फ़रवरी से मार्च के महीने में भी रोपाई की जा सकती है | बाढ़ के रूप में पौधों को लगाने के लिए पौध से पौध के मध्य 1 मीटर की दूरी रखी जाती है | करोंदे के बगीचे को 3 x 3 या  4 x 4 मीटर पर आयताकार रेखांकित किया जाता है | तक़रीबन एक माह पूर्ण 30-40 घनाकार वाले गड्डो को खोदकर उसमे 25 से 30 KG सड़ी गोबर की खाद को प्रति गड्डे में भरे | इन्ही गड्डो में पौधों को लगाकर मिट्टी से अच्छी तरह से ढक दिया जाता है |

करोंदे की फसल में खाद (Karonda Crop Manure)

करोंदे के वृक्ष की अच्छी पैदावार के लिए उचित मात्रा में पोषक तत्व देना जरूरी होता है | इसके लिए पौध रोपाई के पहले वर्ष में 5 KG गोबर, 150 GM सिंगल सुपर फास्फेट, 100 GM यूरिया व 75 GM पोटाश की मात्रा दे | उवर्रक की इसी मात्रा को तीन वर्ष तक देना होता है | इसके बाद अधिक आयु वाले पौधों को 450 GM सिंगल सुपर फास्फेट, 300 GM यूरिया, 15-20 KG ग्राम गोबर की खाद व 225 ग्राम पोटाश की मात्रा प्रति वर्ष दे |

करोंदा के पौधों की सिंचाई (Karonda Plants Irrigation)

करोंदा का पौधा सूखा रहित होता है, जिस वजह से एक बार स्थापित हुए पौधों को अधिक पानी की जरूरत नहीं होती है | किन्तु जिन पौधों की रोपाई जल्द ही की गयी होती है, उन्हें गर्मी के महीने में पानी देना होता है | ग्रीष्मकाल के मौसम में पौधों पर फूल आना आरम्भ कर देते है | गर्मियों में पौधों को 10 से 15 दिन के अंतराल में पानी दिया जाना चाहिए | सर्दियों में पानी की जरूरत नहीं होती है, तथा वर्षा के मौसम में जल निकासी की उचित व्यवस्था अवश्य रखे |

करोंदे की पैदावार और कमाई (Karonda Production and Earnings)

करोंदे के पौधे बीज रोपाई के 4 से 5 वर्ष बाद पैदावार देना आरम्भ कर देते है | लेकिन गुटि द्वारा पौधों को तैयार होने में केवल 2 – 3 वर्ष ही लगते है | पेड़ो पर फल आने के तक़रीबन 2 से 3 महीने पश्चात् फल पककर तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते है | फलो की तुड़ाई जरूरत के अनुसार ही करे | अचार, सब्जी व चटनी के लिए कच्चे फलो को तोड़ा जाता है| इसके अलावा जेली बनाने के लिए अधपके फलो की तुड़ाई की जाती है | क्योकि इस दौरान फलो में पेक्टिन उच्च मात्रा में होता है, जो जेली बनाने के लिए उपयुक्त है |

करोंदे का एक झाड़ीनुमा पौधा तक़रीबन 15-25 KG फलो का उत्पादन दे देता है | तुड़ाई के बाद करोंदे के फलो को छायादार स्थान पर भंडारित कर ले | इसके बाद छोटे, बड़े व मध्यम आकार वाले फलो की श्रेणियों में छटाई कर ले | इसके बाद करोंदे के फलो को बाजार में विक्रय करने के लिए भेज दे | करोंदे का फल सामान्य तापमान पर एक सप्ताह तक अच्छा रहता है | किन्तु इसका परिपक्व फल सिर्फ 2-3 दिनों के लिए ही संग्रहित कर सकते है|

यदि करोंदे के खेत में 3 x 3 या 4 x 4 मीटर की दूरी रखते हुए पौधों की रोपाई कर सकते है | यदि खेत में करोंदे  की रोपाई 4 x 4 मीटर की दूरी पर की गयी है, तो एक हेक्टेयर के खेत में तक़रीबन 625 पौधों को लगाया जा सकता है| यदि पौधों की कटाई – चटाई के साथ सिंचाई व खाद की संतुलित मात्रा का प्रयोग करते है, तो पौधा 2 से 3 वर्ष में ही 15-20 KG फल दे देता है | करोंदे का बाज़ारी भाव 20 – 25 रूपए प्रति किलो होता है | करोंदे की खेती में यदि सभी खर्चो को निकाल दे तो प्रतिवर्ष इसके बगीचे से 75 हज़ार से 80 हज़ार रूपए की शुद्ध कमाई की जा सकती है |

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