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ज्वार की खेती (Sorghum Farming) से सम्बंधित जानकारी
ज्वार की खेती खाने के लिए मोटे दाने वाले अनाज और हरे चारे के लिए की जाती है | किसान भाई ज्वार के पूरे पौधे का इस्तेमाल पशुओ के चारे में करते है, किन्तु खाने के रूप में इसका इस्तेमाल खिचड़ी और चपाती बनाकर किया जाता है | इसकी खेती किसी भी जगह पर की जा सकती है, सिंचित और असिंचित जगह का इसकी फसल पर कोई असर देखने को नहीं मिलता है | इसके पौधों की लम्बाई 10 से 12 फ़ीट तक पायी जाती है | जिसे आप हरे चारे के लिए कई बार कटाई कर सकते है | ज्वार की खेती में भारत विश्व में तीसरे पायदान पर है |
ज्वार में मिलने वाले प्रोटीन में लाइसीन अमीनो अम्ल की 1.4 से 2.4 प्रतिशत तक मात्रा पायी जाती है, तथा दानो में ल्यूसीन अमीनो अम्ल की मात्रा अधिक होने के चलते ज्वार खाने वाले व्यक्तियों में पैलाग्रा क़िस्म का रोग देखने को मिल सकता है | अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में ज्वार की अच्छी फसल प्राप्त हो जाती है | किसान भाई ज्वार की खेती व्यापारिक तौर पर करके अधिक मुनाफा भी कमा रहे है | यदि आप भी ज्वार की खेती करने में रुचि रखते है, तो यहाँ पर आपको ज्वार की खेती कैसे करे (Sorghum Farming in Hindi) तथा ज्वार की उन्नत किस्में कौन सी है, इसके बारे में बताया जा रहा है |
ज्वार की खेती कैसे करे (Sorghum Farming in Hindi)
ज्वार की खेती के लिए भूमि और तापमान (Sorghum Cultivation Land and Temperature) कितना होना चाहिए इसकी जानकारी होना अति आवश्यक है, जिससे आप अच्छी खेती करके लाभ कमा सकते है, जिसे इस प्रकार बताया गया है:-
ज्वार की फसल को किसी भी प्रकार की भूमि में उगाया जा सकता है | किन्तु अधिक मात्रा में उत्पादन प्राप्त करने के लिए खेती उचित जल निकासी वाली चिकनी मिट्टी में करे | इसकी खेती में भूमि का P.H. मान 5 से 7 के मध्य होना चाहिए | इसकी खेती खरीफ की फसल के साथ की जाती है | उस दौरान गर्मी का मौसम होता है, गर्मियों के मौसम में उचित मात्रा में सिंचाई कर अच्छी पैदावार प्राप्त की जा सकती है |
इसके पौधों को सामान्य वर्षा की आवश्यकता होती है | ज्वार के बीज सामान्य तापमान पर ठीक तरह से अंकुरित होते है, तथा पौध विकास के समय उन्हें 25 से 30 डिग्री तापमान चाहिए होता है | इसके पौधे अधिकतम 45 डिग्री तापमान को ही सहन कर सकते है |
ज्वार की उन्नत किस्में (Sorghum Improved Varieties)
पूसा चरी 23
इस किस्म का पौधा कम रसे वाला लम्बा और पतला होता है | यह स्वाद में हल्की मिठास लिए हुए होता है | इस किस्म को मुख्य रूप से हरे चारे के लिए उगाया जाता है, जो कम समय में कटाई के लिए तैयार हो जाती है | इस किस्म का हरे चारे के रूप में प्रति हेक्टेयर उत्पादन 600 क्विंटल तक होता है, तथा 160 से 180 क्विंटल तक सूखा चारा प्राप्त हो जाता है |
सी.एस.बी. 13
ज्वार की इस किस्म को तैयार होने में 110 से अधिक दिन का समय लग जाता है | जिसमे निकलने वाला पौधा 10 से 15 फ़ीट लम्बा होता है | इस किस्म को हरे चारे और दानो का उत्पादन प्राप्त करने के लिए किया जाता है | यह किस्म दो कटाई के पश्चात् दानो की पैदावार दे देती है, जिसका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 15 से 20 क्विंटल तक होता है, तथा 100 क्विंटल तक हरा चारा प्राप्त हो जाता है |
एस.एस.जी. 59-3
इस क़िस्म के पौधों का आकार लम्बा, पतला और कम रसे वाला होता है | इसके पौधे कई बार कटाई के लिए तैयार हो जाते है | यह क़िस्म प्रति हेक्टेयर के हिसाब से हरे चारे के रूप में 600 से 700 क्विंटल का उत्पादन दे देती है, तथा 150 क्विंटल तक सूखे चारे के लिए पैदावार मिल जाती है |
सी.एस.एच 16
इस क़िस्म के पौधे बीज रोपाई के तक़रीबन 110 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते है | इसके पौधे सामान्य ऊंचाई वाले होते है, जिससे 300 से 400 क्विंटल की फसल प्राप्त हो जाती है, तथा 90 क्विंटल तक सूखा चारा मिल जाता है |
एम.पी. चरी
ज्वार की इस क़िस्म को तैयार होने में 120 दिन का समय लग जाता है | जिसके बीज रोपाई के 70 दिन बाद फूल देना शुरू कर देते है | यह क़िस्म मुख्य रूप से हरे चारे के लिए उगाई जाती है, जो प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 500 क्विंटल तक का उत्पादन दे देती है, साथ ही 18 क्विंटल तक दाने प्राप्त हो जाते है |
पी.सी.एच. 106
ज्वार की यह क़िस्म 110 दिन पश्चात् कटाई के लिए तैयार हो जाते है | जिसमे निकलने वाला पौधा सामान्य मोटा और लम्बा होता है | इसके पौधे कई बार कटाई के लिए तैयार हो जाते है, जो प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 800 क्विंटल का उत्पादन दे देती है |
हरा सोना
यह क़िस्म कई राज्यों में अधिक पैदावार देने के लिए उगाई जाती है | इस क़िस्म को तैयार होने में 100 से 110 दिन का समय लग जाता है | इसके एक पौधे में 6 से 8 किल्ले आते है, तथा फसल की कटाई तीन से चार बार की जा सकती है |
ज्वार की फसल के लिए भूमि की तैयारी और उवर्रक (Sorghum Crop Land Preparation and Fertilizer)
ज्वार की फसल उगाने से पहले खेत को अच्छी तरह से तैयार कर ले | इसके लिए सबसे पहले खेत की गहरी जुताई कर दी जाती है | जुताई के पश्चात् खेत में प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 10 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद को डालना होता है | खाद डालने के तुरंत बाद खेत की जुताई कर खाद को मिट्टी में अच्छे से मिला दे | इसके बाद खेत में पानी लगाकर पलेव कर दिया जाता है | पलेव के बाद मिट्टी सूख जाने पर रोटावेटर लगाकर खेत की गहरी जुताई कर दे | इससे मिट्टी भुरभुरी हो जाती है, और फिर पाटा लगाकर खेत को समतल कर दिया जाता है | ज्वार के खेत में रासायनिक उवर्रक के तौर पर प्रति हेक्टेयर के खेत में एक बोरा डी.ए.पी. का छिड़काव करे यदि फसल हरे चारे के लिए की गयी है, तो पौध कटाई के पश्चात् खेत में 20 से 25 KG यूरिया का छिड़काव करे |
ज्वार के बीज की रोपाई का समय और तरीका (Tidal Seeds Transplanting Method)
ज्वार के बीजो की रोपाई बीज के माध्यम से की जाती है | बीज रोपाई के लिए ड्रिल और छिड़काव विधि का इस्तेमाल किया जाता है | एक हेक्टेयर के खेत में तक़रीबन 12 से 15 KG बीजो की जरूरत होती है, किन्तु हरे चारे के लिए की गयी रोपाई के लिए 30 KG बीज लगते है | बीज रोपाई से पहले बीजो को कार्बेंडाजिम की उचित मात्रा से उपचारित कर लिया जाता है |
इसके बाद यदि आप बीजो को छिड़काव तरीके से लगाना चाहते है, तो बीजो को खेत में छिड़ककर कल्टीवेटर लगाकर हल्की जुताई कर दे| इससे बीज भूमि में कुछ गहराई तक चला जाता है| इसके बाद हल्का पाटा लगाकर चला दे ताकि बीज मिट्टी में अच्छे से मिल जाए | ड्रिल विधि में बीजो की रोपाई पंक्तियों में करनी होती है | जिसमे प्रत्येक पंक्ति के मध्य एक फ़ीट की दूरी रखी जाती है, और बीजो को 5 CM की दूरी पर 3 से 4 CM गहराई में लगाना होता है | इससे बीजो का अंकुरण ठीक तरह से होता है | चूंकि ज्वार की फसल खरीफ की फसल के साथ ही की जाती है, इसलिए बीज रोपाई अप्रैल से मई माह के अंत तक की जानी चाहिए |
ज्वार के पौधों की सिंचाई (High Tide Plants Irrigation)
ज्वार की फसल के लिए सामान्य सिंचाई उपयुक्त होती है | हरे चारे के लिए की गयी खेती में पौधों को अधिक पानी की जरूरत होती है | इस दौरान पौधों को 4 से 5 दिन के अंतराल में पानी देना होता है | ताकि पौधा ठीक तरह से विकास कर सके, और फसल कम समय में कटाई के लिए तैयार हो जाए |
ज्वार की फसल में खरपतवार नियंत्रण (Jowar Crop Weed Control)
ज्वार की खेती में खरपतवार नियंत्रण की अधिक जरूरत नहीं होती है | किन्तु अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए फसल में खरपतवार नियंत्रण करना जरूरी होता है | इसके लिए रासायनिक और प्राकृतिक दोनों ही तरीको का इस्तेमाल किया जा सकता है | रासायनिक विधि में एट्राजिन की उचित मात्रा का छिड़काव बीज रोपाई के तुरंत बाद करना होता है | प्राकृतिक विधि में निराई – गुड़ाई की जाती है, इसके लिए बीज रोपाई के पश्चात् पहली गुड़ाई 20 से 25 दिन बाद की जाती है | इसके बाद जरूरत पड़ने पर ही खेत की गुड़ाई करे |
ज्वार की फसल के रोग एवं उपचार (Jowar Crop Diseases and Treatment)
रोग | रोग का प्रकार | उपचार |
पत्ती झुलसा | जल भराव | जल भराव न होने दे| |
तना छेदक | कीट जनित रोग | कार्बोफ्युरॉन का छिड़काव पौधों पर करे| |
टिड्डियों का आक्रमण | टिड्डी के रूप में | दानेदार फोरेट का छिड़काव खेत में |
पायरिला | कीट जनित रोग | मोनोक्रोटोफॉस या प्रोफेनोफॉस का छिड़काव पौधों पर करे| |
सफेद लट | कीट | क्लोरोपाइरीफॉस का छिड़काव पौधों की जड़ो पर करे| |
जड़ विगलन | जड़ विगलन रोग | थीरम या केप्टान का छिड़काव पौधों पर करे| |
ज्वार का माईट | कीट रोग | नीम के तेल छिड़काव पौधों पर |
ज्वार के फसल की कटाई (Sorghum Harvest)
ज्वार के पौधे 110 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते है | जब पौधों पर लगी पत्तिया सूखी दिखाई देने लगे उस दौरान पौधों की कटाई कर ले | इसके फसल की कटाई दो से तीन बार तक की जा सकती है | ज्वार के पौधों को भूमि की सतह के पास से काटा जाता है | फसल कटाई के पश्चात् दानो को अलग कर लिया जाता है, और उन्हें ठीक से सूखा लिया जाता है | इसके बाद मशीन के माध्यम से दानो को अलग कर ले |
ज्वार की पैदावार और लाभ (Sorghum Yields and Benefits)
एक हेक्टेयर के खेत से हरे चारे के रूप में 600 से 700 क्विंटल तक फसल प्राप्त हो जाती है, तथा सूखे चारे के रूप में 100 से 150 क्विंटल का उत्पादन मिल जाता है | जिसमे से 25 क्विंटल तक ज्वार के दाने मिल जाते है | ज्वार के दानो का बाज़ारी भाव ढाई हजार रूपए प्रति क्विंटल होता है | इस हिसाब से किसान भाई ज्वार की एक बार की फसल से 60 हज़ार रूपए तक की कमाई प्रति हेक्टेयर के खेत से कर सकते है |