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लीची की खेती (Litchi Farming) से सम्बंधित जानकारी
लीची की खेती स्वादिष्ट फलो के लिए की जाती है| इसके पौधे झाड़ियों के रूप में फैलते है| पूरे विश्व में लीची उत्पादन के मामले भारत को दूसरा स्थान प्राप्त है, और पहले नंबर पर चीन है| लीची का फल लाल छिलकेदार होता है, जिसमे सफ़ेद रंग का गुदा होता है, जो स्वाद में मीठा और स्वादिष्ट होता है| लीची के फलो का उपयोग सीधे तौर पर खाने के अलावा अनेक प्रकार की चीजों को बनाने के लिए भी करते है| इसके फलो से जैम, जेली, नेक्टर, शरबत, कार्बोनेटेड आदि पेय पदार्थो को बनाया जाता है|
लीची में विटामिन बी, सी, मैग्नीशियम, कैल्शियम और कार्बोहाइड्रेट की उचित मात्रा पायी जाती है | जिस वजह से लीची का सेवन मानव शरीर के लिए अधिक लाभकारी होता है | बाज़ारो में भी लीची की बहुत अधिक मांग रहती है, जिस वजह से किसान भाई लीची की खेती करना पसंद करते है | यदि आप भी लीची की खेती करना चाहते है, तो इस लेख में आपको लीची की खेती कैसे करे (Litchi Farming in Hindi) तथा लीची की उन्नत किस्में के बारे में जानकारी दी जा रही है |
लीची की खेती कैसे करे (Litchi Farming in Hindi)
यहाँ लीची की खेती में सहायक भूमि और जलवायु (Litchi Cultivation Land and Climate) से समबन्धित जानकारी को समझकर आप अच्छी खेती करके लाभ कमा सकते है:-
लीची की खेती में बलुई दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है | हल्की अम्लीय और लेटेराइट भूमि लीची की पैदावार के लिए अच्छी मानी जाती है | इसकी खेती में भूमि का P.H. मान 5.5 से 7.5 के मध्य हो तथा जल निकासी भी अच्छी होनी चाहिए |
इसकी खेती के लिए समशीतोष्ण जलवायु की आवश्यकता होती है | बारिश के मौसम में इसके पौधों को केवल 1200 MM वर्षा की जरूरत होती है | लीची के पौधे सामान्य तापमान पर अच्छे से विकास करते है | गर्मियों का मौसम पौध विकास के लिए अधिक अच्छा माना जाता है, गर्म जलवायु में पौधों पर फूल अधिक मात्रा में निकलते है | इसके अलावा फल पकने के दौरान इन्हे सामान्य तापमान की जरूरत होती है | सामान्य तापमान पर लीची के फलो में अच्छी गुणवत्ता वाला गुदा बनता है |
लीची की उन्नत किस्में (Litchi Improved Varieties)
शाही लीची
लीची की यह क़िस्म अगेती फसल के लिए उगाई जाती है | इसके पौधों पर लगने वाले फल मई माह में तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते है | इस क़िस्म का पूर्ण विकसित पौधा 15 से 20 वर्ष तक पैदावार दे देता है | जिसके प्रत्येक पौधे से 100 KG तक लीची के फल प्राप्त हो जाते है |
कलकतिया लीची
यह क़िस्म अधिक देरी से पककर तैयार होती है | जिसके पौधों पर लगने वाले फल जुलाई के महीने में तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते है | इसका पूर्ण विकसित पौधा 20 वर्षो तक पैदावार दे देता है| इसके फलों का स्वाद मीठा होता है, जिसमे निकलने वाला बीज अधिक बड़ा होता है |
चाइना लीची
लीची की इस क़िस्म में फल अधिक गुदे वाला होता है | यह क़िस्म देरी से फलों का उत्पादन करती है | इसके एक पौधे से एक वर्ष में 80 KG तक फल प्राप्त हो जाते है | जिसमे निकलने वाले फल गहरे लाल रंग के होते है|
देहरादून
यह एक देशी क़िस्म है, जिसे देहरादून में अधिक मात्रा में उगाया जाता है | इसमें निकलने वाले फल अधिक रसीले होते है | इसका पौधा सामान्य आकार का होता है, जो जून के महीने में पककर तैयार हो जाता है |
सीडलेस लेट
लीची की इस क़िस्म में निकलने वाले पौधे आकार में अधिक लम्बे होते है | जिसका पूर्ण विकसित पौधा 80 से 100 KG का उत्पादन प्रति वर्ष दे देता है | इसके फल जून से जुलाई महीने में तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते है | इसके पौधों पर लगने वाले फल के अंदर गुदे की मात्रा अधिक पायी जाती है, जो स्वाद में मीठे होते है |
अर्ली बेदाना लीची
यह एक अगेती क़िस्म का पौधा होता है, जो पूरी तरह से तैयार हो जाने पर 20 से 25 वर्ष तक पैदावार दे देता है | इस क़िस्म में निकलने वाले फलों का आकार सामान्य और स्वाद मीठा होता है |
स्वर्ण रूपा
इस क़िस्म को भारत में कई स्थानों पर उगाया जाता है | इसके पौधों पर निकलने वाले फल आकार में सामान्य होते है, जिसके अंदर अधिक मात्रा में गुदा पाया जाता है | यह फल देखने में गहरे गुलाबी रंग का होता है | इसका पूर्ण विकसित पौधा 100 KG तक का उत्पादन प्रति वर्ष दे देता है |
लीची के खेत की जुताई और उवर्रक (Litchi Field Tillage and Fertilizer)
लीची के पौधे पूर्ण रूप से विकसित हो जाने पर कई वर्षो तक पैदावार दे देते है | इसलिए लीची की फसल करने से पहले खेत को ठीक तरह से तैयार कर ले | इसके लिए सबसे पहले मिट्टी पलटने वाले हलो से खेत की गहरी जुताई कर दी जाती है | जुताई के पश्चात् खेत को कुछ दिनों के लिए ऐसे ही खुला छोड़ दिया जाता है | इसके बाद खेत में पानी लगा दिया जाता है, और जब खेत का पानी सूख जाता है, तो खेत की दो से तीन तिरछी जुताई कर दी जाती है | इससे खेत में मौजूद मिट्टी के ढेले टूट जाते है, और मिट्टी भुरभुरी हो जाती है | भुरभुरी मिट्टी में पाटा लगाकर खेत को समतल कर दिया जाता है | समतल भूमि में जल भराव नहीं देखने को मिलता है|
इसके बाद खेत में पौध रोपाई के लिए गड्डो को तैयार कर लिया जाता है | इन गड्डो के मध्य 8 से 10 मीटर की दूरी रखते हुए एक फ़ीट गहरा और आधा फ़ीट चौड़ा गड्डा तैयार कर लिया जाता है | इसके बाद 25 KG गोबर की खाद के साथ 100 से 150 GM एन.पी.के. की मात्रा को मिट्टी में अच्छे से मिलाकर गड्डो में भर दिया जाता है | इसके पश्चात् पौधों को दो वर्ष बाद 2 KG करंज की मात्रा देनी होती है, तथा पौध विकास के साथ-साथ उवर्रक की मात्रा को बढ़ा दिया जाता है|
लीची के पौध रोपाई का समय और तरीका (Litchi Plants Planting Time and Method)
लीची के पौधों की रोपाई पौध के माध्यम से की जाती है | इसके लिए पौधों को नर्सरी में तैयार कर लिया जाता है | पौध तैयार करने के लिए आप ग्राफ्टिंग विधि या गूटी बांधना के माध्यम से तैयार कर सकते है | इसके अलावा यदि आप चाहे तो, किसी रजिस्टर्ड नर्सरी से भी पौधों को खरीद सकते है | पौध खरीदते समय यह जरूर ध्यान रखे की पौधे दो वर्ष पुराने होने चाहिए|
इससे पैदावार जल्दी प्राप्त होने लगती है | इसके बाद इन पौधों को खेत में तैयार गड्डो में लगा दिया जाता है | पौध रोपाई से पूर्ण तैयार गड्डो में एक छोटा सा गड्डा बनाकर उसमे पौधे लगा दिए जाते है | इसके बाद पौधों की सिंचाई कर दी जाती है, जिससे मिट्टी ठीक तरह से बैठकर कठोर हो जाती है | लीची के पौधों को लगाने के लिए जून और जुलाई का महीना सबसे उपयुक्त माना जाता है, इस दौरान बारिश का सीजन होता है | जो पौध विकास के लिए काफी अच्छा होता है|
लीची के पौधों की सिंचाई (Litchi Plant Irrigation)
लीची के पौधों को आरम्भ में अधिक सिंचाई की जरूरत होती है | इसलिए इसकी पहली सिंचाई पौध रोपाई के तुरंत बाद कर दी जाती है | इसके बाद पौधों को सप्ताह में दो बार पानी देना होता है | इसके पौधों को केवल उतने पानी की जरूरत होती है, जितने में खेत में नमी बनी रहे | यदि खेत में पानी की कमी हो जाती है, तो फल की वृद्धि में कमी और गुणवत्ता में भी असर देखने को मिल जाता है |
लीची के पौधों पर खरपतवार नियंत्रण (Litchi Plants Weed Control)
लीची की फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए प्राकृतिक तरीके से निराई – गुड़ाई कर की जाती है | इससे पौधों को विकास करने में किसी तरह की समस्या नहीं होती है | इसके बाद जब पौधा पूर्ण रूप से विकसित हो चुका होता है, उस दौरान पौधों की जड़ो के पास खुरपी की सहायता से हल्की मिट्टी निकालकर उसमे गोबर की खाद को भर दिया जाता है |
लीची के पौधों में लगने वाले रोग एवं उपचार (Litchi Plants Diseases and Treatments)
क्रं. सं. | रोग | रोग का प्रकार | उपचार |
1. | टहनी छेदक | कीट | पौधों पर सायपरमेथ्रिन या पाडान का छिड़काव करे| |
2. | लीची बग | कीट | पौधों पर फॉस्फोमिडॉन या मेटासिस्टाक्स का छिड़काव करे| |
3. | फल बेधक | कीट | फल पकने से एक माह पूर्व सायपरमेथ्रिन का पौधों पर छिड़काव करे| |
4. | फलों का झड़ना | तेज़ गर्म हवाओं के कारण | प्लानोफिक्स की उचित मात्रा का छिड़काव पौधों पर करे| |
5. | फलों का फटना | भूमि में नमी और तेज़ गर्म हवाओं के कारण | बोरिक अम्ल या बोरेक्स की उचित मात्रा का छिड़काव पौधों पर करे| |
लीची के फलों की तुड़ाई (Litchi Fruit Harvesting)
लीची के फल मई माह के अंत तक पैदावार देने के लिए तैयार हो जाते है | जब इसके पौधों पर लगे फलों का रंग गुलाबी दिखाई देने लगे उस दौरान फलों को गुच्छो सहित पेड़ से तोड़कर अलग कर लिया जाता है | इसके बाद इन्हे बाज़ारो में बेचने के लिए भेज देते है |
लीची की पैदावार और लाभ (Litchi Yields and Benefits)
लीची का पूर्ण विकसित एक पौधा 100 KG फलों का उत्पादन एक वर्ष में दे देता है | एक हेक्टेयर के खेत में तक़रीबन 150 से अधिक पौधों को लगा सकते है | लीची का बाज़ारी भाव 50 से 70 रूपए प्रति किलो होता है | इस हिसाब से किसान भाई लीची की एक वर्ष की पैदावार से 7 से 10 लाख तक की कमाई कर अधिक लाभ कमा सकते है |