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कासनी की खेती (Chicory Farming) से सम्बंधित जानकारी
कासनी की खेती कम समय में पैदावार देने के लिए तैयार हो जाती है, इसलिए इसे नगदी फसल भी हते है | यह एक बहुपयोगी फसल है, जिसे चिकोरी और चिकरी के नाम से भी जानते है | कासनी की खेती हरे चारे के लिए की जाती है, इसके अलावा इसे औषधीय तौर पर कैंसर की बीमारी के लिए भी उपयोगी माना जाता है | इसकी जड़ो को भूनकर काफी में डालकर पिया जाता है, इससे काफी का स्वाद अलग ही मज़ा मिलता है | इसकी जड़े देखने में मूली की तरह ही होती है, तथा पौधों पर नीले रंग के फूल लगते है | जिनसे बीज तैयार होते है | इसके बीज आकार में काफी छोटे, हल्के और भूरे सफ़ेद रंग के होते है |
कासनी की फसल का उत्पादन कंद और दाने दोनों ही रूप में प्राप्त हो जाती है | इसकी जड़ो का सेवन करने से दिल की तेज धड़कन, पेट में परेशानी, भूख की कमी और कब्ज जैसी बीमारियों में लाभ प्राप्त होता है | भारत में कासनी की खेती मुख्य रूप से उत्तराखण्ड, पंजाब, कश्मीर और उत्तर प्रदेश में की जाती है | यदि आप भी कासनी की खेती कर अच्छा लाभ कामना चाहते है, तो इस लेख में आपको कासनी की खेती कैसे करे (Chicory Farming in Hindi) तथा कासनी (चिकोरी) की पहचान के बारे में जानकारी दी जा रही है |
कासनी की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी, जलवायु और तापमान (Chicory Cultivation Suitable soil, Climate and Temperature)
कासनी की खेती को किसी भी उपजाऊ मिट्टी में कर सकते है,किन्तु यदि आप इसकी खेती व्यापारिक तौर पर करना चाहते है, तो उसके लिए बलुई दोमट मिट्टी को उपयुक्त माना जाता है, इससे उत्पादन अधिक मात्रा में प्राप्त होता है | जलभराव वाली भूमि में इसकी खेती नहीं की जा सकती है | सामान्य P.H. मान वाली भूमि इसकी खेती के लिए उपयुक्त मानी जाता है |
इसकी खेती में शीतोष्ण और समशीतोष्ण दोनों ही जलवायु उचित होती है | अधिक गर्म जलवायु में इसके पौधे अच्छे से विकास नहीं कर पाते है, तथा सर्दियों के मौसम में इसके पौधे अच्छे से वृद्धि करते है | सर्दियों में गिरने वाले पाले को भी इसका पौधा आसानी से सहन कर लेता है | इसकी फसल को अधिक वर्षा की आवश्यकता नहीं होती है | पौध अंकुरण के लिए इसके पौधों को 25 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है, तथा 10 डिग्री तापमान (Temperature) पर इसके पौधे अच्छे से वृद्धि करते है |
कासनी की उन्नत किस्में (Chicory Improved Varieties)
सामान्य तौर पर कासनी की दो प्रजातियों को उगाया जाता है, जो अलग-अलग इस्तेमाल के लिए उगाई जाती है, जिनमे जंगली और व्यापारिक प्रजातियां शामिल है, जिनकी जानकारी इस तरह से है:-
जंगली प्रजाति
इस प्रजाति की कासनी को सामान्य रूप से चारे के लिए उगाया जाता है | इसमें निकलने वाली पत्ती स्वाद में कड़वी होती है | इसका पूर्ण विकसित पौधा कई बार कटाई के लिए तैयार हो जाता है, जिसमे निकलने वाले कंद कम मोटे पाए जाते है |
व्यापारिक प्रजाति
इस क़िस्म की कासनी को व्यापारिक फसल के लिए उगाया जाता है, जो पौध रोपाई के 140 दिन पश्चात् खुदाई के लिए तैयार हो जाती है | इसमें निकलने वाली जड़े स्वाद में मीठी होती है |
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इस क़िस्म के पौधों का आकार सामान्य पाया जाता है, जिसकी जड़े आकार में लम्बी, मोटी और शंकु की भांति नोकदार होती है | इसकी जड़े भूरे रंग की होती है, जिसमे सफ़ेद रंग का गूदा पाया जाता है | इसकी जड़ो को बहुत ही सावधानी से उखाड़ना होता है |
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इस क़िस्म की चिकोरी को हिमाचल प्रदेश में मुख्य तौर पर उगाया जाता है | इसके पौधों में जड़े मोटी और गठी हुई होती है, जिसमे सफ़ेद रंग का गुदा पाया जाता है | इसकी जड़े उखाड़ते समय बहुत कम टूटती है, जिस वजह से अच्छी मात्रा में उत्पादन प्राप्त हो जाता है |
चिकोरी के खेत की तैयारी और उवर्रक (Chicory Field Preparation and Fertilizer)
कासनी की खेती में भुरभुरी मिट्टी की आवश्यकता होती है | इसलिए फसल को लगाने से पहले खेत को अच्छी तरह से तैयार कर ले | इसके लिए सबसे पहले मिट्टी पलटने वाले हलो से गहरी जुताई कर दी जाती है, इससे खेत में मौजूद पुरानी फसल के अवशेष पूरी तरह से नष्ट हो जाते है | जुताई के बाद खेत को कुछ समय के लिए ऐसे ही खुला छोड़ दिया जाता है | इससे खेत की मिट्टी में सूर्य की धूप ठीक तरह से लग जाती है, और मिट्टी में मौजूद हानिकारक जीव नष्ट हो जाते है |
कासनी के खेत में प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 12 से 15 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद डालनी होती है | इसके बाद कल्टीवेटर के माध्यम से खेत की दो से तीन तिरछी जुताई कर दे | इससे खेत की मिट्टी में गोबर की खाद अच्छी तरह से मिल जाती है | खाद को मिट्टी में मिलाने के बाद खेत में पानी लगा दिया जाता है, और जब खेत का पानी ऊपर से सूखा दिखाई देने लगता है, उस दौरान रोटावेटर लगाकर खेत की फिर से जुताई कर दी जाती है | इससे खेत की मिट्टी भुरभुरी हो जाती है, मिट्टी के भुरभुरा होने के पश्चात् पाटा लगाकर खेत को समतल कर दे | इससे खेत में जलभराव नहीं होगा |
इसके अतिरिक्त यदि आप कासनी की फसल के लिए रासायनिक खाद का इस्तेमाल करना चाहते है, तो उसके लिए आपको चार बोरे एन.पी.के. की मात्रा प्रति हेक्टेयर की हिसाब से खेत की आखरी जुताई के समय छिड़क दे | इसके अलावा अगर आप फसल की पहली कटाई कर चुके है, तो उसके बाद आपको दूसरी कटाई से पूर्व 20 KG यूरिया का छिड़काव खेत में करना होता है | व्यापारिक तौर पर की गई फसल के लिए जड़ विकास के दौरान 25 KG यूरिया की मात्रा को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खेत में छिड़कना होता है |
कासनी के बीजो की रोपाई का सही समय और तरीका (Chicory Seeds Planting Right time and Method)
कासनी के दोनों ही तरह के उपयोग में लायी जाने वाली फसल के लिए बीज की रोपाई छिड़काव विधि द्वारा की जाती है | सघन रोपाई में बीजो को सीधा खेत में छिड़क दिया जाता है, तथा व्यापारिक रूप में बीजो को मिट्टी में मिलाकर छिड़कना होता है| दानो को खेत में छिड़कने के पश्चात उन्हें हल्के हाथो से मिट्टी में कुछ गहराई पर दबा दिया जाता है| इसके अलावा खेत में उचित दूरी पर मेड़ो को भी तैयार कर सकते है, जिससे बीज आसानी से अंकुरित हो सके| इसके बीजो की रोपाई के लिए अगस्त का महीना सबसे उपयुक्त माना जाता है | यदि आप चाहे तो सामान्य तौर पर पैदावार प्राप्त करने के लिए बीज रोपाई जुलाई माह के अंत तक भी कर सकते है|
कासनी के पौधों की सिंचाई (Chicory Plants Irrigation)
कासनी के पौधों को अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है, इसकी प्रारंभिक सिंचाई बीज रोपाई के तुरंत बाद कर दी जाती है | आरम्भ में बीज अंकुरण के लिए खेत में नमी की आवश्यकता होती है, उस दौरान खेत में पानी देते रहना होता है | चारे के रूप में की गई फसल के लिए पौधों को 5 से 7 दिन के अंतराल में पानी देना होता है, तथा व्यापारिक रूप से की गई फसल के लिए पौधों की वृद्धि के समय 20 दिन के अंतराल में पानी देना होता है |
कासनी के पौधों पर खरपतवार नियंत्रण (Chicory Plants Weed Control)
कासनी के पौधों पर खरपतवार नियंत्रण प्राकृतिक विधि द्वारा किया जाता है, इसके लिए इसकी पहली गुड़ाई बीज रोपाई के 25 दिन बाद की जाती है, तथा बाद की गुड़ाई को 20 दिन के अंतराल में करना होता है |
कासनी के पौधों में लगने वाले रोग एवं उनकी रोकथाम (Chicory Plant Diseases and Prevention)
बालदार सुंडी
इस क़िस्म का रोग कासनी के पौधों पर पैदावार के दौरान आक्रमण करता है | इस रोग की सुंडी पौधों की पत्तियों को हानि पहुंचाती है | जिससे पौधा विकास करना बंद कर देता है | इस रोग से पौधों को बचाने के लिए नीम के तेल या सर्फ के घोल का छिड़काव पौधों पर करना होता है |
जड़ गलन
इस क़िस्म का रोग कासनी के पौधों पर नमी की वजह से देखने को मिलता है | इस रोग से प्रभावित फसल में पैदावार अधिक प्रभावित होती है | इस रोग से बचाव के लिए खेत में जलभराव न होने दे | इसके अतिरिक्त खेत की पहली जुताई के समय नीम की खली का छिड़काव खेत में करना होता है |
कासनी के फसल की कटाई, पैदावार और लाभ (Chicory Harvest, Yield and Benefits)
हरे चारे के रूप में उगाई गई फसल की कटाई बीज रोपाई के 25 से 30 दिन बाद की जाती है, तथा एक बार लगाई गई फसल से 10 से 12 कटाई आसानी से कर सकते है | पहली कटाई के बाद बाकि की कटाई के लिए इसके पौधे 12 से 15 दिन में तैयार हो जाते है |
कंद के रूप में फसल प्राप्त करने के लिए इसकी जड़ो की खुदाई बीज रोपाई के तीन से चार माह पश्चात् की जाती है | इसका वाला इसके बीजो को प्राप्त करने के लिए खुदाई की गई जड़ो से बीजो को मशीन द्वारा अलग कर लिया जाता है | इसके कंद और बीज एक साथ तैयार हो जाते है |
चिकोरी के कंद की खुदाई बीज रोपाई के 120 दिन बाद की जाती है, जिससे प्रति हेक्टेयर 20 टन का उत्पादन प्राप्त हो जाता है, तथा 5 क्विंटल तक बीज प्रति हेक्टेयर के खेत से प्राप्त हो जाते है | कासनी के कंदो का बाज़ारी भाव 400 रूपए तथा बीजो का भाव 8 हजार रूपए प्रति क्विंटल होता है | जिससे किसान भाई इसकी एक बार की फसल से कंद के रूप में 80 हजार रूपए तथा दानो के रूप में 40 हजार रूपए तक की कमाई कर अधिक मुनाफा कमा सकते है |