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क्विन्वा की खेती (Quinoa Farming) से सम्बंधित जानकारी
क्विन्वा की फसल अनाज के रूप में उगाई जाती है, अमेरिका को क्विन्वा का जन्मदाता कहा जाता है | इसका उत्पादन सर्वप्रथम दक्षिण अमेरिका में हुआ | भारत में इसे क्विन्वा के अलावा क्विनोआ, किनेवा और किनवा नाम से भी पुकारा जाता है | इसकी फसल से प्राप्त होने वाले बीज आकार में काफी छोटे होते है,जिन्हे खाने में कई तरह से उपयोग में लाया जाता है | क्विन्वा के बीजो में कई तरह के पोषक तत्व मौजूद होते है | जिसका सेवन करने से कैंसर, खून की कमी, हार्ट अटैक, स्वांस की बीमारियों में काफी फायदा मिलता है |
क्विन्वा का पूर्ण विकसित पौधा 4 से 6 फ़ीट तक ऊँचा होता है | इन पौधों के ऊपरी भाग पर इन बीजो का उत्पादन होता है | इसके पौधों की प्रजाति बथुआ श्रेणी की होती है | इसकी खेती से कम समय में अच्छी कमाई की जा सकती है | यदि आप भी क्विन्वा की खेती कर अच्छा लाभ कमाना चाहते है, तो इस पोस्ट में आपको क्विन्वा की खेती कैसे करे (Quinoa Farming in Hindi) तथा किनोवा की मंडी भाव से जुड़ी जानकारी दी जा रही है |
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क्विन्वा की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी,जलवायु और तापमान (Quinoa Cultivation Suitable Soil Climate and Temperature)
क्विन्वा की खेती किसी भी तरह की मिट्टी में आसानी से की जा सकती है | इसकी फसल के लिए किसी खास तरह की मिट्टी की आवश्यकता नहीं होती है,किन्तु भूमि अच्छी जल निकासी वाली जरूर हो | इसकी खेती में भूमि का P.H. मान सामान्य होना चाहिए | भारत की जलवायु क्विन्वा की खेती के लिए काफी उपयुक्त होती है | भारत में क्विन्वा की खेती रबी की फसल के साथ उगाई जाती है |
सर्दियों का मौसम इसकी फसल के लिए उचित माना जाता है | इसके पौधे सर्दियों में गिरने वाले पाले को भी आसानी से सहन कर लेते है | बारिश के मौसम में भी इसकी खेत को आसानी से किया जा सकता है | आरम्भ में इसके बीजो को अंकुरित होने के लिए 20 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है| इसके बीज अधिकतम 35 डिग्री तापमान को ही सहन कर सकते है |
क्विन्वा के खेत की तैयारी और उवर्रक की मात्रा (Quinoa Field Preparation and Fertilizer Quantity)
क्विन्वा के खेत को तैयार करने के लिए सबसे पहले मिट्टी पलटने वाले हलो से खेत की गहरी जुताई कर ली जाती है | इसके बाद खेत को कुछ समय के लिए ऐसे ही खुला छोड़ दिया जाता है| इसके बाद खेत में जैविक खाद के रूप में 10 से 12 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद को देना होता है | खाद को खेत में मिलाने के लिए कल्टीवेटर के माध्यम से दो से तीन तिरछी जुताई कर देनी चाहिए | इससे खेत की मिट्टी में गोबर की खाद अच्छे से मिल जाती है | इसके बाद खेत में पानी लगा कर पलेव कर दे | इसके बाद जब खेत की भूमि ऊपर से सूखी दिखाई देने लगे तब रोटावेटर लगाकर जुताई कर दी जाती है |
इससे खेत की मिट्टी भुरभुरी हो जाती है | खेत की मिट्टी को भुरभुरा करने के बाद खेत में पाटा लगाकर समतल कर दे| इससे खेत में जलभराव की समस्या नहीं होती है | यदि आप खेत में रासायनिक खाद का इस्तेमाल करना चाहते है, तो उसके लिए आपको एक बोरा डी.ए.पी. की मात्रा का छिड़काव एक हेक्टेयर के खेत में करना होता है |
क्विन्वा के बीजो की रोपाई का सही समय और तरीका (Sowing Quinoa Seeds Right time and Method)
क्विन्वा के बीजो की रोपाई खेत में ड्रिल विधि द्वारा की जाती है| इसके लिए खेत में पंक्तियों को तैयार कर लिया जाता है | इन पंक्तियो को तैयार करते समय प्रत्येक पंक्ति के मध्य एक फ़ीट की दूरी रखी जाती है | इसके बाद पंक्तियो में बीजो की रोपाई 15 CM की दूरी रखते हुए की जाती है | इसके अलावा इसके बीजो की रोपाई को छिड़काव विधि द्वारा भी किया जा सकता है | छिड़काव विधि में बीजो की रोपाई के लिए अधिक बीजो की आवश्यकता नहीं होती है | भारत की जलवायु के हिसाब से इसके बीजो को लगाने के लिए अक्टूबर से फरवरी का महीना उपयुक्त माना जाता है | इसके अलावा इसके बीजो को बारिश के मौसम में भी अच्छे से उगाया जा सकता है |
क्विन्वा के पौधों की सिंचाई (Quinoa Plants Irrigation)
क्विन्वा के पौधों को अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है | इसके पौधे सूखे मौसम को भी आसानी से सहन कर लेते है | क्विन्वा की फसल तीन से चार सिंचाई के बाद पककर तैयार हो जाती है | इसके पौधों की प्रारंभिक सिंचाई बीज रोपाई पश्चात् कर दी जाती है | इसके बाद की सिंचाई को पौधों के विकास और बीज अंकुरण के दौरान की जाती है |
क्विन्वा के पौधों में खरपतवार नियंत्रण (Quinoa Plants Weed Control)
क्विन्वा के पौधों में खरपतवार नियंत्रण के लिए प्राकृतिक विधि का इस्तेमाल किया जाता है | इसके पौधों की पहली गुड़ाई बीज रोपाई के 20 दिन बाद कर दी जाती है | इसके पौधों को अधिकतम दो गुड़ाई की ही आवश्यकता होती है |
क्विन्वा के पौधों में लगने वाले रोग (Quinoa Plants Diseases)
क्विन्वा एक ऐसा पौधा है, जिसमे निकलने वाली पत्तियों का स्वाद काफी कड़वा होता है | जिस वजह से इसके पौधों में बहुत कम ही रोग देखने को मिलते है, किन्तु इसके पौधों में गलन रोग देखने को मिल जाता है | यह गलन रोग पौधों में अक्सर जलभराव की स्थिति में देखने को मिल जाता है | इस रोग से बचाव के लिए खेत में जलभराव की समस्या न होने दे |
क्विन्वा के पौधों की कटाई और पैदावार (Quinoa Plants Harvesting, Yield)
क्विन्वा के पौधों को तैयार होने में 100 दिन का समय लग जाता है | बीज रोपाई के तीन माह बाद इसके पौधों की कटाई सरसो की फसल के रूप में की जाती है | इसके पौधों से बीज वाले भाग को काटकर अलग कर लिया जाता है | कटाई के बाद इसके बीज वाले भाग को धूप में अच्छे से सूखा लिया जाता है | इसके बाद इन सूखे हुए पौधों से थ्रेसर के माध्यम से बीजो को निकाल लिया जाता है | इन निकाले हुए दानो को भी धूप में अच्छे से सूखाकर बाजार में बेचने के लिए भेज दिया जाता है | एक हेक्टेयर के खेत में तक़रीबन 50 क्विंटल का उत्पादन प्राप्त हो जाता है |
क्विन्वा की मंडी भाव
इसके बीजो का बाज़ारी भाव 5,000 रुपये प्रति क्विंटल होता है | क्विन्वा की फसल कम खर्च में तैयार हो जाती है, जिससे किसान भाई एक हेक्टेयर के खेत में क्विन्वा की खेती कर दो लाख से अधिक कमाई कर अच्छा लाभ कमा सकते है |