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अलसी की खेती (Flax Farming) से सम्बंधित जानकारी
अलसी की खेती को व्यापारिक रूप से उगाया जाता है,इसकी खेती रेशेदार फसल के रूप में की जाती है | अलसी के बीजो में तेल की मात्रा बहुत अधिक पाई जाती है, किन्तु इसके तेल का उपयोग खाने में न करके दवाइयों को बनाने में इस्तेमाल किया जाता है | इसके तेल को वार्निश, स्नेह क, पेंट्स को बनाने के अलावा प्रिंटिंग प्रेस के लिए स्याही और इंक पैड को तैयार करने में किया जाता है | भारत के मध्य प्रदेश राज्य के बुंदेलखंड जिले में अलसी के तेल को खाने के साथ साबुन बनाने और दीपक जलाने में करते है | शरीर पर निकले फोड़ो फुंसी को ठीक करने के लिए इसकी पुल्टिस बनाकर उस पर लगाने से आराम मिल जाता है |
अलसी के तनो में उच्च गुणवत्ता वाले रेशे होते है, जिनसे लिनेन को भी तैयार किया जाता है | तेल निकालने से प्राप्त होने वाली खली को दुग्ध देने वाले पशुओ को आहार के रूप में दिया जाता है | इसकी खली में उच्च गुणवत्ता वाले पोषक तत्व पाए जाते है, जिस वजह से इसे खाद के रूप में भी इस्तेमाल करते है | इसके तेल में एक विशेष प्रकार का गुण होता है, जिस वजह से यह हवा के संपर्क में आते ही सूखकर सख्त हो जाता है | भारत अलसी उत्पादन के मामले विश्व में चौथे नंबर पर आता है | इस पोस्ट में आपको अलसी की खेती कैसे होती है(Flax Farming in Hindi) से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी दी गई है, इसके अलावा अलसी का रेट क्या है, इसके बारे में बताया गया है |
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अलसी की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी, जलवायु और तापमान (Linseed Cultivation Suitable soil, Climate and Temperature)
अलसी की फसल में अच्छी जल निकासी वाली काली चिकनी दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है | सामान्य P.H. मान वाली भूमि इसकी खेती के उपयुक्त होती है | अलसी की फसल के लिए सर्द और शुष्क जलवायु को उचित माना जाता है | हमारे देश में इसकी खेती को रबी की फसल के बाद किया जाता है|
सामान्य वर्षा इसकी फसल के लिए लाभदायक होती है, जिन क्षेत्रों में 40 से 50 CM की वार्षिक बारिश होती है, वहाँ पर अलसी की खेती को आसानी से किया जाता है | सामान्य तापमान में इसके पौधे अच्छे से विकास करते है, तथा बीजो के अंकुरण के लिए 15 से 20 डिग्री तापमान की जरूरत होती है |
अलसी की उन्नत किस्में (Linseed Improved Varieties)
अलसी की भी कई उन्नत किस्मो को तैयार किया गया है, जिन्हे अधिक उत्पादन और जलवायु के हिसाब से उगाया जाता है | यहाँ पर आपको इन किस्मो के बारे में बताया जा रहा है |
अलसी की टी 397 किस्म
इस किस्म के पौधों की ऊंचाई दो फुट से अधिक पाई जाती है | अलसी की इस किस्म में पौधे पर अधिक मात्रा में शाखाये पाई जाती है | इसके बीजो से 44 प्रतिशत तेल की मात्रा पाई जाती है, तथा इसमें निकालने वाले पुष्प नीले रंग के होते है | सिंचित और असिंचित दोनों ही क्षेत्र में इस किस्म को आसानी से ऊगा सकते है | यह प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 15 क्विंटल की पैदावार देता है |
अलसी की जे. एल. एस. – 66 किस्म
इस किस्म के पौधों को असिंचित जगहों में उगाने के लिए तैयार किया गया है | इसमें लगने वाला पौधा लगभग 2 फ़ीट ऊँचा होता है | इसकी फसल 110 के समय में पैदावार देने के लिए तैयार हो जाती है | अलसी की यह किस्म उकठा, आसिता और अंगमारी रोग रहित होती है | यह प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 12 क्विंटल की पैदावार देता है |
अलसी की आर एल सी 6 किस्म
अलसी की यह किस्म भी अंगमारी और उकठा रोग रहित होती है | इसके बीज आकार में छोटे होते है, जिसमे 42 प्रतिशत तक तेल की मात्रा पाई जाती है | इसे सिंचित और असिंचित दोनों ही जगहों पर आसानी से ऊगा सकते है | यह प्रति हेक्टेयर के हिसाब से सिंचित क्षेत्रों में 13 क्विंटल तथा असिंचित क्षेत्रों में 10 क्विंटल की पैदावार देता है |
इसके अलावा भी अलसी की अनेको किस्मो को उगाया जाता है | जिन्हे क्षेत्रों और पैदावार की हिसाब से बांटा गया है | यहाँ आपको अलसी की कई किस्मो को बताया जा रहा है, जैसे:- आर एल – 933, आर एल 914, जवाहर 23, पूसा 2, पी के डी एल 42, जवाहर अलसी – 552, जे. एल. एस. – 27, एलजी 185, जे. एल. एस. – 67, पी के डी एल 41, जवाहर अलसी – 7 आदि |
अलसी के खेत की तैयारी (Linseed Field Preparation)
अलसी के अच्छे उत्पादन के लिए उसके बीजो को खेत में लगाने से पहले खेत को अच्छे से तैयार कर लेना चाहिए | इसके लिए खेत की पहली अच्छी तरह से गहरी जुताई कर देनी चाहिए | इसके पश्चात् खेत को कुछ समय के लिए ऐसे ही खुला छोड़ देना चाहिए | इसके बाद खेत में 10 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से डाल देना चाहिए |
इसके साथ ही एक बोरा एन.पी.के. की मात्रा को खेत में डाल का जुताई कर दे इससे गोबर की खाद और रासायनिक खाद अच्छी तरह से मिट्टी में मिल जाएगी | खेत में मिट्टी को मिलाने के बाद उसके पानी लगा कर पलेव कर दे | पानी लगाने के कुछ दिन बाद जब खेत की मिट्टी सुखी दिखाई देने लगे तब रोटावेटर लगा कर जुताई करवा दे | इसके बाद खेत में पाटा लगा कर चलवा दे, जिससे खेत समतल हो जायेगा |
अलसी के बीजो की रोपाई का सही समय और तरीका (Linseed Seeds Right time and method Planting)
अलसी के पौधों की रोपाई बीज के रूप में की जाती है | इसके लिए बीजो को खेत में छिड़क कर या ड्रिल विधि का इस्तेमाल किया जाता है | अलसी के बीजो की रोपाई को पंक्तियो में किया जाता है | इसलिए इसके बीजो को लगाने से पहले खेत में एक फ़ीट की दूरी रखते हुए पंक्तियों को तैयार कर लिया जाता है | पंक्तियो में लगाए गए बीजो के बीच में 5 से 7 CM की दूरी का होना जरूरी है |
यदि आप इसके बीजो की रोपाई को छिड़काव विधि द्वारा करना चाहते है, तो उसके लिए आपको बीजो को समतल खेत में छिड़ककर कल्टीवेटर लगा कर हल्की जुताई कर देनी चाहिए | इससे बीज खेत की मिट्टी में अच्छी तरह से मिल जायेंगे | छिड़काव विधि द्वारा बीजो की रोपाई में 40 से 45 KG बीजो की आवश्यकता होती है, वही ड्रिल विधि द्वारा रोपाई करने के लिए 25 से 30 KG की आवश्यकता होती है |
खेत में बीजो की रोपाई करने से पहले यह जरूर ध्यान रखे की बीज कार्बेन्डाजिम या ट्राइकोडर्मा विरीडी की उचित मात्रा से उपचारित होने चाहिए | जिससे इनके बीजो को रोग लगने का खतरा कम होता है | अलसी के बीजो की रोपाई के लिए सिंचित जगहों पर नवंबर का महीना तथा असिंचित जगहों के लिए अक्टूबर के महीने को उचित माना जाता है |
अलसी के पौधों की सिंचाई (Linseed Plants Irrigation)
अलसी के पौधों को अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है | इसके पौधों को केवल दो से तीन सिंचाई की ही जरूरत होती है | जिसमे इसकी आरम्भ की सिंचाई बीज रोपाई के तक़रीबन एक माह बाद की जाती है, तथा दूसरी सिंचाई को पौधों पर फूल लगने के दौरान की जाती है | इसकी अंतिम और तीसरी सिंचाई को बीज बनने की दौरान की जाती है |
अलसी के पौधों में खरपतवार नियंत्रण (Linseed Plants Weed Control)
अलसी के पौधों को बहुत कम ही खरपतवार नियंत्रण की आवश्यकता होती है | इसके पौधों में खरपतवार पर नियंत्रण पाने के लिए प्राकृतिक (निराई – गुड़ाई) तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है | इसके अतिरिक्त रासायनिक विधि का इस्तेमाल करके भी खरपतवॉर पर नियंत्रण पा सकते है | इसके लिए खेत में पेंडीमेथालिन 30 ई.सी. की उचित मात्रा का छिड़काव बीज रोपाई के बाद करना चाहिए |
अलसी के पौधों में लगने वाले रोग एवं उनकी रोकथाम (Linseed Plants Diseases and their Prevention)
उकठा रोग
इस किस्म के रोग किसी भी अवस्था में पाए जा सकते है | इस रोग से प्रभावित हो जाने पर पौधे की पत्तिया अंदर की तरफ मुड़कर मुरझाने लगती है, तथा पत्तिया पीले रंग की होकर गिर जाती है | इस रोग की रोकथाम के लिए ट्राइकोडर्मा की उचित मात्रा का छिड़काव पौधों पर करना चाहिए |
भभूतिया रोग
इस किस्म के रोग को चूर्णिल आसिता नाम से भी पुकारते है | यह रोग अधिकतर बारिश के मौसम में देखने को मिलते है | इस रोग से प्रभावित होने पर पौधे की पत्तियों पर सफ़ेद रंग का चूर्ण इकठ्ठा हो जाता है, और पौधा प्रकाश का संश्लेषण नहीं कर पता है, जिससे पौधे की वृद्धि पूरी तरह से रुक जाती है | थायोफिनाइल मिथाइल का छिड़काव कर इस रोग की रोकथाम की जा सकती है |
फली मक्खी रोग
फल मक्खी रोग एक सामान्य कीट रोग है, जो अक्सर पौधों पर पाया जाता है | लेकिन यह रोग पैदावार को अधिक प्रभावित करता है | एक कीट का लार्वा अपने अंडो को फूलो की पंखुडियो में रख देते है, जिसके बाद पौधे में बीज नहीं बन पाते है | यह रोग पैदावार को 70% तक प्रभावित करता है | यह कीट रोग देखने में नारंगी रंग का होता है, जिसके पंख भी पारदर्शी होते है | इमिडाक्लोप्रिड की उचित मात्रा का छिड़काव कर इस रोग की रोकथाम की जा सकती है |
इसके अतिरिक्त भी अलसी के पौधे में कई तरह के रोग देखने को मिल जाते है, जैसे :- चने की इल्ली, भभूतिया रोग, अल्टरनेरिया झुलसा, गेरुआ आदि |
फसल की कटाई, पैदावार और अलसी का रेट क्या है (Flaxseed Harvesting, Yield, Benefits and Rate)
अलसी के पौधे बीज रोपाई के 120 दिन बाद पैदावार देने के लिए तैयार हो जाते है| जब इसके पौधे पूरी तरह से सूखे दिखाई देने लगे तब करनी चाहिए| इसकी कटाई जड़ के पास से करनी चाहिए| इसके बाद पौधों से बीजो को झाड़कर अलग कर लेना चाहिए| अलग-अलग किस्मो के आधार पर इसकी पैदावार भी अलग होती है | इसके पौधों से 15 क्विंटल बीजो को प्रति हेक्टेयर के खेत में प्राप्त किये जा सकते है, तथा असिंचित जगहों पर प्रतिहेक्टेयर 10 क्विंटल की पैदावार प्राप्त हो जाती है| इसके पौधों से 38% तक रेशो को प्राप्त किया जा सकता है, जिसका बाज़ारी भाव काफी अच्छा होता है| जिस हिसाब से किसान भाई इसकी एक फसल से अच्छी कमाई कर सकते है|